ऑनलाइन खरीदारी में सावधानी की दरकार

भारत में अक्टूबर से दिसंबर तक त्योहारों का महीना होता है। इन 3 महीनों में हर महीने कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता हैं। पहले दशहरा, फिर दीवाली व छठ, उसके बाद क्रिसमस और फिर न्यू ईयर। तीनों महीने लोग जमकर खरीदारी करते हैं। आजकल ऑनलाइन शॉपिंग का चलन है। इसमें लोगों को दूकान जाने की ज़रूरत नहीं होती है। शॉपिंग मोबाइल पर ही हो जाता है। ई-कारोबारी इन महीनों में अधिक-से-अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं। इस साल सभी के जीवन में कोरोना वायरस का ग्रहण लगा हुआ है। फिर भी अनलॉक का 5वाँ चरण शुरू होने के कारण आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ी हैं। कल-कारखानों में काम शुरू हो गये हैं। स्व-रोज़गार करने वाले फिर से अपने काम में व्यस्त हो गये हैं।  वैसे कोरोना महामारी के कारण ज़्यादा गहमागहमी रहने की उम्मीद नहीं है। फिर भी आमजन के मन-मस्तिष्क पर त्योहारों का खुमार तो ज़रूर रहेगा। ई-कारोबारी चाहते हैं कि इस साल भी वे अरबों-खरबों का कारोबार करें। ई-वाणिज्यिक कम्पनियाँ, मसलन, टाटा क्लिक, एजियो, मैक्स, शॉपर स्टॉप, लाइफस्टाइल, मिंत्रा, जाबोंग, फ्लिपकार्ट, एमेजॉन आदि अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से आकर्षक छूट देने की पेशकश करने वाले हैं। दुर्गा पूजा के बाद भी सेल-महासेल का दौर चलता रहेगा; क्योंकि दीवाली में कारोबारी सबसे ज़्यादा मुनाफा कमाते हैं। वैसे ग्राहकों को ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान सावधान रहने की भी ज़रूरत है, क्योंकि इसमें धोखाधड़ी की बहुत ज़्यादा गुंजाइश होती है। ऑनलाइन बाज़ार में सावधानी हटने पर, ठगे जाने की सम्भावना रहती है।

ई-कारोबारी और ग्राहकों की तैयारी

ई-वाणिज्यिक कम्पनियाँ सेल-महासेल कर रही हैं। ई-कारोबारी खाद्य पदार्थ, एनर्जी ड्रिंक्स, फिल्टर कॉफी, बीन बैग्स, एलेक्सा, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, होम अपलायंस सहित आमजन की ज़रूरत की हर चीज़ सेल-महासेल में बेचने के लिये तैयार हैं। कोई भी ई-कारोबारी इस मौका को अपनी मुट्ठी से फिसलने नहीं देना चाहता है। पिछले साल ई-कारोबारियों ने इन 3 महीनों में करोड़ों-अरबों की कमायी की थी। वैसे, ग्राहक भी ऑनलाइन बाज़ार लगने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। छूट का अधिकतम लाभ लेने के लिए ग्राहक सेल-महासेल के दौरान स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंक का क्रेडिट कार्ड रखते हैं, क्योंकि ई-कारोबारी घोषित छूट से अतिरिक्त छूट इन क्रेडिट कार्डों के ज़रिये तुरन्त देते हैं। यह छूट 5 से 10 फीसदी तक होता है। इसलिए जिनके पास इन बैंकों के क्रेडिट कार्ड नहीं होते हैं, वे अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से क्रेडिट काड्र्स माँगकर ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं।

सस्ते के चक्कर में ज़्यादा खरीदारी

आमतौर पर ऐसे सेल-महासेल की समय-सीमा होती है। ई-कारोबारी ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा उठाने के लिए त्योहारी सीज़न में हर रोज छूट का विज्ञापन प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में देते हैं। इन विज्ञापनों में यह लिखा हुआ होता है कि अमुक तिथि के बाद छूट का लाभ नहीं मिलेगा। कई बार तो ई-कारोबारी उत्पादों की कीमत को एमआरपी से ज़्यादा दिखाकर उस पर छूट देते हैं, ताकि छूट का प्रतिशत ज़्यादा दिखे। यह भी देखा जाता है कि सेल-महासेल के दौरान कुछ ही वस्तुओं पर छूट दी जाती है और यह दिखाया व बताया जाता है कि उन उत्पादों का स्टॉक सीमित है। कहीं स्टॉक खत्म न हो जाए, इस डर से ग्राहक जल्दबाज़ी में उक्त उत्पादों को अधिक कीमत पर खरीद लेते हैं।

ई-कारोबारियों की रणनीति

ई-कारोबारी उत्पादों को ज़्यादा-से-ज़्यादा बेचने के लिए ग्राहकों को तरह-तरह के उपायों से लुभाने की कोशिश करते हैं, जिनमें कूपन कोड, रेफरल पॉइंट्स, जानबूझकर स्टॉक को सीमित दिखाना आदि हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए उन्हें एसएमएस और मेल भेजा जाता है। कई बार उन्हें फोन भी किया जाता है। अक्सर देखा जाता है कि ई-वाणिज्यिक कम्पनियों के पोर्टल पर मोबाइल कुछ सेकेंड में बिक जाते हैं। मोबाइल खरीदने वाले अपने को भाग्यशाली समझते हैं। वहीं निर्धारित समयावधि में मोबाइल नहीं खरीद पाने वाले ग्राहक अपनी िकस्मत को कोसते हैं। बहुत सारे दूसरे उत्पाद भी इसी तर्ज पर बेचे जाते हैं; लेकिन वास्तव में मोबाइल बिकने की जो संख्या बतायी जाती है, वह गलत होती है। इस तरह की रणनीति ग्राहकों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए अपनायी जाती है। यह भी देखा गया है कि ऑनलाइन कारोबारी पुराने मोबाइल, टैब और लैपटॉप को मरम्मत कराकर बेचते हैं, जिनकी कीमत में अन्तर नये उत्पादों से बहुत ज़्यादा नहीं होता है। अनेक बार धोखे में ग्राहक ऐसे पुराने उत्पादों को भी खरीद लेते हैं। ऐसे उत्पाद जल्द ही खराब हो जाते हैं।

एमआरपी के साथ छेड़छाड़

उत्पादों को बेचने के लिए ई-कारोबारी कई तरह के नुस्खे आजमाते हैं। जिन उत्पादों को उन्हें बेचना होता है, उन्हें वे लोकप्रिय बना देते हैं। कई बार उत्पादों को लोकप्रिय बनाने के लिए ई-वाणिज्यिक कम्पनियाँ फर्ज़ी सर्वे का सहारा लेती हैं। फिर तथाकथित लोकप्रिय उत्पादों पर वे भारी-भरकम छूट की पेशकश करती हैं; जबकि नहीं बेचने वाले उत्पादों की कीमत ज़्यादा दिखायी जाती है; ताकि लोग तथाकथित लोकप्रिय उत्पादों को ही खरीदें। गौरतलब है कि छूट देने के बाद भी ई-कारोबारी उत्पादों को उनकी वास्तविक कीमत पर ही बेचते हैं। खरीदे हुए उत्पादों की कीमत मिटा देने के मामले भी देखे जाते हैं। ग्राहक मिटायी हुई कीमत वाले उत्पाद मिलने पर हैरान-परेशान रहता है; क्योंकि ऐसे उत्पाद को लौटाना सम्भव नहीं होता है।

मुफ्त या सस्ती डिलीवरी के नाम पर कमायी

ई-कारोबारी मुफ्त या सस्ती डिलीवरी के भी पैसे लेते हैं। वे इसके लिए कूपन जैसे- प्राइम, गोल्ड, सिल्वर आदि बेचते हैं। जो ग्राहक ऐसे कूपन खरीदते हैं, उन्हें ई-कारोबारी ज़्यादा छूट देने की पेशकश करते हैं। अगर कोई ग्राहक ऐसे कूपन नहीं खरीदता है, तो उन्हें उत्पादों की डिलीवरी 7 से 15 दिनों में की जाती है। कभी-कभी डिलीवरी में एक महीने का भी समय लग जाता है। ऐसे उत्पाद ऑनलाइन भुगतान करने के बाद ही डिलीवर किये जाते हैं। पैसे अधिक समय तक फँसे रहने से ग्राहकों को ब्याज का नुकसान होता है।

सामान बदलने या लौटाने के अपारदर्शी नियम

ऑनलाइन बाज़ार से खरीदे गये बहुत सारे उत्पाद ऐसे होते हैं, जिन्हें ई-वाणिज्यिक कम्पनियाँ न तो बदलती हैं और न ही वापस लेती हैं। उत्पाद के खराब निकलने पर ग्राहक को कस्टमर केयर अधिकारी उत्पाद के सर्विस सेंटर जाने के लिए कहते हैं। वहाँ उत्पाद की केवल मरम्मत की जाती है। ई-वाणिज्यिक कम्पनियों के बहुत सारे नियम-कानून अपारदर्शी होते हैं, जिनकी जानकारी ग्राहकों को नहीं होती है। उदाहरण के तौर पर बहुत सारे उत्पादों में एश्योर्ड लिखा होता है। ऐसे उत्पादों की डिलीवरी में परेशानी नहीं होती है। कुछ उत्पादों को ई-वाणिज्यिक कम्पनियों के ज़रिये खुदरा विक्रेता सीधे ग्राहकों को बेचते हैं। ऐसे उत्पादों के डिटेक्टिव रहने पर ग्राहक को स्वयं विक्रेता को उत्पाद वापस करना पड़ता है और धन वापसी के लिए महीनों फालो-अप करना पड़ता है, तब जाकर उनके पैसे वापस मिल पाते हैं। अगर ग्राहक पड़ा-लिखा नहीं है, तो उनके पैसे डूब भी जाते हैं।

ग्राहक सेवा प्रभावी नहीं

ई-वाणिज्यिक कम्पनियों का कस्टमर केयर सिस्टम (ग्राहक सेवा) प्रभावी नहीं है। कस्टमर केयर अधिकारी को अपने कम्पनी के दिशा-निर्देशों की जानकारी नहीं होती है। ई-वाणिज्यिक कम्पनियों के आला अधिकारियों के फोन नम्बर भी बेवसाइट पर उपलब्ध नहीं होते हैं। कस्टमर केयर अधिकारी भी बड़े अधिकारी का नम्बर उपलब्ध नहीं कराते हैं। फोन करने पर आमतौर पर हर बार कस्टमर केयर अधिकारी बदल जाते हैं। अगर किसी ग्राहक को कोई समस्या होती है, तो उन्हें हर बार नये सिरे से कस्टमर केयर अधिकारी को पूरी कहानी सुनानी पड़ती है। कस्टमर केयर हेल्पलाइन पर मेल करने से भी समस्या का समाधान नहीं निकल पाता है। मेल में एक बात को बार-बार दोहराया जाता है। ऑनलाइन चैट या व्हाट्सएप पर चैट करने से भी समस्या का समाधान नहीं निकल पाता है। फालो-अप करने से ही समस्या का समाधान निकल जाता है; लेकिन इसमें समय बहुत लगता है। अनेक बार ग्राहकों के पैसे डूब भी जाते हैं।

प्रभावी कानून का अभाव

फिलहाल अपने दोयम दर्जे के उत्पाद बेचने के लिए ई-कारोबारी वैसे यूट्यूबर की मदद लेते हैं। जिनके करोड़ों सब्सक्राइबर होते हैं। यूट्यूबर खराब उत्पाद को भी अच्छा बताते हैं, जिससे उपभोक्ता झाँसे में आ जाता है। ऐसे ई-कारोबारी आमतौर पर उत्पाद को बेचने के बाद वापस नहीं करते हैं। ऐसे उत्पादों को एक्सचेंज करना भी आसान नहीं होता है। अमूमन, ग्राहक बिना टम्र्स एंड कंडीशन देखे ऐसे ई-कारोबारियों से ऑनलाइन खरीदारी कर लेते हैं और उत्पाद को देखने के बाद वे अपना सिर पीट लेते हैं; क्योंकि फोटो से कपड़े या दूसरे उताप्दों की गुणवत्ता को पहचानना सम्भव नहीं होता है। कई बार ऑनलाइन दिखाये गये उत्पाद की जगह दूसरे उत्पाद की डिलिवरी कर दी जाती है, जिन्हें ई-कारोबारी वापस नहीं लेते हैं। एथेनिक प्लस ऐसा ही कपड़ों का एक ऑनलाइन विक्रेता है, जो दोयम दर्जे के वस्त्रों को अधिक कीमत में बेच रहा है। जब ग्राहक पुलिस की शरण में जाते हैं तो वे ई-कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में अपनी असमर्थता जताते हैं; क्योंकि हमारे देश में अभी भी मामले में कारगर कानून का अभाव है। स्पष्ट कानून नहीं होने की वजह से ग्राहक उपभोक्ता फोरम या अन्य अदालतों की शरण में भी नहीं जा पाते हैं।

इसमें दो-राय नहीं है कि ग्राहक पहले से समझदार हुए हैं; लेकिन अभी भी अधिकांश ग्राहक ई-वाणिज्यिक कम्पनियों की लाभ कमाने की रणनीति को नहीं समझ पाते हैं और उनके जाल में फँसकर अपनी मेहनत की कमायी को जाया कर देते हैं। आजकल बाज़ार में कुकरमुत्ते की तरह ऑनलाइन विक्रेता आ गये हैं, जिनमें से अधिकांश का मकसद होता है- ठगी के ज़रिये अधिक-से-अधिक मुनाफा कमाना। इसलिए ग्राहकों को अनजान ऑनलाइन विक्रेताओं से बचने के अलावा अपने लालच पर भी नियंत्रण करना चाहिए; क्योंकि धोखाधड़ी करने वाले ऑनलाइन विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अभी भी देश में स्पष्ट और पारदर्शी कानून का अभाव है।

सेल हो या महासेल, साल भर चलती रहती है। अक्टूबर में दशहरा के लिए महासेल चली, अब नवंबर में दीपावली, फिर छठ, फिर क्रिसमस और फिर न्यू ईयर। कोरोना-काल में तो ग्राहकों को विशेष सावधानी बरतने की ज़रूरत है, क्योंकि अभी अधिकांश लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। पैसा व्यर्थ में जाया हो जाने के बाद आसानी से दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता है। इसलिए हमें बिना किसी दबाव के समझदारी एवं ज़रूरत के अनुसार खरीदारी करनी चाहिए।