किसानों के नाम पर मगरमच्छ के आँसू बहा रहे हैं राजनीतिक दल : राजू शेट्टी

महाराष्ट्र में किसानों के मुद्दों पर लडऩे वाले स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के राजू शेट्टी हमेशा की तरह मौसम की मार झेल रहे किसानों के साथ उनके सुख-दु:ख बाँटने निकले हैं। शेट्टी का दावा है कि पिछले 15-20 दिनों में लगभग 40 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। वह कहते हैं कि भीतर से टूट चुके किसानों को सरकार की ओर से मोरल सपोर्ट की ज़रूरत है, जो नहीं मिल पा रही है। तहलका के मनमोहन सिंह नौला ने उनसे इस मुद्दे पर बातचीत की

आप कह रहे हैं कि किसानों को सरकार की तरफ से मोरल सपोर्ट नहीं मिल रही है। लेकिन लगभग सभी सियासी दल उनकी मदद के लिए उनसे मिलने जा रहे हैं?

सभी दलों का किसानों के प्रति प्रेम जाग उठा है; यह अच्छी बात है। लेकिन कितने दिनों तक?  4 दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात। किसानों के प्रति जितने भी राजनीतिक दलों का अचानक प्यार जाग उठा है यह मगरमच्छ के आँसू हैं।

इनको किसी से कुछ लेना-देना नहीं है; क्योंकि किसान तो पिछले 15 -20 दिनों से परेशान हैं। वे पहले अति बारिश से जूझ रहे थे, अब बेमौसम बारिश से; यानी 365 दिन परेशान। कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब जब एकाएक सरकार नहीं बन रही है; जनता इनको गालियाँ दे रही है; तो सबके-सब किसानों के पीछे पड़ गए। उनको किसान अब याद आ रहा है, यह है सच्चाई।

दरअसल, सरकार नहीं बन रही है। इससे आम लोगों में बहुत ग़ुस्सा है। ख़ास करके महाराष्ट्र ग्रामीण क्षेत्र के जो किसान हैं, मादूर हैं, इस बारिश में उनका बहुत नुकसान हो चुका है। वेस्टर्न महाराष्ट्र, नॉर्थ महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ सभी क्षेत्रों में किसान तकरीबन बर्बाद हो चुका है। किसानों को एक मोरल सपोर्ट की ज़रूरत थी। वह सब कुछ सरकार दे सकती थी; लेकिन जब सरकार ही नहीं है, तो किसान किसकी तरफ देखेगा मदद के लिए?  महाराष्ट्र में एकदम विषम स्थिति आ चुकी है। दूसरी तरफ से सभी लोग सत्ता संघर्ष में व्यस्त हैं। यह कैसी विडंबना है। पछले 15-20 दिनों में 40 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है; क्योंकि किसानों को लग रहा है कि उनकी सहायता करने वाला कोई है ही नहीं; वे डेमोरलाइज हो चुके हैं। सबसे ज़्यादा मराठवाड़ा में वेस्टर्न महाराष्ट्र में आत्महत्या हुई है; विदर्भ में हुई है।

इतने गंभीर मसले पर आप भी तो आवाज़ नहीं उठा रहे हैं। आप लोग इस मामले को क्यों नहीं उठा रहे?

नहीं, नहीं; ऐसा नहीं है। हम इस इश्यू को लगातार उठा रहे हैं। लेकिन मीडिया का ध्यान िफलहाल इससे ज़्यादा इस पर लगा है कि सत्ता कौन बनाएगा? सत्ता का क्या खेल चल रहा है? किसानों की दुर्दशा पर तो अभी-अभी अटेंशन गया है। मैं मराठवाड़ा में दो-तीन परिवार से मिल चुका हूँ। हाल-िफलहाल में मैं उस्मानाबाद िज़ले के मराठवाड़ा में भी गया। उस्मानाबाद में तो नहीं, लेकिन लातूर में इस तरह का एक मामला हुआ है।

किसानों की मुख्य परेशानी क्या है?

सबसे बड़ी परेशानी है फसलों का नुकसान और सरकार का रवैया। किसानों का बुरी तरह से नुकसान हुआ है। धान, कपास, सोयाबीन, उड़द, मक्का, ग्राउंडनट सभी फसलें खराब हुई हैं। यह बर्बादी का आलम है।

सरकारी आँकड़ा कितना सच है फसलों के नुकसान को  लेकर?

सरकारी आँकड़ा कहता है कि 70 लाख हेक्टर का नुकसान हुआ है; लेकिन यह आँकड़ा उससे भी ज़्यादा है, तकरीबन 90 लाख हेक्टर। मेरे हिसाब से 80 प्रतिशत इलाका क्षतिग्रस्त है।

जिन किसानों से आप मिले हैं। उनकी क्या माँग है?

किसानों की माँग है कि उनको सीधे कज़ऱ् मुक्त कर दिया जाए। वह कहते हैं हम कर्ज़ा वापस नहीं कर सकते, क्योंकि सूखे की वजह से हम लगातार दो साल से नुकसान में हैं। इस साल बारिश से सब तबाह हो चुका है, तो हम कर्ज़ा तो वापस नहीं कर सकते हैं। जो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना है, वह बेकार साबित हो चुकी है। किसानों को सीधे सरकार की तरफ से मुआवजा मिलना चाहिए यह किसानों की माँग है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बेकार क्यों है?

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बहुत बड़ा भ्रष्टाचार है। इसमें जो भी सर्वे होता है, वह फजऱ्ी होता है। प्रोडक्टिविटी फसलों की ज़्यादा दिखाई जाती है। रेवेन्यू के कर्मचारी, इंश्योरेंस कंपनी और एग्रीकल्चर ऑफिसर इन सभी की मिलीभगत किसानों को नुकसान होता है। कंपनी द्वारा रिश्वत देकर फर्ज़ी रिकॉर्ड बनाया जाता है और किसानों को फँसाया जाता है। इसका सबसे बढिय़ा उदाहरण आपको बताता हूँ- पिछले साल पूरे महाराष्ट्र में सूखा था; खास करके मराठवाड़ा में। लेकिन मराठवाड़ा के 8 िज़ले हैं और इन िज़लों में तकरीबन बीमा कंपनियों ने 2,900 करोड़ का मुनाफा कमाया। पिछले साल तो सब कुछ बर्बाद था। इंश्योरेंस कंपनियों को बर्बाद हो जाना चाहिए था; क्योंकि मराठवाड़ा में तो सूखा पड़ा हुआ था। सवाल यह है कि उन्हें मुनाफा कैसे हुआ? इसका मतलब यही है कि यह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री कॉर्पोरेट कल्याण योजना है। निजी कंपनियों के फायदे के लिए योजना है किसानों के लिए तो है ही नहीं।

तो यह योजना बंद हो जानी चाहिए?

योजना को बंद करने की ज़रूरत नहीं है; योजना में संशोधन होना चाहिए। इसकी ड्राफ्टिंग किसानों के हित के मद्देनजर की जानी चाहिए; न कि प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुँचाने के मद्देनजर।

शिवसेना ने कहा है कि बीमा कंपनियों पर उसकी नजऱ है!

पुणे में जिस बीमा कंपनी में उन्होंने तोडफ़ोड़ की है। उन्होंने पिछले साल फसलों का इंश्योरेंस का क्लेम लिया था। इस साल तो लिया ही नहीं है, तो आप समझ सकते हैं कि उनकी नार कहाँ पर है।

 

आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के किसानों से मिल रहे हैं; उनका दावा है कि महाराष्ट्र में भगवा की लहर है। इस स्टेटमेंट को किस तरह देखते हैं?

एक तो लोगों को बीजेपी सरकार नहीं चाहिए। लोग नहीं चाहते कि बीजेपी एक बार फिर सत्ता में आए। इसलिए एक विकल्प के तौर पर लोग शिवसेना की तरफ देख रहे हैं। कांग्रेस और एनसीपी की सरकार तो नहीं बन सकती है; क्योंकि उनको मेजॉरिटी नहीं मिली है। यह एक आम धारणा है कि यदि शिवसेना कांग्रेस एनसीपी की सरकार बनती है, तो बननी चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि लोग शिवसेना को पसंद करते हैं, एक ऑप्शन के तौर पर देख रहे हैं।

शरद पवार किसानों की मदद के लिए गाँव-गाँव दौड़ रहे हैं। उनका मानना है कि किसानों को, जो नुकसान हुआ है। उसके एवा में सरकार ने जो राशि ज़ाहिर की है, वह नाकाफी है।

शरद पवार जी बुजुर्ग हैं। इस उम्र में भी वह महाराष्ट्र-भर में घूम रहे हैं। किसानों के पास जा रहे हैं और उनके दु:ख-दर्द को समझ रहे हैं तो लोगों को अच्छा लग रहा है। वह देश के कृषि मंत्री भी रह चुके हैं। उन्हें किसानों के दु:ख-दर्द का अच्छी तरह से पता है। उनकी बातों में सच्चाई है।

और चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस?

मुख्यमंत्री इस मामले पर बिलकुल सीरियस नहीं हैं। वह सिर्फ एक ही जाति के ऊपर मुख्यमंत्री बने हैं; किसानों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं है।