कैसे गुरुदेव ने अयोध्या विवाद को सुलझाने में मदद की

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या विवाद पर निर्णायक फैसला सुनाया। न्यायालय ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि राम जन्मभूमि मंदिर के लिए भारत सरकार की तरफ से बनाये जाने वाले ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया, साथ ही मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ ज़मीन देने का भी निर्देश दिया। तब से कई व्यक्तियों और संगठनों ने इस विवाद को सुलझाने के श्रेय का दावा किया है। हम यहाँ गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के अयोध्या विवाद के निपटारे के लिए गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के सचिवालय से ली गयी सूचना के आधार पर किये गये प्रयासों का अवलोकन करते हैं, जो मानते हैं कि समन्वय और विश्वास की कमी हर टकराव के पीछे के विशेष कारक होते हैं।

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद एक सदी से अधिक के इतिहास में  भारत के सबसे लम्बे समय तक चलने वाले विवादों में से एक है। हिन्दुओं की आस्था और विश्वास है कि उत्तर प्रदेश के उत्तरी राज्य का एक शहर अयोध्या, उनके सबसे प्रतिष्ठित देवताओं में से एक भगवान राम का जन्मस्थान है। यह माना जाता है कि एक प्राचीन राम मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और 1528 में भारत पर विजय प्राप्त करने वाले मुगल सम्राट बाबर ने इसके ऊपर एक मस्जिद का निर्माण किया था। तबसे इस मुद्दे को लेकर साम्प्रदायिक तनाव रहा।

इस ज़मीन के साथ हिन्दुओं का जितना मज़बूत भावनात्मक जुड़ाव रहा है, उतना ही मुस्लिमों का भी रहा है। खासकर, साल 1992 के बाद जब एक उन्मादी भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। इस विध्वंस के बाद भारत के कई हिस्सों में हुए साम्प्रदायिक दंगों में 2,000 से अधिक लोगों की जान चले गयी और अरबों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ था। सात दशक तक चली अदालती लड़ाइयों के बावजूद, विवाद का स्थायी हल निकालने के लिए कोशिशें जारी रहीं, जो राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक जटिलताओं से भरा था। एक पारिस्थितिकी तंत्र में, जिसमें निहित स्वार्थ भी शामिल थे और इस मुद्दे का हल नहीं चाहते थे, शान्तिपूर्ण समाधान के लिए आम सहमति बनाने के लिए यह बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य था।

पहला चरण (2001-2003)

जब गुरुदेव श्री श्री रविशंकर 2001 में दावोस में विश्व आर्थिक मंच को सम्बोधित करने के बाद भारत लौटे, तो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ एक बैठक की। बैठक के दौरान, वाजपेयी ने गुरुदेव से कथित तौर पर पूछा कि क्या वह अयोध्या विवाद के समाधान में हस्तक्षेप कर सकते हैं। उस समय, विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी) भगवान राम के जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर बनाने के आन्दोलन को तेज़ कर रही थी।

एक ऐसी स्थिति में जहाँ हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों अन्याय महसूस कर रहे थे, से एक शान्तिपूर्ण समझौता निकलने की कृपना कर पाना भी मुश्किल था। विश्वास बनाने और बातचीत शुरू करने के इरादे से, गुरुदेव ने सितंबर, 2001 से मार्च, 2002 के बीच दोनों पक्षों के हितधारकों के साथ कई बैठकों में हिस्सा लिया। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दलों के साथ सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से बैठकों में शामिल हुए। दिवंगत वीएचपी नेताओं अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर और डॉ. प्रवीण तोगडिय़ा के साथ भी उनकी इस सम्बन्ध में कई बैठकें हुईं।

गुरुदेव ने नई दिल्ली के ओखला में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यालय में ज़फरयाब जिलानी और कमाल फारुकी सहित मुस्लिम नेताओं के साथ कई बैठकें कीं। इन बैठकों के दौरान कुछ पक्ष बातचीत के ज़रिये समझौता करने के इच्छुक थे। हालाँकि, उनके वकीलों ने उन्हें इंतज़ार करने की सलाह दी, क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा था और अदालती फैसले के ऐलान से कोई भी पक्ष मज़बूत स्थिति में आ सकता है।

नई दिल्ली के शान्ति निकेतन में बुद्धिजीवियों से मुलाकात के बाद गुरुदेव ने एक के बाद एक बैठक में सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् डॉ. सैयदा हमीद, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद, अनुभवी पत्रकार सैयद नकवी, संसद सदस्य जावेद अख्तर और शबाना आज़मी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी के करीबी सुधींद्र कुलकर्णी से बैठकें कीं। इन बैठकों में गुरुदेव की तरफ से प्रस्तावित लाइन पर लोगों ने वार्ता को आगे ले जाने के लिए सहमति जतायी। इसके अत्यधिक सकारात्मक परिणाम सामने आये। तब हितधारकों के एक बड़े प्रतिनिधित्व के साथ बैठक के लिए तारीख और स्थान तय किया गया। आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए भारत के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के करीबी सुधींद्र कुलकर्णी ने कांची शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती के साथ अचानक मध्यस्थता की बातचीत शुरू कर दी। इससे यह स्पष्ट हो गया कि वह गुरुदेव को इस मसले का हिस्सा नहीं बनना देना चाहते थे और इसलिए गुरुदेव ने अपने कदम खींच लिये। हालाँकि, आगामी वार्ता अधिक उत्साहजनक नहीं रही। कुछ मुस्लिम नेताओं में यह धारणा थी कि उन्हें समान भागीदार नहीं माना जा रहा और उन्हें शंकराचार्य की तुलना में कम महत्त्व देने के लिए यह सब किया गया है।

कोर्ई समझौता सामने नहीं आ सकने के बाद गुरुदेव ने फरवरी, 2003 में एक सौहार्दपूर्ण समझौते के लिए अपना फार्मूला सामने रखा। यह सूत्र दया और क्षमा के मूल्यों पर आधारित था। साल 2003 के अन्त तक एक समझौते तक पहुँचने के प्रयास गतिरोध के उच्च स्टार तक पहुँच गये; क्योंकि पार्टियाँ मूलभूत बिन्दुओं पर सामंजस्य स्थापित करने में विफल रहीं।

29 महीने की मध्यस्थता

मार्च, 2017 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने ‘धार्मिक भावनाओं से जुड़े संवेदनशील मुद्दे’ को ‘ले और दे’ के दृष्टिकोण को अपनाते हुए सबसे अच्छा समाधान बताते हुए न्यायालय से बाहर एक समझौते का सुझाव दिया। जून, 2017 में अयोध्या टाइटल सूट में मुख्य वादी निर्मोही अखाड़े के 92 वर्षीय रामचंद्राचार्य ने गुरुदेव से मुलाकात की और उनसे सौहार्दपूर्ण समझौते के लिए प्रक्रिया शुरू करने की अपील की। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कुछ सदस्यों उनके साथ थे।

गुरुदेव नये सिरे से बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सहमत हो गये; क्योंकि  यह राष्ट्र के हित में था। इस प्रकार 29 महीने की मध्यस्थता की लम्बी यात्रा शुरू हुई, जिसके दौरान गुरुदेव ने दोनों पक्षों के नेताओं और मूल वादियों के साथ एक बीच का रास्ता खोजने के लिए मुलाकात की। गुरुदेव ने उन कई लोगों के साथ बैठकों की एक शृंखला की, जो एक समझौते की तरफ बढऩे में भूमिका निभा सकते थे। निर्मोही अखाड़ा से लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तक, मुस्लिम और हिन्दू निकायों से लेकर बुद्धिजीवियों तक, सभी को देश में स्थायी शान्ति और सद्भाव के लिए एक दृष्टिकोण के साथ काम करने के लिए साथ जोड़ा गया। हालाँकि, समय से पहले बातचीत के बिन्दु लीक होने से एक ऐसी संवेदनशील प्रक्रिया, जिसे अभी उड़ान भरनी थी; को उन्मादी आलोचना भी झेलनी पड़ी।

गुरुदेव ने जैसे-जैसे बातचीत जारी रखी, अधिक-से-अधिक पार्टियाँ एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने की प्रक्रिया में उनके समर्थन में मुखर हो गयीं। यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद रिज़वी से लेकर प्रमुख हिन्दू संगठनों के वरिष्ठ नेता जैसे कि निर्मोही अखाड़ा के प्रमुख महंत दीनेंद्र दास, अखिल भारत हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश कौशिक और अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों ने खुलकर उनका समर्थन किया। गुरुदेव ने श्रीराम जन्मभूमि निर्माण आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत जन्मेजय शरण, दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास, मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महल, एआईएमपीएलबी के सदस्य महंत सुरेश दास, दिगंबर अखाड़े के प्रमुख नेताओं, अयोध्या मामले में मूल मुकदमे के वादी के पुत्र, महंत नृत्य गोपाल दास, अध्यक्ष, श्री राम जन्मभूमि न्यास, हाजी महबूब, मुख्य वादियों में से एक, डकोर के महंत राजा रामराचार्य और महंत दिनेंद्र दास, प्रमुख, निर्मोही अखाड़ा, मौलाना तौकीर 200 मिलियन अनुयायियों के साथ सुन्नी मुसलमानों के बरेलवी सम्प्रदाय के प्रमुख और मौलाना शहाबुद्दीन रिज़वी, अखिल भारतीय तनज़ेमुलामा-ए-इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव और कई अन्य के साथ विशेष विचार-विमर्श किया। गुरुदेव ने फरवरी, 2018 में काशी में भारत के विभिन्न हिस्सों से आये हिन्दू संतों और विद्वानों के एक बड़े समूह से मुलाकात की। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से और व्यक्तिगत बैठकों में पूरे भारत के 500 से अधिक इमामों के साथ बातचीत की। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ एक अत्यंत फलदायी बैठक की। इन सभी मुलाकातों का नतीजा बहुत सकारात्मक था और मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग और पादरियों ने शान्तिपूर्ण आउट ऑफ कोर्ट प्रस्ताव के लिए अपना समर्थन देने का वादा किया। संवाद और विश्वास निर्माण की प्रक्रिया को लोगों के बीच बढ़ाते हुए, गुरुदेव ने 15-16 नवंबर, 2017 को अयोध्या के पवित्र शहर का दौरा किया। गुरुदेव की इस धारणा कि दीर्घकालीन और शान्तिपूर्ण समाधान के लिए दोनों ही समुदायों के आध्यात्मिक और धार्मिक नेताओं को एक समान जीत वाले पथ पर पहुँचना होगा; को व्यापक समर्थन मिला।

भावनात्मक रूप से ओतप्रोत इस मुद्दे पर अदालत के एक फैसले से एक समुदाय की भावना को हेस लग सकती थी। ऐसी बहुत सम्भावनाएँ थीं कि सुधार की माँग वर्षों बाद फिर से हो सकती है अगर एक सौहार्दपूर्ण तरीके से इस मसले का हमेशा के लिए निपटारा नहीं किया जाता है। फरवरी, 2018 में, गुरुदेव के साथ आगे की बातचीत के लिए वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल बेंगलूरु आया। प्रतिनिधिमंडल में नदवा (लखनऊ) से सबसे सम्मानित विद्वान, सलमान नदवी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ज़फर अहमद फारुकी शामिल थे।

बैठक एक महत्त्वपूर्ण सफलता के साथ पूरी हुई। देश में साम्प्रदायिक सौहार्द को मज़बूत करने के लिए विवादित भूमि पर दावा करने और मस्जिद को दूसरी जगह स्थानांतरित करने के लिए मुस्लिम समूह के भीतर एक आम सहमति बनायी गयी थी। विद्वानों के समूह ने सुल्तान हुदैबिया (हुदैबिया शान्ति सन्धि) के पैगंबर मोहम्मद के उदाहरण का हवाला दिया, जिसने पुष्टि की कि कैसे मक्का और मदीना शहरों के लोगों के बीच संघर्ष में पैगंबर ने संघर्ष पर शान्ति को प्राथमिकता दी। यह सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था कि उपरोक्त प्रस्ताव सभी के लिए जीत वाली स्थिति बनायेगा, जिसमें मुसलमान एक अरब हिन्दुओं की सद्भावना हासिल करेंगे। यह भविष्य की पीढिय़ों और आने वाली शताब्दियों में इस मुद्दे को हमेशा के लिए खत्म हो जाने के लिए भी याद रखा जाएगा। इस बैठक में गुरुदेव के प्रेम और भाईचारे की भावना से युक्त संयुक्त उत्सव के प्रस्ताव का स्वागत किया गया। उत्सव के हिस्से के रूप में मुस्लिम धर्मगुरुओं को भारत के गाँवों और शहरों में फैले सैकड़ों-हज़ारों राम मंदिरों में आमंत्रित और सम्मानित किया जाएगा।

12 नवंबर, 2018 को अयोध्या के प्रमुख मुस्लिम याचिकाकर्ताओं में से एक हाजी महबूब और प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने गुरुदेव को समर्थन देने और अयोध्या विवाद के एक आउट ऑफ कोर्ट निपटान के लिए उनके साथ काम करने की इच्छा व्यक्त करते हुए एक बयान पर हस्ताक्षर किये। जैसे-जैसे गुरुदेव की लोगों से बातचीत बढ़ती गयी, सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए उनके प्रस्ताव में अधिक-से-अधिक लोग जुड़ते गये। लखनऊ में मार्च, 2018 में आयोजित सिविल सोसाइटी की एक बड़ी उपस्थिति वाली संगोष्ठी ने मुस्लिम धर्मगुरुओं को गुरुदेव के साथ जुडऩे और अयोध्या विवाद का हल निकालने का आह्वान किया। प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने एआईएमपीएलबी के अध्यक्ष मौलाना सैयद मुहम्मद राबे हसनी नदवी और जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी को सम्बोधित अलग-अलग पत्रों पर भी हस्ताक्षर किये। अयोध्या विवाद को सौहार्दपूर्ण और बातचीत के ज़रिये सुलझाने के लिए गुरुदेव के प्रयासों को डॉ. फैंक इस्लाम और प्रो. अली शम्सी का भी समर्थन मिला, जब वह अप्रैल, 2018 में अमेरिका में उनसे मिले।

बाधाएँ भी आयीं सामने

व्यक्ति और समूह जबकि गुरुदेव की पहल का स्वागत और समर्थन कर रहे थे, निहित स्वार्थ मध्यस्थता प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए प्रयासरत थे। वर्षों से अयोध्या मुद्दा न केवल भारत के सबसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में बदल गया था, बल्कि दोनों ओर के कई लोगों के लिए दुधारू गाय बन गया था। उनकी रुचि विवाद को लम्बा खींचने की थी। परिणामस्वरूप इस पहल के पीछे गुरुदेव पर हमले किये गये, यहाँ तक कि उनके इरादों पर भी सवाल उठाया गया। हर बार जब अयोध्या मसले के हल की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति किये जाने के कोशिश हुई, निहित स्वार्थ प्रक्रिया को बाधित करने और पटरी से उतारने में लगे रहे।

इन ताकतों की तरफ से इस्तेमाल की जाने वाली आम तकनीक थी अफवाह फैलाकर हल निकलने के लिए जुटे लोगों को बदनाम करना। मौलाना सलमान नदवी को भी घृणित हमलों का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने 8 फरवरी, 2018 को गुरुदेव के साथ बंगलौर की बैठक में बनी सर्वसम्मति के फार्मूले को सार्वजनिक किया। पूर्ण ईमानदारी से वह एक ऐसे समाधान पर पहुँचना चाहते थे, जो देश में एकता और सद्भाव को बढ़ावा दे। दुर्भाग्य से इस कोशिश के दौरान उन पर पैसा बनाने का झूठा आरोप लगाया गया। एआईएमपीएलबी के कुछ सदस्यों ने यहाँ तक कहा कि उन्हें बोर्ड से बाहर किया जाए।

कई लोगों ने गुरुदेव को सुझाव दिया कि उन्हें मध्यस्थता के काम में शामिल नहीं होना चाहिए और उन्हें चेतावनी दी कि यदि वे इसे जारी रखते हैं, तो उन्हें इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ेंगे। कई हितधारकों, जिन्होंने निजी बैठकों में प्रक्रिया के लिए समर्थन व्यक्त किया, उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और जीवन के लिए खतरे के कारण सार्वजनिक रूप से इन्कार करना पड़ा। हालाँकि, गुरुदेव इस सब से निर्विवाद थे और सबकी जीत से  समाधान तक पहुँचने के लिए और आगे जाने के लिए तैयार थे। ऐसा समाधान जो दोनों समुदायों की संवेदनशीलता को समायोजित करता हो और यह सब संवाद से ही सम्भव था। जनता में कटु चर्चाओं के बावजूद, कई महीनों जो एक माहौल बन रहा था; उसको फरवरी, 2018 में तेज़ी मिली। भले लोगों ने खुले में बोलने में संकोच किया।

निजी रूप से अधिकांश हितधारकों ने विवाद का सौहार्दपूर्ण अंत और समाधान के लिए एकजुटता दिखाई। मध्यस्थता के माध्यम से निपटारे के लिए समर्थन जारी रहा। यह ज्ञात तथ्य है कि अधिकांश हिन्दू और मुस्लिम शान्तिपूर्ण समाधान चाहते थे। अगर विवादित पार्टियाँ बीच का रास्ता निकाल सकतीं, तो इससे पूरे देश को फायदा होता।

कोर्ट-निगरानी में मध्यस्थता

8 मार्च, 2019 को मध्यस्थता के एक विकल्प वाला सुझाव देने के दो सप्ताह बाद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या मामले में शामिल पक्षों को एक गोपनीय, अदालत की निगरानी वाली मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल होने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुदेव को आधिकारिक रूप से इस मामले में तीन मध्यस्थों में से एक के रूप में नियुक्त किया, जिनमें सर्वोच्च न्यायालय के जज एफएम कल्लीफुल्ला और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी थे।

अदालत की निगरानी वाली मध्यस्थता 13 मार्च, 2019 को शुरू हुई। मध्यस्थता पैनल ने कई सुनवाइयाँ कीं। पैनल के सदस्यों ने सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से विवाद वाले पक्षों से मुलाकात की। इसके अलावा वे कई प्रभावितों, निर्णयकर्ताओं और समाज के प्रमुख सदस्यों और सभी समुदायों के नेताओं से भी मिले। अयोध्या मध्यस्थता समिति ने 18 जुलाई, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय को अपनी पहली स्थिति रिपोर्ट सौंपी। अदालत ने समिति को एक निपटारे की दिशा में काम जारी रखने का निर्देश दिया। 31 जुलाई, 2019 को पैनल ने मध्यस्थता में हुई प्रगति पर अपनी दूसरी रिपोर्ट प्रस्तुत की। उस समय कुछ दल मध्यस्थता के पक्ष में नहीं थे और कार्यवाही रुक गयी थी। हालाँकि, 16 सितंबर, 2019 को सुन्नी वक्फ बोर्ड और निरवानी अखाड़ा के दो प्रमुख हितधारकों के अनुरोध पर, अदालत ने मध्यस्थता प्रक्रिया को फिर शुरू करने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया। 16 अक्टूबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के बनाये मध्यस्थता पैनल ने अपनी अंतिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत में सीलबंद कवर में दािखल की। रिपोर्ट में हिन्दू और मुस्लिम पार्टियों के बीच समझौते का विवरण शामिल था।

लोगों के बीच समझ बढ़ाने और तनाव काम करने की दिशा में निश्चित ही प्रगति हुई है। अधिकांश हितधारक शान्ति और भाईचारे का संदेश भेजना चाहते हैं और  सामाजिक समरसता का ताना-बाना मज़बूत करना चाहते हैं। इस लंबे जुड़ाव के दौरान, गुरुदेव ने सभी पक्षों की जीत की स्थिति बनाकर समाज में शान्ति और सद्भाव बनाये रखने के एकमात्र उद्देश्य के साथ काम किया, जिसमें किसी भी समुदाय के मन में अन्याय होने की आशंका नहीं थी।