इस बार रोचक हैं हिमाचल में चुनावी टक्कर

हिमाचल प्रदेश में लोक सभा चुनाव बहुत दिलचस्प हो गया है। भाजपा ने एक मंत्री सहित दो विधायकों को मैदान में उतार दिया है तो कांग्रेस ने भी दो विधायकों पर दांव आजमाया है। मुय मुकाबला इन दोनों में ही है, हालांकि कुछ अन्य उमीदवार भी किस्मत आजमा रहे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा चार की चार सीटें जीत गयी थी लेकिन इस बार कांग्रेस उससे सीटें छीनने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।

कांग्रेस ने भाजपा के बाद अपने चारों उमीदवार घोषित कर दिए। उमीदवारों को देखें तो भाजपा ने दो उमीदवार रिपीट किये हैं जबकि कांग्रेस के सभी उमीदवार पिछले चुनाव में नहीं लड़े थे। इस बार कांग्रेस ने मंडी से आश्रय और कांगड़ा से पवन काजल को मैदान में उतारा हैं। कांग्रेस के सामने हमीरपुर सीट पर उमीदवार का चयन लंबे समय तक फंसा रहा। कारण यह था कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और तीन बार भाजपा के सांसद रहे सुरेश चंदेल कांग्रेस में आना और उसका टिकट चाह रहे थे। एक बार तो लग रहा था कि आश्रय की तरह वे भी टिकट पा जायेंगे लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान में उनका पत्ता साफ़ हो गया।

हमीरपुर में कांग्रेस ने पूर्व मंत्री राम लाल ठाकुर को टिकट दिया है जो तीन बार पहले भी इस सीट पर हार चुके हैं। उनका मुकाबला तीन बार के सांसद भाजपा के अनुराग ठाकुर से है। अनुराग के पिता और पूर्व मुयमंत्री प्रेम कुमार धूमल का इस हलके में जबरदस्त प्रभाव है लिहाजा अनुराग को इसका लाभ रहता है।

यह माना जाता है कि सुजानपुर से कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा अपने बेटे के लिए हमीरपुर से टिकट चाहते थे। उन्हें पूर्व मुयमंत्री वीरभद्र सिंह का पूरा समर्थन था। वे इलाके में एक लोकप्रिय नेता हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व मुयमंत्री प्रेम कुमार धूमल को हरा दिया था।

सुजानपुर के सुभाष का कहना है कि राणा के बेटे को टिकट मिलता तो मुकाबला होता। ‘अब तो मुझे लगता है कि अनुराग का रास्ता साफ़ है। ऊपर से अनुराग ने काफी काम भी किये हैं।’ घुमारबीं के कृष्ण कुमार ने कहा कि इस बार राम लाल के प्रति सहानुभूति जाग सकती है क्योंकि वे तीन बार हारे हैं।  मंडी में सांसद राम स्वरूप को भाजपा ने दुबारा मैदान में उतारा है। अब उनका मुकाबला सुख राम के पोते आश्रय से है। सुख राम मंडी विधानसभा हलके में एक बार भी नहीं हारे जबकि लोकसभा के चार में से दो चुनाव उन्होंने हारे हैं। उनका मंडी जिले में अच्छा प्रभाव माना जाता है। यह कहा जाता है कि 2017 में विधानसभा के चुनाव में भाजपा के मंडी की सभी दस सीटें जीतने के पीछे सुख राम का प्रभाव भी था।

सुख राम अब कांग्रेस में हैं और पूर्व मुयमंत्री वीरभद्र सिंह से उनकी बिलकुल नहीं बनती। यदि वीरभद्र सिंह दिल से सुख राम के पोते को समर्थन दे देते हैं तो आश्रय मंडी में भाजपा को चौंका सकते हैं। भाजपा के लिए मंडी लोक सभा सीट अहम इसलिए भी है क्योंकि मुयमंत्री जयराम ठाकुर का यह गृह जिला है। पत्रकार बीरबल शर्मा कहते हैं कि दल बदलने से सुख राम की इमेज पर खऱाब असर पड़ा है। ‘इसके बावजूद सुख राम के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। वीरभद्र सिंह का रोल भी इस सीट पर बहुत असर करेगा।’

कांगड़ा सीट पर इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने नए उमीदवारों को टिकट दिया है। वरिष्ठ नेता शांता कुमार का टिकट काटे जाने के बाद उनके समर्थक किशन कपूर को टिकट दिया है जो जय राम सरकार में मंत्री हैं। कांग्रेस ने भी विधायक पवन काजल को मैदान में उतारा है जो ओबीसी समुदाय से हैं जबकि कपूर गद्दी समुदाय के हैं।

नगरोटा के नरेंदर सिंह ने कहा कि पवन काजल अच्छे उम्मीदवार हैं। जबकि गद्दी समुदाय के अभिषेक कपूर का कहना था कि किशन कपूर को उनके समुदाय से पूरा वोट मिलेगा। शिमला सीट पर कांग्रेस ने पहले भी सांसद रह चुके विधायक धनी राम शांडिल को मैदान में उतारा है। भाजपा ने भी विधायक सुरेश कश्यप को टिकट दिया है। इस सीट पर भी जबरदस्त टक्कर देखने को मिलेगी क्योंकि शांडिल की इमेज हलके में अच्छी है जबकि सुरेश भी अपने हलके में काफी लोकप्रिय हैं।

सोलन के रत्ती राम का कहना था कि शांडिल पहले भी सांसद रहे हैं और उनका ट्रैक रिेकॉर्ड अच्छा रहा है जबकि नाहन के बिल्लू राजपूत ने कहा कि सुरेश मेहनती हैं और कमाल कर सकते हैं।

हिमाचल में 19 मई को मतदान होना है लिहाजा यहां प्रचार धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ेगा। कांग्रेस और भाजपा की तरफ से तमाम बड़े नेता पीएम मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रचार के लिए आएंगे।

पिता, दादा और कांग्रेस उमीदवार

यह दिलचस्प परिदृश्य शायद पहाड़ की चुनावी बयार में पहली ही बार बना। जब बेटे आश्रय को कांग्रेस टिकट मिला तो पिता अनिल शर्मा भाजपा की सरकार में मंत्री थे। इससे उनके लिए धर्मसंकट की स्थिति बन गयी। भाजपा के उनके मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में उनके पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम और कांग्रेस प्रत्याशी बेटे आश्रय की आलोचना करने लगे। जब हिम्मत हारी तो मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। बता दें तीनों, यानी सुख राम, अनिल शर्मा और आश्रय, 2017 के अक्टूबर तक कांग्रेस में ही थे। तब भी अनिल शर्मा मंत्री थे लेकिन कांग्रेस की सरकार में। आश्रय कांग्रेस के ब्लाक प्रभारी थे। लेकिन दिसंबर के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले तीनों भाजपा में चले गए। अनिल ने मंडी विधानसभा सीट से चुनाव जीता और भाजपा सरकार में भी मंत्री हो गए। अब सवा साल के बाद अनिल के पिता सुख राम, नरसिम्हा राव सरकार में केबिनेट मंत्री रहे, अपने पोते आश्रय के साथ मार्च के आखिर में दिल्ली में राहुल गांधी से मिले और न सिर्फ कांग्रेस में शामिल हुए, आश्रय के लिए मंडी लोक सभा सीट से टिकट का भी इंतजाम कर गए। सुख राम के घर से दो दशक पहले जब कोई साढ़े तीन करोड़ रूपये मिले थे, कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। बाद में कई घटनाक्रमों के बाद अब सुख राम दोबारा कांग्रेस में पहुँच गए हैं। मंडी में जो दिलचस्प स्थिति बनी वो यह कि अनिल शर्मा खुद तो भाजपा सरकार में मंत्री थे और बेटा चुनाव मैदान में कांग्रेस की टिकट पर भाजपा के प्रत्याशी को टक्कर दे रहा था। जाहिर है अनिल बेटे के लिए प्रचार कर नहीं कर सकते थे। धर्मसंकट यह था  कि यदि भाजपा के लिए करते हैं तो बेटे के खिलाफ प्रचार हो जाएगा। अब इस्तीफा देकर मंत्री पद तो छोड़ दिया, कह रहे हैं कि भाजपा के प्राथमिक सदस्य वे अभी भी  हैं। देखते कुछ दिन में क्या दृश्य बनता है।