कैसे खड़ी हो कांग्रेस?

पार्टी में चिन्तन जारी, कांग्रेस में नहीं गयेप्रशांत

भीतरी दुविधाओं और भाजपा के गाँधी परिवार के ख़िलाफ़ लगातार हमलों के बीच फँसी कांग्रेस की चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पी.के.) से भी बात नहीं बन पायी। मसला 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले राज्यों में पार्टी को खड़ा करने का था। प्रशांत किशोर सीधे अध्यक्ष सोनिया गाँधी को रिपोर्ट करते हुए हर फ़ैसले में हस्तक्षेप चाहते थे; लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह मंज़ूर नहीं था। प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल नहीं होंगे। लेकिन इसके बावजूद पी.के. कांग्रेस को एक तटस्थ रणनीतिकार के रूप में सुझाव दे सकते हैं या पार्टी उनकी सेवाएँ ले सकती है। हालाँकि इसका पता भविष्य में ही चलेगा। पार्टी में कई वरिष्ठ और युवा नेता इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि कांग्रेस को राज्यों में खड़ा करना पड़ेगा, जबकि प्रशांत लोकसभा चुनाव के लिए राज्यों के बड़े क्षत्रपों ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव, चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं से मिलकर पार्टी की रणनीति बनाने के हक़ में थे। कांग्रेस को लगता था इससे राज्यों में उसका अपना बचा-खुचा संगठन और आधार भी ख़त्म हो जाएगा। पी.के. के अलग होने के बाद कांग्रेस ने अब अपने तौर पर अगले विधानसभा चुनावों और 2024 के चुनावों के लिए तैयार करने की कोशिश संगठन में फेरबदल करके शुरू कर दी है। राज्यों में नये अध्यक्ष बनाये जा रहे हैं। मई में कांग्रेस का चिन्तन शिविर हो रहा है, जिसमें पार्टी को मज़बूत करने पर गहन चर्चा होगी।

कांग्रेस में शामिल होने और पार्टी की 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बुनने का ज़िम्मा प्रशांत किशोर की आईपैक कम्पनी को मिलने की ख़त्मों के बाद जब मीडिया में यह कयास लग रहे थे कि पी.के. को क्या पद मिलेगा? तभी यह बात सामने आयी कि प्रशांत तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के साथ भी चुनाव पर बात कर रहे हैं। राव वह नेता हैं, जो हाल में काफ़ी सक्रिय हुए हैं और राष्ट्रीय राजनीति में उन्होंने दिलचस्पी दिखायी है। हालाँकि वह कांग्रेस को किसी भी सम्भावित तीसरे मोर्चे का ज़रूरी हिस्सा बताते रहे हैं; लेकिन यह भी ख़त्में रही हैं कि उनकी अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ हैं। हाल में जब राहुल गाँधी तेलंगाना के दौरे पर गये थे, तो उन्होंने राव कुछ नीतियों की आलोचना की थी। लेकिन इसके बावजूद पी.के. कांग्रेस को एक तटस्थ रणनीतिकार के रूप में सुझाव दे सकते हैं या पार्टी उनकी सेवाएँ ले सकती है।

क्या अब यह माना जाए कि प्रशांत किशोर के बिना कांग्रेस का काम नहीं चलेगा? कांग्रेस से बाहर कुछ लोगों ने ऐसी राय ज़ाहिर की है। लेकिन शायद यह सच नहीं है। कांग्रेस सत्ता में लम्बे समय तक और सन् 2004 से सन् 2014 तक बिना प्रशांत किशोर के ही रही। हाँ, प्रशांत किशोर ने उनके और कांग्रेस के बीच किसी गठबंधन के न होने के बाद जाते-जाते एक बात सच कही कि ‘कांग्रेस को आज एक अदद अध्यक्ष की ज़रूरत है।’ उनका यह भी सुझाव था कि पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार अलग-अलग हों। अर्थात् पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार यदि गाँधी परिवार से हो, तो पार्टी अध्यक्ष ग़ैर-गाँधी हो।

शुरू में प्रशांत किशोर और कांग्रेस में काफ़ी चीज़ें मंज़ूरी की तरफ़ बढ़ती दिख रही थीं। लेकिन दो मसलों पर पेच ऐसा फँसा कि बातचीत ही टूट गयी। पहला बड़ा मसला था कि प्रशांत किशोर ने अपने सुझावों में (जिसकी स्लाइड्स उन्होंने पार्टी को दी थीं) प्रियंका गाँधी को पार्टी अध्यक्ष प्रियंका गाँधी को बनाने का सुझाव दिया था और प्रधानमंत्री का किसी और को बनाने का। इसके उलट कांग्रेस हर हालत में राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाना चाहती है। यह भी कहा जाता है कि प्रशांत कांग्रेस को बिहार (राजद आदि), महाराष्ट्र (एनसीपी, शिवसेना आदि) और जम्मू-कश्मीर (नेशनल कॉन्फ्रेंस आदि) जैसे राज्यों में वर्तमान सहयोगियों से अलहदा होने का सुझाव दे रहे थे।

तमाम बातों के बीच प्रशांत किशोर के कांग्रेस से अलग होने को लेकर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा- ‘प्रशांत किशोर के साथ बैठक और चर्चा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने लोकसभा चुनाव 2024 को फोकस करते हुए एक समिति (ईएजी) का गठन किया था, जिसमें चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को शामिल होने को कहा था। लेकिन किशोर ने ऑफर को ठुकराते हुए कांग्रेस में शामिल होने से इन्कार कर दिया। हम उनके सुझावों और प्रयास के लिए उनकी सराहना करते हैं।’

प्रशांत किशोर ने इसे लेकर कहा- ‘मैंने ईएजी के हिस्से के रूप में पार्टी में शामिल होने और चुनावों की ज़िम्मेदारी लेने के कांग्रेस के उदार प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। मेरी विनम्र राय में परिवर्तनकारी सुधारों के माध्यम से गहरी जड़ें जमाने वाली संरचनात्मक समस्याओं को ठीक करने के लिए पार्टी को मुझसे अधिक नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है।’

हाल में उनके कांग्रेस में शामिल होने को लेकर दो बार चर्चा हुई। हालाँकि दोनों बार प्रशांत कांग्रेस में नहीं जा पाये।

‘तहलका’ के जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस के भीतर वरिष्ठ नेताओं का एक ऐसा मज़बूत वर्ग है, जो प्रशांत की सब कुछ उनके ज़रिये किये जाने वाली माँग के कतई समर्थन में नहीं था। यही नहीं, इनमें से कुछ वरिष्ठ नेताओं का नेतृत्व को सुझाव था कि पार्टी की सारी रणनीति एक ऐसे व्यक्ति के सामने उजागर नहीं की जा सकती, जो दूसरे विरोधी दलों के लिए भी काम करता हो। यही कारण रहा कि पी.के. की इस बात पर पार्टी में सहमति नहीं बन पायी कि चुनाव की सारी रणनीति उनके ज़रिये बुनी जाए।

 कांग्रेस के पास विकल्प

कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है। आज भी उसके पास रणनीतिकार वरिष्ठ नेताओं और ऊर्जावान युवा नेताओं की कमी नहीं। यह रिपोर्ट लिखे जाने के समय पार्टी नेतृत्व काफ़ी सक्रिय दिख रहा है और उसने राज्यों में नया नेतृत्व सामने लाने के लिए अध्यक्षों और टीमों की नियुक्ति की है। शायद उसने अपने स्तर पर ख़ुद को हार की धूल झाडक़र उठाने की तैयारी कर ली है।

चुनाव हारने के बाद पंजाब और इस साल चुनाव में जाने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश और पड़ोसी हरियाणा में अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने नये अध्यक्षों और टीम की नियुक्तियाँ की हैं। पंजाब में विधानसभा चुनाव में झटका देने वाली हार के बाद अमरिंदर सिंह राजा वारिंग, हिमाचल में पूर्व मुख्यमंत्री और क़द्दावर नेता रहे दिवंगत राजा वीरभद्र सिंह की तीसरी बार सांसद बनी पत्नी प्रतिभा सिंह और हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के विश्वस्त उदय भान को अध्यक्ष बनाया गया है।

पार्टी के संगठन चुनाव से पहले, जिसमें पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होना है; कांग्रेस की यह बड़ी क़वायद है। कांग्रेस में हाल के महीनों में एक नयी परम्परा शुरू हुई है। पंजाब में उसने अध्यक्ष के अलावा कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाये थे, जिसके बाद हिमाचल और हरियाणा में भी यही करते हुए चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाये हैं। शायद ऐसा करने के पीछे उसका मक़सद राज्यों में सभी क्षेत्रों में नेताओं को प्रतिनिधित्व देकर शान्त करना हो; लेकिन इससे यह भी होगा कि एक से अधिक शक्ति केंद्र स्थापित हो जाएँगे। वैसे कई नेता इस विचार को सही ठहराते हैं। उनका कहना है कि इससे संगठन मज़बूत होगा; क्योंकि इन नेताओं को ज़िम्मेदारी के अहसास के कारण काम करने की प्रेरणा मिलेगी।

कांग्रेस में अब अन्य राज्यों में बड़े स्तर पर फेरबदल की तैयारी कर ली गयी है। यही नहीं, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की लम्बे समय के बाद 10 जनपथ में वापसी हुई है। दिग्विजय सिंह सन् 2017 के बाद राजनीतिक बियाबान में थे। उनके अलावा वरिष्ठ नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, अम्बिका सोनी, जयराम रमेश, मुकुल वासनिक और पी. चिदंबरम ने सोनिया गाँधी के साथ लम्बी बैठकें करके संगठन पर चर्चा की। वरिष्ठ नेता $गुलाम नबी आज़ाद भी नयी भूमिका में दिख सकते हैं। यह तय है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता, जो फ़िलहाल अलग-थलग पड़े हुए थे; कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय किये जा रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी अभी से 2024 के राष्ट्रीय चुनाव की तैयारियों में दिख रही हैं। प्रशांत किशोर के सुझाव के बाद सोनिया गाँधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक करके एक ‘एम्‍पावर्ड एक्‍शन ग्रुप 2024’ बनाया है। यही ग्रुप 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर रणनीति बनाने का काम करेगा। पार्टी की तरफ़ से प्रशांत को भी इसी ग्रुप का हिस्सा बनने का ऑफर था; लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इन्कार कर दिया।

कांग्रेस नेतृत्व ने हाल में यह भी संकेत दिये हैं कि वह पार्टी से बाहर गये नेताओं को वापस लेने की इच्छुक है। इसके अलावा पार्टी नेतृत्व नेताओं को बाहर जाने से रोकने की क़वायद करने की भी सोच रहा है। हाल में पार्टी की अनुशासन समिति ने दो बड़े नेताओं पंजाब के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ और पूर्व केंद्रीय मंत्री के.वी. थॉमस के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की सिफ़ारिश की थी। हालाँकि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने उन्हें पार्टी से बाहर करने की सिफ़ारिश स्वीकार न करते हुए उन्हें सिर्फ़ वर्तमान पदों से बाहर किया। ज़ाहिर है सोनिया नरम रवैया अपनाने की रणनीति पर काम कर रही हैं।

 

चिन्तन शिविर में होंगे कई फ़ैसले

कांग्रेस 13-15 मई तक राजस्थान के उदयपुर में नवसंकल्प चिन्तन शिविर आयोजित कर रही है। इस शिविर में 400 प्रतिनिधि भाग लेंगे, जिनमें वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता आदि होंगे। देश भर के पार्टी नेता इसमें आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे। इसका फ़ैसला करने के लिए जो नेता 10 जनपथ पर हुई लम्बी बैठक में जुटे थे, उनमें के.सी. वेणुगोपाल, दिग्विजय सिंह, अंबिका सोनी, सुरजेवाला, जयराम रमेश और प्रियंका गाँधी शामिल हैं। राहुल गाँधी इसमें शामिल नहीं हुए।

चिन्तन शिविर में पार्टी के भविष्य के एजेंडे का ख़ुलासा हो जाएगा। चिन्तन शिविर में पूरे देश के कांग्रेस नेता जुटेंगे। पार्टी के तमाम सांसद, विधायक, प्रदेश प्रभारी, प्रदेश महासचिव, प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता शामिल होने के चलते इसे कांग्रेस का महाकुंभ कहा जाता है। चिन्तन शिविर में छ: प्रस्ताव पारित होंगे। इस प्रस्तावों के लिए छ: अलग-अलग नेताओं की अगुवाई में राजनीतिक समितियाँ बनायी गयी हैं। ये समितियाँ पार्टी के नये एजेंडे यानी विजन डॉक्यूमेंट को तैयार करेंगी।

दिलचस्प बात यह है कि असन्तुष्ट चल रहे नेताओं, जिन्हें जी-23 कहा जाता है, के 5 नेताओं को इन समितियों में सोनिया गाँधी ने शामिल किया है। ऐसे में यह बड़े बदलाव की ओर संकेत है। राजस्थान से केवल सचिन पायलट को इन राजनीतिक कमेटी में शामिल किया गया है। ग़ुलाम नबी आज़ाद सहित कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा, पी.जी. कुरियन, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, भूपिंदर सिंह हुड्डा, राजिंदर कौर भट्ठल, एम. वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, अजय सिंह, राज बब्बर, अरविंद सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, अखिलेश प्रसाद सिंह, कुलदीप शर्मा, योगानंद शास्त्री, संदीप दीक्षित, विवेक तन्खा जैसे नेता इसमें शामिल हैं।

हालाँकि उदयपुर में होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय चिन्तन शिविर के लिए छ: राजनीतिक समितियाँ बनायी गयी है। ये समितियाँ पार्टी के नये एजेंडे तय करेगी। इसमें संगठनात्मक बदलाव, राजनीतिक नियुक्तियाँ, यूथ एंड एम्पॉवरमेंट, आर्थिक, सोशल एम्पॉवरमेंट और खेती किसानी से जुड़े बड़े मुद्दों को लेकर पार्टी का विजन डॉक्यूमेंट तैयार करेंगी। इन समितियों में उन पाँच नेताओं को शामिल किया गया है, जिन्होंने केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल खड़े किये थे। इनमें ग़ुलाम नबी आज़ाद, शशि थरूर मुकुल वासनिक, भूपिंदर सिंह हुड्डा और आनंद शर्मा शामिल हैं। सचिन पायलट, जिन्होंने बग़ावत के संकेत दिये थे; को भी उदयपुर में होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय चिन्तन शिविर में ख़ास तवज्जो दी गयी है।

जिन पर रहेगी नज़र

ग़ुलाम नबी आज़ाद : जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे, कई बार केंद्र में मंत्री बने, पार्टी का बड़ा मुस्लिम चेहरा, पार्टी की नब्ज़ पहचानने वाले नेता।

सचिन पायलट : राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री, ऊर्जावान नेताओं में शामिल।

दिग्विजय सिंह : मध्य प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे, संगठन पर मज़बूत पकड़, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना और असम जैसे राज्यों के प्रभारी रहे, जहाँ लोकसभा की क़रीब 250 सीटें हैं।

शशि थरूर : पूर्व केंद्रीय मंत्री, अपनी बात साफ़ रूप से कहते हैं।

मुकुल वासनिक, भूपिंदर सिंह हुड्डा और आनंद शर्मा : सभी पार्टी के दिग्गज नेता हैं और विभिन्न पदों पर रहे हैं। पार्टी के लिए भूमिका निभाने में सक्षम।

क्या चाहते थे प्रशांत किशोर?

प्रशांत किशोर चाहते थे कि सोनिया गाँधी पूर्णकालिक कांग्रेस अध्यक्ष बनें। एक कार्यकारी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष गाँधी परिवार से बाहर का बने। राहुल गाँधी को संसदीय दल का नेता बनाया जाए। ग़ैर-गाँधी कार्यकारी या उपाध्यक्ष वरिष्ठ नेतृत्व के आदेशों के तहत हो। कांग्रेस आम लोगों के बीच पैठ मज़बूत करे। पार्टी गाँधीवाद के अपने सिद्धांतों पर ही चले। गठबंधन साथियों को बराबर भरोसे में रखे। पार्टी एक परिवार-एक टिकट के फॉर्मूले पर सख़्ती से चले। सिर्फ़ चुनाव के ज़रिये ही पार्टी के संगठन प्रतिनिधि चुने जाएँ। अध्यक्ष और कार्यकारी समिति सहित हर पोस्ट के लिए एक समय सीमा (कार्यकाल) तय किया जाए। क़रीब 15,000 ज़मीनी नेताओं के साथ एक करोड़ कार्यकर्ता मैदान में मज़बूती से काम करें। क़रीब 200 प्रभावी लोगों, कार्यकर्ताओं और सिविल सोसायटी के लोगों का ग्रुप बनाया जाए। प्रशांत का सुझाव गठबंधन से जुड़े मुद्दे को सुलझाने और पार्टी के संवाद सिस्टम में बदलाव पर ज़ोर के अलावा देश की जनसंख्या, मतदाता, विधानसभा सीटें, लोकसभा सीटों तक के आँकड़े तैयार रखने पर था। उन्होंने अपने सुझावों में महिलाओं, युवाओं, किसान और छोटे व्यापारियों की संख्या तक का ज़िक्र किया, जिसमें 2024 में 13 करोड़ फस्र्ट टाइम वोटर्स पर भी नज़र रखने की बात थी। उनकी प्रेजेंटेशन में बताया गया कि कांग्रेस के राज्यसभा और लोकसभा के मिलकर 90 सांसद, जबकि देश भर में 800 विधायक हैं। दो राज्यों में सरकार, जबकि दो में सहयोगी दलों के साथ सरकार है। वहीं 13 राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। तीन राज्यों में कांग्रेस सहयोगियों के साथ मुख्य विपक्षी दल है। कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने के लिए प्रशांत किशोर ने तीन फॉर्मूले बताये। एक यह कि कांग्रेस देश भर में अपने बूते चुनाव लड़े। दूसरा यह कि कांग्रेस भाजपा और मोदी को हराने के लिए सभी पार्टियों के साथ आये और यूपीए को मज़बूत कर मुख्य विपक्षी गठबंधन बनाया जाए। तीसरे यह कि कुछ जगह कांग्रेस अकेले चुनाव में उतरे, जबकि कुछ जगह गठबंधन सहयोगियों के साथ। कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी होने की अपनी छवि को बचाकर रखे।