उत्तराखण्ड में भूमि जिहाद मामला

अतिक्रमण मुक्त अभियान या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण?

बीते कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा का आक्रामक हिन्दुत्व के द्वारा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मामला बेशक फेल हो गया हो; लेकिन वह इसे हिन्दी पट्टी में तेज़ी से जारी रखना चाहती है। भाजपा शासित राज्यों में आक्रामक हिन्दुत्व के ज़रिये जिस तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल बनाने की कोशिश हो रही है, उससे प्रतीत होता है कि भाजपा अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव भी इसी मुद्दे के साथ उतरना चाहती है।

इस तरह की ताज़ा बानगी हिन्दी पट्टी के उत्तराखण्ड राज्य में देखने को मिल रही है। जहाँ तेज़ी से आक्रामक हिन्दुत्व के मुद्दे को वृहद स्तर पर हवा दी जा रही है, और राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल बनाया जा रहा है। उत्तराखण्ड में धर्मांतरण विरोधी क़ानून लागू किया जा चुका है, केंद्र की भाजपा द्वारा समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट तैयार करने को भी राज्य में ज़ोरशोर से प्रचार किया जा रहा है। वहीं अब ‘भूमि जिहाद’ का मुद्दा राज्य की भाजपा सरकार द्वारा बड़े ज़ोर-शोर से लाया गया है।

दरअसल उत्तराखण्ड सरकार द्वारा ‘भूमि जिहाद’ का नाम देकर राज्य के का$फी सारे मज़ारों, धार्मिक स्थलों और घरों को बुलडोजर लगाकर ध्वस्त किया जा रहा है। ख़ासतौर से यह अभियान वनक्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले ग्रामों और क़स्बों में चलाया जा रहा है। राजाजी नेशनल पार्क, कार्बेट नेशनल पार्क, विकास नगर, मसूरी, आशारोड़ी समेत राज्य के कई क्षेत्रों में 400 से अधिक मज़ारें और धार्मिक स्थल ध्वस्त किये जा चुके हैं, वहीं वन गुर्जरों तथा वन क्षेत्रों में निवास करने वाले अन्य लोगों के आवासों को भी तोड़ा गया है। विकासनगर क्षेत्र में तो पूरी एक बस्ती को ही बुल्डोजर से ध्वस्त कर दिया गया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि ‘राज्य में 1,000 से ज़्यादा बनीं मज़ारें बर्दाश्त नहीं की जाएँगी। भूमि जिहाद किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देंगे।’ उन्होंने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिये हैं कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को न रोकने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। अतिक्रमण हटाने सम्बन्धी शासन से जो आदेश जारी होंगे, उस पर सभी जनपदों को तेज़ी से कार्य करना है।

अभियान पर उठ रहे सवाल

उत्तराखण्ड राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी राजनीतिक पार्टियों ने राज्य सरकार की इस कार्यशैली पर सवाल उठाया है।

कार्बेट नेशनल पार्क के कालागढ़ टाइगर रिजर्व में वन विभाग द्वारा अतिक्रमण के नाम पर हटाये गये नौ मज़ारों के मामले पर समाजवादी लोकमंच के मुनीष कुमार अग्रवाल व उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी ने साझा बयान जारी कर प्रशासन पर संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने एवं सांप्रदायिक मानसिकता से काम करने का आरोप लगाया।

मुनीष कुमार अग्रवाल और प्रभात ध्यानी के द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया है- ‘प्रशासन संविधान के अनुरूप नहीं, बल्कि भाजपा सरकार के टूल के रूप में काम कर रहा है। कार्बेट टाइगर रिजर्व और कालागढ़ टाइगर रिजर्व में एक दर्ज़न धार्मिक संरचनाएँ हैं जिनमें से नौ संरचनाएँ तोड़ी गयी हैं, जो कि सभी मज़ारें हैं। वन प्रभाग द्वारा शासन को भेजी गयी रिपोर्ट में तराई पश्चिमी वन प्रभाग में 24 मंदिर, 14 मज़ारें व 2 गुरुद्वारे होना बताया गया हैं; लेकिन अतिक्रमण के नाम पर सि$र्फ मज़ारों को ही हटाया गया।’

मुनीष कुमार अग्रवाल ने सरकार से पूछा कि ‘जब माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगायी गयी है कि जिन लोगों ने वनाधिकार के दावे किये हैं उनके घरों एवं सामुदायिक हक़ के स्थानों को न हटाया जाए। इसके बावजूद भी सरकार वन गुर्जरों के घरों और सामुदायिक-धार्मिक स्थलों को क्यों तोड़ रही है? जबकि वन गुर्जरों ने वन अधिकार अधिनियम-2006 के अंतर्गत निजी एवं सामुदायिक दावे समाज कल्याण विभाग के समक्ष प्रस्तुत किये हुए हैं। देश के संविधान में दर्ज समानता का मूल अधिकार, जिसमें कहा गया है कि क़ानून के समक्ष किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र को लेकर भेदभाव नहीं किया जाएगा; लेकिन उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार द्वारा धर्म विशेष को निशाना बनाकर राज्य के माहौल को ख़राब किया जा रहा है।’

वहीं प्रदेश कांग्रेस ‘भूमि जिहाद’ और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के विरोध में सभी विपक्षी दलों को साथ लेकर मुख्यमंत्री के विरुद्ध मोर्चा खोलने की योजना बना रही है। उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने 22 मई, 2023 को पत्रकारवार्ता में कहा- ‘सरकार द्वारा नागरिकों के अधिकारों का हनन एवं संवैधानिक मूल्यों पर किये जा रहे चोट के विरोध में कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल एकजुट हैं। और प्रदेश के सभी ज्वलंत विषयों मिलकर अभियान चलाएँगे।’

अन्य वक्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रदेश की भाजपा सरकार अतिक्रमण हटाने के नाम पर राज्य में ग़रीब जनता को बेघर कर रही है। उसे भूमि जिहाद या मज़ार जिहाद का नाम देकर सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है। भाकपा (माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि प्रदेश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को ताक पर रखकर लोगों को उजाड़ा जा रहा है। उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के महासचिव नरेश नौडियाल ने कहा कि सरकार स$ख्त भू-क़ानून पर ख़ामोश है।

भाकपा नेशनल काउंसिल के सदस्य समर भंडारी ने कहा कि शान्तिप्रिय प्रदेश में डर, नफ़रत का वातावरण बनाया जा रहा है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य समिति सदस्य लेखराज ने कहा कि भाजपा राज में पूँजीपतियों को ध्यान में रखकर क़ानून बनाये जा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि क़ानून ताक पर रखकर बसे-बसाये व्यक्तियों को उजाड़ा जा रहा है।

क्या है भूमि जिहाद?

यूँ तो भाजपा द्वारा पूर्व के तमाम लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण का मुद्दा उठाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रयास किये जाते रहे हैं। लेकिन भूमि जिहाद का नाम पहली बार वर्ष 2021 में असम विधानसभा चुनाव के दौरान आया, जब भाजपा ने असम विधानसभा चुनाव घोषणा-पत्र में एक नयी अवधारणा भूमि जिहाद की पेशकश की। उस समय असम भाजपा के उपाध्यक्ष रहे स्वप्ननील बरुआ ने स्पष्ट किया था- ‘भूमि जिहाद लोगों को अपनी ज़मीन बेचने के लिए मजबूर करने का एक तरीक़ा है। यह कहीं भी होता है, जहाँ मिया (मियाँ, -असम में बंगाली मूल के मुसलमान) हैं। मिया लोग भूमि के मालिक को घेर लेते हैं। भूमि को निर्जन बना देते हैं। कभी-कभी मवेशियों की चोरी करके और मवेशियों के कटे हुए सिरों को आँगनों में फेंक देते हैं। मजबूरन ज़मीन मालिक को ज़मीन बेचनी पड़ती है। एक तीसरा पक्ष खेल में आता है और ज़मीन की ख़रीद के लिए मालिक को एक प्रस्ताव दिया जाता है। एक दलाल शामिल हो जाता है, और ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया जाता है।’

लेकिन उत्तराखण्ड के सम्बन्ध में ‘भूमि जिहाद’ का मामला असम राज्य से बहुत-ही अलग है। उत्तराखण्ड में ‘भूमि जिहाद’ के खिलाफ़ अतिक्रमण मुक्त अभियान के नाम पर सबसे ज़्यादा शिकार वन गुर्जर समुदाय हो रहा है, जो एक चरवाहा समुदाय है और उत्तराखण्ड का मूल निवासी हैं तथा वर्षों से जंगलों के बीच अपने मवेशियों के साथ जी रहा है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के साथ ही वन गुर्जरों पर विस्थापन की तलवार लटक रही है। वन्य जीव संरक्षण के नाम पर वन गुर्जरों को विस्थापित करने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है। राजाजी नेशनल पार्क, जौनसार बावर, कार्बेट नेशनल पार्क समेत अनेक क्षेत्रों में वन गुर्जरों की एक बड़ी आबादी विस्थापित होकर अपनी पहचान खो चुकी है।

वर्ष 2021 में राजाजी नेशनल पार्क के रानीपुर और मोतीचूर इला$के में लगभग 3,000 परिवारों को विस्थापित किया गया। इस विस्थापन में वन गुर्जरों को ज़मीन का मालिकाना हक़ भी नहीं मिला, ऐसे में वे किसी नदी के किनारे अस्थायी बसेरा बनाकर जीवन काटने को मजबूर हैं। उनमें से अधिकतर को अभी चले रहे अतिक्रमण मुक्त अभियान में उजाड़ दिया गया है।

बीते सप्ताह नैनीताल ज़िले कि रामनगर तहसील अंतर्गत भी कई वन गुर्जरों के आसियानों को तोड़ दिया गया। वहीं जौनसार बावर क्षेत्र में भी वन गुर्जरों के आवासों को तोडऩे की धमकी कट्टरपंथी हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा दी जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक, उत्तराखण्ड में वन गुर्जरों की संख्या लगभग एक लाख है। ये लम्बे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा माँग रहे हैं। फ़िलहाल ये ओबीसी कैटेगरी में सूचीबद्ध हैं।

नहीं गिरेंगे 1980 से पहले के ढाँचें

मुख्यमंत्री के ‘भूमि जिहाद’ वाले बयान के बाद वन विभाग ने कहा है कि 1980 से पहले के बने ढाँचे नहीं गिराये जाएँगे। मुख्य वन संरक्षक पराग धकाते, जिन्हें अतिक्रमण विरोधी अभियान का नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है; ने कहा- ‘राज्य सरकार ने पहले ही उन सभी संस्थानों / व्यक्तियों को एक आदेश जारी कर कह दिया था कि जिनके पास वन क्षेत्रों में सम्पत्ति, पट्टा या अन्य कोई दावा है, उसके दस्तावेज़ हासिल कर लें। वन संरक्षण अधिनियम के तहत दस्तावेज़ों का नवीनीकरण किया गया है, जो लोग इसका पालन नहीं करते हैं और वन भूमि का अतिक्रमण करना जारी रखते हैं, उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।’ विदित हो कि वन अधिकार अधिनियम में दिसंबर, 2005 तक वन भूमि पर निवास करने वालों को वन अधिकार के निजी और सामुदायिक पट्टे देने के प्रावधान हैं।

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप

वन विभाग ने संकेत दिया है कि जंगलों में मज़ारों सहित अन्य संरचनाओं की तुलना में अवैध रूप से निर्मित मंदिरों की संख्या अधिक है। लेकिन 400 से अधिक मज़ारों को ध्वस्त करने और सैकड़ों वनगुर्जरों के आवासों को उजाडऩे के बाद सरकार पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आरोप लगने लगे हैं। हालाँकि सरकार का कहना है कि अतिक्रमण मुक्त अभियान में 42 मंदिरों को भी हटाया गया है। उत्तराखण्ड में हिन्दू आबादी लगभग 83 प्रतिशत है। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र भाजपा इस बड़ी आबादी के बीच अपनी पैठ बनाकर चुनाव जीतना चाहती है। ऐसे में ‘भूमि जिहाद’ के नाम पर एक धर्म विशेष को टारगेट कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जा रही है।

सोशल मीडिया में आरएसएस-भाजपा के अनुषांगिक संगठनों द्वारा ज़ोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है कि उत्तराखण्ड गठन के समय (एक धर्म विशेष) की संख्या 1.5 प्रतिशत थी, जो अब 18 प्रतिशत हो गयी है। इससे यह बताने की कोशिश की जा रही है, उत्तराखण्ड में डेमोग्राफिक चेंज तेज़ी से हो रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता शीशपाल का कहना है कि भाजपा बड़ी चालाकी से इस अतिक्रमण मामले को धार्मिक मान्यताओं से जोड़ रही है, और हल्ला कर रही है कि एक विशेष समुदाय के अवैध धार्मिक स्थलों को हटा रही है। लेकिन लम्बे समय से राज्य में भाजपा की सरकार रही है। यदि कहीं अवैध अतिक्रमण हुआ है, तो भापजा के ही शासनकाल में हुआ है।