कांग्रेस का संकट बना पंजाब का शराब कांड

पंजाब में ज़हरीली शराब पीने से 121 लोगों की मौत के बाद कांग्रेस के भीतर ही तलवारें खिंच गयी हैं। यह शराब पीने से 29 जुलाई को बड़ी संख्या में लोगों की मौत होने की बात सामने आयी, उसके बाद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ उनके अपने ही सांसदों ने विरोध का झण्डा बुलन्द कर दिया। इस घटना के विरोध में न सिर्फ विपक्ष, बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस के सांसदों ने भी शराब बनाने वालों को सरकार की तरफ से राजनीतिक संरक्षण मिलने का आरोप लगाया।

 इस त्रासदी के सम्भावना पहले से ज़ाहिर की जा रही थी। लेकिन उसके बाद जो हुआ वह कोई सोच भी नहीं सकता था। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पंजाब के राज्यपाल वी.पी. सिंह बदनोर से आग्रह किया कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया जाए, क्योंकि राज्य में अब तक की सबसे त्रासद घटना में 121 लोगों की मौत हो गयी है। हालाँकि मुख्यमंत्री के लिए असली मुसीबतें तब बढ़ीं, जब पंजाब में उनकी अपनी ही पार्टी के दो सांसदों ने मुख्यमंत्री की सार्वजनिक आलोचना कर दी।

अब ऐसा लगता नहीं है कि इस राजनीतिक दंगल का जल्दी अन्त होने वाला नहीं है; क्योंकि अमरिंदर सरकार ने एक सांसद को दिया पंजाब पुलिस का सुरक्षा कवच वापस ले लिया है। यह सांसद प्रताप सिंह बाजवा हैं, जो प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। कांग्रेस की इस जंग को भाँपते हुए विपक्षी शिरोमणि अकाली दल ने दिल्ली में शीघ्र ही कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी के आवास के बाहर विरोध-प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है।

शराब कांड की बात करें, तो कहानी की पृष्ठभूमि पर जाने पर पता चलता है कि लॉकडाउन ने पंजाब में शराब की माँग और आपूर्ति में उछाल ला दिया था। इस दौरान पंजाब में नकली शराब बेची जा रही है। इसका ही परिणाम यह है कि शराब से 29 जुलाई को पहले पाँच मौतों की सूचना दी गयी, जो बढक़र तीन ज़िलों में 121 तक पहुँच गयी है। इस शराब को बनाने का आरोप लुधियाना के एक पेंट (रंगरोगन) शॉप के मालिक राजेश जोशी पर है। वह वर्तमान में चल रहे मामले में एक महत्त्वपूर्ण संदिग्ध है।

पंजाब पुलिस ने तीन दशकों में सूबे की इस सबसे वादी त्रासदी के मामले में अब तक 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की है। गिरफ्तार लोगों में एक मोगा स्थित हैंड सैनिटाइजर निर्माता रविंदर सिंह भी है। एक मैकेनिकल जैक फैक्ट्री के मालिक सिंह ने 11,000 रुपये प्रति ड्रम के हिसाब से नकली शराब के तीन ड्रम खरीदे थे। प्रत्येक ड्रम में 200 लीटर शराब थी। तीन ड्रम खरीदने में सिंह ने कुल 33,000 रुपये अदा किये थे।

पुलिस ने सिंह के कारोबारी साथी अश्विनी बजाज को भी गिरफ्तार किया, जो मोगा में एक पेंट स्टोर चलाता है। रविंदर सिंह ने अवतार सिंह के रूप में पहचाने गये एक व्यक्ति को सभी तीन ड्रम नकली शराब बेची थी। उसने इसे तरनतारन के पंडोरी गोला गाँव के निवासी हरजीत सिंह को बेच दिया था। हरजीत सिंह के बेटे सतनाम और शमशेर भी सौदे के बारे में जानते थे। हरजीत सिंह ने अवतार सिंह को 50,000 रुपये का भुगतान किया और बाद में शेष राशि का भुगतान करने का वादा किया। लेकिन अधिक लाभ कमाने के लालच में हरजीत और उसके बेटों ने शराब में मिलाबट करके इसे और पतला कर दिया।

मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारियों ने कहा कि सतनाम और शमशेर ने शराब को पतला कर दिया और गोविंदर सिंह को 6,000 रुपये में 42 बोतलें बेचीं। उसने शराब को और भी पतला कर दिया और उसकी 46 बोतलें बेच दीं। गोविंदर ने इसे 28 और 29 जुलाई को बलविंदर कौर के बेटों को बेच दिया, जो अमृतसर के मुच्छल का रहने वाला है। कौर को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। उसने कथित तौर पर शराब में 50 फीसदी पानी मिलाया और उसे एक दर्ज़न से अधिक लोगों को बेच दिया। शराब का सेवन करने वाले कम-से-कम 12 लोग मुच्छल में मारे गये।

मौतों पर सियासत

इसके तुरन्त बाद राज्य सरकार विपक्षी शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी (आप) के निशाने पर आ गयी, जिन्होंने इस मामले की जाँच विशेष जाँच दल (एसआईटी) से करवाने को महज़ एक धोखा करार दिया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ कांग्रेसी नेता, जिनमें एक कैबिनेट मंत्री, एक पूर्व मंत्री, पंजाब के मुख्यमंत्री के धार्मिक सलाहकार के रिश्तेदार और चार पार्टी विधायक इस मामले में शामिल हैं; जो राज्य में शराब का कारोबार चला रहे हैं। अकाली दल के महासचिव और प्रवक्ता डॉ. दलजीत चीमा ने कहा कि एसआईटी सिर्फ एक धोखा है। हम इतनी मौतें होने की घटना की न्यायिक जाँच की माँग करते हैं; क्योंकि शराब माफिया कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार के संरक्षण में चल रहा है।

विपक्षी दलों द्वारा इस मुद्दे को उठाने की उम्मीद थी ही, मुख्यमंत्री के एक फैसले के बाद उनकी ही पार्टी कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वी और राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दुल्लो ने राज्यपाल पी.पी. सिंह बदनोर से शिकायत कर दी कि राज्य सरकार की शराब माफिया के साथ मिलीभगत है। यहाँ यह दिलचस्प है कि बाजवा और दुल्लो दोनों ही कांग्रेस आलाकमान के करीबी माने जाते हैं। इन दोनों ने राज्यपाल को जो पत्र भेजा है, उसमें लिखा है कि शराब की तस्करी पर रोक के लिए ज़िम्मेदार दो विभाग (आबकारी व कराधान और गृह) मुख्यमंत्री के पास हैं। दुल्लो ने आरोप लगाया कि उन्होंने इस खतरे के प्रति राज्य सरकार को पहले भी चेताया था; लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी।

सीबीआई व ईडी जाँच की माँग

यहाँ यह गौरतलब है कि बाजवा और शमशेर सिंह दुल्लो दोनों ने राज्य में कथित अवैध शराब के कारोबार की सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से जाँच कराने की माँग की थी; जिसमें 121 लोगों की मौत का दावा किया गया था। अपनी ओर से राज्य कांग्रेस इकाई ने अपने केंद्रीय उच्च कमान को पत्र लिखकर पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए दोनों सांसदों को निष्कासित करने की सिफारिश की है। दिलचस्प बात यह है कि एक त्वरित कार्रवाई में पंजाब सरकार ने कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा को दी गयी राज्य पुलिस की सुरक्षा को वापस लेने का फैसला किया है। यह कहा गया है कि रिव्यू करने के बाद पता चलता है कि उन्हें (बाजवा को) वास्तव में किसी तरह का खतरा निहित नहीं है और किसी स्थिति में उनके ही मुताबिक अब सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय से उन्हें केंद्रीय सुरक्षा प्राप्त है।

पंजाब सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि बाजवा को प्रदान किया गया राज्य पुलिस सुरक्षा कवच तबसे बेमानी हो गया था, जब उन्होंने सीधे गृह मंत्री अमित शाह से निजी स्तर पर सुरक्षा प्राप्त की थी। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि किसी भी मामले में मिश्रित सुरक्षा चक्र को अच्छा नहीं माना जाता है, खासकर तब, जब राज्यसभा सांसद ने केंद्रीय सुरक्षा हासिल करते हुए कहा था कि उन्हें राज्य पुलिस पर कोई भरोसा नहीं है।

प्रवक्ता के अनुसार, बाजवा के किये गये दावों के विपरीत उन्हें जो केंद्रीय सुरक्षा मिली  है, वह कांग्रेस नेतृत्व के कहने पर नहीं थी। वास्तव में पंजाब सरकार के सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से उनके (बाजवा के) लिए खतरे के पैमाने को समझने हेतु परामर्श भी नहीं लिया, जो आमतौर पर किसी भी व्यक्ति को केंद्रीय सुरक्षा प्रदान करने से पहले किया जाता है।

सरकारी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि बाजवा को एक राज्यसभा सदस्य के रूप में केंद्रीय सुरक्षा प्राप्त करने के लिए सिर्फ सदन में पार्टी के नेता गुलाम नबी आज़ाद से सम्पर्क करने की आवश्यकता थी, जो कि एक आदर्श तरीका है। इसके अलावा उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय को अपना अनुरोध भेजना चाहिए था। हालाँकि किसी कारणवश गृह मंत्रालय ने बाजवा को सुरक्षा के खतरे के पैमाने को लेकर राज्य सरकार के साथ चर्चा नहीं करने का फैसला किया, जो इस तरह के मामलों में पालन किये जाने वाले मानदण्ड से मेल नहीं खाता।

प्रवक्ता ने यह भी कहा कि प्रताप सिंह बाजवा को वास्तव में इस समय पंजाब पुलिस से बढ़ी हुई सुरक्षा मिल रही है, जिस तरह की सुरक्षा के वह राज्यसभा सांसद होने के नाते हकदार थे। ऐसा इसलिए था, क्योंकि राज्य सरकार ने उन्हें पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में वापस नहीं लेने का फैसला किया था। आदर्श रूप से बढ़ा हुआ सुरक्षा कवच उनके सांसद बनने के बाद से ही वापस ले लिया जाना चाहिए था; क्योंकि उनके लिए खतरे का स्तर वास्तव में शून्य था। प्रताप सिंह बाजवा को 19 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जेड-श्रेणी सुरक्षा कवच प्रदान किया था और आज की तारीख में उनकी निजी सुरक्षा, आवास सुरक्षा और एस्कॉर्ट के लिए 25 सीआईएसएफ कर्मियों के अलावा 2 एस्कॉर्ट चालक भी तैनात हैं। इसके अलावा 23 मार्च तक पंजाब पुलिस के 14 कर्मी भी तैनात थे। हालाँकि कुछ को कोविड-19 सेवा में भेजने के लिए वहाँ से हटाया गया था। इसके उपरान्त उनके पास छ: पंजाब पुलिस कर्मी और ड्राइवर के साथ एक एस्कॉर्ट भी थे, जिन्हें अब वापस बुला लिया गया है।

दूसरी ओर बाजवा ने अपने रुख को सख्त करते हुए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ को पार्टी के हित में हटाने की माँग की है। उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री और राज्य प्रमुख को नहीं हटाया जाता है, तो पार्टी का पंजाब में नाम-ओ-निशान मिट जाएगा।