उत्तर प्रदेश की तहसीलों के काम में होगा सुधार!

तहसील ग्रामीण कार्यों के बनाया गया एक ऐसा सरकारी महकमा है, जिसका सरोकार सीधे ग्रामीणों से, खासकर किसानों से है। लेकिन अब तक तहसीलों में बहुत कुछ ऐसा है, जो इस आधुनिक कम्प्यूटर युग में बाबा आदम के ज़माने जैसा लगता है। उत्तर प्रदेश की कई तहसीलों में अभी भी टाइप राइटरों की खटपट इसका एक उदाहरण है। लोग आज भी अपने कागज़ बनवाते हैं या ज़मीनों का लेन-देन करते हैं, तो अधिकतर तहसीलों में उन्हें टाइपराइटरों की मदद लेनी पड़ती है। इन टाइपराइटरों की सबसे बड़ी कमी यह होती है कि अगर एक बार गलत अक्षर / शब्द टाइप हो गया, तो उसे काटा तो जा सकता है, लेकिन उसे मिटाया नहीं जा सकता। वहीं कम्प्यूटर पर हुई गलती पहले ही ठीक की जा सकती है।

विदित हो कि प्रशासनिक और विधायिक राजधानी लखनऊ और न्यायिक राजधानी इलाहाबाद वाले उत्तर प्रदेश में तकरीबन 20 करोड़ लोग निवास करते हैं, जिसकी अधिकतर संख्या गाँवों में निवास करती है। उत्तर प्रदेश में कुल 18 मंडल, 75 ज़िले और 57 हज़ार 607 गाँव हैं, जिनके कामकाज के लिए करीब 349 तहसीलें हैं। जनसंख्या और ज़िलों की संख्या के हिसाब से यह भारत का सबसे बड़ा राज्य है। कहा जाता है कि केंद्र सरकार का रास्ता इसी राज्य से होकर जाता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश का विकास हर तरह से मायने रखता है। लेकिन आज भी कई तरह से पिछड़ा उत्तर प्रदेश उतना विकास नहीं कर पाया है, जितना कि इसे करना चाहिए था। वैसे उत्तराखण्ड के अलग होने के बाद उम्मीद की गयी थी कि उत्तर प्रदेश का तेज़ी से विकास होगा। लेकिन अब कुछ लोग और सरकार कहती है कि उत्तर प्रदेश बहुत बड़ा है, इसलिए इसका उतना विकास नहीं हो पाता, जितना कि होना चाहिए था। जो भी हो, सरकार को इसके विकास के लगातार प्रयास तो करने ही होते हैं, जैसा कि इन दिनों योगी सरकार कर रही है। कहा जाता है कि किसी देश-प्रदेश के विकास का पता उसके गाँवों के विकास से चलता है। उत्तर प्रदेश के विकास का अंदाज़ा उसके गाँवों के विकास से ही होगा, जिसके लिए सबसे पहले तहसीलों में काफी बदलाव की ज़रूरत होगी। योगी सरकार ने अपने कार्यकाल में तहसीलों में कई सुधार किये हैं; लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

तहसीलों में रखे जाएँगे एक हज़ार से अधिक कम्प्यूटर ऑपरेटर

उत्तर प्रदेश सरकार ने तहसीलों के कामकाज को तेज़ करने के लिए पूरे प्रदेश की सभी करीब 349 तहसीलों में जल्द ही 1000 से अधिक कम्प्यूटर ऑपरेटर्स रखने का फैसला किया है। कम्प्यूटर ऑपरेटर्स रखने के दिशा-निर्देश राजस्व परिषद की ओर से जारी किये गये हैं। राजस्व परिषद के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, सभी कम्प्यूटर ऑपरेटर्स को आउट सोर्सिंग के माध्यम से तहसीलों में ज़रूरत के हिसाब से रखा जाएगा, जिसकी व्यवस्था स्थानीय स्तर पर ही की जाएगी। दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि श्रेणी-एक और श्रेणी-दो की तहसीलों में अधिकतम चार कम्प्यूटर ऑपरेटर, श्रेणी-तीन और श्रेणी-चार की तहसीलों में दो कम्प्यूटर ऑपरेटर रखे जाएँगे। वैसे फिलहाल इन कम्प्यूटर ऑपरेटरों को संविदा पर रखा जाने की योजना है। हो सकता है सरकार बाद में इन्हीं कम्प्यूटर ऑपरेटरों को स्थायी कर दे, लेकिन फिलहाल इस बारे में राजस्व परिषद ने कुछ नहीं कहा है।

परिषद ने प्रयोक्ता प्रभार के संग्रहण एवं व्यय के सम्बन्ध में जारी दिशा-निर्देशों में कहा है कि कम्प्यूटरीकरण के काम में ज़रूरत के आधार पर आउटसोर्सिंग पर तकनीकी जनशक्ति सेवा ली जाएगी। मंडलायुक्त न्यायालय में कम्प्यूटरीकरण की ज़रूरत के हिसाब से आउटसोर्सिंग पर आधारित तकनीकी जनशक्ति सेवा केंद्र होंगे। एक जनशक्ति सेवा केंद्र पर आने वाले खर्च को उस तहसील में स्थापित किया जाएगा, जिस मंडलीय ज़िले की जिस तहसील में सर्वाधिक प्रयोक्ता प्रभार प्राप्त हो रहा है। इसके लिए आउटसोर्सिंग पर प्रति तकनीकी जनशक्ति सेवा क्रय के लिए अधिकतम 25,000 रुपये खर्च किए जाएँगे। इसी तरह ज़िलाधिकारी न्यायालय के लिए भी व्यवस्था की जाएगी, ताकि काम तेज़ी से हो सके।

कैसे श्रेणीगत होंगी तहसीलें

कम्प्यूटरीकृत कामकाज के लिए श्रेणीगत तहसीलों को रोज़मर्रा के कामकाज के आधार पर तय किया जाएगा। जैसे हर दिन 300 से अधिक खतौनी की नकल जारी करने वाली तहसीलों को श्रेणी-एक में रखा जाएगा। इसी तरह 200 से 300 खतौनी की नकल जारी करने वाली तहसीलों को दूसरी श्रेणी में, 100 से 200 नकल जारी करने वाली तहसीलों को श्रेणी-तीन में और 100 से कम नकल जारी करने वाली तहसीलों को श्रेणी-चार में रखा जाएगा।

क्या होगा फायदा

कम्प्यूटरीकृत कामकाज को बढ़ावा देने के लिए तहसीलों में जनशक्ति सेवा क्रय केंद्र खुलने के बाद सभी तहसील सम्बन्धी कामों की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो जाएगी। इससे किसानों की ज़रूरत के कागज़ात, जैसे खसरा, खतौनी, नक्शा, बैनामा, आय, जाति, मूलनिवास और हैसियत प्रमाण पत्र, विरासत, दाखिल खारिज जैसे काम काफी आसान और जल्दी से होंगे। हाथ से लिखे दस्तावेज़ों से छुटकारा मिलेगा और पुराने हो चुके दस्तावेज़ों को कम्प्यूटर से निकलवाया जा सकेगा। इसके अलावा प्रदेश के युवाओं को रोज़गार मिलेगा, जिससे बेरोज़गारी का स्तर घटेगा।

अन्य सुधारों की भी ज़रूरत

उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के हर गाँव और हर शहर में बने सरकारी महकमों में आज सुधार की बहुत ज़रूरत है। उत्तर प्रदेश की तहसील व्यवस्था की बात करें, तो यह कृषि और गैर-कृषि भूमि के लेखा-जोखा रखने के साथ-साथ उनके मालिकाना हक रखने वालों का ब्यौरा रखने का केंद्र होता है। ऐसे में तहसीलों में हर दिन सैकड़ों किसान और स्थानीय लोग आते-जाते हैं। कुछ किसानों और तहसील में काम करने वालों से बात करने पर पता चला कि तहसीलों में अब भी बड़े पैमाने पर सुधार की ज़रूरत है। इसमें निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दिया जा सकता है :-

काम में गति ज़रूरी : वैसे तो कामकाज के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास अब अधिकतर तहसीलों में कम्प्यूटर ही हैं, लेकिन कहीं उनकी संख्या कम है, तो कहीं उन्हें चलाने वालों की संख्या कम है। यही वजह है कि तहसीलों के काम काफी पिछड़े हुए हैं। ऐसी बहुत-सी शिकायतें काम की लेटलतीफी को लेकर आज भी ग्रामीणों द्वारा की जाती हैं। सही मायने में इसकी वजह आधुनिक तकनीक के बावजूद पुरानी प्रणाली और तहसील कर्मचारियों की लेटलतीफी है। उत्तर प्रदेश सरकार की प्रदेश की तहसीलों में कम्प्यूटर ऑपरेटर्स की नियुक्ति की योजना से माना जा रहा है कि तहसीलों के काम में तेज़ी आएगी, जो कि बहुत ज़रूरी है। हालाँकि यह कब तक हो पाएगा? इस बारे में कहना काफी मुश्किल है। क्योंकि तहसीलों में होते ढीले कामकाज की वजह से लोगों में काफी आक्रोश भी रहता है। इस बारे में हमने मीरगंज तहसील के कुछ ग्रामीणों से बातचीत की, तो उन्होंने कई तरह की शिकायतें कीं। रामकिशन नाम के एक किसान ने बताया कि तहसील में तो किसानों का काम आये दिन पड़ता रहता है, लेकिन बाबू लोग किसानों से सीधे मुँह बात भी नहीं करते और काम को आराम से अपनी सहूलियत के हिसाब से करते हैं।

रिश्वतखोरी सबसे बड़ी बीमारी : मीरगंज तहसील के एक गाँव के एक किसान मोहनलाल ने बताया कि साहब! तहसील में कोई भी काम बिना रिश्वत के नहीं होता। अगर पैसा न दो तो अफसर और लेखपाल काम लटका देते हैं। किसानों की कोई नहीं सुनता, पैसे की सब सुनते हैं। वहीं धर्मपाल किसान का कहना है कि बाबू लोग काम का पैसा खुलकर माँगते हैं, ऊपर से उनकी खुशामद करो वो अलग। इस बात की पड़ताल के लिए हमने एक लेखपाल से भी बात की, उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रिश्वत तो ऊपर तक जाती है; नीचे अगर कोई किसानों पर दया दिखाये भी तो कैसे दिखाये? हालाँकि फिर भी किसानों के साथ हर कोई ऐसा व्यवहार नहीं करता कि हर काम पर रिश्वत ही माँगता हो। लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि तहसीलों में रिश्वतखोरी नहीं होती। दरअसल इस पर आधिकारिक स्तर से रोक लगनी चाहिए और नीचे स्तर पर रिश्वतखोर कर्मचारियों पर शिकंजा कसा जाना चाहिए।

डरते हैं सीधे-सादे किसान : तहसील में बैठने वाले वरिष्ठ वकील हरपाल सिंह कहते हैं कि दरअसल किसान बहुत सीधे-सादे होते हैं और अधिकारियों-कर्मचारियों से बात करने की उनकी हिम्मत नहीं होती है। क्योंकि वे डरते हैं कि उनके काम को कहीं कोई रोक न दे। इसकी वजह उन्हें कानून और काम के बारे में ठीक से जानकारी न होना है। किसानों के अन्दर का डर ही उन्हें रिश्वत माँगने वालों के खिलाफ जाने से रोकता है, अन्यथा अगर किसी किसान से रिश्वत माँगी जाए और वह तहसीलदार अथवा उप तहसीलदार जैसे बड़े अधिकारियों से इसकी शिकायत करे, तो उसकी ज़रूर सुनी जाएगी।

जातिवाद हावी : तहसीलों में ज़मीनों से सम्बन्धित काम होता है और उसमें ज़मीन के मालिक का जाति आधारित ब्यौरा होता है। ऐसे में उच्च वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी जाति के आधार पर भेदभाव करने में गुरेज़ नहीं करते। हालाँकि इस तरह का कोई ठोस सुबूत तो नहीं है, लेकिन कुछ लोग इस बात को दावे के साथ कहते हैं कि बहुत कर्मचारी और अधिकारी ऐसे हैं, जो जातिवाद के आधार पर काम करने में भेदभाव करते हैं। एक किसान ने तो यहाँ तक दावा किया, जिस जाति का अधिकारी तहसील में होता है, उस जाति के रसूखदार लोग खुद को अधिकारी समझते हैं और काम कराते हैं। ऐसे लोगों का तहसीलों में जमावड़ा कभी भी देखा जा सकता है। वहीं एक लेखपाल ने इस बात का खण्डन किया। उन्होंने कहा कि इस बात में रिश्वत वाली बात की तरह ही दम नहीं है। कुछ लोगों के बारे में नहीं कहा जा सकता, लेकिन अधिकतर लोग जातिवाद या धर्मवाद को दूर रखकर ही अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं।