उम्मीदों भरी फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’

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भारतीय समाज ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भी लगभग तय है नौकरी, शादी और बच्चों के लिए उम्र। पहले प्यार की अपनी अहमियत है। जब कुछ लोग इसके खिलाफ जाते हैं तो हर सुबह भय खाते हैं संस्कृति के स्वयंभू रक्षकों से।
ऐसी ही समस्या पर बातचीत की कोशिश है नई फिल्म ‘करीब करीब सिंगलÓ में। यह फिल्म एक अनूठे विषय पर है। पुरु ष और स्त्री दोनों ही उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर हैं। उन्हें पहले शायद वे गंभीर तौर पर घर बसाने का फैसला कर नहीं पाए। हालांकि उन दोनों की अपनी-अपनी जि़ंदगी में प्यार भी हुआ। घर बसा। अलगाव भी हुआ। हालांकि मन में चाहत बनी रही। फिर नई मुलाकात हुई। दोनों के मन में पिछली अनुभूतियों की अनगिनत तस्वीरें हैं। ये दोनों मित्र हरिद्वार, राजस्थान, ऊटी, दार्जिलिंग और गंगटोक वगैरह अपने तरीके से घूमते-खुद को विभिन्न तस्वीरों में रचे-बसे दिखते हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर नए-नए अपरिचित लोगों से मुलाकातें, प्राकृतिक छटाओं के बीच खुद को खुश रखने का सिलसिला इस फिल्म की खासियत है। यानी सब कुछ हो रहा है और नहीं भी हो रहा है।
फिल्म के हीरो हैं इरफान और हीरोइन हैं पार्वती। इरफान के अभिनय की खासियत है खुद को सीधे-सादे तौर पर पेश करना और कम बोले संवाद को ही एक ऊँचाई पर ले जाना। फिल्म में उनका प्रेम न तो छिछले तौर पर रोमैंटिक है और न ही वह उस चिड़चिड़ाहट में बदलता है जो अमूमन एक उम्र पार कर गए युवाओं में महसूस किया जाता है।
मलयाली अभिनेत्री पार्वती आकर्षक, जिंदादिल, युवा लड़की की भूमिका में अच्छी और प्रभावशाली है। एक ताजी हवा सा अंदाज है उनके अभिनय में। मलयालम फिल्म ‘टेक ऑफÓ में उनकी भूमिका काफी अच्छी रही है। संबंधों को दोनों ही अभिनेताओं ने बड़ी खूबसूरती से ‘करीब करीब सिंगलÓ में पिरोया है। यह फिल्म बदलते समाज में बनती नई अनिवार्यताओं के लिहाज से एक बेहतर फिल्म है।