कुछ छोटे बदलाव, बीमारी से बचाव

पानी कम पीने और अस्वस्थ जीवनशैली के कारण शरीर में कुछ ऐसे अपशिष्ट पदार्थ बच जाते हैं, जो पेशाब के ज़रिये पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाते, तब वे किडनी में ही एकत्रित होते जाते हैं और पथरी का रूप ले लेते हैं। शुरू पथरी छोटे कणों के रूप में होती है। उनमें से बहुत से कण तो पेशाब के साथ बाहर आ जाते हैं। जो कण अंदर जमा होते रहते हैं तो उनका आकार बढ़ जाता है।

पथरी भी कई तरह की होती है। कैल्शियम ऑक्सलेट, कैल्शियम फास्फेट, यूरिक एसिड और सिस्टेन। कैल्शियम आक्सलेट के स्टोन अधिक होते हैं। कई लोगों को यूरिन इंफेक्शन की शिकायत अधिक रहती है या पेशाब नली बन्द होने की। ऐसे मरीज़ों को पथरी की आशंका अधिक होती है। कुछ बातों को समझकर अगर हम अपनी जीवनशैली में सुधार ले आयेँ, तो हम पथरी से अपना बचाव कर सकते हैं :-

नमक का सेवन करें कम

जो लोग सोडियम का अधिक सेवन करते हैं, उनकी किडनी कैल्शियम को अधिक एब्जार्ब करती हैं, जिससे पेशाब में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है। सोडियम अधिकतर डिब्बाबन्द भोजन सामग्री में, जंक फूड, नमक, रेडी-टू-ईट भोजन और चाइनीज फूड में होता है। भोजन में नमक का सेवन कम करें और जंक फूड, चाइनीज फूड और डिब्बाबन्द भोजन से परहेज़ करें। भोजन में धनिया, नींबू, लहसुन, अदरक, करी पत्ता, काली मिर्च का प्रयोग करें।

पशुओं से प्राप्त होने वाले प्रोटीन से बचें

गाय, भैंस के दूध और उनसे बने उत्पाद का सेवन कम करें। इनमें प्यूरीन नामक तत्त्व होता है, जो पेशाब में यूरिक एसिड की मात्रा को बढ़ा देता है। इनके अधिक सेवन से पेशाब से अधिक कैल्शियम निकलने लगता है। मीट में भी प्यूरीन प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इसके अतिरिक्त चुकंदर, ब्रोकली, भिंडी, पालक, शकरकंद, ब्लैक टी, टमाटर, चाकलेट, सोयाबीन में ऑक्सलेट की मात्रा अधिक होती है, इनका सेवन भी कम कर दें। अगर आप कैल्शियम सप्लीमेंट लेते हैं, तो डॉक्टर से परामर्श करें।

अच्छा नहीं ज़्यादा विटामिन-सी

विटामिन-सी की अधिक मात्रा भी पथरी के खतरे को बढ़ाती है। विटामिन-सी खट्टे रसेदार फलों में अधिक होता है। विटामिन-सी सप्लिमेंट भी डॉक्टर से पूछ कर लें।

अन्य बदलाव जीवन शैली में

पेशाब को लम्बे समय तक न रोकें।

अगर अधिक पसीना आता हो, तो पेशाब कम आता है। पेशाब कम आने से पेशाब के ज़रिये बाहर निकलने वाले पदार्थ किडनी में जमा हो जाते हैं, इससे पथरी बनती है। पानी अधिक पीयेंं।

कोल्ड ड्रिंक्स, पैक्ड जूस, चाय-काफी का सेवन कम-से-कम करें।

अगर आप पानी कम पीते हैं, तो हर सप्ताह एक गिलास पानी की मात्रा बढ़ाएँ, ताकि पानी पीने की आदत में सुधार आ सके।

पथरी कौन-सी है, उसी आधार पर अपना आहार निर्धारित करें। डॉक्टर से पूछकर अपना डाइट चार्ट बनवाएँ।

100 वर्ष जीवन कैसे पाएँ?

एक प्रसिद्ध कहावत है- अपना आज सँभालो, आपका कल सुरक्षित हो जाएगा। आज बूँद-बूँद घड़ा भरो, कल वह घड़ा आपके काम आयेगा। जवानी सँभालकर रखो, बुढ़ापा सँवर जाएगा। 100 वर्ष जीने वालों के सर्वेक्षण से पता चला कि उन्होंने जवानी में भरपूर स्वास्थ्यवर्धक पौष्टिक भोजन किया, व्यायाम किया और चिन्तामुक्त जीवन बिताया।

जो लोग आलसी नहीं हैं, वे हर समय उत्साह से भरे रहते हैं। जो किसी-न-किसी कार्य में संलग्न रहते हैं, वे प्राय: दीर्घजीवी होते हैं। वैसे तो मृत्यु और जीवन का समय निश्चित है। इसे घटाना-बढ़ाना किसी के बस में नहीं। लेकिन जीवन को सुन्दर बनाना, सफर को सुहावना और आनन्दमय बनाना तो आपके बस में है।

कोई भी बीमारी अकस्मात् नहीं आती। पहले उसका कारण एवं जड़ बनती है, तभी वह पनपती है। बीमारी कभी अपने आप नहीं आती। उसे हम निमंत्रण देते हैं, तभी वह आ घेरती है।

यह प्रकृति के अनुसार ही है कि जीवेम् शरद-शतम्। चलता हुआ आदमी और दौड़ता हुआ घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता। आप सोयें, तो सुहाने विचार लेकर; जागें, तो सुनहरे सपने लेकर; जीयें, तो ज़िन्दादिली एवं खुशमिज़ाजी एवं खुशदिली के साथ। मन का बुढ़ापा ही तन का बुढ़ापा लाता है। मानसिक थकान से ही शारीरिक थकान आती है। मानसिक परेशानियाँ शरीर को जर्जर और खण्डहर बना देती हैं। भोजन खाते वक्त प्रसन्न मन से एवं डूबकर खाना चाहिए। हम महँगी दवा तो खा सकते हैं, परन्तु पौष्टिक भोजन नहीं खा सकते। हम सब कई बार रात का रखा भोजन प्रात: गर्म करके खाने के आदी हैं। इससे हमारी सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि 12 घण्टे में भोजन में रासायनिक एवं जैविक क्रियाएँ सम्भावित हैं।

चिड़चिड़ा स्वभाव, बात बात में झुँझलाना, क्रोधित होना, मीन-मेख निकालना एक भयंकर रोग है। इससे जितनी जल्दी हो सके, छुटकारा पा लेना चाहिए अन्यथा जल्दी बीमारियाँ शुरू हो सकती हैं। हमेशा सुखद विचार, सुन्दर कल्पनाएँ व उत्तम व्यवहार बनाये रखें। तन मन, घर परिवार, मित्र परिचित, सभी आपसे प्रसन्न रहेंगे। मधुर बोलें। कड़वी बात किसी के मुँह पर मत कहें। विनम्र एवं प्रसन्न रहने की आदत डालें।

वैज्ञानिकों का कथन है कि यदि कुविचार दिमाग में आयेँ, तो उनका विपरीत प्रभाव शरीर की कोशिकाओं पर ज़रूर पड़ता है। इसी प्रकार प्रसन्न मानसिक स्थिति का शरीर कोशिकाओं पर उचित एवं ठीक प्रभाव पड़ता है। बातूनी व्यक्तियों की अपेक्षा शान्तचित्त वाले व्यक्ति दीर्घजीवी होते हैं। यह शोध का परिणाम है, अत: शान्त एवं प्रसन्न रहें और दीर्घजीवी बनें।

(स्वास्थ्य दर्पण) नीतू गुप्ता एवं विजेन्द्र कोहली