काले धन का खेल जारी

कोरोना-काल में भारतीयों का स्विस बैंकों में क़रीब तीन गुना बढ़ा काला धन

स्विस बैंकों की ताज़ा रिपोट्र्स के मुताबिक, उनमें भारतीयों का जमा काला धन कम होने के बजाय लगातार बढ़ रहा है। यह पिछले 13 साल के दौरान रिकॉर्ड ऊँचाई के स्तर पर पहुँच गया है। वित्त मंत्रालय ने इस मामले में 19 जून, 2021 को स्विस अधिकारियों से इस काले धन के बारे में जानकारी माँगी; साथ ही इसके पीछे की वजहों की पड़ताल भी की। स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा किया गया काला धन नाटकीय तरीक़े से बढ़कर सन् 2020 के अन्त तक 20,700 करोड़ रुपये हो गया। सन् 2019 में यह 6,625 करोड़ रुपये था। स्विस बैंकों में कोरोना-काल में बेतहाशा बढ़े इस काले धन पर पड़ताल करती भारत हितैषी की यह रिपोर्ट:-

स्विस बैंकों में कथित काले धन का ख़ुलासा होने के बाद इस पर सियासत भी गरमा गयी है। स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) के जारी आँकड़ों पर नज़र डालें, तो 17 जून, 2021 तक स्विस बैंकों में पिछले एक साल के दौरान भारतीयों द्वारा जमा किये गये धन में 86फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। भारतीयों की तरफ़से जमा कराया गया यह संदिग्ध काला धन स्विस बैंकों में भारत के निरंतर दबदबे को दर्शाता है, जिस पर आश्चर्य होना ला•िाम है। स्विस बैंक स्विट्जरलैंड का चर्चित गोपनीय अड्डा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसकी दीवारें वर्षों से काले धन के लिए बदनाम हैं। विडम्बना यह है कि काले धन में यह वृद्धि कोरोना संक्रमण यानी महामारी के भीषण-काल के दौरान देखी गयी है। यानी एक वायरस के ख़ौफ़में जहाँ लोग रोज़ी-रोटी के लिए तरस रहे हैं, वहीं कुछ लोग बेइंतहा काली कमायी करके उस काले धन को ठिकाने लगाने पर तुले हुए हैं। महामारी से लाखों लोगों की जान तो जा ही रही है, साथ ही इससे लोगों की आजीविका छिन गयी है और उनकी कमायी भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। व्यापार और उद्योग सब प्रभावित हुए हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि अर्थ-व्यवस्था इस दौरान इतनी ख़राब हो गयी कि पूरे भारत में लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। वित्त वर्ष 2020-21 में 98 लाख लोगों ने नौकरियाँ गँवायीं, जो कि रिकॉर्ड में दर्ज हैं। भारत में वित्त वर्ष 2019-20 में कुल 8.59 करोड़ वेतनभोगी नौकरियाँ थीं; जो मार्च, 2021 के अन्त में घटकर 7.62 करोड़ रह गयीं।

एसएनबी के मुताबिक, साल 2020 के अन्त में स्विटजरलैंड में 243 बैंक थे। यहाँ तक कि बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट के आँकड़े भी इस ओर इशारा करते हैं कि भारतीय व्यक्तियों द्वारा स्विस बैंकों में जमा धनराशि में साल 2019 की तुलना में साल 2020 में 39फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। यह आँकड़ा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि सन् 2014 में सत्ता सँभालने से पहले भाजपा, ख़ासकर तब के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि भारतीयों का स्विट्जरलैंड में जमा काला धन वापस लाया जाएगा। इतना ही नहीं, उन्होंने यहाँ तक कहा गया था कि अगर काले धन को हर भारतीय पर बाँटा जाए, तो यह क़रीब 15 लाख रुपये के हिसाब से हरेक को मिलेगा।

उन दिनों इस तरह की ख़बरें भी मीडिया में चलायी गयीं कि नरेंद्र मोदी अगर प्रधानमंत्री बने, तो काला धन वापस लाएँगे, जिससे हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपये आएँगे। स्विटजरलैंड के बैंकों में 250 अरब डॉलर (17.5 लाख करोड़ रुपये) छिपाकर जमा किये गये थे। हालाँकि, अब जारी किये गये ताजा आँकड़ों यह साबित हो जाता है कि स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा बढ़कर 20,700 करोड़ रुपये (2.55 अरब स्विस फ्रैंक) से अधिक हो गया है। इस जमाख़ोरी ने सन् 2019 के अन्त में 6,625 करोड़ रुपये ( 899 मिलियन स्विस फ्रैंक) जमा धन में गिरावट की प्रवृत्ति को उलट दिया है। हालाँकि बैंकों द्वारा एसएनबी को बताये गये आधिकारिक आँकड़ों में यह नहीं बताया गया है कि उनके पास बहुचर्चित कथित काले धन की मात्रा स्विट्जरलैंड में कितने भारतीयों की है? रिपोर्ट में यह यह भी बताया गया है कि यह पिछले 13 साल में जमा सबसे ज़्यादा राशि है। इन आधिकारिक आँकड़ों से वित्त मंत्रालय भी पूरी तरह से बेख़बर रहा।

स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) को बैंकों द्वारा की गयी रिपोट्र्स के मुताबिक, भारतीयों द्वारा रखे गये कथित काले धन की राशि से ऐसे ही संकेत मिलते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन आँकड़ों में वो पैसा शामिल नहीं किया गया है, जो एनआरआई भारतीयों या अन्य भारत से जुड़े लोगों की संस्थाओं के नाम से स्विस बैंकों में जमा हो सकता है। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि भारत और स्विट्जरलैंड प्रशासनिक स्तर पर बहुपक्षीय सम्मेलन पर परस्पर अपनी सहमति दे चुके हैं। टैक्स मामलों में सहायता (एमएएसी) और दोनों देशों ने बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकरण समझौते (एमसीएए) पर भी हस्ताक्षर किये हैं। इन समझौतों के ज़रिये वित्तीय खाते की जानकारी साझा करने को दोनों देशों के बीच सूचना का आदान-प्रदान ज़रूरी है। सन् 2018 के बाद के लिए हर साल इसकी जानकारी साझा की जाती है। भारत और स्विट्जरलैंड के बीच एक दोहरा कराधान बचाव समझौता (डीटीएए) भी है। डीटीएए के प्रावधानों के आधार पर दोनों देश अनुरोध के आधार पर सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। समझौते में उल्लेखित करों से सम्बन्धित घरेलू क़ानूनों के प्रशासन या प्रवर्तन के लिए यह प्रासंगिक हैं। भारत और स्विट्जरलैंड टैक्स मामलों (एमएसी) में पारस्परिक प्रशासनिक सहायता पर बहुपक्षीय सम्मेलन के हस्ताक्षरकर्ता हैं और दोनों देशों ने बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकरण समझौते (एमसीएए) पर भी हस्ताक्षर किये हैं। इसके मुताबिक, सूचना का आदान-प्रदान किया जाना है।

01 जनवरी, 2018 से प्रभावी वित्तीय खातों की जानकारी साझा करने के लिए दोनों देशों के बीच यह समझौता लागू है। इसके अलावा हर देश के भारतीय निवासियों के सम्बन्ध में वित्तीय खातों की जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिए भी सन् 2019 में दोनों देशों के बीच समझौता हो चुका है। लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि वित्तीय खातों की जानकारी के आदान-प्रदान करने के लिए मौज़ूदा क़ानूनी व्यवस्था होने के बावजूद भारतीयों द्वारा काला धन जमा करने का चलन जारी रहा, वह भी कोरोना-काल में। विदेशों में अघोषित सम्पत्ति के माध्यम से भारतीयों द्वारा कर (टैक्स) चोरी महत्त्वपूर्ण कारक है। इसी के बरअक्स स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि में वृद्धि हुई है, जो कि उनकी अघोषित और अनुचित आय में है।

सूचना का आदान-प्रदान संदिग्ध
स्विस बैंकों में विदेशी ग्राहकों की जमा राशि के चार्ट को देखें, तो इंग्लैंड 377 बिलियन स्विस फ्रैंक के साथ सबसे ऊपर है। इसके बाद अमेरिका दूसरे स्थान पर है, जिसकी राशि 152 अरब डॉलर है। शीर्ष 10 में अन्य वेस्टइंडीज, फ्रांस, हॉन्गकॉन्ग, जर्मनी, सिंगापुर, लक्जमबर्ग, केमैन आइलैंड्स और बहामास थे। इसके बाद न्यूजीलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, हंगरी, मॉरीशस, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका का स्थान आता है। ब्रिक्स देशों में भारत चीन और रूस से नीचे है। लेकिन दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील से ऊपर है। भारत से ज़्यादा जिन देशों का यहाँ पैसा जमा है, उनमें नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, जापान, ऑस्ट्रेलिया, इटली, सऊदी अरब, इजरायल, आयरलैंड, तुर्की, मैक्सिको, ऑस्ट्रिया, ग्रीस, मिस्र, कनाडा, क़तर, बेल्जियम, बरमूडा, क़ुवैत, दक्षिण कोरिया, पुर्तगाल, जॉर्डन, थाईलैंड, सेशेल्स, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, मलेशिया और जिब्राल्टर प्रमुख हैं।

जिन देशों में स्विस बैंकों ने ग्राहकों को देय राशि में गिरावट की सूचना दी, उनमें यूएस और यूके शामिल हैं; जबकि व्यक्तियों द्वारा जमा की गयी धनराशि के मामले में बांग्लादेश के उद्यमों में भी 2020 के दौरान गिरावट आयी। सन् 2019 में भारत को पहली बार पहली बार इसकी जानकारी हासिल हुई थी। स्विस बैंक खाते के विवरण की $िकश्त और इसे काले धन के ख़िलाफ़मोदी सरकार की लड़ाई की एक बड़ी सफलता के रूप में देखा गया। हालाँकि विवरण अब भी गोपनीय रखा गया है। इसमें किसी भी नाम का ख़ुलासा नहीं कया गया है, जो कि स्विस सरकार के संघीय राजपत्र में प्रमुखता से छापे गये थे। जो भारतीय नाम छापे गये, उनमें कृष्ण भगवान, रामचंद्र, पोटलुरी राजामोहन राव, कल्पेश हर्षद किनारीवाला, कुलदीप सिंह ढींगरा, भास्करन नलिनी, ललिताबेन शामिल हैं। इसके अलावा चिमनभाई पटेल, संजय डालमिया, पंकज कुमार सरावगी, अनिल भारद्वाज, थरानी रेणु टीकमदास, महेश टीकमदास थरानी, सवानी विजय कन्हैयालाल, भास्करन थरूर, कल्पेश भाई पटेल, महेंद्र भाई, अजय कुमार और दिनेश कुमार हिम्मतसिंगका, रतन सिंह चौधरी और राकेश कुमार कठोटिया जैसे नाम शामिल हैं।

ख़ुलासे में भी खेल बेशक स्विस सरकार के संघीय राजपत्र में कुछ नामों का उल्लेख है। लेकिन फिर भी ऐसे कई मामले थे, जहाँ केवल भारतीय नागरिकों के लिए आधे-अधूरे नामों का ख़ुलासा किया गया था और इनमें केवल संक्षिप्ताक्षर या आद्याक्षर (अद्र्ध अक्षर) जैसे एनएमए, एमएए, पीएएस, आरएएस, एबीकेआई, एपीएस, एएसबीके, एमएलए, एडीएस, आरपीएन, एमसीएस, जेएनवी, जेडी, एडी, यूजी, वाईए, डीएम, एसएलएस, यूएल, एसएस, आरएन, वीएल, यूएल, ओपीएल, पीएम, पीकेके, बीएलएस, एसकेएन, वीकेएसजे, जेकेजेए।

दिलचस्प बात यह है कि इनमें से कई व्यक्ति और उनकी कम्पनियाँ कोलकाता, गुजरात, बेंगलूरु, दिल्ली और मुम्बई में स्थित हैं। लम्बी फ़ेहरिस्त में जिन भारतीयों को नोटिस जारी किया गया था, उनमें वे लोग भी शामिल हैं; जिनके नाम एचएसबीसी और पनामा सूची में शामिल हैं; साथ ही जिन लोगों की जाँच की जा रही है। अन्य एजेंसियों के बीच आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय भी जाँच कर रहा है। निकोलस मारियो लुशर के नेतृत्व में स्विस प्रतिनिधिमंडल, कर विभाग के उप प्रमुख, राज्य अंतर्राष्ट्रीय वित्त विभाग ने कुछ समय पहले राजस्व सचिव अजय भूषण के साथ बैठक भी की थी। पांडे और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के वरिष्ठ कर अधिकारी भी इसमें शामिल हुए थे। वित्तीय खाता जानकारी का स्वचालित आदान-प्रदान (एईओआई) सामान्य रिपोर्टिंग मानक (सीआरएस) के तहत इन पर विचार-विमर्शों का यह नतीजा रहा।

विशेषज्ञों का कहना है कि स्विट्जरलैंड पिछले कुछ समय से स्विस बैंकों के बारे में जनता की धारणा को बदलने की कोशिश कर रहा है; क्योंकि यह काला धन जमा करने के एक सुरक्षित ठिकाने के तौर कुख्यात हो गया है। भारत में चुनावों के दौरान, राजनीतिक दलों ने प्रतिद्वंद्वियों को रौंदने के लिए ब्राउनी प्वाइंट हासिल करने के लिए इस मुद्दे को उठाया गया था। देर से ही सही, भारत और स्विटजरलैंड ने लोगों को जोडऩे (बुक करने) के लिए सहयोग बढ़ाने के लिए इन संदिग्ध रिकॉर्ड को साझा करके अपने द्विपक्षीय आर्थिक सम्बन्धों को मज़बूत किया है; ख़ासकर अगर काले धन को लेकर बात की जाए तो। दोनों देशों की सूची का शीर्ष एजेंडा निश्चित रूप से भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों में काला धन जमा करना है। भारत अब उन 75 देशों में शामिल है, जिनके साथ स्विट्जरलैंड के संघीय कर प्रशासन (एफटीए) ने आदान-प्रदान किया है। एईओआई पर वैश्विक मानकों के ढाँचे के भीतर वित्तीय खातों की जानकारी देनी होती है। एईओआई महज़ कुछ मामलों में सामने आता है।

भारतीयों के नाम पर खाते
एईओआई वर्तमान में स्विटजरलैंड में लागू है और आर्थिक संगठन के ग्लोबल फोरम नामक एक प्राधिकरण भी है। ईओआई सहयोग और विकास जो कार्यान्वयन की देखरेख करता है। संघीय कर प्रशासन ने अब तक के बारे में जानकारी दी गयी है। समझौता करने वाले देशों को लगभग 3.1 मिलियन वित्तीय खाते और साझेदार राज्यों से लगभग 2.4 मिलियन के बारे में जानकारी प्रदान की गयी है। सूचना का आदान-प्रदान सख़्त गोपनीयता खण्डों द्वारा शासित होता है, और एफटीए अधिकारियों ने विशिष्ट विवरण का ख़ुलासा करने से इन्कार कर दिया जाता है। खातों की संख्या या स्विस बैंकों के भारतीय ग्राहकों से जुड़ी वित्तीय सम्पत्तियों की मात्रा के बारे में नहीं दी गयी। केवल एईओआई उन खातों से सम्बन्धित है, जो आधिकारिक तौर पर भारतीयों के नाम पर हैं और उनमें व्यवसाय और अन्य वास्तविक उद्देश्यों के लिए उपयोग किये जाने वाले खातों का ब्यौरा मिल सकता है। बदले गये विवरण में पहचान, खाता और वित्तीय जानकारी शामिल है। इनमें नाम, पता, निवास की स्थिति और कर शामिल हैं। साथ ही पहचान संख्या, साथ ही वित्तीय संस्थान, खाता शेष और पूँजीगत आय से सम्बन्धित जानकारी भी दी जाती है।

स्विस क़ानूनों के तहत, स्विस बैंकों के विदेशी ग्राहकों को अपने प्रस्तावित विवरण साझा करने के ख़िलाफ़अपील करने का अवसर दिया जाता है। आपसी सहायता सन्धि वाले देश या बहुपक्षीय सूचना विनिमय के पक्ष के बाद 30 दिन (कुछ मामलों में केवल 10 दिन), संदिग्ध वित्तीय ग़लत कामों के पर्याप्त सुबूत देते हुए विवरण माँगा जाता है। जबकि स्विस सरकार किसी विदेशी ग्राहक को अपील का अवसर दिया जाता है, तो राजपत्र अधिसूचनाएँ सार्वजनिक की जाती हैं; कुछ मामलों में उनके पूरे नाम को संशोधित किया जाता है। कुछ गोपनीयता खण्ड और केवल कुछ विवरण जैसे कि उनके आद्याक्षर, जन्म तिथि और राष्ट्रीयता को सार्वजनिक किया जाता है। इस साल की शुरुआत से जारी इस तरह की साप्ताहिक अधिसूचनाओं का विश्लेषण करने से पता चलता है कि इन नोटिसों में भारतीय नागरिक भी शामिल हैं। इनमें लगभग हर हफ्ते, हालाँकि अधिकांश मामलों में पूरे नामों को संशोधित किया गया है।

शिकंजे के लिए एक अभियोजन मामला काफ़ी
भारत को हासिल हुए आँकड़े उन लोगों के ख़िलाफ़एक मज़बूत अभियोजन मामला स्थापित करने के लिए काफ़ी उपयोगी हो सकता है, जिनके पास बेहिसाब सम्पत्ति है। इसकी वजह यह है कि यहाँ प्रतिभूतियों और अन्य में निवेश के माध्यम से जमा और हस्तांतरण के साथ-साथ सभी आय का सम्पूर्ण विवरण प्रदान सम्पत्ति जितना ही जारी किया जाता है। हालाँकि ऐसा भी कहा जाता है कि काले धन पर वैश्विक कार्रवाई के बाद कई मूल निवासियों ने अपने खाते बन्द कर दिये होंगे। स्विस बैंकों के बारे में लम्बे समय से लगे कलंक को साफ़करने के लिए अपने बैंकिंग क्षेत्र को जाँच के लिए खोलने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव में स्विट्जरलैंड कुछ झुका है; लेकिन इसके बावजूद अघोषित धन के लिए सुरक्षित ठिकाना बना हुआ है। गेंद अब अभियोजन पक्ष के पाले में है कि इसे प्राप्त आँकड़ों का उपयोग बेहिसाब धन का पता लगाने और उसे अमल में लाने के लिए देशों को क्या क़दम उठाने चाहिए। जो एचएसबीसी सूची, पनामा और पैराडाइज पेपर्स में शामिल हैं और अब स्विस बैंक सूची में शामिल हैं; उनके ख़िलाफ़मामला दर्ज किया जाना चाहिए। हालाँकि एक बड़े विवरण की पहली क़िश्त का हिस्सा उन खातों से सम्बन्धित है, जो कार्रवाई के डर से पहले ही बन्द कर दिये गये हैं; यह काफ़ी उपयोगी हो सकता है।
सरकार की तरफ़से उन लोगों के ख़िलाफ़एक मज़बूत अभियोजन मामला दर्ज किया जाना चाहिए, जिनके पास स्विस खातों में बेहिसाब सम्पत्ति है।

आख़िर यह पैसा कैसे बढ़ा?
वित्त मंत्रालय का कहना है कि इसमें कई कारक हो सकते हैं, जो स्विस बैंकों में जमा राशि में वृद्धि को दर्शाते हैं। स्विट्जरलैंड में भारतीय कम्पनियों द्वारा रखी गयी जमा राशि में वृद्धि व्यापार लेन-देन के कारण और भारत की स्विस बैंक शाखाओं के कारोबार के कारण दर्ज की गयी है। स्विस बैंकों और भारतीय बैंकों के बीच अंतर्-बैंक लेन-देन में वृद्धि भारत में एक स्विस कम्पनी की सहायक कम्पनी के लिए पूँजी वृद्धि है, जो बक़ाया यौगिक वित्तीय बही-खातों के हिसाब से इसमें इज़ाफ़ा करते हैं; जिसे इस रिपोर्ट में दर्शाया गया है।
सरकार का दावा है कि विदेशों में जमा काले धन के ख़िलाफ़कई सक्रिय क़दम उठाये गये हैं। एक व्यापक और अधिक कठोर नया क़ानून काला धन (अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति) और कर अधिरोपण अधिनियम-2015, जो 01 जुलाई से लागू है। यह क़ानून कहीं ज़्यादा कठोर है, जिसमें दण्डात्मक परिणामों को निर्धारित करने के अलावा, इसमें कर से बचने के लिए जानबूझकर प्रयास आदि को अपराध के तौर पर शामिल किया गया है। धन शोधन निवारण अधिनियम-2002 (पीएमएलए) के तहत अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति को भी अपराध के तौर पर अधिसूचित किया गया है।

सरकार ने कर दाताओं को अपनी घोषणा करने का अवसर प्रदान करने के लिए तीन महीने का मौक़ा भी दिया था। नये क़ानून के अधिक कड़े प्रावधानों के अधीन होने से पहले अघोषित विदेशी सम्पत्तियाँ या जो काला धन (अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति) कर अधिनियम-2015 के तहत लाया गया। इसके बाद 648 घोषणाकर्ताओं ने 30 सितंबर, 2015 तक इस बारे में जानकारी दी। इससे 4,164 करोड़ रुपये की अघोषित विदेशी सम्पत्ति का ख़ुलासा हुआ; लेकिन इसकी आख़िरी तारीख़ निकल गयी। इस तरह क़रीब 2,476 करोड़ रुपये इस तरह सरकार ने कर और ज़ुर्माने के तौर पर हासिल किये।

सरकार की ओर से दावा किया गया कि जब भी इस सम्बन्ध में कोई विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुई है, तो उसने सक्रिय और प्रभावी क़दम उठाये हैं। विदेशों में जमा काला धन- चाहे एचएसबीसी मामलों में, चाहे आईसीआईजे मामलों में, पैराडाइज पेपर्स या पनामा पेपर्स के तौर पर हो, उस पर सरकार की नज़र है। इन क़दमों में संविधान के तहत बहु एजेंसी समूह के प्रासंगिक मामलों में काले धन को लाने के लिए विदेशी अधिकार क्षेत्र से निश्चित जानकारी की माँग करने जैसे प्रासंगिक क़ानून और अपराधियों के ख़िलाफ़मुक़दमे दर्ज करना आदि शामिल है।

ताज्ज़ुब है कि इन सभी बड़े-बड़े दावों और स्विस बैंक के स्वचालित विनिमय के बावजूद काले धन को रखने के लिए स्विटजरलैंड भारतीयों का सुरक्षित ठिकाना बना हुआ है। स्विट्जरलैंड और भारत के बीच सन् 2018 से कर मामलों की जानकारी साझा करने का नियम लागू है। चूँकि स्विस बैंकों को बड़ी जमा राशि और जमाकर्ताओं की ज़रूरत बनी थी, इसलिए यह क़ानून बनाया और समझौता किया। हालाँकि गोपनीयता भी इस मामले में एक अहम भूमिका वाला मसला था। लेकिन अब भारत और स्विट्जरलैंड पारस्परिक पर बहुपक्षीय सम्मेलन के हस्ताक्षरकर्ता हैं। इससे कर मामलों और बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकरण समझौते में प्रशासनिक सहायता को साझा करना ज़रूरी है। इससे स्वचालित आदान-प्रदान को सक्षम करते हैं।

समझौतों पर हस्ताक्षर के बाद से दोनों देशों के बीच वित्तीय खातों की जानकारी और नागरिकों की जमा राशि के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करना ज़रूरी हो गया है। यह समझौता साल 2019 के साथ-साथ साल 2020 में भी लागू रहा। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि स्विस बैंकें एकमात्र ऐसी जगह नहीं हैं, जहाँ भारतीय जमाकर्ता अपनी अघोषित धनराशि रखते हैं। स्विस बैंकों के अलावा ऑफशोरिंग, लेयरिंग और समेकन जैसे कई तरीक़े हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में काले धन को चैनलाइज (प्राणालिक) और सुरक्षित तरीक़े से ठिकाने लगा दिया जाता है। अमीर ग्राहकों को अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय लेखा फर्में और बिचौलिये विश्वस्त और दूरस्थ अंतर्देशीय कम्पनियों में धन स्थापित करने को राज़ी करते हैं और इसमें मदद करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, साइप्रस, मकाओ, ग्वेर्नसे, आइल ऑफ मैन आदि स्थानों को अपतटीय कर मुक्त क्षेत्र (टैक्स हेवन) को कथित तौर पर काले धन को ठिकाने लगाने के तौर पर जाना जाता है।
फिर भी स्विस बैंक भारतीयों द्वारा धन जमा करने के लिए पसन्दीदा स्थान बने हुए हैं। क्योंकि भारतीय बड़ी आसानी से यहाँ काला धन जमा करा लेते हैं। यही वजह है कि सन् 2019 से सन् 2020 तक यहाँ जमा भारतीयों का काला धन 6,625 करोड़ रुपये से क़रीब तीन गुना बढ़कर 20,700 करोड़ रुपये से अधिक हो गया। यह भी ध्यान रहे कि पिछले 13 वर्षों में जमा पूँजी का यह उच्चतम आँकड़ा है। इनमें भारतीय व्यक्तियों और फर्मों द्वारा स्विस बैंकों में जमा की गयी राशि शामिल है। हालाँकि स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक के वार्षिक आँकड़े कहते हैं कि प्रतिभूतियों और इसी तरह के उपकरणों के माध्यम से स्वामित्व के तौर पर देखें, तो ग्राहक जमा में गिरावट आयी है।

स्विस बैंकों के साथ भारतीय ग्राहकों का कुल धनराशि सन् 2006 में लगभग 6.5 बिलियन स्विस फ्रैंक के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर थी। स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) के मुताबिक, सन् 2011, सन् 2013 और सन् 2017 सहित कुछ वर्षों को छोड़कर जमा राशि में लगातार गिरावट दर्ज की जाती रही है। एसएनबी के आँकड़ों के मुताबिक, भारतीयों द्वारा सीधे स्विस बैंकों में रखी गयी कुल राशि बढ़कर 999 मिलियन स्विस फ्रैंक (6,891 करोड़ रुपये) हो गयी। सन् 2017 में यह 16.2 मिलियन स्विस फ्रैंक (112 करोड़ रुपये) तक बढ़ गयी। यह आँकड़ा सन् 2016 के अन्त में क्रमश: 664.8 मिलियन स्विस फ्रैंक और 11 मिलियन स्विस फ्रैंक था। स्विस बैंकों में भारतीय धन में 464 मिलियन स्विस फ्रैंक (3,200 करोड़ रुपये) ग्राहक जमा के रूप में, 152 मिलियन स्विस फ्रैंक (1,050 करोड़ रुपये) अन्य बैंकों के माध्यम से और 383 मिलियन स्विस फ्रैंक (2,640 करोड़ रुपये) 2017 के अन्त में प्रतिभूतियों, जैसे ‘अन्य देनदारियों के रूप में जमा हुए। एसएनबी के आँकड़ों के मुताबिक, पिछले साल सभी श्रेणियों में भारी गिरावट के मुक़ाबले तीनों मदों के तहत काला धन तेज़ी से बढ़ा था।
सन् 2007 तक अकेले ज़िम्मेदार व्यक्तियों (फिडुशियरी) के माध्यम से अरबों रुपये का धन इसमें जमा किया गया था। लेकिन उसके बाद कार्रवाई के डर से इसमें गिरावट दर्ज होनी शुरू हो गयी। सन् 2006 के अन्त में स्विस बैंकों के पास भारतीयों द्वारा रखा गया कुल काला धन 6.5 बिलियन स्विस फ्रैंक (23,000 करोड़ रुपये) के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर था। लेकिन फिर एक दशक में उस स्तर के क़रीब 10वें हिस्से पर आ गया।

उन रिकॉर्ड स्तरों के बाद से यह केवल चौथी बार है, जब भारतीयों के काले धन में में 286फ़ीसदी का इज़ा$फा हुआ है। इससे पहले इसमें सन् 2011 में 12फ़ीसदी, सन् 2013 में 43फ़ीसदी, सन् 2017 में 50.2फ़ीसदी वृद्धि हुई है। दरअसल, ज्यूरिख स्थित एसएनबी के नवीनतम आँकड़े आश्चर्यजनक हैं। हालाँकि यह एसएनबी के आधिकारिक आँकड़े भी करते हैं कि स्विस बैंकों में भारतीयों, एनआरआई भारतीयों या अन्य लोगों के नाम पर जो धन हो सकता है, उसे इसमें शामिल न किया जाए। विदेशी और घरेलू, दोनों शासन क्षेत्र (डोमेन), जिसमें एक नये क़ानून का अधिनियमन, एंटी-मनी में संशोधन शामिल है; में स्टैश-फंड (धन छिपाने) का ख़तरा रहता है, जिसमें लोगों को अपनी छिपी हुई सम्पत्ति घोषित करने के लिए लॉन्ड्रिंग (काले धन को वैध) अधिनियम और अनुपालन विंडो (खिड़की) का मौक़ा दिया। आयकर विभाग ने पिछली जाँचों में काले धन का पता लगाया था। भारतीयों द्वारा विदेशों में धन जमा करने के बारे में वैश्विक ख़ुलासे पर जाँच के बाद पता चला कि हज़ारों करोड़ रुपये का काला धन चलन में था, जो अब भी जारी है। इनमें से सैकड़ों के ख़िलाफ़मुक़दमा चलाया गया, जिनमें एचएसबीसी की जिनेवा शाखा में खाते भी शामिल हैं। नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि भारत से ग्राहकों के कारण अन्य राशियों में सबसे बड़ा अन्तर रहा है, जो छ: गुना से अधिक बढ़ गया है। सन् 2019 के अन्त में 253 मिलियन स्विस फ्रैंक रहा। इस दौरान सभी चार घटकों में गिरावट आयी थी।

एसएनबी के मुताबिक, भारतीय ग्राहकों के प्रति स्विस बैंकों की कुल देनदारियों के लिए इसका विवरण (डाटा) भारतीयों के सभी प्रकार के जमा धन को रिकॉर्ड में रखता है। जबकि स्विस बैंकों में ग्राहकों, व्यक्तियों, बैंकों और उद्यमों से जमा राशि सहित जानकारी होती है। इसमें स्विस बैंकों की शाखाओं का वह विवरण शामिल होता है, जिसमें ग़ैर-जमा देनदारियों के रूप में भी भारत की शाखाएँ भी हैं। दूसरी ओर बैंक के स्थानीय बैंकिंग आँकड़े अंतर्राष्ट्रीय निपटान (बीआईएस), जिसे अतीत में भारतीय और स्विस अधिकारियों द्वारा अधिक विश्वसनीय उपाय के रूप में वर्णित किया गया है। स्विस बैंकों में भारतीय व्यक्तियों द्वारा जमा, 2020 के दौरान इस तरह की राशि में क़रीब 39फ़ीसदी की वृद्धि होने के बाद 125.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर (932 करोड़ रुपये) रही।

यह आँकड़ा स्विस-अधिवासित बैंकों के भारतीय ग़ैर-बैंक ग्राहकों की जमा राशियों के साथ-साथ ऋणों को भी रिकॉर्ड में लेता है। और इसमें वृद्धि हुई थी। सन् 2019 में सातफ़ीसदी, सन् 2018 में 11फ़ीसदी और सन् 2017 में 44फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गयी। यह सन् 2007 के अन्त में बढ़कर 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (9,000 रुपये से अधिक) से अधिक पर पहुँच गया था।