कमाल तो उन योजनाओं का था जिनसे खिला कमल

भाजपा के नेतृत्व के एनडीए ने सत्ता में रहते हुए देश के बेहद गरीब जिलों में मरनेगा के अलावा जो योजनाएं ईमानदारी से अमल कीं उनसे 60 फीसद सीटों में बढ़ोतरी हुईं। बिहार, झारखंड, बंगाल के इन जिलों में मतदाताओं ने भाजपा गठबंधन वाले दलों को अपना मत दिया। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इन योजनाओं के नफा-नुकसान का कभी न जानना चाहा और न रु चि ली।

पिछली लोकसभा चुनावों के बाद से ही अभावग्रस्त ग्रामीण जनता का सामाजिक-आर्थिक सर्वे किया गया। वहां की ज़रूरतों के अनुरूप राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए। ये योजनाएं सिर्फ शौचालय, रसोई गैस और ग्रामीणघर नहीं थीं। बल्कि प्रधानमंत्री की ग्रामीण आवास योजना पर अमल था। हालांकि यूपीए दौर में इंदिरा आवास योजना तो थी लेकिन वह नौकरशाही और राज्य सरकार की तवज्जुह न पाने के कारण सिर्फ कागजों में रह गई। जबकि भाजपा के नेतृत्व की एनडीए सरकार ने उस पर अमल किया। पिछले पांच साल में डेढ़ लाख  घर बने। लोगों में उत्साह भी जगा।

इसी तरह अभावग्रस्त परिवारों के लिए विभिन्न राज्यों में महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लाएमेंट गारंटी योजना का बजट बढ़ाया गया। स्वच्छ भारत ग्रामीण योजना के तहत सरकार ने दस करोड़ शौचालय, फ्लैट के लिए, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए (बीपीएल) रु पए 12 हजार मात्र की राशि मुहैया कराई। यह सुविधा महिलाओं दिव्यांग और अंत्योद्य किसानों को मिली। इन सुविधाओं का असर सामूहिक तौर पर भाजपा के नेतृत्व के एनडीए राज प्रणाली को मिला।

बंगाल की मुख्यमंत्री जो केंद्र से मिली योजनाओं को अमली जामा पहनाने से बिदकती हैं उन्होंने भी स्वच्छ भारत को निर्मल बांग्ला के रूप में पूरे राज्य में अमल किया।

इसी तरह उज्जवला योजना को एसईसीसी 2011 के तहत बीपीएल परिवारों को दिया गया। इस से जिन्हें लाभ मिला वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार थे। इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना और अंत्योदय अन्न योजना का लाभ जंगलभूमि में रहने वाले पिछड़े लोगों को मिला। चाय बागान मज़दूरों और नदी-समुद्र द्वीप समूहों पर रह रहे लोगों तक ये योजनाएं पहुंची। दूसरी पार्टियों ने कभी इन योजनाओं पर अमल में कमियों को गंभीरता से नहीं लिया इसलिए हो सकता है 100 फीसद लोगों तक यह योजना न पहुंची हो। लेकिन इन योजनाओं की भनक अलबत्ता गांव-गांव पहुंची और मतदाताओं में कमल के प्रति उत्साह जगा।

उज्जवला योजना सिर्फ रसोई गैस की सप्लाई का दायरा बढ़ाने की कोशिश नहीं थी। बल्कि  इसके जरिए बड़ी तादाद में धुंए और गंदगी से ग्रामीण जनता को बचाने की पहल भी थी। लेकिन इस सुविधा की प्रारंभिक लागत ही इतनी ज्य़ादा हो जाती थी कि लोग इसमें पैसा लगाने की हिम्मत नहीं करते थे। भाजपा नेतृत्व की राजग सरकार ने गैस का कनेक्शन मुफ्त कर दिया। इससे गांव की आधी आबादी का ज्य़ादा समय जो चौके में जाता था। वह कम हुआ। उसका उपयोग बाल-बच्चों की देखरेख और वैकल्पिक सिलाई-कढ़ाई योजना में होने लगा। यह योजना बलिया (उत्तरप्रदेश) में मई 2016 में प्रधानमंत्री ने शुरू की थी। अब देश के 725 जिलों में से 714 में कुल 7.19 करोड़ गैस कनेक्शन लग चुके हैं। यह ज़रूर है एलपीजी  कनेक्शन के सिलिंडरों की कीमत ज्य़ादा है इसलिए रि-फिल ज्य़ादा नहीं हो पाती। लेकिन जो परिवार अपने निजी खर्चों से तालमेल करके चलते हैं उनके लिए यह बड़ी सुविधा तो है ही।

सभी घरों को बिजली की सुविधा देने पर भी एसईसीसी 2011 डाटा के तहत प्रयास किया गया। जिन घरों में बिजली नहीं थी उन्हें बिजली का कनेक्शन मुफ्त दिया गया। बाकी के लिए यह सुविधा की गई कि वे रु पए पांच सौ मात्र की किस्त बांध कर धीरे धीरे भुगतान करते रहें। सितंबर 2017 से शुरू की गई इस योजना से 2.63 करोड़ परिवारों में आज बिजली है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार देश में कुल 18,734 परिवार हैं जहां बिजली अभी नहीं है।

यदि आप इन योजनाओं के अमल में आने की रिपोर्ट देखें तो यह जाहिर होता है कि 2014 में भाजपा जिन राज्यों में जीती या उसके गठबंधन के दल जहां जीते वहां भी भाजपा ने केंद्रीय मदद देकर अपनी पार्टी की राह बनाई।

बंगाल में 2014 में भाजपा महज आसनसोल सीट पर विजयी हो पाई थी। इस बार 18 सीटों पर जीत हासिल हुई। राजाघाट, बालूरघाट और माल्दा उत्तर पहले तृणमूल के कब्जे में थीं। आज तस्वीर एकदम अलग है। सौभाग्य योजना के तहत तकरीबन दस लाख घरों में नादिया (रानाघाट), 3.16 घर (दक्षिण) दीनाजपुर (बालूरघाट) और 9.6 लाख घर माल्दा (माल्दा उत्तर) में प्रकाशित हो गए।

ऐसे ही ओडिशा में भी कई जिलों में भाजपा अपनी योजनाओं को वास्तविक तौर पर अमल  में लाते हुए अपनी अनिवार्यता पर जोर दे रही है। जबकि वामपंथी, कांग्रेस, समाजवादी और दूसरी पार्टियां केंद्र की इन योजनाओं का लाभ पूरी जनता को मिले, उस पर ध्यान ही नहीं देती। और तो और, ये पार्टियां मतदाताओं के मतदातापत्रों के नवीकरण पर भी ध्यान नहीं देते। ऐसे में सिर्फ भाषण के बल पर वोट हासिल होंगे इस पुरानी सोच को इन पार्टियों को तिलांजलि देकर समाज में अपने महत्व को कायम करने की कोशिश करनी चाहिए जो बाहुबल, धनबल से नहीं बल्कि मनोबल से ही हासिल हो सकता है। अब ‘नया भारत’ बनाने में शायद भाजपा घर-घर पेयजल, लोगों की बुनियादी ज़रूरतों पर शायद और तेजी से अमल करे। विपक्षी दलों पर है कि वे अपने को समसामयिक बनाए  रखने में क्या करते हैं।