कांवडिय़ों की भक्ति के अजब-ग़ज़ब रंग

श्रावण मास चल रहा है। हरिद्वार में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ रही है, ज़्यादा संख्या कांवडिय़ों की है। हर की पैड़ी से लेकर बाज़ार की सडक़ें और हाईवे का कांवड़ पथ भगवा हो रहा है। हरिद्वार बोल बम और बम भोले के नारों से गूँज रहा है। कोरोना काल में दो साल तक कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध था, उसका असर यह हुआ कि इस वर्ष यात्रा की शुरुआत के पहले दिन ही यानी 14 जुलाई को चार लाख के क़रीब कांवडिय़े हरिद्वार आये। प्रशासनिक सूत्रों की मानें, तो 14 जुलाई से 27 जुलाई तक चलने वाली कावड़ यात्रा में चार करोड़ के क़रीब कांवडिय़ों के आने का अनुमान है। कांवड़ यात्रा आसान नहीं है; लेकिन शिव की आस्था में सराबोर कांवडिय़ों का उत्साह कम नज़र नहीं आता।

पवित्र भावना से शुरू हुई इस परम्परा में अब काफ़ी बदलाव आ चुका है। कांवड़ यात्रा में नये-नये शगल शामिल हो गये हैं। रंग-बिरंगी चीज़ों से सजायी गयीं कांवड़ अलग-अलग रूपों और रंगों में नज़र आती हैं। ज़्यादातर कांवडिय़ों ने तिरंगा अपनी-अपनी कांवड़ में लगा रखा है। हालाँकि भोले के नाम पर कांवडिय़े नशे के सेवन को सही ठहराते हैं; लेकिन कांवडिय़ों की आस्था पर कोई प्रश्न चिह्न नहीं लगा सकते। अब कांवड़ यात्रा में पुरुष कांवडिय़ों के साथ महिला और बाल कांवडिय़े भी शामिल हो रहे हैं। कंधों पर भारी भरकम कांवड लेकर कई दिनों तक मीलों पैदल चलना। रास्ते में कहीं धूप, तो कहीं तेज़ बारिश का सामना करना। कभी-कभी या किसी-किसी कांवडिय़े द्वारा भूखे-प्यासे रहकर हरिद्वार की पग यात्रा करते हैं। जो भी हो, आस्था से भरे कांवडिय़े इन मुश्किलों के आगे हार नहीं मानते। हर कांवडिय़े यही मानते हैं कि भगवान शिव उनके दु:ख हरकर उनकी मन्नतें पूरी करते हैं।

ग़ाज़ियाबाद के कांवडिय़ा मिथुन पिछले 18 साल से कांवड़ ला रहे हैं। बचपन में उन्होंने कांवड़ उठायी थी। उन्हें अच्छा लगा, और वह हर साल कांवड़ लाने लगे। उनका मानना है कि भगवान शिव ने उसकी हर मनोकामना पूरी की है। मकान नहीं था, वह भी बना। शादी हुई और अब एक बेटी भी है, जिसकी उन्होंने मन्नत माँगी थी। बेटी ही माँगने के सवाल पर मिथुन कहते हैं कि बेटी कोई धैर्य वाला आदमी ही माँगता है। क्योंकि बेटी एक गिलास पानी दे देगी, मगर बेटा नहीं देगा। वह कहेगा उठकर ले लो। मिथुन की यह बात बेटों की चाहत में किसी भी हद तक गुज़रने वाले या बेटियों की हत्या करने वाले लोगों के लिए तमाचा है।

बहरहाल दिल्ली से शिवम, अजीत, पंकज और दीपक को भी कांवड़ उठाकर मीलों पैदल चलना अच्छा लगता है। उनकी आस्था है कि वे भोले से जो माँगते हैं, उनको मिल जाता है। वे कहते हैं कि रास्ते में कई दिक़्क़तें आती हैं, जैसे- अगर कहीं नहाने के लिए पानी नहीं मिलता, तो भूखे रहना पड़ता है। क्योंकि कांवड़ उठाने से पहले अगर खाना खाया हो, तो स्नान करना पड़ता है। कांवड़ को सजाने के लिए उन्होंने प्लास्टिक की कई चीज़ों का इस्तेमाल किया है।

प्लास्टिक का उपयोग क्यों? यह पूछने पर वे कहते हैं कि यह सब तो सरकार को देखना चाहिए। प्लास्टिक बनाना ही बन्द कर दे, तो लोग उसे क्यों इस्तेमाल करेंगे? आर्य नगर के दुकानदार अंकित पिछले 40 साल से कांवडिय़ों की इस यात्रा के गवाह रहे हैं। वह बताते हैं कि कांवड़ पहले सादे तरीक़े से लायी जाती थी; लेकिन अब काफ़ी तामझाम है। अब कांवडिय़े तिरंगा लगाते हैं। इससे लगता है कि उनमें राष्ट्रवाद का भाव है। लेकिन तीन-चार साल के बच्चे को साथ मीलों चलाना सही नहीं है।

कांवड़ में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर अंकित का भी यही कहना है कि सरकार प्लास्टिक बनाने पर रोक लगा दे; ख़ासकर जो इसके उत्पादक हैं, उन्हें रोके। छोटे-छोटे दुकानदारों का चालान काट दिया जाता है, जबकि हरिद्वार में चार प्लास्टिक फैक्ट्रियाँ हैं; लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। हरिद्वार में कांवड़ यात्रा को शान्तिपूर्वक सम्पन्न कराने के लिए कांवड़ कंट्रोल रूम बनाया गया है, जिसमें प्रशासन और पुलिस व्यवस्था को देख रहे हैं। कांवडिय़ों के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। इनमें धार्मिक भावनाओं को भडक़ाने वाले गीत बजाने, सात फीट से अधिक ऊँची कांवड़ लेकर चलने, लाठी-डण्डे और भाले आदि लेकर चलने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
ख़ासकर बिना पहचान-पत्र के किसी भी कांवडिय़ा को हरिद्वार में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। एडीएम प्यारे लाल साहा ने बताया कि कांवड़ यात्रा वाले क्षेत्र को अलग-अलग क्षेत्र (जोन) में बाँटा गया है। इनमें 12 सुपर जोन, 31 जोन और 133 सेक्टर शामिल हैं। 9,000 से 10,000 तक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है। कांवड़ क्षेत्रों में ड्रोन, पीएसी और सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं।

नोडल अधिकारी डॉ. राजेश गुप्ता के अनुसार कांवडिय़ों के लिए अलग-अलग मेडिकल कैम्प भी लगाये गये हैं। इनमें एक्सीडेंटल इंजरी, मसल पेन, बुख़ार और डायरिया के केस ज़्यादा आ रहे हैं, जिनमें एक लाख के क़रीब कांवडिय़ों का उपचार किया गया है। कांवड़ यात्रा के अन्तिम दिन तक डेढ़ लाख का आँकड़ा पार कर सकता है।

शिव होने का अर्थ
शक्ति से युक्त अनादि देव को शिव कहा जाता है। त्रिदेवों में एक शिव ही भोले देवता माने गये हैं। हालाँकि वे संहार के देव हैं और क्रोधित हो जाने पर वे नटराज भी बन जाते हैं। वह संसार के कल्याण के लिए विष भी पी जाते हैं। पापों की अति हो जाने पर संहारकर्ता भी बन जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अपने बहुत सारे गुणों के कारण वे महादेव कहलाते हैं। प्रार्थना करने पर शीघ्र प्रसन्न होने वाले महादेव अपने भक्तों के दु:ख दूर करके उनकी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं। शंकर, शिव, शम्भू, नीलकंठ, कैलाशपति, उमापति, महाकाल, जटाधारी, भूतनाथ, चंद्रशेखर आदि अनेक नामों के साथ विभूषित होने वाले महादेव शिव का एक नाम रुद्र भी है, जिसका अर्थ है- दु:ख दूर करने वाला। शिव कल्याणकारी हैं और कंद-मूल अर्पित कर देने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं।