एक ज़िला, एक उत्पाद योजना से मज़बूत होगी देश की अर्थ-व्यवस्था

चंदौसी ज़िले में एक चमड़े का क्लस्टर खोला जाएगा, सहारनपुर में जूते, संत कबीर नगर में पीतल, और गोरखपुर में टेराकोटा मिट्टी के बर्तन। जल्द ही दो और क्लस्टर चालू किये जाएँगे और निकट भविष्य में 13 क्लस्टर और खोले जाएँगे। सरकार ने पहले से भदोही में कालीन क्लस्टर, उन्नाव में ज़री-ज़रदोजी, बरेली में रेडीमेड वस्त्र, वाराणसी में काँच के मोती और रेशम बुनाई के क्लस्टरों की स्थापना की है। इसके अलावा सरकार ने राज्य में अधिक सामान्य सुविधा केन्द्र्र खोलने का भी निर्णय लिया है। इन केन्द्र्रों का उद्देश्य परीक्षण, कच्चे माल के डिपो, उत्पादन प्रक्रिया और प्रशिक्षण के पूरक के लिए सुविधाएँ प्रदान करना है।

भारत को पाँच ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक शक्ति बनाने में कौशल विकास की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। किसी भी देश की अर्थ-व्यवस्था मज़बूत करने के पीछे उसकी हुनरमंद युवा शक्ति का योगदान बाकी अन्य कारकों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावशाली होता है। इस बात की महत्ता को समझते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने पारम्परिक कारीगरों / हस्तशिल्पियों को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र्र की मदद से राज्य भर में छ: ज़िलों में वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) क्लस्टर खोलने का फैसला किया है। एक ज़िला एक उत्पाद योजना कारीगरों और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गयी एक परियोजना है। खास बात यह है कि इन क्लस्टर समूहों में केवल कारीगर और निर्माता ही सदस्य होंगे।

िफलहाल चार क्लस्टर समूहों को चालू किया गया है। चंदौसी ज़िले में एक चमड़े का क्लस्टर खोला जाएगा, सहारनपुर में जूते, संत कबीर नगर में पीतल, और गोरखपुर में टेराकोटा मिट्टी के बर्तन। जल्द ही दो और क्लस्टर चालू किये जाएँगे और निकट भविष्य में 13 क्लस्टर और खोले जाएँगे। सरकार ने पहले से भदोही में कालीन क्लस्टर, उन्नाव में ज़री-ज़रदोजी, बरेली में रेडीमेड वस्त्र, वाराणसी में काँच के मोती और रेशम बुनाई के क्लस्टरों की स्थापना की है। इसके अलावा सरकार ने राज्य में अधिक सामान्य सुविधा केन्द्र्र खोलने का भी निर्णय लिया है। इन केन्द्र्रों का उद्देश्य परीक्षण, कच्चे माल के डिपो, उत्पादन प्रक्रिया और प्रशिक्षण के पूरक के लिए सुविधाएँ प्रदान करना है।

उत्तर प्रदेश हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्करण, इंजीनियरिंग सामान, कालीन, रेडीमेड वस्त्र और चमड़े के उत्पादों के लिए पहले ही से मशहूर रहा है। उदाहरण के तौर पर वाराणसी की रेशम साडिय़ों, मुरादाबाद के पीतल की हस्तकला की चीज़े, पीलीभीत की बाँसुरी, बांदा के पत्थर की कलाकृतियाँ और सिद्धार्थनगर के काला नमक चावल को किसी पहचान की जरूरत ही नहीं है। प्रदेश के लघु उद्योग राज्य की औद्योगिक उत्पादकता में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे उद्योग न सिर्फ रोज़गार सृजन करने में लाभकारी सिद्ध होंगे, बल्कि निर्यात को बढ़ाकर प्रदेश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जन के स्रोत भी बनेंगे। ऐसे उद्योग राज्य के साथ-साथ देश में भी कृषि के बाद रोज़गार में सबसे बड़ा योगदान देता है। उत्तर प्रदेश में ऐसे उत्पाद हैं,जो कहीं और नहीं पाये जाते; जैसे- दुर्लभ और पेचीदा गेहूँ-डंठल शिल्प, विश्व-प्रसिद्ध चिकनकारी और ज़री-ज़रदोजी का कपड़े पर किया हुआ काम। इनमें से कई समुदाय परम्पराएँ भी मर रही थीं, जिन्हें आधुनिकरण और प्रचार के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा रहा है। इनमें से कई उत्पाद तो जीआई-टैग किये गये हैं, जिसका अर्थ है कि वे उत्तर प्रदेश में उस क्षेत्र के लिए विशिष्ट होने के रूप में प्रमाणित हैं। प्रदेश के 75 ज़िलों का अपना कोई न कोई विशिष्ट उत्पाद है, जिसको सरकार वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना की मदद से आर्थिक मज़बूती दे रही है।

सरकार पूरी पूँजी खुद न लगाकर कुछ प्रतिशत लाभार्थियों से भी लगवा रही है। इसका फायदा यह है कि लाभार्थी पूरी मेहनत के साथ अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करेगा। आसानी या मुफ्त में मिली वस्तु की कद्र कई बार लोग नहीं करते। इसीलिए वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना में 25 लाख रुपये तक की परियोजना लागत का 25 फीसद या फिर 6.25 लाख रुपये, जो भी कम हो; माॢजन मनी के रूप में लाभार्थी को लगाना होगा। शेष राशि ऋण के रूप में उपलब्ध करायी जाएगी। इसी तरह 25 से 50 लाख रुपये की परियोजना पर 20 फीसद अथवा 6.25 लाख रुपये, जबकि 50 लाख से डेढ़ करोड़ की परियोजना लागत पर 10 प्रतिशत माॢजन मनी 10 लाख रुपये व डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली परियोजना पर 10 फीसद अथवा 20 लाख रुपये माॢजन मनी जो कम होगी, वह राशि लाभार्थी को लगानी होगी। शेष राशि ऋण के रूप में मिलेगा।

हालाँकि राज्य में आर्थिक विकास को तेज़ करने के काम और भी कई क्षेत्रों में चल रहे हैं, जिनमें एक्सप्रेस-वे, नये हवाई अड्डों का निर्माण शामिल है। लेकिन विकास में गरीब तबके की भागीदारी भी सुनिश्चित करने में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा लायी गयी वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट योजना कारगर सिद्ध होगी। इस योजना के अंतर्गत सरकार ऐसे उद्यमियों को सहायता दे रही है, जिन्होंने अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाया है। इस योजना के तहत उन कारीगरों को चिह्नित किया जा रहा है, जिनके पास कौशल तो है, लेकिन किसी कारणवश वह अपने हुनर का सही लाभ नहीं ले पा रहे हैं। ऐसे उद्यमियों को सरकार आधुनिक ट्रेनिंग की व्यवस्था कर रही है। बैंकों से बात करके उनको लोन दिलाने का काम भी कर रही है। इसके अलावा बड़ी ऑनलाइन कम्पनियों से बात करके इनके उत्पादों के लिए बड़ा बाजार खोलने का काम भी कर रही है।

इसके अलावा राज्य सरकार आईटीआई के माध्यम ने कारीगरों को आधुनिक वातावरण में ट्रेनिंग दिलवाकर प्रमाण-पत्र भी दिलवाने का काम भी कर रही है। कई बार प्रमाण-पत्र न होने की वजह से उद्यमियों को पूँजी जुटाने में कठिनाई होती है। साथ ही उद्यमियों को अपने उत्पादों की सही पैकेजिंग करना भी सिखाया जा रहा है, जिससे उनकी बेहतर कीमत मिल सके। राज्य सरकार इन उत्पादों के लिए विश्व बाज़ार खोलने की दिशा में काम कर रही है और इसके लिए अमेजन जैसी ई-कॉमर्स कम्पनियों से भी बात की जा रही है कि इन उत्पादों को ऑनलाइन बेचा जाए, जिससे विश्व के किसी भी कोने से इन उत्पादों को खरीदा जा सके। साथ ही राज्य सरकार दिल्ली में पारम्परिक उद्यमियों के उत्पादों के प्रदर्शन के लिए दो सप्ताह की प्रदर्शनी आयोजित करने पर भी विचार कर रही है। इससे उनके उत्पादों का बेहतर विपणन हो सकता है। जब राज्य के उत्पाद प्रदेश के बाहर ऐसी प्रदर्शनियों में ले जाए जाएँगे तभी लोगों में इनकी माँग बढ़ेगी और प्रदेश के हुनरमंद लोगों को उनकी कला का उचित दाम और सम्मान मिलेगा और राज्य को विदेशी मुद्रा।

ओडीओपी योजना को और बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने न केवल देश भर में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापार मेलों में भाग लेने के इच्छुक कारीगरों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया है। जनवरी, 2018 में शुरू की गयी इस महत्त्वाकांक्षी योजना से यदि कुछ लोगों ने अपनी जीवन की दिशा परिवर्तित करने में सफलता प्राप्त कर ली, तो प्रदेश में लघु उद्यमियों की एक नई पीढ़ी को बहुत बल मिलेगा। जब कोई सरकार युवाओं को नौकरी पाने की इच्छा रखने वाले से बदलकर नौकरी देने वाला बना दे, तब उस प्रदेश की प्रगति को कैसे रोका जा सकता है।

(लेखक कौशल विकास के क्षेत्र में काम करते हैं और िफलहाल माइनॉरिटी अफेयर्स मंत्रालय में कंसल्टेंट हैं।)