कब रुकेगी मूर्तियों की चोरी

चरते-डकराते मवेशियों के झुण्डों की बगल से निकलता ऊबड़-खाबड़ पथरीला रास्ता कोटा शहर के निकट तारागढ़ की पहाड़ी पर स्थित रियासतकालीन डोबरा महादेव मंदिर के उजाड़ सन्नाटे में ले जाता है। मंदिर इतना उपेक्षित और तन्हा नहीं है कि हवा में फफूँद के निशानों से भरी शहतीरें नमीं से गन्धा रही हो और किसी को अहसास भी न हो। वहाँ सब कुछ चौकस है। लेकिन मंदिर की सूरत ऐसे फ्रेम की मानिंद है, जिसमें तस्वीरें नहीं हैं। इस मंदिर से भगवान लुप्त हैं। मंदिर के 800 साल प्राचीन अधिष्ठाता देवागिदेव अपने आसन से गायब हैं। इस रियासतकालीन मंदिर से गायब हुई भगवान रघुनाथ की प्रतिमा के बारे में सूत्रों का कहना है कि सैंकड़ों मीलों का सफर करके काले पत्थर से बनी चारभुजा की यह मूर्ति किसी विदेशी राष्ट्रीय कला दीर्घा में स्थापित हो चुकी है।

मंदिर के पुजारी विवेकानंद बताते हैं कि रात्रि की आरती के बाद मंदिर के कपाट बन्द करके वह ऊपर छत पर जाकर सो गये थे। अगले सुबह 5:45 बजे जब वह प्रात:कालीन पूजा-अर्चना के लिए नीचे पहुँचे, तो हतप्रभ रह गये। मंदिर के कपाट खुले हुए थे और प्रतिमा वेदी से गायब थी। मंदिर के हालात देखकर लगता था कि मूर्ति को बड़ी बेदर्दी से उखाड़ा गया था। जल्दबाज़ी में अंजाम दी गयी वारदात के कारण मूर्ति के पंजे और पायल वहीं रह गये थे। मूर्ति चोर सम्भवत: वहाँ चप्पे-चप्पे से वािकफ थे, लिहाज़ा प्रतिमा का चाँदी का छत्र और निकट ही स्थापित लड्डू गोपाल की दो प्रतिमाएँ भी ले जाने से नहीं चूके। पुजारी ने मंदिर के महंत ओमप्रकाश बृजवासी को इत्तला दी, तो पुलिस पहुँची। इस साल की शुरुआत में हुई मूर्ति चोरी की वारदात बूँदी के जालोड़ा गाँव के महादेव मंदिर में हुई। 800 साल पुरानी यह प्रतिमा कीमती नीलम की बनी हुई थी। इसलिए समझा जा सकता है कि एंटीक के लिहाज़ से यह मूर्ति कितनी बेशकीमती हो सकती थी। यह वारदात पुलिस चौकसी के तमाम दावों की धज्जियाँ उड़ाने वाली थी। करीब तीन साल पहले राज्य पुलिस ने मंदिरों की सुरक्षा को लेकर एक खास योजना तैयार की थी। इसके मुताबिक, थानेवार मंदिरों की फेहरिस्त तैयार की गयी थी और सम्बन्धित क्षेत्र के थाना प्रभारियों को सख्त हिदायत दी गयी थी कि वे मंदिर समितियों और ट्रस्टों के साथ बैठकर पुख्ता सुरक्षा बन्दोबस्त सुनिश्चित करें। लेकिन इस मामले में खामी रह गयी। यानी पुलिस के चोरी निरोधक दस्ते सिर्फ शहरी इलाकों में सिमटकर रह गये। मूर्ति चोरों को गली मिलनी ही थी, सो उन्होंने आराम से गाँव जवार के सुदूरवर्ती मंदिरों में सेंध लगा दी।

कुछ अर्सा पहले मूर्ति तस्कर वामन नारायण घीया को घेरने में कामयाब रहे तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आनंद श्रीवास्तव कहते हैं- ‘कला शिल्पों और प्राचीन वस्तुओं की चोरी सबसे कमाऊ अपराध है। इसने ड्रग्स के धंधे को भी मात दे दी है।’ मूर्ति चोरी की बेहिसाब घटनाओं में यथार्थ का खुला पन्ना बाँचने के बावजूद भी कि प्राचीनतम देवालय तो घने जंगलों में ही मिलेंगे। पुलिस दस्ते सिर्फ शहरी देवालयों के गिर्द ही चहलकदमी करके क्यों रह गये। इसमें कोई संदेह नहीं कि पुलिस ने सुरक्षा बंदोबस्त के मद्देनज़र मंदिर समितियों के साथ बैठकें भी कीं और सीसीटीवी कैमरे भी लगा दिये; लेकिन असल लक्ष्य तो अछूता ही रह गया। पड़ताल कहती है कि बूँदी स्थित पिडोबरा महादेव मंदिर की नीलम की बेशकीमती प्रतिमा के मामले में तो पुलिस को छोड़ कोई फाख्ता भी वहाँ नज़र नहीं आयी। तो फिर क्या कर रहे थे तत्कालीन पुलिस अधीक्षक? मूर्ति चोरियों के मामले में पुलिस अधिकारियों को कुख्यात मूर्ति तस्कर वामन नारायण घिया का इतिहास ज़रूर बाँचना चाहिए, जिसने सुरक्षा बंदोबस्त के मामले में सबसे ज़्यादा विपन्न बाराँ और बूँदी को जमकर खंगाला, जहाँ प्राचीन मूर्तियों का अथाह खजाना है। यह बात दिलचस्पी से परे नहीं है कि बाराँ के गढग़च मंदिरों की पाँत से घिया गैंग द्वारा चुरायी गयी जितनी मूर्तियाँ इंटरपोल की मदद से दो वर्षों में न्यूयार्क से बरामद हुईं, उतनी केवल 10 महीनों में अकेले बूँदी ज़िले के 13 मंदिरों में चोरी हो चुकी हैं। जून से अब तक रजलावता, रायासगर, बालाजी, छोटी पड़ाव, बालाजी, जैन मंदिर, मानपुरा, बाछोला के लक्ष्मीनाथ मंदिर, भंडेडा के रामगंज गाँव में चारभुजानाथ मंदिर, बूँदी नगर परिषद की गली स्थित चौकी के हनुमान मंदिर, बड़ा नया गाँव में कंकाली माता मंदिर, बावड़ी बासनी, मंशापूर्ण गणेश मंदिर, झज्ञलीजी का बराना जैन मंदिर में चोरी हो चुकी है। इससे पहले भी बाँसी और जयस्थल में मंदिरों से मूर्ति चोरी की वारदात हो चुकी हैं।

बाराँ ज़िले के दहीखेड़ा स्थित राज मंदिर से छ: वर्ष पूर्व चोरी हुई 1700 वर्ष पुरानी लक्ष्मीनाथ भगवान की प्रतिमा को पुलिस आज तक नहीं ढूँढ पायी है। इस मूर्ति के लिए ग्रामीणों ने एक सप्ताह तक धरना-प्रदर्शन व बाज़ार बन्द रखकर विरोध किया था। इसी तरह चन्द्रामौलिक्श्वर मंदिर, गोमटेक्श्वर मंदिर, दिगम्बर जैन, कल्पतरू नसियास, गिंदोर ठाकुर साहब, नवलखा िकला, आनंदधाम मंदिर, दिगम्बर जैन पाश्वनार्थ जूनी नसिया, सारोला जैन मंदिर से बेशकीमती प्रतिमाएँ चोरी हुई थीं, जिन्हें पुलिस नहीं तलाश सकी। राजस्थान के अटरू से दो दुर्लभ मिथुन मूर्तियाँ चुरा ली गयीं। काफी प्रयासों से करीब एक दशक बाद वे भारत लौटीं; यह पहली ऐतिहासिक उपलब्धि थी। उत्तर प्रदेश के एक गाँव से चुरायी गयी हज़ार साल पुरानी वृषासन योगिनी की मूर्ति की वापसी भी काफी चर्चा में रही थी। मूर्ति चोरी की बढ़ती वारदात के बारे में सूत्रों का कहना है कि भारतीय कलाकृतियाँ चोरी करके उन्हें अमेरिकी बाज़ार में ले मोटे दामों में बेच दिया जाता है। लेकिन सरकार उनकी वापसी के लिए कोई प्रभावी प्रयास नहीं करती।

‘बस चले तो ताजमहल भी चुरा लें!’

राजस्थान पुरातत्त्व विभाग के सूत्र तो चोरों के बढ़ते दुस्साहस के मद्देनज़र यहां तक कह चुके हैं कि इनका बस चले तो, ताजमहल भी चुरा लें। उन्होंने यह भी अंदेशा जताया था कि राज्य सरकार को पर्यटकों के रूप में आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों की भी निगहबानी करनी चाहिए। प्रख्यात देवालयों की प्रतिमाओं की फोटोग्राफी करने वाले ऐसे पर्यटकों में मूर्ति तस्कर भी हो सकते हैं। उन्होंने रहस्योद्घाटन किया कि कुछ अर्सा पहले अलवर से चुरायी गयी महादेव की बेशकीमती प्रतिमा अनायास ही हरियाणा पुलिस के हाथ लग गयी। दरअसल हरियाणा पुलिस जिस समय दैनिक यात्रियों और वाहनों जाँच कर रही थी, तभी प्रतिमा उसके हाथ लगी। पूछताछ में भेद खुला कि यह सब कुछ पर्यटन की आड़ में हो रहा था। प्रतिमा के जानकार सूत्र कहते हैं कि ऐतिहासिक प्रतिमाओं को खपाना कोई मुश्किल नहीं है। विदेशी सम्पर्क तो इसके लिए सदैव उपलब्ध रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि पिछले साल जुलाई में एक कुख्यात मूर्ति तस्कर जयपुर पहुँचकर यहाँ कुछ दिनों तक ठहरा भी था। उसने अपना ज़्यादातर वक्त यहाँ के प्रख्यात मंदिरों की प्रतिमाओं की फोटोग्राफी में बिताया था; लेकिन किसी को कानोंकान भनक तक नहीं हुई।

तीर्थंकरों की मूर्तियों पर नज़र

कला शिल्पों की चोरियों के मद्देनज़र जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों की चोरी ज़्यादा चौंकाती है। अपने अधिष्ठाता की प्रतिमाओं की सुरक्षा के प्रति जैन समुदाय की सतर्कता अनुकरणीय ही कही जाएगी। फिर भी जैन मंदिरों पर चोरों का धावा कैसे होता है?  कहना मुश्किल है। डूंगरपुर ज़िले के सागवाड़ा नगर में कंसाड़ा चौक स्थित आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में देर रात को जाली और सरिये तोडक़र चोर प्राचीन प्रतिमाएँ और छत्र चुराकर ले गये। प्रतिमाओं की संख्या 23 बतायी जाती है। चैमू कस्बे के गोविंद गढ़ गाँव में चोर कई साल पुरानी ताँबे की भगवान पाश्र्वनाथ की प्रतिमा, चार यंत्र और कलश चुराकर ले गये। गज़ब है कि मंदिर के ताले भी नहीं टूटे और सामान के साथ भी कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी। जयपुर के निकट विराटनगर में मुख्य बाज़ार स्थित दिगम्बर जैन मंदिर से चोर अष्टधातु से बनी भगवान महावीर की मूर्ति चुरा ले गये। चौंकाने वाली बात है कि चोरी की घटना सुबह करीब 9:00 बजे हुई। एक व्यक्ति मोटर साइकिल पर आया और बड़ी सहूलियत से मूर्ति उठाकर चल दिया। आखिर कोई क्यों उसे नहीं रोक पाया? सीकर के कोतवाली थाना क्षेत्र में आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर का ताला तोडक़र चोर अष्टधातु की मूर्ति चुरा ले गये। मूर्तियाँ काफी प्राचीन बतायी जाती हैं।