उत्तराखंड के सामने चुनौतियां

उत्तराखंड राज्य को बने 18 साल हो चुके हैं, लेकिन जिस मकसद से इसके निर्माण के लिए उत्तराखंड की जनता ने आहुतियां दीं क्या वे फलीभूत हुईं? इस पर बहुत सारे प्रश्न चिन्ह हैं। इस प्रदेश में सरकारें आईं और अपना कार्यकाल पूरा कर चली गईं। सब हाथ झाड़ते हुए चले गये, पर समस्या जस की तस है। क्या कोई यह सोच सकता था कि पलायन इतना भंयकर होगा कि गांव के गांव उजड़ जायेंगे। फसल के नाम पर बंजर खेत और वह भी झाड़ झंकार से भरे हुए। साथ ही पूरे उत्तराखंड के गांवों में जंगली सुअरों का आतंक। गावों में कहीं कुछ बचे खुचे परिवार भी होंगे, वे अपने खेतों से एक महीने का राशन तक नहीं उपजा सकते, हां तराई को छोड़ कर।

ऐसी परिस्थितियों में हमने वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के विचार कई मंचों और राष्ट्रीय अखबारों में देखे और सुने। एक दृष्टि में यह लगा कि यह प्रायोजित कार्यक्रम है। फिर भी जैसा भी हो, उनके विचारों को आपके साथ बांटना चाहूंगा। जैसा कि उनका मानना है कि सत्ता में आये उन्हें अभी एक वर्ष ही हुआ है, पर दृष्टि उनकी प्रदेश के विकास को गति देने की है। इसी संदर्भ में पहले उनके विचारों को सिलसिलेवार प्रस्तुत कर रहा हूं-

चारधाम यात्रा के लिए सड़क निर्माण में 3,500 पेड़ काटने पड़ेंगे, लेकिन एनजीटी ने परियोजना को मंजूरी नहीं दी है, मंजूरी तब ही मिलेगी जब कटने वाले पेड़ों से दस गुणा पेड़ों का रोपण हो, इस संदर्भ में मुख्यमंत्री कहते हैं कि देहरादून में उन्होंने ढाई लाख पौधे एक दिन में रोपे, इसी तरह कोसी नदी के किनारे एक घंटे में एक लाख 57 हजार 755 पौधों का रोपण किया।

सभी जिलाधीशों को सुझाव दिया कि वे अपने अपने जि़ले की एक एक नदी को गोद लें और उसके इको सिस्टम को संरक्षित करने का प्रयास करें तो इसके अच्छे परिणाम 50-60 वर्षों के बाद ही दिखेंगे। उत्तराखंड में विकास पर्यावरण मित्र के रूप में किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री कहते हैं कि पलायन मैदानों में नहीं हो रहा है, यह सिर्फ पहाड़ों से हो रहा है। 57 फीसदी लोगों ने गांव छोड़ दिये और देहरादून, हरिद्वार और तराई के क्षेत्र उधम सिंह नगर में बस गये। यह लोग रोज़गार और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए चले गये क्योंकि खेती का धंधा फायदे वाला नहीं है। पहाड़ों में बहुत कम लोगों के पास भूमि है, इस कारण उत्पादन सीमित है।

मुख्यमंत्री बताते हैं कि हमने ग्राम लाइट प्रोजेक्ट शुरू किया- इस कार्यक्रम में हमने 10 महिलाओं को एलईडी लैंप बनाने के लिए प्रशिक्षित किया, जिसमें ट्यूब लाइट और उसी तरह के 45 वस्तुएं हैं।

इससे रोजगार पैदा करने का बल मिला। इन उत्पादों की कीमत उन उत्पादों से आधा है जो बाजरों में हैं। और वारंटी का समय भी दूना किया। हमने बहुत सारा काम उद्योग केंद्रों में किया, महिलाओं को सिलाई सिखाई और उन्हें बाजार में कैसे बेचते हैं, उसके लिए प्रशिक्षित किया।

प्रदेश में 55 फीसदी डाक्टर हैं पर मैं उम्मीद करता हूं कि दो वर्ष में सभी रिक्त पद भर लिए जाएंगे। हम ऐसी तकनीकी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें सुदूर क्षेत्रों के लोगों को कोई समस्या न हो, हमने किसानों को सलाह दी कि गांवों में मटर की खेती करें, पहले वे आलू का उत्पादन करते थे, लेकिन उसकी पैदावार अच्छी नहीं हो रही थी। जिसके कारण उसे बाजार तक भी नहीं ले जा पा रहे थे। अब वे 50 रुपये किलो मटर बेच रहे हैं। पहले ही वर्ष 50 लाख रुपये के मटर बेचे गए। इस वर्ष हम दो करोड़ रुपये के मटर बेचने की उम्मीद कर रहे हैं। पहले फोन और इंटरनेट कनक्टिविटी कस्बों और गांव में नहीं थी, लेकिन अब हमने दिल्ली के अपोलो अस्पताल से उन्हें जोड़ दिया है। सेटेलाइट फोन हर जिले में तीन-चार स्थानों पर हैं। गांव के लोग डाक्टरों से सलाह ले सकते हैं।

हमने देवभोग कार्यक्रम भी शुरू किया हुआ है। इसमें हमने स्थानीय लोगों और महिलाओं को शिक्षित किया कि प्रसाद कैसे बनाते हैं। इस कार्यक्रम के लिए 25 लोगों का चुनाव किया और प्रत्येक व्यक्ति को 25 लाख रुपये की राशि दी जिससे वे देव भोग को बना सकें। केदार नाथ में भोग की बिक्री डेढ़ करोड़ रुपये की हुई। राज्य में 625 मंदिर हैं। जिनमें बद्रीनाथ, यमनोत्री, गंगोत्री, जगन्नाथ, राजेश्वर धाम, बागेश्वर धाम के साथ हमने देव भोग बांटना शुरू किया। हम आने वाले पांच-छह वर्षों में देव भोग के वितरण से 200 करोड़ रुपये प्राप्त कर सकेंगे। इस धन को ग्रामीण और महिलाएं उपयोग में ला सकती हैं।

जीएसटी की वजह से दवा कंपनियों के निर्माता चिंतित हुए, हमने उनके साथ मीटिंग की तो पता चला कि देश में दवा उत्पादन के क्षेत्र में प्रदेश का हिस्सा 20 फीसदी का है। कंपनियों ने अपनी परेशानी हमारे साथ बांटी, तब हमने हल निकालने की कोशिश की। मुख्य सचिव और अन्य सचिव भी मीटिंग में मेरे साथ थे, वहीं पर निर्णय लिया गया कि आपको उत्तराखंड में रहने के और भी फायदे है, जैसे राज्य में सारे देश से सबसे सस्ती बिजली दी जा रही है, कानून

व्यवस्था में कोई परेशानी नहीं है। कंपनियों ने कहा कि बिजली के वितरण में परेशानी है क्योंकि बहुत सारे ट्रांसफार्मरों की कमी है। हमने तुरंत संबंधित एजेंसियों को आदेश दिया कि शीघ्र समस्या का समाधान करें।

मैं स्वीकार करता हूं कि जीएसटी से कंपनियों को नुकसान हुआ है। मैं नहीं समझता कि दवा कंपनियां किसी और जगह शिफ्ट होंगी।

हम पांच हजार घरों को बना रहे हैं। करीब एक लाख लोगों को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया गया हैं। ं

हम पर्यटन के विकास पर अपने को केंद्रित कर रहे हैं। इस वर्ष 46 दिनों में उतने पर्यटक आये जितने छह महीने में आते हैं।

पर्यटन के क्षेत्र में अधिक रोजगार पैदा किये जा सकते हैं। नैनीताल 1881 में बसा और पूरी तरह से भर गया है, आगे विकास की गुंजाइश समाप्त है। वहां निर्माण के लिए नया कुछ भी नहीं है। मसूरी भी लगभग 200 वर्ष पहले बसी वह भी संतृप्त है। इस लिए अब हम 13 नये स्थानों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हम आने वाले वर्षों में राजस्व बढाने की कोशिश कर रहे हैं। 2020 तक प्रदेश के संसाधनों में दूनी वृद्धि करना चाहते हैं।

हमने गैरसैण में विकास कार्य शुरू कर दिया है। वह बहुत छोटी जगह है। वहां हम झील बना रहे हैं, क्योंकि उस क्षेत्र में पानी की कमी है। वहां अभी 1200 के करीब लोग निवास करते हैं। मैं पूरी तरह से उनकी परेशानी से परिचित हूं। देहरादून उत्तराखंड का सबसे बड़़ा शहर है, यहां राजधानी बनने का दबाव महसूस किया जा रहा है। इसलिए हम चाहते हैं कि गैरसैण को राजधानी बनाया जाए। हम उचित समय पर इसका निर्णय लेंगे। आवश्यक आवश्यकतायें बिजली, सड़क और पानी उपलब्ध होना ज़रूरी है। देहरादून कब तक राजधानी रहेगी इसका उत्तर अभी नहीं है।

हमारे पास गैरसैण है, हमारे पास टिहरी झील के आसपास विकास करने लायक क्षेत्र है। प्रत्येक जिले में हमारे पास चयनित स्थान हैं, जिन्हें हम विकसित करना चाहते हैं। हम निवेशकों को आमंत्रित कर रहे हैं। हम चार और पांच अक्टूबर को निवेशकों का सम्मेलन कर रहे हैं, इसमें प्रधानमंत्री होंगे। थाईलैंड भी उत्तराखंड में निवेश करना चाहता है। हमने कुछ लोगों को लाइसेंस दिये हैं। ऋषिकेश में हमारे पास 900 एकड़ जमीन है, वहां हमारी अंतर्राष्टीय सम्मेलन केंद्र बनाने की योजना है।

पर्यटन उत्तराखंड का भविष्य है। हमारे पास संपूर्ण भारत के अलावा दुनिया से लोग आते हैं। राज्य धार्मिक पर्यटन के लिए लोकप्रिय है। लेकिन अब बहुत सारे लोग राफ्टिंग, पैरा ग्लाइडिंग और पर्वतारोहण के लिए आते हैं। बहुत सारे पर्यटकों की संख्या बढी है। कुछ लोग योग के लिए आते हैं, लोग सफारी के लिए जिम कौर्वेट पार्क आते हैं जो कि देश में बाघों की सबसे अधिक आबादी के लिए ख्यात है।

भारत में 16 मौसम के क्षेत्र यानी क्लाइमेट जोन हैं उनमें से अकेले उत्तराखंड में 15 जोन हैं।

ग्ंागा और यमुना नदियों के तटबंध मिट्टी और रेत से बने हैं जो उत्तराखंड के पर्वतों से बहकर आया है। आज गंगा देश के 45 फीसदी लोगों को खाद्यान्न देती है। रेत का आना और जाना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। पर्वतों की मिट्टी नदियों के माध्यम से बह रही है। बांधों का निर्माण पूर्ण सर्वेक्षण के बाद हुआ है। बहुत सारे कारकों का विश्लेषण करने के बाद प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जाती है। कुछ दिन पहले दिल्ली के एक युवा ने एक वीडियो तैयार की, जिसमें उसने दर्शाया कि सीवरेज का पानी किन किन स्थानों पर गंगा को प्रदूषित कर रहा है। हमने उस पर कार्य किया, और उसे स्वच्छ बनाने के लिए आगे आये। इसे हमने पांच दिन के भीतर साफ किया। सारी सीवरेज की लाइने 2020 तक साफ हो जाएंगी।

पंचेश्वर बांध भारत का सबसे बड़ा बांध है। नेपाल का उसमें हिस्सा है। लगभग नेपाल के कैचमेंट के 30 गांव उससे प्रभावित हो रहे हैं। यह हमारे देश का भविष्य है। टिहरी बांध एक उदाहरण है, जिसने भारी जनसंख्या को विस्थापित किया। बांध हमारी मदद पीने के पानी से लेकर सिंचाई में कर रहा है।

मुख्यमंत्री जिस उत्साह से इन कार्यों पर चर्चा कर गये, वे समस्यायें तो हैं ही, पर उससे बड़ी समस्या उत्तराखंड की भूमि को किस तरह से चकबंदी में समेटा जाए, है। एक ड्राईव पिछले मुख्यमंत्री ने चलाया था, उस पर अमल नहीं हुआ। दूसरा सबसे बड़ा काम है कि पहाड़ों की भूमि को सिंचिंत कैसे करें, क्या सरकार के पास योजनाकारों की कमी है जो वाटर लिफ्ंिटग विधि का प्रयोग नहीं दे पा रहे हैं। इजारायल जब अपनी भूमि को उपजाऊ बनाने में सक्षम है, तब हमारे यहां उस बहते हुए पानी को पहाड़ों की चोटी तक पहुंचाने में सक्षम क्यों नहीं है? पहाड़ों की जवानी और पहाड़ों के पानी को रोके बिना संपन्नता का रास्ता नहीं खुलता। और सबसे बड़ा मुद्दा चक बंदी या कलक्टिब फार्मिंग का रास्ता निकालने का कोई उपाय हो। मुख्यमंत्री पर्यटन की बात कर रहे हैं, वह पर्यटन व्यावसायिक रूप तभी लेगा जब वहां स्थानीय आदमी दिखें। नहीं तो ये बातें ऐसी ही होंगी जैसे अन्य धुरंदर मुख्यमंत्री अपने अपने कार्यकाल निपटाकर चले गये।

बहुत सारे ठोस मुद्दे हैं जिन्हें मुख्यमंत्री ने नहीं उठाये। प्रदेश में पर्यटन आज से नहीं सदियों से विकसित है, इसमें किसी ने प्रचार नहीं किया, उन संतों को इसका श्रेय जाता है जो सुदूर दुर्गम मार्गों को पैदल पार करते हुए उत्तराखंड पहुंचे और इसे एक धार्मिक दृष्टिकोण से देखते हुए कुछ मान दंड स्थापित कर आस्था जगाई। वही आज पर्यटन का मुख्य केंद्रबिंदु है।

धार्मिक पर्यटक तो आयेंगे ही, पर आपने क्या ऐसा किया जो प्रदेश समृद्धि की तरफ बढे?