एक प्रणेता की घर वापसी

ऐसे समय जब भारतीय राजनैतिक धरातल पर अपशब्द कहने वालों की होड़ सी दिखने लगी है, किस तरह की भाषा बोली जाए, कैसे शब्दों का उपयोग हो इसकी तहज़ीब खत्म हो गई है, मोहिंद्रनाथ सोफत जैसे दिग्गज नेता का हिमाचल प्रदेश की भाजपा में लौटना, समय की ज़रूरत है। उम्मीद करनी चाहिए कि सोफत के आने से प्रदेश भाजपा का वातावरण बदलेगा। तोल कर शब्द बोलने वाले सोफत की वाणी और भाषण अक्सर उनके विरोधियों को भी पसंद आते रहे है। किसी की आलोचना करते हुए किस तरह मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए, यह सोफत से ज्य़ादा कौन जान सकता है। सोफत में वही शालीनता है जो देश के साम्यावादी नेताओं में अक्सर देखने की मिलती है।

हर आदमी के लिए घर लौटना काफी सुखद होता है। हर व्यक्ति घर लौटने पर राहत की सांस लेता है। उस व्यक्ति के लौटने का प्रभाव उसके घर पर पड़ता है। घर का वातावरण बदलता है। कई बार आदमी खुद घर लौटता है तो कई बार उसे मना कर लाया जाता है। वैसे भी कहते है ‘फटे को सीएं नहीं और रूठे को मनाएं नहीं’ तो काम नहीं चलता। कमोवेश यही पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता और शांता कुमार के निकटतम सहयोगियों में शामिल मोहिंद्र नाथ सोफत को कुछ साल पहले पार्टी छोडऩी पड़ी थी। सोफत का पार्टी छोडऩा कोई आम घटना नहीं थी। उनका वापिस लौटना भी कोई आम घटना नहीं है। उनके साथ बहुत से लोग पार्टी से बाहर आए। उनमें से कुछ जल्दी लौट गए पर कुछ ने हिमाचल प्रदेश लोकहित पार्टी का गठन किया। मोहिंद्रनाथ सोफत जो कि शांताकुमार की सरकार में परिवहन न पर्यटन जैसे विभागों के मंत्री रह चुके हैं, ने अपने उन उसूलों को छोडऩे से इंकार कर दिया जिस कारण वे पार्टी से बाहर आए थे। सोफत न केवल एक अच्छे वक्ता, समय के पाबंद, गज़ब के संगठनकर्ता या आयोजक हैं बल्कि सदा तथ्यों के आधार पर बात करने वाले नेता हैं।

सोफत ने कभी अपनी दक्षिण पंथी विचारधारा के साथ कोई समझौता नहीं किया लेकिन बहुत युवा अवथा से ही पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी उन्हें अपने लिए चुनौती समझते थे। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब हिमाचल में पार्टी के प्रभारी थे, तब भी सोफत अपना पक्ष पूरी मज़बूती के साथ उनके सामने रखते रहे। सोफत का यही साहस जहां उन्हें आम लोगों में शिखर की ओर ले जा रहा था वहीं राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के लिए एक चुनौती बनता जा रहा था।

खैर, बहुत लंबे समय उपरांत जब प्रदेश भाजपा नेतृत्व में कई बड़े बदलाव आए, प्रेमकुमार धूमल चुनाव हार गए, जयराम ठाकुर ने मुख्यमंत्री पद संभाल लिया। जयराम ठाकुर एक युवा मुख्यमंत्री हैं उन्होंने आते ही सोफत को पार्टी में वापिस लाने का प्रयास शुरू कर दिया। पर मुश्किल यह थी कि उनके व्यक्तित्व के हिसाब से उन्हें कौन सा पद दिया जाए। इसके साथ उनके कट्टर विरोधी राजीव ङ्क्षबदल और उनके साथी सोफत की घर वापसी में रोड़े अटका रहे थे। सोफत किन शर्तों पर भाजपा में लौटे हैं इनका खुलासा अभी नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री जयराम और सोफत दोनों ही अभी पत्तों को छुपाए बैठे हैं। हालांकि सोफत का यह कहना है कि वे बिना शर्त पार्टी में लौटे हैं, पर इस बात का कोई उत्तर नहीं मिल रहा कि यदि बिना शर्त ही लौटना था तो अब तक क्या सोच रहे थे? अटकलें है कि उन्हें राज्य बिजली बोर्ड का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। पर फिलहाल के लिए वे केवल पार्टी के कार्यकर्ता हैं। उम्मीद है कि चुनावों में उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।

दूसरी ओर शांता कुमार ने सोफत के पार्टी में लौटने पर राहत की सांस ली है। उनका कहना है पार्टी से किसी भी पुराने सदस्य को नहीं निकाला जाना चाहिए। सोफत को पार्टी से निकालने और उसे दरकिनारा करने के मुद्दे पर मीडिया में शांता कुमार की भूंिमका पर कई सवाल उठे थे। 1990 में विधायक बने मोहिंदर सोफत को 1998 के विधानसभा चुनाव में सोफत को बड़े नाटकीय और गैर कानूनी तरीके से हरवा दिया गया। ”गैरकानूनी’’ इसलिए क्योंकि देश की सर्वोच्च अदालत ने सोफत की चुनाव याचिका पर सोलन की सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णामोहनी का चुनाव रद्द कर दिया था। हुआ यह था कि मतगणना के बाद चुनाव अधिकारी ने सोफत को एक वोट से जीता हुआ घोषित कर दिया पर फिर से हुई गिनती में 26 वोटों से पराजित करार दिया। इस पर सोफत ने चुनाव याचिका दायर की और सुप्रीमकोर्ट तक अकेले इसे लड़ा और जीता। इस सीट के खाली होने पर जब 2000 में यहां उपचुनाव हुआ  तो भाजपा ने अपना टिकट सोफत को नहीं दिया। कारण स्पष्ट था कि उस समय प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बन चुके थे, और वे चाहते थे कि टिकट उनके अपने वफादार राजीव बिंदल को मिले, क्योंकि सोफत के व्यक्तित्व से पार्टी के बड़े नेता भी ख़ौफज़दा रहते थे। इस कारण टिकट बिंदल को मिल  गया। पार्टी के कार्यकताओं और उनके मित्रों ने बहुत आग्रह किया कि सोफत निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ें पर सोफत ने शांता कुमार के कहने पर ऐसा करने सही नहीं समझा और चुनाव से हट गए। उन्होंने पार्टी का अनुशासन तो नहीं तोड़ा पर बागियों का एक संगठन बना लिया जिसे उन्होंने ‘मित्र मंडल’  का नाम  दिया। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव भी लड़ा। जिसमें वे लगभग 1000 वोट से हारे। यदि उन्होंने यही काम सन् 2000 में किया होता तो शायद हिमाचल प्रदेश की सियासी तस्वीर ही कुछ और होती।

मेहिंदर नाथ सोफत के घर लौटने से अब भी यह उम्मीद करनी चाहिए कि प्रदेश में पार्टी का चरित्र कुछ बदलेगा। भाजपा की राजनीतिक विचारधारा में तो बदलाव नहीं होगा क्योंकि सोफत उसी विचारधार में पैदा हुए और पले, पर उम्मीद है कि उनके आने से गिरते राजनैतिक मूल्यों में ज़रूर सुधार होगा। जो भी हो राज्य भाजपा में एक नीतिज्ञ की वापसी हो चुकी है।

आदरणीय शांता जी,

सादर नमस्कार

पिछले कल के समाचार पत्रों मे आपका भावुक बयान पढा। यह बात ठीक है कि आपके पूरे प्रयास के बावजूद दो हजार मे मेरे साथ न्याय नही हो सका था। आप चुनाव समिति की बैठक मे अपने मंत्रालय की व्यस्तता मे से समय निकाल बिलासपुर पहुंचे थे। आपके और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जी के कारण ही टिकट का मामला दिल्ली जा सका था। वहां भी आपने मेरी खूब पैरवी की थी। परन्तु यह समय था या मेरी किस्मत का फेर था कि आपके पूर्ण आशीर्वाद के बाद भी मै उस उपचुनाव मे भाजपा का प्रत्याशी नही बन सका था। मेरी आपसे पहली मुलाकात आपतकाल मे नाहन जेल मे हूई थी। मै वहाँ पर बंद राजनीतिक कैदियों मे सबसे छोटा था। इसलिए आप लोगों से सबसे ज्यादा स्नेह मुझे मिला था। मै सभी नेताओं मे से आपके व्यक्तित्व से प्रभावित था। मै कैसे भूल सकता हूँ कि 1980 मे भाजपा के गठन के बाद मै आपके आशीर्वाद से ही सबसे छोटी उम्र मे कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया था। उस समय श्री गंगा सिंह जी प्रदेश अध्यक्ष थे। जब आप हिमाचल भाजपा के अध्यक्ष बने तो आपने मुझे प्रदेश सचिव के नाते अपनी टीम मे जगह दी। इसके अतिरिक्त सोलन और सिरमौर का प्रभार भी मुझे सौंपा। इसी दौरान मैंने आपसे बहुत कुछ सीखा। सगंठन के कार्य को गभींरता से करना समय की पाबंदी यह सब आपने सिखाया है। 1990 मुझे आपने सोलन से टिकट दिलाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आपने ही चुनाव लडने के लिए प्रेरित किया था। जब प्रदेश के भाजपा प्रत्याशी आपके दो घण्टे के समय के लिए तरस रहे थे। आपने मेरे निर्वाचन क्षेत्र को तीन दिन दिये थे। उस समय आप अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे। आपके आशीर्वाद से ही मै विधायक बन सका था। उसी दौरान मुझे आप हिमाचल युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहे थे। जिसे मैंने अपने चुनाव क्षेत्र की व्यवस्ता को देखते हुए स्वीकार नहीं किया था। हालांकि पार्टी का निर्णय था की पहली बार विधायक बनने वाले को मंत्रीमण्डल मे शामिल नही किया जायेगा । परन्तु मै अपवाद था । सोलन जैसे छोटे जिले जहां से हमारे तीन विधायक थे उसमे से दो महत्वपूर्ण विभागों के साथ मत्री थे। यह सोलन का ऐसा इतिहास है जिसकी कभी पुनरावृत्ति हो उसकी सम्भावना नही दिखाई देती है। जहां तक दो हजार मे निर्दलीय चुनाव न लडने की बात है तो यह ठीक कि मुझ पर मेरे समर्थको और कार्यकर्ताओं का खूब दबाव था। आपने मुझे भाजपा के नेता के तौर पर अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मुझे लडऩे से मना किया और मैने एक शिष्य के नाते अपने गुरु के आदेश का पालन किया। अब भी लोग चुनाव न लडऩा मेरी भूल बताते है और कहते कि वह चुनाव आप अवश्य जीत जाते। परन्तु मुझे उसका तनिक भी मलाल नही है। मुझे तो आपके आदेश के पालन करने का सन्तोष है। आप भी कोई भार अपने मन पर न रखे। आपने जो अपने बयान मे कहा उससे मेरा सन्तोष और बढ़ गया। किसी कार्यकर्ता के काम को इससे अधिक और क्या मन्यता मिल सकती है। आदर सहित।

आपका अपना

महिन्द्र नाथ सोफत