एनसीआरबी रिपोर्ट-2021 लगातार बढ़ रहे साइबर अपराध

पिछले दिनों बाराबंकी की शिवदेवी मिश्रा के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के बचत (सेविंग) खाते से क़रीब सवा दो लाख और उनके पति अनुराग मिश्रा के उसी बैंक में एसबीआई खाते से क़रीब इतनी ही बड़ी रक़म उड़ा ली गयी। पुलिस और बैंक वालों से जब इसकी शिकायत की गयी, तो उन्होंने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिये कि जिस बैंक खाते में आपकी रक़म स्थानांतरित (ट्रांसफर) हुई है, वह झारखण्ड का है और उस खाते में कोई धनराशि (बैलेंस) नहीं है। यानी पैसे की वसूली (रिकवरी) की कोशिश नहीं की गयी। शिवदेवी मिश्रा और अनुराग मिश्रा आज भी परेशान घूम रहे हैं और उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है। इसी वजह से साइबर अपराधियों के हौसले बढ़े हुए हैं और वे शिवदेवी तथा अनुराग मिश्रा की तरह ही गाँवों से शहरों तक के लोगों को बेखौफ़ लगातार अपना शिकार बना रहे हैं।

भारत में पिछले साल 11.8 फ़ीसदी साइबर अपराध बढ़े हैं। यह बात ख़ुद भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़ों से सामने आयी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साल 2020 में साइबर अपराध के 50,035 मामले दर्ज किये गये, जो कि साल 2019 की अपेक्षा 11.8 फ़ीसदी ज़्यादा हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि साल 2020 में ऑनलाइन बैंकिंग धोखाधड़ी के 4,047 मामले, ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) धोखाधड़ी के 1,093 मामले, क्रेडिट और डेबिट कार्ड धोखाधड़ी के 1,194 मामले तथा एटीएम से धोखाधड़ी के 2,160 मामले दर्ज किये गये। वहीं इस एक साल में सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी सूचना के 578 मामले सामने दर्ज कराये गये। इसी प्रकार ऑनलाइन परेशान करने या महिलाओं एवं बच्चों को साइबर धमकी से जुड़े 972 मामले, फ़र्ज़ी प्रोफाइल के 149 मामले और आँकड़ों की चोरी के 98 मामले सामने आये। गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, देश में साइबर अपराध की दर प्रति एक लाख पर 2019 की 3.3 फ़ीसदी दर से बढ़कर 2020 में 3.7 फ़ीसदी हो गयी, जिसके 2021 में और बढऩे की आशंका है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में साल 2018 में साइबर अपराध के 27,248 मामले दर्ज हुए थे, जबकि साल 2019 में 44,735 मामले दर्ज हुए थे। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में दर्ज 50,035 साइबर अपराधों में से 30,142 यानी 60.2 फ़ीसदी साइबर अपराध फ़र्ज़ीवाड़े से सम्बन्धित दर्ज हुए।

अन्य अपराधों के आँकड़े

साइबर अपराध के अलावा यौन उत्पीडऩ के 3,293 यानी 6.6 फ़ीसदी मामले और अवैध उगाही के 2,440 यानी 4.9 फ़ीसदी मामले दर्ज किये गये। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में देश में 29,193 हत्याएँ हुईं, जिनकी संख्या हर रोज़ औसतन 80 रही। कुल अपराधों की बात करें, तो साल 2019 के मुक़ाबले साल 2020 में 28 फ़ीसदी अपराध बढ़े। साल 2020 में देश में अपराध के कुल 66,01,285 मामले दर्ज हुए, जबकि साल 2019 में 51,56,158 मामले दर्ज हुए थे। यानी साल 2019 की अपेक्षा साल 2020 में अपराध के 14,45,127 मामले ज़्यादा दर्ज किये गये।

प्रदेशों की स्थिति

एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर अपराध के सबसे ज़्यादा 11,097 मामले उत्तर प्रदेश के हैं। इसके बाद कर्नाटक साइबर अपराध में दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर हैं, जहाँ क्रमश: 10,741 और  5,496 मामले साल 2020 में दर्ज हुए। वहीं तेलंगाना में 5,024 मामले, असम में 3,530 मामले दर्ज हुए। बलात्कार के मामले में राजस्थान की स्थिति बहुत ख़राब है और आदिवासियों, दलितों व महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचारों में मध्य प्रदेश की स्थिति ठीक नहीं है। तो उत्तर प्रदेश दबे-कुचलों, महिलाओं पर अत्याचार और हत्याओं के मामले में आगे रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने एनसीआरटी के आँकड़ों को ही नकार दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि प्रदेश में अपराधों पर नियंत्रण हुआ है। प्रदेश की जनसंख्या के लिहाज़ से पूरे देश की तुलना में यहाँ अपराध के आँकड़े कम हैं। सरकार ताबड़तोड़ एनकाउंटर और रासुका जैसे कड़े क़ानून का इस्तेमाल अपराधियों और अपराध पर लगाम कसने के लिए लगातार कर रही है। वहीं मध्य प्रदेश में अपराधों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ सिंह ने सरकार को घेरा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, हत्या के मामले उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहा। उसके बाद क्रमश: बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में हत्याएँ हुईं। वहीं राजधानी दिल्ली में साल 2020 में 472 हत्याएँ हुईं।

वहीं देश में देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 3,71,503 मामले दर्ज हुए। जो 2019 के 4,05,326 मामलों के मुक़ाबले 8.3 फ़ीसदी कम रहे। इनमें 30 फ़ीसदी मामले पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता और अत्याचार के, 23 फ़ीसदी मामले यौन शोषण की कोशिश के, 7.5 फ़ीसदी मामले बलात्कार के और 16.8 फ़ीसदी मामले अपहरण के दर्ज हुए। वहीं बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध के 1,28,531 मामले पिछले साल दर्ज हुए, जो 2019 के मुक़ाबले 13.2 फ़ीसदी कम हैं। साल 2020 में बच्चों ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों में 42.6 फ़ीसदी मामले अपहरण के, 38.8 फ़ीसदी मामले बलात्कार के दर्ज हुए। वहीं दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के 50,291 मामले दर्ज हुए, जो साल 2019 के मुक़ाबले 9.4 फ़ीसदी ज़्यादा हैं। इसी तरह आदिवासियों के ख़िलाफ़ अपराध के 8,272 मामले दर्ज हुए, जो साल 2019 के मुक़ाबले 9.3 फ़ीसदी ज़्यादा हैं।

बचाव और न्याय के रास्ते

भारत सरकार हर साल साइबर सुरक्षा के लिए निधि (फंड) जारी करती है। भारत सरकार द्वारा 2016-17 में 70 करोड़ रुपये, 2017-18 में 140.48 करोड़ रुपये, 2018-19 में 150 करोड़ रुपये, 2019-20 में 162 करोड़ रुपये, 2020-21 में 310 करोड़ रुपये और 2021-22 में 416 करोड़ रुपये जारी किये गये। इसके अलावा साइबर अपराध से बचाव के लिए सरकार सन्देश ऐप को भी विकसित कर रही है। यह ऐप अब एक तात्कालिक सन्देश (इंस्टेट मेसेजिंग) ऐप होगा। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा लाया गया यह एप्लिकेशन ग्रुप मेसेजिंग (समूह आवेदन सन्देश), क्लाउड स्टोरेज, फाइल एंड मीडिया शेयरिंग जैसी सभी सुविधाएँ देगा। इसके अलावा लोग साइबर अपराधों की जाँच और कार्रवाई करने वाली एजेंसियों अपने राज्य की पुलिस की साइबर क्राइम सेल (साइबर अपराध प्रकोष्ठ), दूसरा भारत सरकार की सेंट्रल इमर्जेंसी रिस्पॉन्स टीम (केंद्रीय आपातकालीन प्रतिक्रिया दल), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) की साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेशन सेल (साइबर अपराध जाँच प्रकोष्ठ) से मदद माँग सकते हैं। इन संस्थाओं (एजेंसियों) पर पीडि़त ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं। इसके अलावा भारत सरकार के अलावा हर राज्य में अपराध रोकने के लिए हेल्पलाइन नंबरों पर भी पीडि़त शिकायत दर्ज करा सकते हैं। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल तैयार किया है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर 155260 पर शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, असम, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के लोग इस नंबर पर सातों दिन किसी भी समय कॉल करके शिकायत दर्ज करा सकते हैं। बाक़ी सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के लोग सुबह 10:00 से शाम 6:00 बजे के बीच में कॉल करके अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

कैसे मिलेगी उड़ायी गयी राशि?

अगर किसी के बैंक खाते से साइबर अपराधियों ने पैसे उड़ा लिये हैं, तो उन पैसों को वापस भी पाया जा सकता है। लेकिन इसकी शिकायत अपनी बैंक के हेल्पलाइन नंबर पर खाते से पैसे निकलते ही करनी होगी। अगर पीडि़त की कॉल साइबर अपराध शाखा के कॉल सेंटर में पहुँचती है, और पीडि़त का बैंक और साइबर अपराध शाखा जिस बैंक खाते में राशि गयी है, तो वे उसे फ्रीज (प्रतिबन्धित) कर देंगे। इससे उस खाते का धारक भी वह पैसा नहीं निकाल सकेगा। लेकिन यह कार्रवाई सेकेंडों में करनी होगी। अन्यथा अगर अपराधी ने पैसा निकाल लिया, तो पैसा मिलना मुश्किल हो जाएगा।

नाकामी चिन्ताजनक

देश में अपराध और अपराधियों पर लगाम कसने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की स्थापना भारत सरकार ने अपराध और अपराधियों की सूचना के संग्रह एवं रख-रखाव के रूप में कार्य करने हेतु सन् 1986 में की गयी थी। टंडन समिति, राष्ट्रीय पुलिस कमीशन (1977-1981) और गृह-मंत्रालय की टास्क फोर्स की सिफ़ारिश के आधार पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की स्थापना की गयी थी। सन् 2009 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (सीसीटीएनएस) परियोजना की मॉनिटरिंग, समन्वय तथा कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।

यह परियोजना देश में क़रीब 15,000 पुलिस स्टेशनों तथा देश के 6,000 उच्च कार्यालयों को जोड़ती है। इसके बावजूद देश में साइबर अपराध कम होने के बजाय और बढ़ रहे हैं, जो कि चिन्ता का विषय है। साइबर अपराध के शिकार सबसे ज़्यादा ग्रामीण हो रहे हैं। क्योंकि उन्हें न तो आधुनिक तकनीक की जानकारी है और न ही अधिकतर ग्रामीण इतने पढ़े-लिखे होते हैं कि अंग्रेजी में लिखी सलाहों और बचाव के लिए लिखे गये दिशा-निर्देशों को पढ़ और समझ सकें। इसीलिए साइबर अपराधी लोगों के बैंक अकाउंट के साथ-साथ उनकी हिस्ट्री की जाँच करते रहते हैं और जैसे ही उन्हें किसी पैसे वाले अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे व्यक्ति के बैंक खाते में जमा पैसे के बारे में पता चलता है, वे उसमें सेंध लगाने की कोशिश करने लगते हैं और इसी कोशिश में अपराधी मौक़ा मिलते ही लोगों के बैंक खाते सेकेंडों में ख़ाली कर देते हैं।