काजीरंगा में हुई मौतों से पनपा विवाद

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जिसे एक सींग वाले गैंडों के लिए सुरक्षित आश्रय के रूप में जाना जाता है, हाल ही में वन्य जीवों के निरंतर शिकार और आदिवासियों के साथ हुए अत्याचार के कारण हुई बदनामी को झेल रहा है। इस पर नवा ठाकुरिया की रिपोर्ट

असम कई कारणों से दुनिया के विभिन्न हिस्सों से पर्यटकों, शोध विद्वानों और वैज्ञानिकों को आकर्षित करता है, निसन्देह इसका एक प्रमुख कारण काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान है। काजीरंगा एक सींग वाले गैंडों के लिए सुरक्षित आश्रय के रूप में जाना जाता है और यह एक विश्व प्रसिद्ध सुरक्षित अभयारण्य है। हालांकि वन्य जीवों के निरंतर शिकार और आदिवासी लोगों पर हो रहे अत्याचार के कारण अब इसका नाम बदनाम भी हो रहा है।

भारत में वन्य जीवों के संरक्षण के इतिहास में एक सफल कहानी के रूप में जाना जाने वाले काजीरंगा के बारे में हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर आई जब जनजाति लोगों का अधिकार निकाय इसके बहिष्कार के साथ सामने आया। उन्होंने दावा किया कि संरक्षण के नाम पर यह निर्दोष जनजातीय लोगों की हत्या के क्षेत्र में बदल गया है। लंदन स्थित आदिवासी अधिकार संगठन सरवाइवल इंटरनेशनल, ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बहुमूल्य एक सींग वाले गैंडों की रक्षा के नाम पर शिकारियों को मारने के लिए वन रक्षक अत्याधिक शक्ति का उपयोग कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन ने ज़ोर देकर कहा कि सशस्त्र वन रक्षकों ने केवल संदेह के आधार पर कई आदिवासियों को भी मारा।

जब काजीरंगा प्राधिकरण एक सींग वाले गैडेें की दो तिहाई संख्या को बचाने की अपनी सफलता का जश्न मना रहा था तो उस समय सरवाइवल की बात को सुनने वाले बहुत कम लोग थे। मध्य असम में स्थित संरक्षित वन जिसे हाल ही में बाघ परियोजना के रूप में विकसित किया गया है, यह गैंडों के अलावा रॉयल बंगाल टाइगर, एशियाई हाथियों और हिरणों की विभिन्न प्रजातियों को भी आश्रय देता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की 2008 में जारी सूची में गैंडे की पहचान असुरक्षित प्रजाति के रूप में की गई। इससे पहले 1986 में इस जीव को विलुप्त होने वाले जीव के रूप में वर्गीकृत किया गया था। शिकारी सीगों के लिए गैंडे को मारते हैं जो पारंपरिक चीनी और वियतनामी औषधियों की मांग को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी कीमत पर बिकते हैं।

शक्तिशाली ब्रहमपुत्र नदी के दक्षिण तट पर 800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले हुए और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में वर्गीकृत यह उद्यान वर्तमान समय में लगभग 2500 गैंडों को आश्रय देता है और यह प्राधिकरण असम में 3000 गैंडों के लक्ष्य को 2020 तक प्राप्त करने की उम्मीद रखता है।

ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) द्वारा हाल ही में एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित करने के बाद वन्यजीवन संरक्षण के नाम पर लोगों को मारने का मुद्दा सामने आया। पत्रकार जस्टिन रोवलट ने जिम्मेदार वन अधिकारियों और फ्रंट लाइन रक्षकों का साक्षात्कार यह जानने के लिए किया कि काजीरंगा इलाके के अंदर वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वे किसी भी अवांछित को मारने के लिए पूरी तरह मानसिक रूप से तैयार थे।

बीबीसी ने दावा किया है कि 2013 से काजीरंगा के सशस्त्र रक्षक जिन्होंने अप्रैल 2016 में ब्रिटेन के प्रिंस विलियम और कैथरीन की मेजबानी भी की थी, एक क्रूर संरक्षण नीति के तहत हर महीने लगभग दो लोगों को मार रहे हैं। काजीरंगा में वर्ष 2015 में 18 गैडों को शिकारियों ने मारा जबकि 23 लोगों को रक्षकों ने मार दिया।

मासूम, निर्दोष ग्रामीण ज़्यादातर आदिवासी लोग संघर्ष में फंस जाते हैं (शिकारियों और वन रक्षकों की बीच) और अधिक समस्या इसलिए है क्योंकि पार्क रक्षक कठोर बल का प्रयोग करने में अविवेकी हैं और उन्हें अभियोजन पक्ष द्वारा प्रतिरक्षा भी दी जाती है।

”पार्क के रक्षकों ने लोगों को मारा, घायल, किया और इन पर आरोप भी लगा कि इन्होंने लोगों के साथ मारपीट भी की। इसमें कोई शक नही है कि गैंडों को बचाया जाना चाहिए। लेकिन किस कीमत पर? बीबीसी के दक्षिण एशियाई संवाददाता ने कार्यक्रम में यह टिप्पणी कि ‘यह भारतीय उद्यान और संरक्षण के नाम पर मारे गए लोगों की अंतरिक कहानी है’’।

रोवलट ने यह आरोप भी लगाया कि उसकी पहल के बावजूद नई दिल्ली और दिसपुर के पर्यावरण मंत्रालय (वन और वन्यजीवन की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार) एनटीसीए (भारत का राष्ट्रीय बाध संरक्षण प्राधिकरण) और असम वन विभाग ने उसके आवश्यक प्रश्नों का कोई जवाब नहीं दिया। जब बीबीसी ने 11 फरवरी 2017को ”हमारा संसार: संरक्षण के लिए हत्या’’ नामक कार्यक्रम प्रसारित किया तो सरकार और असम के लोगों ने इसकी विषय सामग्री पर गंभीर चिंता जताई और तर्क दिया कि काजीरंगा के वन रक्षकों को शिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का कानूनी अधिकार है। अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने काजीरंगा की गलत छवि का प्रचार करने के लिए विभिन्न सुरक्षा समूहों ने लंदन स्थित न्यूज चैनल को लताड़ा उन्होंने सभी प्रभावशाली साधनों के साथ गैंडों और अन्य वन्यजीवन की रक्षा के लिए काजीरंगा प्राधिकरण के पक्ष में प्रभावशली रैली की।

लोगों के सहयोग से उत्साहित एनटीसीए ने बीबीसी के पत्रकार रोवलट पर भारत के सभी 50 बाध अभयारण्यों में पांच साल तक फिल्म बनाने पर रोक लगा दी। बाद में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने विदेश मंत्रालय से रोवलट और उसके सहयोगियों जिन्होंने फिल्म शूट की थी उनका वीज़ा रद्द करने का अनुरोध किया। एनटीसीए ने दावा किया कि रोवलट ने सरकारी अधिकारियों को गलत स्क्रिप्ट देकर फिल्म बनाने की अनुमति ली। एनटीसीए ने दावा किया कि इसके बाद दी गई स्क्रिप्ट के विपरीत उन्होंने एक वृतचित्र तैयार किया जो भारतीय संरक्षण प्रयासों को नकारात्मक ढंग से दिखाता है।

एनटीसीए ने दावा किया है कि रोवलट और बीबीसी ने चार पूर्व स्थितियों का उल्लंघन किया है उन्होंने सूर्यास्त के बाद फिल्मांकन किया (काजीरंगा में) उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की समिति के समक्ष वृतचित्र को स्क्रीन नहीं किया और विदेश मंत्रालय और बाघ संरक्षण प्राधिकरण को मूल स्क्रिप्ट भी नही दी। हालांकि भारतीय बाघ परियोजना में फिल्मांकन से बीबीसी को हटाना संरक्षण प्राधिकरण का त्वरित समाधान नहीं है। लेकिन इसने सरवाइवल को उस पार्क का बाहिष्कार करने के लिए एक अभियान शुरू करने के लिए उकसाया जो कि 11,000 से अधिक विदेशी पर्यटकों सहित 1,50,000 से अधिक वार्षिक मेहमानों को आकर्षित करता है, जब तक काजीरंगा प्राधिकरण अपनी शूट-ऑन-साइट नीति को रद्द नहीं करता। जनजातीय अधिकार निकाय ने तर्क दिया है कि पिछले 20 सालों में काजीरंगा में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं। इसने जुलाई 2016 में काजीरंगा इलाके में वन रक्षक की गोली से घायल आदिवासी लड़के आकाश ओरंग के मामले को भी उठाया। आकाश की टांग में गहरी चोट लगी और अभी भी उसका इलाज हो रहा है। स्थानीय लोगों के विरोध के बाद काजीरंगा प्राधिकरण ने दो रक्षकों को निलंबित कर दिया।

आकाश के अलावा काजीरंगा में मारने के लिए गोली चलाने की नीति (पकडऩे की बजाए) के और भी पीडित हैं। शिकार के पीछे आपराधिक नेटवर्क का मुकाबला करने के बजाए हिंसा को प्रोत्साहित करने वाली इस अमानवीय नीति का संरक्षण संस्थाएं पहले ही आलोचना कर रहीं हंै।

काजीरंगा बाहिष्कार अभियान। इसके निर्देशक स्टीफन कोरी ने ज़ोर देकर कहा है कि काजीरंगा प्राधिकरण वर्षों से न्यायेतर हत्या का अभ्यास कर रहा है, और वे अब इस मामले को अनदेखा नहीं कर सकते हैं। काजीरंगा की परिधि में रहने वाले स्थानीय निवासियों ने रोवलट को नैतिक समर्थन दिया और बीबीसी पत्रकार पर लगे अनावश्यक प्रतिबंध को तुरंत हटाने की मांग की। काजीरंगा इलाके में स्थित किसान-श्रमिकों के एक संगठन ”जीपल कृषक, श्रमिक संघ’’ (जेकेएसएस) ने काजीरंगा के कठोर संरक्षण तरीकों की आलोचना करते हुए सरकार से पार्क के आसपास हुई जनजातीय लोगों की मौत की उच्चस्तरीय जांच करवाने का आग्रह किया है।

हाल ही में बीबीसी की प्राकृतिक इतिहास इकाई ने एनटीसीए को काजीरंगा में वन्यजीव संरक्षण के लिए की गई हत्याओं को उजागर करने वाली रिपोर्ट के प्रतिकूल प्रभाव के लिए खेद व्यक्त किया । जिसे बाद में विभिन्न भारतीय मीडिया आउटलेट में प्रकाशित किया गया। लेकिन प्रतिष्ठित चैनल की संबंधित इकाई को दोषी ठहराते हुए सरवाइवल ने यह स्पष्ट का दिया कि बीबीसी प्राधिकरण केवल भारतीय रिजर्व वन में फिल्मांकन की अनुमति पाने के लिए पीछे हटने की कोशिश कर रहा है। ”भारतीय मीडिया में आई खबरों के विपरीत बीबीसी ने अपनी जांच की शुद्धता और सच्चाई पर संदेह नहीं किया” बीबीसी प्राधिकरण ने वास्तव में यह स्वीकार नहीं किया है कि सच को उजागर करने वाला इसका काजीरंगा शूट गलत था।

लेकिन एनटीसीए के फरमानों को न मान कर बीबीसी प्राधिकरण ने न केवल मानव विरोधी कार्य किया बल्कि मानव अधिकारों के बुनियादी मूल्यों को कायम रखने और अच्छी पत्रकारिता की नैतिकता को बनाए रखने में भी असफल रहा है। सरवाइवल ने कहा कि ऐसा करके चैनल ने स्थानीय बहादुर लोगों पर बेबुनियादी आरोप लगाए हंै। कोई भी इसका इस्तेमाल करके भारत की प्रतिष्ठा को बदनाम कर सकता है।