कुदरत की गोद में पंछियों का मेला

उदयपुर से 45 किलोमीटर दूर मेनार गाँव टापुओं से अटे इन जलाशयों में कलंगीधारी बत्तख सरीखे पक्षी धीमे-धीमे तैरते नज़र आते हैं। यहाँ हर साल पक्षी प्रेमी आते हैं। इस बार के मेला कैसा रहा बता रहे हैं विजय माथुर

दो उफनते जलाशयों के बीच हरे-भरे बागानों की गोद में रचे-बसे मेनार गाँव का इससे ज़्यादा दिलफरेब अछूता सौंदर्य और क्या होगा कि यहाँ सुर्ख पलाश सरीखे दमकते मुकुलित पंखों से परवाज़ भरते हज़ारों प्रवासी पंछी भोर की धुँध में कपसीले बीजों की तरह फैल जाते हैं। उदयपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर मेनार गाँव कुदरत की सुरम्य गोद में बसा है। इसकी शान्त, मनोरम और सुकून भरी आबोहवा देश-देशांतरों के मीलों लम्बे फासले से कुलाँच भरकर आने वाले परिन्दों को पनाह देती है। करीब 150 िकस्म की प्रजातियों के पखेरुओं का रमण स्थल ‘बर्ड विलेज’ के नाम से विश्व में पहचान बनाये हुए है।

यहाँ 9 जनवरी से 12 जनवरी तक बर्ड फेयर भी आयोजित होता है। इस आयोजन का सबसे बड़ा आकर्षण तालाबों के घाट पर बसेरा करने वाले ग्रेट क्रिस्टेबग ग्रेब प्रजाति के पक्षी हैं, जो देशांतरों की लम्बी दूरी तय करके यहाँ आते हैं। इन पखेरुओं को यहाँ का पारिस्थितिकी तंत्र इस कदर रास आया है कि यहीं प्रजनन करने लगे हैं। स्वनिर्मित तालाब भी पक्षियों के लिए पूरी तरह अनुकूल है। यानी कहीं छिछला तो कहीं गहरा है, जो स्वत: ही आदर्श जलीय परिस्थितिकी का निर्माण करता है। उदयपुर से मेनार जाने वाली धूल भरी सडक़ अचानक एक अचम्भे के साथ खत्म हो जाती है और आप अपने आपको विशाल हरे दरवाज़े के सामने खड़ा पाते हैं। इसके आगे हरे-भरे बलूत से दरख्त चंदोबे की तरह लहलहा रहे हैं। झुरमुटों से एक रास्ता जलाशयों की तरफ ले जाता है। टापुओं से अटे इन जलाशयों में कलंगीधारी बत्तख सरीखे पक्षी धीमे-धीमे तैरते नज़र आते हैं।

तालाबों के घाट भी इस तरह बनाये गये हैं कि पक्षियों की गतिविधियों को देखने निहारने में कहीं कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती। टापुओं से रचे-बसे जलाशय कलरव करते पक्षियों केा किलोल करने की पूरी आज़ादी देते हैं। हालाँकि यहाँ पक्षियों के आने की शुरुआत तो सर्दी की दस्तक के साथ ही हो जाती है। लेकिन जनवरी शुरू होते-होते तो मेनार पक्षियों की विराट कायनात में तब्दील हो जाता है। मुख्य वन्य जीव संरक्षक प्रवीण का कहना है कि इस बार तकरीबन 400 पक्षियों का जमावड़ा लगा। इनमें मुख्य रूप से मार्का टेरिधार, ऐंड शेक, वार हैंडेड गूँज, ग्रेलेग गूँज, ग्रेटा, कारपोरेट, स्नेक बड्र्स, ग्रे फ्रेंकलिन, सेंड पाइपर्स, लेपविंग, बेंगरेलस, पिपिट्स तथा कई तरह के चील, कौवे और कबूतर आदि मुख्य है। प्रवीण बताते है कि पिछले छ: साल से आयोजित किये जा रहे इस उत्सव का मकसद लोगों को मेवाड़-बागड़ की जैव विविधता से परिचित करवाना है। वे कहते हैं कि हमारा लक्ष्य इसे बेस्ट बर्ड वाचिंग डेस्टिनेशन के रूप में स्थापित करना है। इस मौके पर होने वाले मुख्य आयोजनों का ब्यौरा देते हुए कहते हैं कि यहाँ एक हज़ार से अधिक विद्यार्थियों और अतिथियों को ‘बर्ड वाचिंग’ करवायी जाएगी। इसके अलावा नेचर लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन भी होगा। यह ऐसा अनूठा मेला है, जहाँ पक्षियों से अनुराग रखने वाली परिचित-अपरिचित अनेक शिख्सयतें टहलती नजर आएँगी। मेला क्षेत्र को कई परिसरों में बाँटा गया है, जैसे- धरोहर, संगीत-रंगमंच, यात्रा और प्रसंगवश एक प्रांगण चिन्तन का भी है। प्रदर्शनी स्थल पर विश्व भर में पक्षियों पर जारी किये डाक टिकटों की प्रदर्शनी भी लुभाएगी। प्रदर्शनी में छ: प्रजातियों की तितलियों के जीवन चक्र का लाइव प्रदर्शन भी किया जाएगा। हालाँकि, उत्सव की शुरुआत ‘बर्ड रेसिंग’ से होगी। सूत्रों की मानें तो तालाबों में मछलियों के शिकार पर पाबंदी है, ताकि पक्षियों को भरपूर भोजन मिल सके। इसके अलावा चौतरफा फैली हरियाली की वजह से परिन्दे बड़े मज़े में आस-पास के खेतों में चहलकदमी कर लेते हैं।

लेकिन पक्षियों के जीवन का अध्ययन कर चुके विशेषज्ञों का यह कथन बेहद कचोटने वाला है कि क्या हम पक्षियों के संरक्षण का दावा कर सकते हैं? क्या पिछली घटनाओं से हम कोई सबक सीख पाये? आधुनिक जनजीवन और रहन-सहन ने पक्षियों की कितनी प्रजातियों को नष्ट कर दिया? हम कहाँ देख पाये? सवाल है कि आज चील, कौवे या गिद्ध कहाँ और क्यों गायब हो गये? उधर एक भयानक पक्षी त्रासदी के बाद सांभर झील एक बार फिर प्रवासी पखेरुओं का बसेरा बन गयी है। इन दिनों फ्लेमिंग पक्षियों के झुंड यहाँ खास आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। फ्लेमिंग पक्षियों को किसी तरह का खलल पसन्द नहीं है। शान्त और छिछली झील में इन पक्षियों की जल क्रीड़ाएँ मनमोहक दृश्य उत्पन्न करती है। इन विदेशी पखेरुओं की विशेषता है कि ये अपने परिजनों के साथ रहकर ही भोजन तलाशते हैं। जब फ्लेमिंग आकाश में उड़ान भरते हैं, तो यह दृश्य अद्भुत होता है। जो कम ही देखने को मिलता है। इन दिनों सांभर झील ने फ्लेमिंग पक्षियों के अलावा जलचरों में शालतर, पिपनेरा, जलमुर्गी और टिटहरी समेत 50 से अधिक प्रजातियों आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। देश-देशातंरों से आने वाले दुर्लभ प्रजाति के प्रवासी पक्षी भारत की तरफ ही रुख क्यों करते हैं? पक्षियों के इस रुझान के बारे में पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर भोगोलिक कारणों केा समझे तो भारत की समुद्र तटीय रेखा भी विशाल है। फिर भारत में पर्याप्त मात्रा में उष्णकटिबंधीय जंगल पाये जाते हैं। इसलिए पखेरू इन जंगलों को छोडक़र समुद्र की तरफ क्यों रुख करेंगे? एक और रुझान को समझें तो भारत के उत्तर में विशाल हिमालय है। यहाँ वर्ष भर भयानक ठंड पड़ती है। हिमालय को को पार करना पक्षियों के लिए लगभग असम्भव है। भारत की पश्चिमी सरहदों में थार मरुस्थल है, जो अत्यधिक गर्म है। इस भयंकर मरुस्थल को पार कर दूसरी तरफ जाना भी पक्षियों के लिए असम्भव है। नतीजतन उनका रुख भारत की तरफ ही होता है। भारत में न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही अधिक सर्दी। यह मौसम पक्षियों को पूरी तरह रास आता है। नतीजन प्रवासी पखेरू बेशक भारत के जंगलों में स्थान बदलते रहते हैं? लेकिन अन्य देशों की तरफ रुख नहीं करते। सबसे दिलचस्प बात है कि विश्व भर के पक्षी बेशक भारत आते हैं, लेकिन भारत का कोई पक्षी अन्य देशों की तरफ उड़ान नहीं भरता।