किसी धर्म को मानना या अपनाना व्यक्तिगत आस्था का मामला : हाईकोर्ट

धर्मांतरण पर रोक लगाए जाने की मांग वाली याचिका सुनने से अदालत का इनकार

देश में किसी भी धर्म को मानना व्यक्तिगत आस्था का मामला है। दूसरे धर्म को अपनाना या न अपनाना यह व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर है। दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी शुक्रवार को धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को सुनने से इनकार करने के दौरान की। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने याचिकाकर्ता भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय से कहा, आप अपनी याचिका वापस ले लें क्योंकि हम इसे खारिज नहीं करना चाहते।

हाई कोर्ट ने भाजपा नेता और वकील से कहा, आप याचिका वापस क्यों नहीं लेते? क्यों न हम इसे खारिज कर दें? इसके बाद उपाध्याय ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिस पर कोर्ट ने मंजूरी दे दी। इससे पहले पीठ ने पूछा था कि हमें बताएं कि धर्मांतरण को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? अगर कोई किसी को धमकी दे रहा है या डरा रहा है, तो भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है। किसी व्यक्ति को दूसरे धर्म को अपनाने के लिए धमकी, चेतावनी या फिर प्रलोभन से लुभाए जाने की कोई वजह नहीं नजर आती है।

भाजपा नेता ने याचिका में कहा था कि बहला-फुसलाकर या लालच देकर और जबरन धर्मांतरण मूल अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने याचिका में दावा किया कि धर्मांतरण कराने वाले अंधविश्वास और चमत्कार के सहारे गरीब, किसान, गैर पढ़े-लिखे मजदूर, दलित, शोषितों को झांसे में ले लेते हैं और उनका धर्म परिवर्तन करा देते हैं।

याचिका में कहा गया कि पूर्वोत्तर राज्यों में धर्मांतरण कराने के लिए हिंदू नहीं बचे हैं, इसलिए ये संस्थायें अब उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में सुनियोजित तरीके से गरीबों का धर्मांतरण कर रही हैं। पिछले दिनों यूपी के कई जिलों में इस तरह के मामले सामने आने का दावा किया गया।

बताया गया कि यूपी के जौनपुर में तो ईसाई मिशनरी ने एक पूरे गांव का ही धर्म परिवर्तन करवा दिया था। मामले में पुलिस ने पादरी समेत 271 लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया था। दावा किया गया कि ऐसे ही मामले कई जगह से सामने आए थे जहां गरीब, अशिक्षित लोगों को लालच और धोखे से उनका धर्म परिवर्तन करा दिया गया। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आते हैं।