कांग्रेस की बंद मुठी पर निगाहें

विधान सभा चुनावों में भाजपा की शिकस्त को लेकर भगवा समर्थक अपना इतिहास बोध को दोहराते हैं कि, एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस सरकार की परम्परा तो यहंा की रेतीली राजनीति में रच-बस गई है। इसलिए सत्ता का यह उलटफेर तो इतिहास का आयाम है जो हर पांच साल बाद वर्के पलटता है।

लेकिन क्या 2013 की भाजपा की वैजयंती से लकदक जीत मोदी फैक्टर की बदौलत नहीं थी? आखिर क्यों इतिहास की दुहाई देने वाले इसके भयावह पक्ष को नहीं बांच पा रहे हैं कि, जब भाजपा ने दो तिहाई बहुमत की जीत का सेहरा पहना था तो कांग्रेस ने लोकसभा की पच्चीस की पच्चीस सीटें गंवा दी थी। अब अगर इतिहास और मिथक के गाढ़े रिश्तों को मान लिया जाए तो क्या इतिहास के दोहराव से इंकार किया जाना चाहिए? इतिहास को मुठी में भींचने वाली भाजपा को भयाक्रांत करने के लिए इतना ही काफी होगा कि,’इस बार लोकसभा चुनावों में पच्चीस सीटें गंवाने की उसकी बारी है।’’

विश्लेषक कहते हैं कि इतिहास सेे खिलवाड़ एक दिन भाजपा केे लिए ही विस्फोटक बन जाएगा? इतिहास केा तोडऩे-मोडऩे के लिए फड़कते हुए संवाद अब भाजपा पर ही भारी पडऩे वाले हैं। इस बार भाजपा का मूल्यांकन युवा, किसान और मध्यमवर्ग करेगा और इस बार हार के अंधेरे डेने मध्यमवर्गीय मानस भाजपा के आंगन में उतारेगा। सवाल बहुतेरे हैं, सद्भाव को डसने का आलाप किसने किया? विकास का दावा सिर्फ चुनाव प्रचार वाणी का अलंकार बनकर क्यों रह गया? सवर्णों का आरक्षण क्या सम्पन्न और विपन्न लोगों के बीच नाभि-नाल संबंधों पर क्या असर डालेगा? क्योंकि वोटों का प्रसव तो इसी से होना है?

विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा की बांटने वाली प्रवृति ही इस बार पार्टी का बंटाढार करेगी। कांग्रेस के वार रूम की अंदरूनी रणनीति को टटोलें तो इस बार कांग्र्रेस भाजपा को बदहवास करने के लिए उसी के दकियानूसी जुमलों को इस्तेमाल करने के करामाती मंसूबे गढ़ चुकी है। कांग्रेस के तरकश में भाजपा के बड़बोलों की क्लिपिंग हैं, उनकी बारूदी और विस्फोटक सुरंगे भाजपा पर रीझते इलाकों में बिछाई जा रही है। मसलन भाजपा के नेता जसवंत यादव का यह फिकरा कांग्रेस का धारदार हथियार होगा, कि, ‘अगर आप हिन्दू हैं तो भाजपा केा वोट दें। क्योंकि कांग्रेस तो मुस्लिमों पर निछावर हो रही है…।’ अब इसे क्या कहें कि इस बार 2019 में वोटर पूरी तरह सयाना हो चुका है और वो प्रच्छन्न तरीके से भाजपा को ताकीद भी कर चुका है। अब जबकि देश का मध्यमवर्ग तेजी से बढ़ रहा है तो क्या इसमें सत्ता विरोधी लहरें नहीं उफनेगी? प्रदेश कांग्रेस के वार रूम में जिन जुमलों को पैना किया जा रहा है उनसे लोकसभा के चुनावी जंग में केसरिया जमीन को ही नुकसान पहुंचाएंगे।

राजस्थान के तेज तर्रार नेता गहलोत भले ही प्रत्यक्ष रूप से लोक कल्याणकारी योजनाओं की बरसात कर रहे हैं, लेकिन भारतीय गवर्नेंस की सबसे घिसी हुई बहसों का तड़का भी लगा रहे हैं कि, भाजपा शासन में ‘रोजगार क्यों नहीं मिले? महंगाई क्यों बेकाबू हुई? नौकरियां तो बाजार से निकलती है, लेकिन बाजार को ही बेजार क्यों बना दिया गया? रियल स्टेट गर्त में क्यों आया? स्किल डेवलपमेंट का क्या हुआ? पेट्रोल और डीजल के दाम कंटीले झाड़-झंखाड़ों में क्यों उलझ गए? मंदी कानून के खात्में के आदेश को एनडीए की भाजपा शासित सरकारों ने क्यों लागू नहीं किया? गहलोत के थिंक टैंक से निकले ये सब सवाल प्रचार के दौरान जब कांग्रेस पूछेगी तो भाजपा कैसे और क्या जवाब देगी? विश्लेषक कहते हैं 2014 अगर उनींदी सरकार पर आक्रमण था तो 2019 में दूसरी उनींदी सरकार पर जबरदस्त आक्रमण होगा।

उधर विकास के सभी प्रमुख पैमानों पर तलहटी में टिके राजस्थान को उबारने के लिए गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले 1.53 करोड़ लोगों की सुध लेना। यह काम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फौरी तौर पर किया। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत उन्हें दो रुपए किलों की बजाय एक रुपए किलो गेहूं मिलेगा। लघु एवं सीमांत किसानों को वृद्धावस्था पेंशन भी उनकेे लिए नेमत है। इसे भी समझदारी भरे कदम की संज्ञा दी जाएगी कि, ‘युवाओं को बेरोजगारी से उबारने के लिए राजस्थान डेयरी सहकारी संघ की मार्फत 5 हजार बूथों का आबंटन किया जाएगा। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा जारी की गई लघु अवधि फसली योजना के अमल पर भी गहलोत सरकार ने अड़ंगा नहीं लगाया है। आने वाले आम चुनावों के लिए विकास का जो खाका होना चाहिए? गहलोत सरकार ने उसमें चटख रंग भर दिए हैं। मतलब आर्थिक विकास के सीनेरियों में जिनकी अनदेखी की गई थी, वो अब नहीं होगी। विश्लेषकों का कहना है कि,’विधानसभा चुनावों में भाजपा को मात देकर इस मुकाम पर पहुंचे गहलोत की घोषणाओं से लोग उनके दीवाने हो गए हैं और उनकी भावनाएं चमक उठी है। गहलोत भी पूरे दावे से कहते हैं,’हम आम चुनावों में फिर जोरदार जीत का जश्न मनाएंगे।’ विश्लेषक कहते हैं कि, ‘गहलोत जिस तरह आक्रामक तारणहार की तरह उबर रहे हैं, भाजपा विपक्ष में बैठने के बावजूद किसान कर्ज माफी को लंगड़ा आदेश बताने पर तुली है।

हालांकि गहलोत ने विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया पर तगड़ा पलटवार किया है कि,’अब आपकी चाल और चालाकियां नहीं चलेगी। प्रतिपक्ष भावावेश में कुछ भी बोल देता है। जनहित का आदेश लंगड़ा नहीं होगा। लंगड़ी तो निरर्थक आलोचना की सोच होती है।

राजस्थान में गहलोत सरकार के आने का क्या मतलब हुआ? वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी इसे इस तरह परिभाषित करते हैं कि,’किसान, युवा, महिलाओं और व्यापारी जैसे त्रस्त वर्ग में आस जगी है। विश्लेषकों का कहना है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार तो पहले साल में ही किसानों और गरीब से कट गई? किसानों को बिचोलिए निचोड़ रहे थे। सरकार ने क्या किया? विदेशी सुपरमार्केट ने छोटे व्यापारियों को तबाह किया। सरकार क्यों देख नहीं पाई? किसान स्टोर तो अब गिने-चुने बचे हैं। मौजूद श्रम संबंधी कायदों ने मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र केा निबटा दिया। लघु और मंझोले उद्योग सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले होते हैं। उन्हें कहीं का भी नहीं रखा? नीतिगत बदलाव तब अच्छे लगते हैं जब लोगों को फायदा हो? गहलोत सरकार इन्हीं मुद्दे पर काम कर रही है। जबकि भाजपा बुरी तरह घबराए हुए हैं। जिस सेमीफाइनल को फाइनल का आईना माना जा रहा था, उसके बरअक्स अब क्या चिंताओं का अंबार नहीं है? विश्लेषक कहते हैं कि जनता परिवर्तनों को ताड़ चुकी है। ऐसे में चतुर कप्तान गहलोत कारगर व्यूह रचना ना बनाएं? संभव ही नहीं। राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें, लेकिन जनगण के लिए क्या कुछ कर पाए? कहने को उनके पास कुछ भी नहीं है? वरिष्ठ पत्रकार गुलाब केाठारी कहते हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर सांसदों ने एक-एक गांव गोद लिया था। लेकिन किसी ने इन गावों को गोद लेने के बाद इनकी तरफ मुड़कर भी नहीं देखा? अधिकांश ने तो बजट को छुआ तक नहीं।

कोठारी कहते हैं, ऐसे सांसद लोकतंत्र को कलंकित ही करते हैं। लोक सभा के चुनाव इस दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगेे कि, युवा पीढ़ी को अपना भविष्य तय करना है। जबकि बेरोजगारी बुरी तरह हावी है। स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी की दर 16 प्रतिशत पर पहुंच गई है। एक अच्छे सांसद की कसौटी को समझेंगे तो, वे संसदीय क्षेत्र और संसद में कितने सक्रिय रहे? क्षेत्रीय मसलों और वैश्विक चिंताओं की समझ उनमें कितनी है? उपलब्धता के मद्देनजर उन तक पहुंचना और अपनी बात पहुंचाना कितना संभव है? गहलोत सरकार बड़े वादों के साथ सत्ता में स्थापित हुई है। लेकिन सवाल भी है कि लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की राह आसान नहीं है?

पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के 2019 मोदी हटाओ अभियान के लिए 25 सीटों वाला राजस्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में कांग्रेस को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी अहमद पटेल को सोंपी गई है। अब यह सुनिश्चित करना तो पटेल की जिम्मेदारी है कि,पार्टी नेता और कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्रों में अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे और आगे की लड़ाई के लिए पार्टी बूथ तैयार करें। उल्लेखनीय है कि पटेल इन दिनों आयोजित होने वाली बैठक में होते हैं क्येांकि वे समस्याग्रस्त प्रत्येक वरिष्ठ नेता के संकटमोचक के रूप में उभरे हैं। इसी परिप्ऱेक्ष्य में पटेल राजस्थान से मिलने वाले फीड बैक के साथ राहुल गांधी की मदद कर रहे हैं। सूत्र कहते हैं,’इस बार उम्मीदवार चुनने में कोई गलती नहीं दोहराई जाएगी। वैसे भी सफलता की घटाएं तो इस बार कांग्रेस पर बरसने को उमड़ रही है।