कांगे्रस और आप क्या मिलाएंगे हाथ?

कांग्रेस ने जब विपक्षी दलों के साथ देश में पेट्रोलियम उत्पादों में लगी आग के खिलाफ जब भारत बंद में भाग लिया तो सभी इस बात चकित थे कि राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी उस बंद में शामिल हैं। सिंह आम आदमी के वरिष्ठ नेता हैं और राज्यसभा सांसद हैं।

इससे सत्ता के गलियारों में खुसर-फुसर शुरू हो गई। हो न हो कांगे्रस, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में इन दोनों दलों में तालमेल हो सकता है क्योंकि इन सभी राज्यों में दोनों ही दलों का दबदबा तो है।  विशेषज्ञों का मानना है कि यह तालमेल दिल्ली में लोकसभा की सात सीटों पर संभव है जो 2014 में भाजपा को हासिल हो गईं थीं। राज्य विधानसभा में आप को 70 में 67 सीटें हासिल हुुई थीं। इसी तरह लोकसभा में पंजाब की तेरह सीटें हैं। आप को चार सीटें मिली थीं और हरियाणा में लोकसभा की दस सीटें हैं। यानी कुल मिला कर लोकसभा की इन 30 सीटों पर जबरदस्त टक्कर होगी जिसे दोनों ही दल नकार नहीं सकते। हालांकि दिल्ली प्रदेश कांगे्रस के अध्यक्ष अजय माकन (इन दिनों इलाज के सिलसिले में बाहर हैं), पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और हरियाणा की कांग्रेस पार्टी इस तालमेल के पक्ष में कतई नहीं हैं। लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा यही है कि कांगे्रस के आला नेताओं के शुरूआती बातचीत शुरू कर दी है। कांग्रेस का इरादा है कि बिहार में पहले हुए महागठबंधन जैसे ही तालमेल की पहल ली जाए। कांगे्रस के नेता जयराम रमेश और अजय माकन की एक मुलाकात कुछ पहले आप के प्रतिनिधियों से हो चुकी है।

अब सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि क्या राहुल गांधी इसे कबूल कर पाएंगे। उनकी हेठी तो नहीं होगी? क्या वे आप को कांग्रेस के बराबर की समानता दे सकेंगे। क्या 2019 के आम चुनाव को ध्यान में रख कर कांगे्रस अध्यक्ष अपने घमंड को छोड़ कर आप के साल तालमेल कर लेंगे।

अनुमान है कि आप ने कांगे्रस को दिल्ली में सीटों के बंटवारे में 5:2 का अनुपात प्रस्तावित किया है। यानी कांगे्रस को दो आप को पांच। जबकि कांगे्रस बराबरी की भागीदारी मांग रही है यानी दिल्ली में लोकसभा की सात सीटों में तीन सीटें। दूसरा सवाल है कि एक दूसरे के जानी दुश्मन कहे जाने वाले प्रतिद्वंद्वी कैसे परस्पर सहमत हो सकते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ट्विटर पर तारीफ भी कर चुके हैं। उन्होंने लिखा था कि लोग एक शिक्षित प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की कमी महसूस कर रहे हैं। उन्होंने लिखा, डा. मनमोहन सिंह जैसे पढ़े लिखे प्रधानमंत्री को लोग बड़ी शिद्दत से याद करते हैं। जबकि पहले खुद ही उनकी निंदा की थी। उन्होंने नरेंद्र मोदी की निंदा करते हुए कहा था कि उनके पास तो शिक्षा भी नहीं है। इसके बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने राजधानी के राजनीतिक गलियारों मेें बातचीत का सिलसिला शुरू किया। फिर ट्वीट के आ जाने से वह शुरूआत हो गई जिसकी उम्मीद नहीं थी। कांगे्रस और आप में हमेशा प्रेम और घृणा के संंबंध रहे हैं। आप ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम भी कांग्रेस के खिलाफ छेड़ी थी और पहली बार दिल्ली की सरकार को आप के पक्ष में कांग्रेस से समर्थन लिया। यदि वोट को बंटने से रोकना है तो जो गंठजोड़ बना वह खासा ताकतवर होगा। पंजाब में जहां आप आज विधान सभा में दूसरे नंबर पर है और अकाली दल तीसरे नंबर पर हैं।

यह नतीजा बताता है आप को हल्के में नहीं लिया जा सकता। क्षेत्रीय चुनावी गणित राष्ट्रीय तस्वीर में महत्व तो रखता ही है जब मुकाबला नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा से हो। पंजाब में यह संभावना है कि आप कांग्रेस के साथ 2019 लोकसभा चुनावों में तालमेल कर ले। पार्टी के दिल्ली नेता दिलीप पांडेय ने यह ट्वीट किया था कि कांग्रेस के कई बड़े नेता उनकी पार्टी के संपर्क में हैं। पंजाब से आप नेता सुखपाल सिंह खैरा ने कहा कि यदि अगले आम चुनावों के लिए ऐसा तालमेल होता है तो उनका कोई विरोध नहीं है। आपके सूत्रों ने कहा कि यदि ऐसा तालमेल हो जाए तो 2014 की तुलना में और भी अच्छा नतीजा आप के पक्ष में आ सकता है। उस समय जब आप को लोकसभा की चार सीटें मिल गईं थी। अगर तेरह में से कांग्रेस पांच सीटें भी दे देती है तो आप के लिए बुरा नहीं।

पंजाब में हालांकि आप का ग्राफ गिरता दिख रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में इस ने छह चुनाव हारे। जिनमें चार कारपोरेशन के थेे। गुरदासपुर लोक सभा उपचुनाव और शाहकोट उप चुनाव विधान सभा पार्टी में ज्य़ादातर को लगता है कि 2019 में पार्टी को नया जीवनदान मिल सकता है। आप और कांगे्रस 2019 में मोदी को हराने के लिए तालमेल करते हैं तो यह आश्चर्यजनक खबर नहीं होगी। उत्तरप्रदेश में जब बसपा और सपा ने आपस में तालमेल कर लिया और मायावती और मुलायम में कड़वाहट के बावजूद एक ही मंच पर दोनों दिखे तो उसके नतीजे भी सामने आए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर में वे जीते। जो काफी कठिन सीट मानी जाती थी। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल में अच्छे संबंध हैं और वे समझौता कराने में भूमिका अदा कर सकती हैं। हालांकि कई का यह मानना है कि माकन के रहते हुए यह संभव नहीं है।

कांग्रेसी हलकों में चर्चा है कि अजय माकन पार्टी की संभावनाओं को नकारने में लगे हुए हैं। सांकेतिक भूख हड़ताल के समय उन्हें एक ढाबे में छोले-भट्ूरे खाते हुए एक चित्र में दिखाया गया था जिससे पार्टी की छवि को नुकसान हुआ।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को वापस दिल्ली में सक्रिय कर दिया है। उन्हें लगता है कि उनके जरिए दिल्ली फिर जीती जा सकती है। इन तमाम बातों से यह लगता है कि अंदर ही अंदर तालमेल की प्रक्रिया ज़ोर-शोर से चल तो रही है। शायद जल्दी ही इस बात को उजागर भी कर दिया जाए।

कहते भी हैं कि राजनीति में कभी भी, कहीं भी कुछ भी हो सकता है। न तो स्थायी दोस्त होते हैं और न स्थायी हित। राजनीति में एकदम अनजान लोग भी साथ-साथ हो सकते हैं।