ऑक्सीजन की कमी पर लापरवाही

चाँद पर ऑक्सीजन खोजने के बजाय देश में ऑक्सीजन आपूर्ति पर ध्यान दे सरकार

कोरोना महामारी की तबाही के बारे में सोचकर आज भी दिल घबरा जाता है। ऑक्सीजन की कमी से मरते लोग, दवाओं का अभाव और कोरोना पीडि़तों से अपनों के भी दूरी बनाने के बावजूद डॉक्टरों कई दिन-रात चिकित्सा सेवा, समाजसेवियों की सेवा को कौन भूल सकता है? पूरा संसार में इस वैश्विक महामारी कोरोना से सिर उठाने की कोशिश में है; लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है। इस महामारी में इंसान के लिए प्राणवायु यानी ऑक्सीजन का महत्त्व समझ में आ गया। हालाँकि हम अभी तक इसके प्रति उतने सजग नहीं हैं, जितना होना चाहिए। यह प्राणवायु, जिसकी पृथ्वी पर लगातार कमी होती जा रही है; के न मिलने से इंसान की चार से पाँच मिनट में मृत्यु निश्चित है।

केंद्र सरकार यानी हिन्दुस्तान चाँद पर ऑक्सीजन उपलब्धता की तैयारी में है; लेकिन देश के पर्यावरण में ऑक्सीजन मापने के यंत्र उपलब्ध नहीं हैं। दिल्ली और दिल्ली की तरह प्रदूषित शहरों में, जिनकी स्थिति लगातार ख़राब होती जा रही है; ऐसा कोई यंत्र नहीं है, जो प्राणवायु को माप सके। इसके लिए न तो केंद्र की मोदी सरकार चिन्तित है और न ही राज्य सरकारें। देश की राजधानी दिल्ली में तो जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, जिसके चलते फ्लैट बढ़ रहे हैं और ऑक्सीजन घट रही है। यह आश्चर्यचकित करने वाला है कि बावजूद इसके न तो दिल्ली सरकार के पास और न ही केंद्र सरकार के पास पर्यावरण में प्राणवायु नापने का न कोई यंत्र उपलब्ध है और न ही नापने के लिए कोई केंद्र ही स्थापित है। सबसे आश्चर्य की बात है कि पर्यावरण वन एवं मंत्रालय भारत सरकार के पास ऑक्सीजन का प्राकृतिक स्रोत की जानकारी और पर्यावरण में प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली अन्य गैसों तक की जानकारी उपलब्ध नहीं है। सरकारों के पास प्राणी मात्र के जीवन में प्राणवायु का महत्त्व और आवश्यकता, पर्यावरण में मापने की सुविधा, पर्यावरण में प्राणवायु का स्रोत और उपलब्धता की जानकारी उपलब्ध नहीं है, जो बहुत ही चिन्ताजनक है। आज दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण जितना अधिक बढ़ रहा है और उससे जनजीवन को ख़तरा उत्पन्न हो रहा है। ऑक्सीजन के बिना कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता। यह प्राणवायु प्राणियों के लिए दूसरी ज़रूरी चीज़ों से 1,000 गुना अधिक आवश्यक और उपयोगी है।

 

सन् 2021 में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान केंद्र की मोदी सरकार ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में बहुत कम कामयाब रही, जिसके लिए उसे ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए न सि$र्फ विदेशी मदद लेनी पड़ी, बल्कि उद्योगों की ऑक्सीजन आपूर्ति भी कम करनी पड़ी। पिछले कुछ महीनों में भारत ने मेडिकल ऑक्सीजन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक मध्यम अवधि की रणनीति बनायी थी और केंद्र और राज्य सरकारों ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की कोशिश भी की है। लेकिन सवाल यह है कि इसमें सफलता कितनी मिली है? ज़ाहिर है कि ऑक्सीजन की ज़रूरत, बढ़ती माँग और कम सरकारी आपूर्ति के चलते ही प्राइवेट सेक्टर इस धंधे में कूद पड़े हैं। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यही उठता है कि क्या प्राकृतिक रूप से ईश्वर के वरदान के रूप में मिल रही प्राणवायु को ख़त्म करके हम कृत्रिम ऑक्सीजन से स्वस्थ जीवन पा सकेंगे। ज़ाहिर है कि यह कृत्रिम ऑक्सीजन वैसे ही काम करेगी, जैसे नवजात के लिए सप्लीमेंट वाला दूध।

सामाजिक कार्यकर्ता और चिन्तक चौधरी हरपाल सिंह राणा के द्वारा शासन प्रशासन को लिखे पत्र, सूचना आवेदन और अपील करने के बाद दी गयी आधी-अधूरी जानकारी के नीचे लिखा गया कि ऊपर दी गयी जानकारी इंटरनेट के माध्यम से ली गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा गयी जानकारी पर्यावरण में प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली गैस निम्नलिखित है- मुख्यत: हरे पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण हवा में ऑक्सीजन गैस का प्राकृतिक स्रोत है। नाइट्रोजन (हृ2) 78 फ़ीसदी ऑक्सीजन (ह्र2) 21 फ़ीसदी, अक्रिय गैस आर्गन (रह्म्) 0.93 फ़ीसदी, अन्य गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (ष्टह्र2), नियॉन (हृद्ग), हीलियम (॥द्ग), मेथेन (ष्ट॥4), क्रिप्टन (यह्म्), हाइड्रोजन (112), नाइट्रस ऑक्साइड (हृह्र), क्सीनन (ङ्गद्ग), ओजोन वातावरण में (03), आयोडीन (12), कार्बन मोनोऑक्साइड (ष्टह्र) और अमोनिया (हृ॥3) पर्यावरण में पायी जाती है।

जवाब में लिखा गया कि यह जानकारी इस प्रभाग के पास उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, आगे बहुत ही आश्चर्यचकित करने वाली बात और लिखी गयी है कि आपको सूचित किया जाता है कि यह प्रभाग इस जानकारी का पुष्टिकरण भी नहीं करता है। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार के पास ऑक्सीजन से सम्बन्धित किसी प्रकार की कोई जानकारी ही उपलब्ध नहीं है और सरकार के द्वारा ऑक्सीजन जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर कार्य ही नहीं किया जा रहा है। सरकार का कर्तव्य समय की माँग और आवश्यकता के अनुरूप वह प्राणी मात्र की हर प्रकार स्वास्थ्य की देखभाल सहित सभी प्रकार के आवश्यक विषयों, कार्यों का ध्यान रखें, उसकी जाँच और समस्या होने पर उसके उचित समाधान की व्यवस्था करें। वर्ष 2009 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राष्ट्रीय परिवेश ई-वायु गुणवत्ता मानकों को अधिसूचित किया था, जिसमें मानव स्वास्थ्य पर आधारित 12 प्रकार के पैरामीटर (प्रदूषक) बनाये थे। इसमें ऑक्सीजन को प्रदूषक नहीं माना गया था। वर्ष 2009 से पहले प्रदूषण पर भी शायद ही कोई कार्य हो रहा हो, इसलिए समस्त देश में प्राणवायु ऑक्सीजन की जाँच करने की और समस्या होने पर समाधान का प्रयास करने की सख़्त आवश्यकता है।

इससे भी हैरानी की बात यह है कि केंद्र सरकार और सभी राज्यों को लिखे गये पहले पत्रों का तो जवाब ही नहीं दिया गया। पर्यावरण मंत्रालय केंद्र सरकार में किये गये सूचना के आवेदन को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में स्थानांतरित किया गया और बोर्ड के द्वारा 21 अक्टूबर को दी गयी जानकारी में यह बात कही गयी। इससे पहले भी फरवरी और सितंबर के जवाब में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा कहा गया था कि ऑक्सीजन प्रदूषक नहीं है, इसलिए बोर्ड के द्वारा ऑक्सीजन नहीं नापा जाता और दिल्ली में बोर्ड ने कोई भी ऑक्सीजन नापने का यंत्र स्थापित नहीं किया है। प्राणवायु से सम्बन्धित जानकारी का महत्त्व इसलिए और बढ़ जाता है कि समस्त संसार में बहुत तेज़ी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है और उसके समाधान के प्रयास किये जा रहे हैं। समस्त संसार में दो वर्षों तक कोरोना का अत्यधिक कहर रहा है, जिसमें ऑक्सीजन की अत्यधिक आवश्यकता के बावजूद अत्यधिक कमी भी रही और सरकार के द्वारा हर ज़िले में ऑक्सीजन संयंत्र लगाने का प्रयास किया गया। लेकिन इसके बावजूद पर्यावरण में ऑक्सीजन नापने की सुविधा, ऑक्सीजन की व्यक्ति के जीवन में आवश्यकता और पर्यावरण में उपलब्धता की जानकारी पर्यावरण मंत्रालय के पास उपलब्ध न होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और प्राणी मात्र के जीवन के लिए बहुत बड़ी लापरवाही है। वह कहते हैं कि यह जवाब देखकर मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ और इस जवाब पर यकीन नहीं हुआ कि देश ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि चाँद पर ऑक्सीजन की खोज करके इंसानों के रहने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं; लेकिन पृथ्वी पर अभी तक ऑक्सीजन नापने के यंत्र नहीं लगे होंगे, मुझे इसकी कल्पना भी नहीं थी। इसलिए मैंने केंद्र सरकार और सभी राज्यों को 8 अक्टूबर को दोबारा से पत्र भेजा। केंद्र सरकार और राज्यों को लिखे गये पत्र पर अलग-अलग प्रकार से कार्यवाही की गयी है। अधिकतर राज्यों ने जवाब नहीं दिया है। कुछ राज्यों ने इसे सुझाव बताया है। भारत सरकार को लिखे गये पत्र में इस विषय को राज्य सरकार से सम्बन्धित बताया गया है। गृह सचिव के द्वारा कहा गया कि यह प्रकरण दिल्ली सरकार से सम्बन्धित है।

दिल्ली सरकार के द्वारा आवेदन को और शिकायत पत्र को मौलाना आज़ाद कॉलेज, पर्यावरण विभाग दिल्ली सचिवालय अलग-अलग विभागों में कई बार स्थानांतरित किया गया। हैरानी की बात तो यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें या तो इस गम्भीर विषय पर मौन हैं या फिर $गलत जवाब दिये जा रहे हैं। एक जवाब में कहा गया है कि पुडुचेरी प्रदूषण नियंत्रण समिति मैनुअल और सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के माध्यम से परिवेश में वायु प्रदूषकों की निगरानी कर रही है। चूँकि ऑक्सीजन वायु प्रदूषकों में से एक नहीं है, इसलिए सीपीसीबी ने परिवेश में ऑक्सीजन स्तर की निगरानी की अनुशंसा नहीं की है। हालाँकि आपके सुझावों पर विचार किया जाता है। केंद्र गृह सचिव भारत सरकार के द्वारा कहा गया की प्रकरण दिल्ली से सम्बन्धित है। सूचना आवेदन स्थानांतरित होकर दिल्ली नगर निगम को भी भेजा गया जिसके द्वारा भी कोई सही जवाब नहीं दिया गया।

मेरा मानना है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए आम जनता को सरकारों से सवाल करने चाहिए और पूछना चाहिए कि इस गम्भीर विषय पर यह चुप्पी क्यों? साथ ही इससे पहले कि कृत्रिम ऑक्सीजन पर निर्भरता बढ़े, आम जनता को ज़्यादा से ज़्यादा पौधारोपण करना चाहिए, ताकि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत न हो। केंद्र सरकार को भी इस गम्भीरता को समझते हुए चाँद पर ऑक्सीजन खोजने की बजाय देश में घट रही ऑक्सीजन को गम्भीरता से लेते हुए उसे बढ़ाना चाहिए। बहरहाल मुझे यहाँ पर पंडित प्रेम बरेलवी एक गीत की ये पंक्तियाँ सटीक बैठती नज़र आती हैं- ‘चाँद पर इंसान पहुँचा, पर कहाँ पर ज़िन्दगी है।’ आज हम सबको और ख़ासकर सरकारों को इसका महत्त्व समझने की ज़रूरत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)