ऐसी त्रासदी जिसे रोका जा सकता था

रामलीला का 10 दिन का लंबा आयोजन 19 अक्तूबर को रावण दहन के साथ धोबी घाट जोड़ा फाटक अमृतरसर में समाप्त हुआ। लेकिन यहां तेज गति से आती जलंधर-अमृतसर डीएमयू ट्रेन ने 62 लोगों को कुचल दिया और 70 लोगों को घायल कर दिया। यह एक ऐसी घटना थी जिसे रोका जा सकता था। यद्यापि ट्रेन का चालक हार्न बजा रहा था तो भी ट्रैक पर खड़ी उत्साहित लोगों की भीड़ ने रावण दहन के कारण हो रहे पटाखों के शोर और आनंद और उत्साह के शोर के कारण इसे नहीं सुना। ट्रेन चालक ने इस घटना को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया, क्योंकि वह बहुत मुश्किल स्थिति में था। एक छोटी दूरी में तेज गति से चलती ट्रेन को रोकने से ट्रेन पटरी से पलट सकती थी और यात्रियों के जीवन को खतरे में डाल सकती थी। ट्रेन चालक का सबसे प्रमुख कर्तव्य अपने यात्रियों की सुरक्षा है। यह एक वास्तविक सच्चाई है।

पहली नजऱ में यह बुनियादी मापदंडों के साथ भीड़ को नियंत्रित करने के लिए राज्य सरकार की विफलता को दिखाता है। पिछले कई सालों से ऐसी जगह में रामलीला का आयोजन हो रहा था जो 2000 लोगों के लिए भी पर्याप्त नहीं थी। स्थानीय पुलिस ने 5000 लोगों को वहां इक_ा होने की अनुमति दे दी। आयोजन स्थल पर आधिकारिक निरीक्षण की कमी, पर्याप्त सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के प्रावधानों की कमी जैसी अनेक कमियां देखी गई। राज्य सरकार की मशीनरी समस्याओं को सही रूप से पहचानने में नाकाम रही। जैसे की पटरियों पर भीड़ का फैलना, भीड़ की निगरानी करना, भीड़ को नियंत्रित करना, आयोजन स्थल पर प्र्याप्त चिकित्सा और सुरक्षा संसाधनों की उपलब्धता जो कि दुर्घटना रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस संबंध में पंजाब सरकार मेजिस्ट्रेट से जांच करवा रही है जो एक महीने के अंदर सच को सामने लाएंगे। आधिकारिक तौर पर मेजिस्ट्रेट जांच में दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों को कानून की प्रक्रिया के तहत दंडित किया जाएगा।

भारतीय संविधान की योजना और लोकतांत्रिक शासन के कानून व्यवस्था के अनुसार भूमि राज्य का विषय है, और ट्रेन रेलवे द्वारा राज्य सरकारों से लिए गए टै्रक पर चलती है। जिसके लिए रेलवे राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को वार्षिक किराया(लगान) चुका रहा है। इसलिए यह रेलवे की अपनी संपत्ति है। इनके अलावा इन टै्रक्स पर बिना सुरक्षा के कोई जाता है तो यह रेलवे की संपत्ति का अतिक्रमण और अवैध कब्जा होगा। ऐसे करने वाले अपराधी हैं। यदि अतिक्रमणकारी ट्रेन द्वारा कुचले जाते हैं तो रेलवे इसके लिए उत्तरदायी नहीं है। इस संबंध में सुरक्षा का दायित्व अतिक्रमणकारियों पर ही है। कोई आश्चर्य नहीं कि रेलवे ने अपनी संपत्ति पर अतिक्रमण के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। यही कारण है कि रेलवे इस तरह की दुर्घटनाओं में पीडि़तों के रिश्तेदारों को मुआवजे का भुगतान नहीं करता है।

रेेलवे अधिनियम, रेलवे सुरक्षा अधिनियम और रेलवे सुरक्षा के विभिन्न नियमों में कई तरह की दुर्घटनाओं के बारे में उल्लेख किया गया है जैस- मानव विफलता, ट्रैक विफलता, यांत्रिक विफलता, टकराव, अवांछित घटनाएं जैसे तबाही, बम विस्फोट आदि। अमृतसर जैसा हादसा जो कि अतिक्रमण के कारण हुआ और रेलवे क्रासिंग पर सड़क उपयोगकर्ताओं या वाहन यातायात के कारण हुआ हादसा ये सब मोटर वाहन अधिनियम द्वारा नियंत्रित होते हैं जहां रेलवे ऐसी दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार नहीं है। रेल ट्रैक को पार करने या उपयोग करने से पहले आत्म सुरक्षा, और सावधानीपूर्वक कार्रवाई को समझा जाए।

जबकि हमारी शासन व्यवस्था में जहां लोग खुद स्वामी हैं केंद्र और राज्य दोनों सरकारें पीडि़तों के परिवारों और घायलों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार हंै। पंजाब सरकार द्वारा खोए गए प्रत्येक बहुमूल्य जीवन के लिए शोकग्रस्त परिवार को पांच लाख का मुआवजा और प्रधानमंत्री (केंद्र सरकार) द्वारा ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को दो लाख का मुआवजा बहुत कम है जो हमारे लोकतंत्र और लोगों के प्रति इसकी जवाबदेही का दिखावा करता है और इसलिए यह निदंनीय है। इस तरह ही दुर्घटनाओं को राजनीतिक नहीं बनाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को एक दूसरे पर आरोप नहीं लगाने चाहिए।