और कारवां गुज़र गया

”अब तो मज़हब कोई ऐसा चलाया जाए

जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए

आग बहती है यहां गंगा में झेलम में भी

कोई बतलाए कहां जाके नहाया जाए’’

इन शब्दों के रचयिता महान कवि व गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ देश के मौजूदा हालात का दर्द अपने सीने में लिए चले गए। उनकी कलम ने मानवीय संवेदनाओं को बार-बार झिंझोरा। जहां एक ओर वे सामाजिक व्यवस्था के ताने बाने से बगावत करते नज़र आते हैं तो दूसरी ओर वे बेहद रोमानी हो जाते हैं। वे लिखते हंै-

”लिखे जो खत जो तुझे, वे तेरी याद में

हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए’’

उनके नगमों में प्रेम अपनी उच्चतम अवस्था में दिखाई पड़ता है। उसमें एक पवित्रता दिखती है। कोई फूहड़पन नहीं। इसके साथ उनकी कविताओं, गज़लों और नगमों में सादापन साफ झलकता है। उनके शब्द भी सादे हैं, आम आदमी को समझ आते हैं। हर मानव उनसे प्रभावित होता है।

 उनकी कल्पना की उड़ान असीमित थी। एक जगह वो कहते हैं-

”हाथ थे मिले कि ज़ुल्फ चांद की सवार दूं

होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार लूं

और सांस यंू कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं’’

किसी भी शायर या कवि के लिए उसकी कल्पना की उड़ान बहुत मायने रखती है। इसके साथ ही नीरज में एक क्रांतिकारी भी नज़र आता है। वह जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाता है। उस क्रांतिकारी की ये पंक्तियां ही सारी बात कह देती हैं। अपनी एक गज़ल में वे लिखते हैं-

”दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था

तुम्हारे घर का सफ़र इस कदर सख्त न था’’

”जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया, न खौल उठा,

वो और कुछ भी हो मगर आदमी का रक्त न था’’

 यह विद्रोही भावना शायद उन्हें अपने जीवन के आरम्भ से ही मिली थी। बेहद मुफ्लिसी में अपने जीवन की शुरूआत करने वाले नीरज ने भूख को बहुत करीब से देखा था। उनका संघर्ष सभी के लिए एक प्रेरणा है। उनकी सोच में हमेशा सकारात्मकता रही है। वे कभी हतोत्साहित नज़र नहीं आते। उनकी पंक्तियां उत्साह बढ़ाती हैं। समय, काल और व्यवस्था को चुनौती देती है-

”है बहुत अंधियारा अब सूरज निकलना चाहिए

जिस तरह से भी हो यह मौसम बदलना चाहिए

छीनता है जब तुम्हारा हक कोई, उस वक्त तो

आंख से, आंसू नही शोला निकलना चाहिए’’

ऐसा नहीं है कि नीरज ने जीवन संघर्ष को एक ही ऐनक से देखा हो। उन्होंने संघर्ष में अध्यात्मवाद को भी महत्व दिया और धर्मांघता पर भी चोट की। वे लिखते हैं-

”जितना कम सामान रहेगा

उतना सफर आसान रहेगा

जितनी भारी गठरी होगी

उतना तू हैरान रहेगा’’

इसी $गजल में अगले शेयर की बानगी देखिए-

”जब तक मंदिर और मस्जिद हैं

मुश्किल में इंसान रहेगा’’

यहां अचानक अध्यात्मवाद और मोक्ष की बात करते-करते नीरज सांप्रदायिकता पर चोट कर जाते हैं। इतना ही नहीं वे देश के रहबरों पर भी तंज कसते हैं। साथ ही समाज में दबे कुचले लोगों को भी संघर्ष के लिए प्रेरित करते हैं। वे कहते हैं-

”खुशबू सी आ रही है इधर जाफरान की

खिड़की खुली है गा़लिबन उनके मकान की

हारे हुए परिंदे ज़रा उड़ के तो देख

आ जाएगी ज़मीन वे छत आसमान की’’

इसके पश्चात् उनका तंज आता है देश के नेताओं पर जब वे कहते हैं-

”बुझ जाए सरेआम ही जैसे कोई चिराग

कुछ यूं है शुरूआत मेरी दास्तान की

ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी

हालत यही है आज कल हिंदुस्तान की’’

नीरज का जन्म चार जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश में इटावा महेवा के निकट पुरावली गांव में हुआ। उनका पूरा नाम गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ था। उन्होंने जो भी लिखा अपने ‘कलम’ के नाम ‘नीरज’ के नाम से लिखा। उनकी रचनाओं के लिए उन्हें 1991 में ‘पद्मश्री’ और 2007 में ‘पदम भूषण’ के खिताबों से नवाजा गया। वे धर्मसमाज कॉलेज अलीगढ़ में प्रोफेसर भी रहे। उनकी बहुत सी कविताएं और गाने हिंदी फिल्मों की शोभा बने और बहुत ही मकबूल हुए। उनमें 1965 में बनी फिल्म ‘नई उम्र की नई फसल’ का यह गाना ‘और हम खड़े-खड़े गुबार देखते रहे’ आज भी नई पीढ़ी के होठों से सुना जा सकता है।

नीरज शायद एकमात्र ऐसे गीतकार हैं जिन्हें तीन साल लगातार ‘फिल्म फेयर’ पुरस्कार मिलते रहे। 1970 में उन्हें फिल्म ‘चंदा और बिजली’ के गाने ‘काल का पहिया घूमे रह भैया’ 1971 में फिल्म ‘पहचान’ के गाने ”बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं, आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं’’ के लिए और 1972 में राजकपूर की सबसे मशहूर फिल्मों में से एक ‘मेरा नाम जोकर’ के इस गाने ”ए भाई ज़रा देख के चलो, आगे भी नही पीछे भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी’’ के लिए इस पुरस्कार से नवाजा गया। इनके अलावा उनके छह सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गानों में-

”फूलों के रंग से

दिल की कलम से

तुझको लिखी रोज़ पाती’’ (फिल्म- प्रेम पुजारी)

”शोखियों में घोला जाए

फूलों का शवाब

उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी सी शराब’’

(फिल्म- प्रेम पुजारी)

”रंगीला रे तेरे रंग में यूं

रंगा है मेरा मन’’ (फिल्म- प्रेम पुजारी)

”लिखे जो खत जो

तुझे वो तेरी याद में’’        (फिल्म- कन्यादान)

”खिलते हैं गुल यहां खिलके

बिखर जाने को’’   (फिल्म- शर्मीली)

”आज मदहोश हुआ

जाए रे मेरा मन’’ (फिल्म- शर्मीली) शामिल हैं।

एक टीवी साक्षात्कार मे नीरज ने खुद को दुर्भाग्यशाली कवि कहा क्योंकि उन्हें फिल्मी गाने लिखना छोडऩा पड़ा। इसका कारण उन्होंने बताया कि जिन संगीतकारों के साथ उन्होंने मशहूर गाने तैयार किए थे वे इस दुनिया से चल बसे। इस बारे में उन्होंने शंकर-जयकिशन की जोड़ी में से जयकिशन का नाम लिया। इसके अलावा उन्होंने सचिन देव बर्मन और राहुल देव बर्मन के नाम भी लिए। इनकी मृत्यु के बाद नीरज काफी निराश हो गए और उन्होंने फिल्मी दुनिया का अलविदा कह दिया।

19 जुलाई 2018 को 93 साल की उम्र में ‘कलम’ का यह शहंशाह इस नश्वर संसार को अलविदा कह गया।