उत्तर–प्रदेश में कैडर वोट की राजनीति हावी 

उत्तर प्रदेश के पहले और दूसरे चरण के मतदान से ये बात तो स्पष्ट हो गयी है। कि प्रदेश में सियासत करने वाले ये भाप गये है कि चुनाव में जिस पार्टी का जो कैडर वोट बैंक है। उसमें सेंध लगाना आसान नहीं है। चुनावी माहौल जरूर कुछ और दिख रहा हो पर, असल में जो राजनीति करने वाले है वे आसानी से ये बात जानते है। कि चुनाव के पहले लोग सरकार की निन्दा व शिकायत करते है। लेकिन वोट अपनी कैडर वाली पार्टी को ही देते है।

प्रदेश की सियासत के जानकार हर्ष कुमार का कहना है कि ये देश की राजनीति का दुर्भाग्य है कि लोग चुनाव में पार्टी को ही चुनते है ना कि प्रत्याशी को। क्योंकि एक से बढ़कर एक अपराधी फलां-फलां पार्टी से टिकट लेकर चुनाव जीत जाते है। वजह साफ है कि मतदाता पार्टी को ही वोट करता है। उनका कहना है कि 2014, 2017 और 2019 के लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में देखा गया है। कि चुनाव पूरी तरह से समीकरण और कैडर वोट पर टिका हुआ होता है। यानि की कैडर वोट की राजनीति हावी है।

मौजूदा समय में प्रदेश में जिस अंदाज में चुनाव हो रहे है। उससे तो ये अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है। कि चुनावी परिणाम चौंकाने वाले साबित होगें। जानकारों का कहना है कि जिस राजनीतिक तरीके से बडे ही सुनियोजित ढंग से चुनावी प्रबंधन किया गया है। और भाजपा और सपा के बीच चुनावी जंग बतायी जा रही है। इसके पीछे की सियासत ये है कि बसपा और कांग्रेस का जो कैडर वोट बैंक है उसमें सेंध लगायी जाये और अगर उनके विधायक जीतते है। तो जरूर अपने पक्ष में लाया जाये।

साथ ही जो छोटे दल चुनाव लड़ रहे है। गठबंधन के साथ उनके चुनाव लड़ने की पीछे की मंशा तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आयेगी। फिलहाल अब सियासी दल तीसरे चरण के 20 फरवरी को होने वाले चुनाव के लिये चुनावी महासमर में आरोप –प्रत्यारोप की राजनीति करने में लगे है।