उत्तर प्रदेश में इतनी शिद्दत से क्यों जुटे हैं प्रधानमंत्री?

The Prime Minister, Shri Narendra Modi addressing at the dedication of the various developmental projects to the nation, in Mahoba, Uttar Pradesh on November 19, 2021.

सन् 2014 में जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता में सर्वोच्च पद पर आसीन होने का मन बनाया, तो उन्होंने उत्तर प्रदेश के बनारस से लोकसभा चुनाव लडऩे का फ़ैसला लिया। और यह उनके लिए केवल भाग्यशाली ही साबित नहीं हुआ, बल्कि वह देश के प्रधानमंत्री भी बने। सवाल यह है कि मोदी ने चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश को ही क्यों चुना? जबकि गुजरात उनका गृहराज्य है और वहाँ उन्होंने लगभग 14 साल शासन किया। इतना ही नहीं, ख़ुद भाजपा यह मानती है कि गुजरात के लोग नरेंद्र मोदी के कामों से बहुत प्रभावित हैं और वे उन्हें मसीहा के रूप में देखते हैं। अगर ऐसा था, तो भी नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले ही लोकसभा चुनाव मोदी ने वहाँ से क्यों नहीं लड़ा? इसकी वजह यह रही कि वह जानते थे कि उत्तर प्रदेश को जीतना देश को जीतना है।

हालाँकि इसकी दूसरी वजह यह भी है कि अपने गाँव का ग़रीब भी दूसरे गाँव में जाकर ख़ुद को अमीर बता सकता है। मोदी ने भी इसी नीति का सहारा लिया और पूरे देश में इस तरह प्रचार किया कि मानों उन्होंने गुजरात को स्वर्ग बना दिया हो, और इसे गुजरात मॉडल का नाम दिया। पूरे देश के लोगों ने इस पर भरोसा किया और सन् 2014 में उन्हें और उनके नेतृत्व में भाजपा को जबरदस्त सीटों से जीत का सहरा पहनाया। तबसे लेकर नरेंद्र मोदी के दूसरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल तक उत्तर प्रदेश में 2022 का यह दूसरा विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहाँ डेरा डाल चुके हैं। हालाँकि इसके अलावा वह बिहार और बंगाल में भी जमकर रैलियाँ करते रहे हैं; लेकिन इतने बड़े स्तर पर नहीं। इसका जवाब सभी जानते हैं कि अगर उत्तर प्रदेश हाथ से गया, तो देश की सत्ता भी हाथ से जाएगी।

सन् 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी प्रधाननमंत्री ने चार महीने पहले से ही वहाँ प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया था और ताबड़तोड़ लगभग दो दर्ज़न रैलियाँ की थीं। अब इस बार भी वह बीते अक्टूबर से ही उत्तर प्रदेश में रैलियाँ करने लगे हैं। विकास के लिए कई बजटों का ऐलान कर चुके हैं और लोगों को अपनी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के फ़ायदे गिना रहे हैं। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार बिना चुनावों के भी उत्तर प्रदेश जाते रहे हैं। ख़ुद को माँ गंगा का बेटा कहने वाले मोदी अपनी कर्मभूमि अब उत्तर प्रदेश को ही मानने लगे हैं। यह भूमि उनके लिए भाग्यशाली भी है। क्योंकि अभी तक उनका देश की सत्ता पर एकाधिकार बना हुआ है। ऐसा भी नहीं है कि उनके प्रधानमंत्री बनने से उत्तर प्रदेश का बहुत भला हुआ हो। वहाँ भी देश के दूसरे प्रदेशों की तरह महँगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी और अपराध बढ़े हैं, बल्कि अपराध में उत्तर प्रदेश के मुक़ाबले कोई दूसरा प्रदेश नहीं दिखायी देता।

चुनाव वाले दूसरे प्रदेशों पर इतनी मेहरबानी क्यों नहीं?

उत्तर प्रदेश के अलावा इसी दौरान गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखण्ड के भी चुनाव हैं; लेकिन देखा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी की जीत के लिए हर राज्य से ज़्यादा उत्तर प्रदेश में रैलियाँ करते दिखे हैं। न तो वह अभी तक पंजाब गये हैं और न ही किसी अन्य राज्य में जाने की उन्हें जल्दी है। उत्तर प्रदेश में अब तक वह कई रैलियाँ करने लगे हैं। हालाँकि भाजपा के कुछ नेता दबी ज़ुबान से साफ़ कह रहे हैं कि मोदी उत्तर प्रदेश तो जीतना चाहते हैं, मगर वह ये नहीं चाहते कि योगी की जीत हो और वह दोबारा मुख्यमंत्री बनें।

इसके लिए एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की गुज़ारिश करते हुए क़सम दिलाकर कहा कि देखिए, यह बात कई मौक़ों पर ज़ाहिर हो चुकी है कि प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहीं-न-कहीं ख़फ़ा हैं। पहली बार सन् 2017 में भी मोदी नहीं चाहते थे कि योगी प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें और यह लड़ाई अन्दरखाने चुनाव जीतने के बाद ख़ूब चली। लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने योगी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए दबाव बनाया और मोदी को मजबूरन उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान करना पड़ा। उसके बाद गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटें ख़ाली होने के बाद वहाँ के उप चुनाव में दोनों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की करारी हार हुई। योगी आदित्यनाथ कई बार इस सीट पर जीत चुके थे, फिर भी उसे बचा नहीं पाये।

यह सब भी ऐसे ही नहीं हुआ। इस बार जैसे ही चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव मार्च, 2022 में कराने की घोषणा की, उत्तर प्रदेश में यह बात उठी कि इस बार राज्य में मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा?

केंद्र की मोदी सरकार की तरफ़ से साफ़ संकेत आये कि योगी मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं होंगे। लेकिन एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दबाव पड़ा और मोदी को उसके निर्णय के आगे झुकना पड़ा और एक बार फिर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया। इसके बाद हाल ही में सभी ने देखा कि मोदी जी की गाड़ी के पीछे-पीछे योगी आदित्यनाथ पैदल चल रहे हैं। यह कोई छोटा संकेत नहीं है और न ही छोटी बात है। बड़ी बात यह है कि योगी को मोदी के सुरक्षाकर्मियों ने पीछे रहकर चलने को कहा। भाजपा नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश का चुनाव किसी भी हाल में जीतना मोदी चाहते ही चाहते हैं; लेकिन वह उत्तर प्रदेश में अपनी मर्ज़ी के चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने के शुरू से ही इच्छुक रहे हैं।

भूलते नहीं योगी

भाजपा नेता ने आगे कहा कि देखिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ भी नहीं भूलते। वह दोस्तों को भी याद रखते हैं और अपने दुश्मनों को भी याद रखते हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ भी कुछ नहीं भूलते। योगी आदित्यनाथ भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं और इसके लिए उनकी तैयारी भी चल रही है। वैसे भी मोदी के शासन के बाद उनकी जगह भाजपा में कोई दूसरा ऐसा हिन्दुत्व का दमकता चेहरा कोई और दिखायी भी नहीं देता। मैं आपसे दावे के साथ यह कह रहा हूँ कि योगी भविष्य के प्रधानमंत्री हैं और वह भी किसी बात को भूलते नहीं हैं। उन्हें सब याद रहेगा कि उन्हें किसने समर्थन दिया और किसने उन्हें धक्का दिया। भाजपा नेता की इस बात को अगर समझने की कोशिश करें, तो इसका मतलब यह हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी न दोस्तों को भूलते हैं और न दुश्मनों को।

इसका मतलब यह भी निकलता है कि योगी आदित्यनाथ समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि अगर भविष्य में यदि उन्हें मौक़ा मिला, तो वह नरेंद्र मोदी से भी इस बात का बदला लेंगे? कहावत है कि प्यार, जंग और राजनीति में सब कुछ जायज़ है और राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता, जब जिसको मौक़ा मिले दूसरे को पटखनी दे देता है। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने भी अपने राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी को भी यह मौक़ा नहीं दिया और ख़ुद प्रधानमंत्री पद पर विराजमान हो गये थे।

उत्तर प्रदेश पर विशेष कृपा क्यों?

समाजवादी पार्टी के नेता और विधानसभा टिकट के दावेदार ओमप्रकाश कहते हैं कि यही अंतर्कलह भाजपा को ले डूबेगा। भाजपा जिस तरह अति विश्वास से भरकर लोगों को अभी से अपनी जीत का डंका बजाने के लिए उकसाने की कोशिश कर रही है, दरअसल वही भाजपा का असली डर है; जिसे वह उजागर नहीं करना चाहती। सच तो यह है कि इस बार भाजपा को बहुत पहले से ही अपनी हार दिखायी देने लगी है और इसी के चलते प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की बात भी बड़ी भावुकता दिखाते हुए ऐसे कही, जैसे वह किसानों से सबसे बड़े हितैषी हैं। जबकि सच तो यह है कि आज उत्तर प्रदेश में ही नहीं, पूरे देश में किसानों की दशा ख़राब है।

पूरे पाँच साल शासन कर चुकने के बाद प्रदेश के मुख़्यमंत्री, बल्कि मैं कहूँगा कि भाजपा के एक कट्टर नेता ने, जिन्हें किसी भी ग़रीब, दबे-कुचले और किसान का दर्द दिखायी ही नहीं देता- पाँच साल में 25 रुपये गन्ने के एक कुंतल का दाम बढ़ाया; जबकि चीनी पर इन पाँच साल में प्रति कुंतल कम-से-कम 1,000 रुपये प्रति कुंतल की बढ़त हुई है। मतलब हद कर दी। जिस किसान का गन्ना आप मुफ़्त के भाव उधारी में ख़रीदते हो, उसी को उसी के गन्ने की चीनी मनमाने दाम पर बेच रहे हो। क्या मज़ाक़ बनाकर रखा है। और अब जब किसान इसका विरोध कर रहा है, तो उससे निपटने के लिए तुम गुंडागर्दी कर रहे हो। और कह रहे हो कि यह राम राज्य है। यह कैसा राम राज्य है? जिसमें लोग इतने परेशान हैं कि अपना ही सिर धुन रहे हैं।

जो भी हो, इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान हैं। हालाँकि जिन विकास योजनाओं की वह घोषणा कर रहे हैं, वो कब पूरी होंगी? नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उनकी पहले की घोषणाएँ भी पूरी नहीं हो सकी हैं, जिनमें 24 घंटे हर घर को बिजली, हर आदमी को घर, सभी के खातों में 15-15 लाख रुपये, हर युवा को रोज़गार, बेसहारा लोगों को पेंशन, किसानों की आय दोगुनी जैसे कई वादे पूरे नहीं हुए हैं।

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी झाँसी पर, तो कभी पूर्वांचल के अन्य ज़िलों पर मेहरबान होकर विकास के लिए बड़े-बड़े बजटों का ऐलान कर रहे हैं। यह बजट बाक़र्इ राज्य को मिलेगा या इन विकास की इन योजनाओं को सच में पंख लगेंगे? यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। फ़िलहाल तो लोगों को हर बार की तरह एक बार फिर प्रदेश को स्वर्ग बनाने का सपना दिखाया जा रहा है, जिसके लिए शिलान्यास, उद्घाटन भी ख़ूब किये जा रहे हैं।