कर्नाटक के सिंहासन पर कांग्रेस का अभिषेक

कर्नाटक में हार से भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना काफ़ी हद तक टूटा है। कांग्रेस की इस बड़ी जीत से निश्चित ही दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर असर पड़ेगा। हो सकता है कि इस हार से सबक़ लेकर भाजपा अपने चुनावी तौर-तरीक़े बदले। इसी को लेकर बता रहे हैं डॉ. अनिल सिंह :-

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत न केवल कांग्रेस के लिए, बल्कि देश के अन्य क्षेत्रों में ग़ैर-भाजपा दलों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। यह नतीजे दर्शाते हैं कि भाजपा अब अपराजेय पार्टी नहीं है और बेहतर रणनीति से उसे सत्ता से बाहर किया जा सकता है। एक राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस ने हाल के समय में पहली बार सरकार बनाने के लिए इतना प्रचंड बहुमत हासिल किया है।

कांग्रेस के लिए चुनौती

कर्नाटक में सत्ता पाने के बाद कांग्रेस को अब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिनमें सबसे बड़ी चुनौती अपने चुनाव अभियान के दौरान राज्य के मतदाताओं से किये गये पाँच वादों को पूरा करने की होगी। अपने चुनावी वादों को निभाने के अलावा उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके चुने हुए प्रतिनिधि (विधायक) ‘ऑपरेशन लोटस’ का शिकार न बनें, जैसा कि सन् 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद हुआ था। पार्टी नेतृत्व को अपने विधायक दल को एक साथ रखते हुए कांग्रेस के राज्य संगठन के साथ आंतरिक सामंजस्य बनाये रखना होगा।

निस्संदेह कर्नाटक में कांग्रेस की जीत राज्य और अन्य जगह न केवल पार्टी का मनोबल बढ़ाने के लिए ख़ुराक का काम करेगी, बल्कि इस जीत से भाजपा को हराने के लिए विपक्ष के समन्वित प्रयासों को भी बड़ा बल मिलेगा। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अपनी खोयी हुई ज़मीन को फिर हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस को कर्नाटक में जीत से विश्वास और विश्वसनीयता दोनों हासिल होने की संभावना है। पार्टी की जीत कांग्रेस के भीतर राहुल गाँधी के नेतृत्व को मज़बूत करेगी और संघीय स्तर पर अन्य राज्यों में भाजपा के प्रभाव को चुनौती देने के लिए अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन की संभावनाओं को मज़बूत करेगी। इसके अतिरिक्त कांग्रेस की इस जीत से मतदाताओं के बीच यह सन्देश भी गया है कि भाजपा अपराजेय नहीं है और देश में एक मज़बूत विकल्प है, जो भाजपा पर जनता से किये गये वादों को पूरा करने का दबाव बना सकता है; जिसमें किसानों की माँगें, आर्थिक मंदी और साम्प्रदायिक हिंसा सहित कई मुद्दे शामिल हैं, जिन्होंने जनता के बीच उसके प्रभाव को कम किया है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस अब अन्य विपक्षी दलों को साथ काम करने के लिए राज़ी करने की बेहतर स्थिति में नज़र आ रही है।

भाजपा पर असर

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की संभावनाओं पर कई तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं। भाजपा दक्षिण भारत में तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना जैसे राज्यों में ज़मीन मज़बूत करने की कोशिश कर रही है। इसलिए यह हार उन प्रयासों के लिए झटका है। इसके अतिरिक्त इन नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाया है, जिन्होंने कर्नाटक में भाजपा के लिए सघन प्रचार किया। साथ ही विपक्षी दलों को अधिक ताक़त दी है; विशेष रूप से कांग्रेस को, जो लगातार चुनावी हार के बाद अपने लिए बेहतर संभावनाओं का इंतज़ार कर रही थी। राष्ट्रीय मंच पर ख़ुद को भाजपा के सामने गम्भीर चुनौती के रूप में पेश करने के लिए कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कर्नाटक को ज़मीन के रूप में इस्तेमाल करना चाहेगी। भाजपा की हार से उन क्षेत्रीय दलों को भी प्रेरणा मिलने की संभावना है, जिन्हें हाल के वर्षों में काफ़ी हद तक नज़रअंदाज़ किया गया था।

भाजपा के लिए यह हार उसकी आंतरिक गतिशीलता पर असर डाल सकती है। क्योंकि यह पार्टी नेतृत्व में बदलाव का रास्ता खोल सकती है या भीतर ही नेताओं का विद्रोह हो सकता है, जो महसूस करते हैं कि उन्हें पार्टी के आलाकमान की तरफ़ से नज़रअंदाज़ किया गया या टिकट से वंचित किया गया है। इसने यह सवाल भी उठाया है कि भाजपा की सत्ता ने कोरोना महामारी, किसान आन्दोलन, अर्थव्यवस्था में मंदी और सांप्रदायिक हिंसा जैसे मुद्दों को कैसे सँभाला है।

भविष्य की राह

कर्नाटक चुनाव के नतीजे, जहाँ कांग्रेस जीत गयी और भाजपा हार गई; मध्य प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी साल के उत्तरार्ध में होने वाले विधानसभा चुनाव जीतने की दोनों पार्टियों की सम्भावनाओं पर असर डाल सकते हैं। मध्य प्रदेश, जहाँ भाजपा के पास बहुत कम बहुमत है; में कर्नाटक के नतीजे को कांग्रेस अपने कुछ असन्तुष्ट विधायकों को वापस साथ लाने और कमलनाथ के नेतृत्व में एक एकीकृत मोर्चा बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकती है। कर्नाटक में भाजपा की हार तेलंगाना में भगवा पार्टी के विश्वास और उम्मीद को नुक़सान पहुँचा सकती है, जहाँ सत्ताधारी टीआरएस उसके ख़िलाफ़ मज़बूती से अभियान चलाये हुए है। ऐसे में राज्य में भाजपा की हार से उसकी मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस लाभान्वित हो सकती है। कांग्रेस टीआरएस और भाजपा दोनों सरकारों की कमियों को उजागर करके अपनी संभावनाओं को बेहतर करने की कोशिश कर सकती है।

कर्नाटक में जीत राजस्थान में कांग्रेस के मनोबल और स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है, जहाँ वह वर्तमान में बहुत कम बहुमत के साथ सत्ता में है। अब कांग्रेस अपने नेताओं में मतभेद दूर करने और जनता के सामने एकजुटता दिखाने की कोशिश करेगी। कर्नाटक में हार से राजस्थान में मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के लिए कांग्रेस से मुक़ाबला चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। राज्य में भाजपा को आंतरिक गुटबाज़ी और नेतृत्व की समस्या झेलनी पड़ सकती है। कर्नाटक की जीत ने राजस्थान में कांग्रेस के मनोबल और स्थिरता को मज़बूत किया है।

कांग्रेस की कर्नाटक में जीत से ऐसा प्रतीत होता है कि छत्तीसगढ़ में उसकी स्थिति के साथ-साथ समर्थन में मज़बूती आएगी, जहाँ वह ताक़तवर बहुमत के साथ सत्ता में है। राज्य में कांग्रेस ने कई कल्याणकारी कार्यक्रमों और किसान समर्थक नीतियों को लागू कर जनता का भरोसा जीता है। अब राज्य में भाजपा के लिए कांग्रेस को हराना और चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। यह देखते हुए कि भाजपा 2018 और 2019 में सीधे मुक़ाबले वाले दो चुनाव हार गयी, उसे अपने संगठन और रणनीति को पुनर्गठित करने के साथ-साथ ख़ुद को चुनौती दे सकने वाले स्तर पर लाना होगा।

(लेखक चुनावों के दौरान कर्नाटक के दौरे पर थे।)