एम एन एफ ने कांग्रेस और भाजपा को पछाड़ा

मिज़ोरम में तेलंगाना की तरह ही एक क्षेत्रीय पार्टी मिज़ोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने कांग्रेस और भाजपा को पछाड़ते हुए सत्ता की कुर्सी हथिया ली। उत्तरपूर्वी राज्यों में मिज़ोरम ही आखिरी प्रदेश था जहां अब तक कांगे्रस की सरकार सत्ता में थी।

अपने राज्य में अपनी सरकार बना पाने में एमएनएफ के प्रमुख ज़ोरमयांगा कामयाब हुए। वे उस समय 74 साल के हैं। उन्होंने 40 सदस्यों की विधानसभा के चुनावों के नतीजे आने के बाद ही राज्यपाल से मुलाकात करके अपनी सरकार बनाने का दावा पेश किया।

इस राज्य में 2013 के चुनाव में कांग्रेस को 34 सीट और एमएनएफ को पांच सीटें मिली थी। इस बार राज्य में इतनी एंटी-इन्कंबैंसी थी कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य में पांच बार मुख्यमंत्री रहने वाले लाल धनहावला (80 वर्ष)  चंपई दक्षिण और सरचिप दोनों ही विधानसभा सीटों पर चुनाव हार गए। इस बार कांग्रेस को सिर्फ पांच सीटें मिलीं।

मिज़ोरम ईसाई बहुल क्षेत्र है। यहां ज्य़ादातर प्रेस्बिटेरियन चर्च के प्रति आस्था रखने वाले लोग रहते हैं। इस बार यहां चकमा आटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट कौंसिल में तुइचावंग निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा एक सीट हासिल करने में सफल रही।

राज्य में एमएनएफ को कामयाबी इसलिए मिली क्योंकि पार्टी ने विकास और अर्थ के मुद्दे पर ध्यान देने का मतदाताओं को भरोसा दिया। इसे 26 सीटें हासिल हुई। दूसरे नंबर पर रही जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ज़ेडपीएम) यह पिछले ही साल गैर कांग्रेस और गैर एमएनएफ पार्टियों का गठबंधन के रूप में उभरी थी। इसे आठ सीटें मिलीं। यह गैर कांगे्रस, गैर एमएनएफ पार्टियों का गठबंधन था। यह राज्य में प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर उभरा। राज्य की जनता बदलाव चाहती थी इसलिए यह बदलाव हुआ।

एमएनएफ ने अपने दस्तावेज में दिए गए सभी मुद्दों पर अमल करने का भरोसा  दिया। तमाम खाद्य उत्पादों में आत्मनिर्भरता का आश्वासन दिया। किसानों को पूरा सहयोग देने और एक नई मंडी प्रणाली विकसित करने पर भी ज़ोर है। कांग्रेस सरकार ने 18 साल से मिज़ोरम लिकर (पूरा निषेध) कानून 1995 और मिज़ोरम लिकर (निषेध और नियंत्रण) कानून 2014 लागू कर रखा था। इससे गिरजाघर और एनजीओ खासे निराशा थे।

मिज़ोरम में भाजपा ने 39 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पार्टी ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए बीडी चकमा को जिम्मेदारी सौंपी थी। लेकिन किसी तरह वे सिर्फ अपनी ही सीट बचा सके। भाजपा को उम्मीद है कि अगले विधानसभा चुनाव में वह राज्य के चुनाव में बहुमत हासिल करेगी। इस पार्टी ने वादा किया है कि राज्य में कांगे्रस की सरकार थी इसलिए केेंद्र की कई योजनाएं राज्य में लागू नहीं की गई।

उधर जेडपीएम अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी लालधूमा ने राज्य में सात बार विधायक और पांच बार मुख्यमंत्री रहे लालधनहवला को सरछिप निर्वाचन क्षेत्र मेें 410 मतों से परास्त किया। गैर एमएनएफ पार्टियों और गिरजाघरों से भी इस गठबंधन को समर्थन मिला। इस गठबंधन को आठ सीटें मिलीं।

इस पार्टी ने राज्य की जनता से वादा किया था कि यह सरकार को आम जनता के लाभ के लिए काम करने पर ज़ोर देगी। पहली बार चुनाव लडऩे पर आठ सीट पाना खासा महत्वपूर्ण है।