इस आम बजट में सरकार से उम्मीदें और सम्भावनाएँ

The Union Minister for Finance and Corporate Affairs, Smt. Nirmala Sitharaman arrives at Parliament House to present the General Budget 2019-20, in New Delhi on February 01, 2020. The Minister of State for Finance and Corporate Affairs, Shri Anurag Singh Thakur is also seen.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को अपने कार्यकाल का चौथा आम बजट पेश कर चुकी हैं। पिछला आम बजट कुछ-कुछ राहत भरा, तो ज़्यादातर निराश करने वाला रहा। सरकार की कई योजनाओं और वादों के पूरा न होने से लोग नाराज़ हैं। सरकार भी इस बात को समझ रही है और आगामी चुनावों में जीत दर्ज करने के लिए वह सम्भवत: इस बार लोगों को ख़ुश करने वाला बजट पेश करे। पत्रिका के आने के समय बजट आपके सामने होगा। इसी बजट को लेकर प्रस्तुत है मंजू मिश्रा का पूर्वानुमान :-

वित्त वर्ष 2022-23 के लिए केंद्र सरकार 1 फरवरी को संसद में पेश आम बजट से लोगों को अनेक उम्मीदें हैं। उनके अनुसार यह बजट आमजन के लिए राहत भरा हो सकता है; क्योंकि केंद्र सरकार अब देश के आम लोगों की नाराज़गी को समझ चुकी है और उसे कुछ राहत देने की कोशिश करेगी। कोरोना महामारी की तीसरी लहर में पेश होने वाले इस बजट से लोगों को भी उम्मीदें हैं और वे चाहते हैं कि स्वास्थ्य, शिक्षा व रोज़गार पर सरकार विशेष ध्यान दे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण यह चौथा बजट को पेश करेंगी। वित्तीय मामलों के जानकार उम्मीद कर रहे हैं कि यह बजट माँग और रोज़गार को बढ़ावा देने वाला तो होगा ही, कोरोना महामारी के दौर में स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने वाला भी होना चाहिए। स्वास्थ्य स्थितियाँ ख़राब होने से लोगों के ख़र्चों में बढ़ोतरी होने के चलते आकस्मिक फंड बनाने की ज़रूरत महसूस की जा रही है और सरकार से उम्मीद है कि वह स्वास्थ्य बजट में यह प्रावधान भी करेगी। बीते वित्त वर्ष में जहाँ नौकरीपेशा लोगों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है, वहीं उनकी आमदनी भी घटी है, जबकि बहुतों की नौकरी भी चली गयी है। ऐसे में रोज़गार की बढ़ती अनिश्चितता को ख़त्म करते हुए सरकार रोज़गार के संसाधनों को फिर से सुचारू करने का कोई रास्ता निकालेगी, ऐसी उम्मीद इस आम बजट में आम लोग कर रहे हैं। इसके अलावा लोगों के साथ-साथ व्यापारी वर्ग अनाप-शनाप बढ़े कर (टैक्स) से राहत भी चाहते हैं, जो कि पिछले सात साल में बेतरतीब तरीक़े से बढ़ा है। शिक्षा को लेकर पूरे देश में एक चिन्ता की लहर दौड़ गयी है और लोग केंद्र सरकार से बच्चों के भविष्य को लेकर सवाल कर रहे हैं। इसके अलावा इस बजट में सरकार एमएसएमई, ऊर्जा, आधारभूत ढाँचे और तकनीक पर ध्यान दे सकती है। लेकिन अभी यह कोई नहीं कह सकता कि केंद्र सरकार में वित्त मंत्री अपने बजट पिटारे में से कितनी राहत देंगी और कितनी आफ़त? फिर भी कोरोना महामारी की मौज़ूदा परिस्थितियों में आम लोगों, व्यापारियों और निवेशकों की अगले वित्त वर्ष 2022-23 के बजट से बड़ी उम्मीदें हैं।

स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर उम्मीदें

आम बजट से पहले एसोचैम ने एक सर्वे किया, जिसमें हिस्सा लेने वाले 47 फ़ीसदी लोगों ने माना कि 2022-23 के बजट में स्वास्थ्य सरकार की प्राथमिकता में रहेगा। वहीं हमने जब लोगों से बात की तो अधिकतर लोगों ने सरकार के पिछले स्वास्थ्य बजट पर असन्तुष्टि और नाराज़गी भी जतायी है। उनका कहना है कि सरकार ने लोगों को कहीं का नहीं छोड़ा है। एक तरफ़ महामारी की मार पर पड़ रही है, तो दूसरी तरफ़ वे हर तरह से बर्बाद हो रहे हैं और सरकार को चुनाव जीतने के अलावा कोई दूसरी चिन्ता नहीं है।

दिल्ली स्थित द्वारिका में एक निजी अस्पताल में सेवाएँ देने वाले डॉ. मनीष कुमार कहते हैं कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएँ उतनी अच्छी नहीं हैं, जितनी कि होनी चाहिए। सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है, ताकि देश में बीमारियों से लाखों असमय मौतों से लोगों की रक्षा की जा सके। डॉ. मनीष कुमार कहते हैं कि कोरोना महामारी में जिस तरह सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था की पोल खुलकर सामने आयी है, उससे सरकार को सीख लेने के साथ-साथ स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की ज़रूरत है।

बता दें कि वित्त वर्ष 2021-22 में स्वास्थ्य और ख़ुशहाली में 2,23,846 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। इसमें कोरोना टीकों के लिए 35,000 करोड़ रुपये भी शामिल थे। कोरोना अब भी चरम पर है और इसके लिए स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की दरकार है। इसके अवाला इस बजट में प्रधानमंत्री आत्‍मनिर्भर स्‍वस्‍थ भारत योजना के लिए छ: वर्ष में 64,180 करोड़ रुपये ख़र्च करने का भी प्रावधान रखा गया था। पिछले बजट में कुछ ऐसी स्वास्थ्य योजनाएँ भी आम बजट में शामिल थीं, जो अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। मसलन, 17,788 ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों और 11,024 शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का निर्माण करना। चार वायरोलॉजी के लिए चार क्षेत्रीय राष्ट्रीय संस्थानों का  निर्माण। 15 स्वास्थ्य आपात ऑपरेशन केंद्रों और दो मोबाइल अस्‍पतालों का निर्माण। सभी ज़िलों में एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं और 11 राज्‍यों में 33,82 ब्लॉक सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों का निर्माण। 602 ज़िलों और 12 केंद्रीय संस्थानों में क्रिटिकल केयर अस्पताल ब्लॉक स्थापना। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र की पाँच क्षेत्रीय शाखाओं और 20 महानगर स्वास्थ्य निगरानी इकाइयों को मज़बूत करना। 17 नयी सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों को चालू करना। 33 मौज़ूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों को मज़बूत करना। इसमें से कितना काम हुआ है, इसका अभी तक कोई रिपोर्टकार्ड सरकार ने पेश नहीं किया है। देखना यह है कि केंद्र सरकार इस बार स्वास्थ्य बजट कितना लाती है?

कर में राहत की चाह

पिछले पाँच साल से लगातार बढ़ रहे कर (टैक्स) में क्या सरकार कोई छूट देगी? यह सवाल आज हर व्यापारी और आम आदमी का है। क्योंकि पिछले दो साल से कोरोना वायरस के फैलने के बावजूद कर में बढ़ोतरी ने व्यापार की कमर तोड़ी है, जिसके चलते व्यापारी सरकार से लगातार कर कम करने की माँग कर रहे हैं। इसी 1 जनवरी से केंद्र सरकार ने कुछ चीज़ें पर नया टैक्स लगाया था, जबकि कुछ पर बढ़ाया था। व्यापारियों की माँग पर कुछ चीज़ें पर कर नहीं बढ़ाया गया। अब यह माना जा रहा है कि सरकार अनुच्छेद-80(सी) के तहत निवेश पर कर छूट का दायरा बढ़ा सकती है, जिससे न सिर्फ़ आम निवेशकों को लाभ होगा, बल्कि घरेलू निवेश का लक्ष्य हासिल करने में भी मदद मिलेगी। नितिन कामथ ने कहा है कि सरकार को बजट में सिक्योरिटी ट्रांजेक्‍शन टैक्स (एसटीटी) को घटाना चाहिए। लेन-देन (ट्रांजैक्शन) की ऊँची लागत से ट्रेडर्स को भारी नुक़सान हो रहा है।

बता दें कि जीएसटी लागू करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एक देश एक कर से व्यापारियों और लोगों को राहत मिलेगी। लेकिन सच्चाई यह है कि जबसे जीएसटी लागू हुई है, तबसे व्यापारियों की भी आफ़त बढ़ी है और आम आदमी की भी। इसलिए इस बार व्यापारी और आम लोग चाहते हैं कि सरकार कर कम करे।

क्या शिक्षा बजट बढ़ेगा?

कोरोना महामारी के चलते पिछले दो साल से ठप पड़ी शिक्षा व्यवस्था को फिर से सुचारू करने की सरकार से लोग उम्मीद कर रहे हैं। सरकार भी इस बात को जानती है, इसलिए इस बार शिक्षा क्षेत्र में कुछ अच्छा होने की उम्मीद कर सकते हैं। शिक्षाविदों की माँग है कि शिक्षा बजट जीडीपी का कम-से-कम छ: फ़ीसदी होना चाहिए। इसके अलावा सरकार को स्कूल-कॉलेज खोलने और ऑनलाइन शिक्षा की समुचित व्यवस्था भी करनी चाहिए। इसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी और अफोर्डेबल पाँच फ़ीसदी डिवाइसेस उपलब्‍ध कराना सरकार का दायित्व है। लेकिन सवाल यह भी है कि इस केंद्र सरकार ने पाठ्य सामग्री को भी कर के दायरे में ला दिया है, साथ ही बजट में भी कटौती की है। तो क्या इस बार सरकार शिक्षा बजट को दुरुस्त करेगी? लोगों का कहना है कि शिक्षा क्षेत्र का चौपट होना देश और मौज़ूदा पीढ़ी दोनों के लिए बहुत घातक है और सरकार इस ओर से बिल्कुल निश्चिंत होकर आँखें मूंदे बैठी है।

बेरोज़गारी हो कम

पिछले कुछ वर्षों से देश में रोज़गार का संकट गहराया है और पिछलो दो साल में सबसे ज़्यादा नौकरियाँ लोगों ने गँवायी हैं। सरकार हर चुनाव में युवाओं को रोज़गार देने का वादा करती है, मगर दे नहीं पाती। मौज़ूदा केंद्र सरकार की छवि इस मामले में काफ़ी ख़राब है। यह बात सरकार को भी पता है कि रोज़गार की स्थिति ख़राब होने से देश का युवा वर्ग उससे बेहद नाराज़ है। ऐसे में हो सकता है कि इस आम बजट में सरकार कुछ ऐसा करे, जिससे युवाओं का रूख़ उसके प्रति कुछ नरम हो। उम्मीद है कि इस आम बजट में वित्त मंत्री रोज़गार पैदा करने पर विशेष ध्यान देंगी। हालाँकि रोज़गार सृजन पर सरकार के अपने दावे हैं। लेकिन उनमें कितनी सच्चाई है? यह बात बढ़ती बेरोज़गारी से जगज़ाहिर होती है। आँकड़े बताते हैं कि जनवरी, 2020 में देश में बेरोज़गारी दर 7.2 फ़ीसदी थी, जो मार्च 2020 में 23.5 फ़ीसदी और अप्रैल 2020 में 22 फ़ीसदी हो गयी थी। हालाँकि बाद में इसे कुछ कम दिखाया गया। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि रोज़गार लगातार कम हुए हैं, जिससे एक बड़ी तादाद में लोग बेरोज़गार हैं। अब कोरोना की तीसरी लहर अपने चरम पर है और दिसंबर, 2021 में देश में बेरोज़गारी दर फिर पिछले चार महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुँच गयी है। इसलिए सरकार के पास 2022-23 के आम बजट में उद्योगों और रोज़गार को बचाने की कोशिश करनी चाहिए, जिसका वादा प्रधानमंत्री बहुत पहले ही कर चुके हैं।

कृषि क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत

कृषि क्षेत्र में सुधार की हमारे देश में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। किसान आन्दोलन के बीच सरकार ने कृषि क़ानूनों को लेकर कई बार कहा था कि ये किसानों के जीवन स्तर और कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए हैं। लेकिन बाद में सरकार ने माफ़ी भी माँगी। प्रधानमंत्री किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का वादा कर चुके हैं। साल 2022 भी शुरू हो गया; लेकिन न तो कृषि क्षेत्र में सुधार की कोई उम्मीद दिख रही है और न ही किसानों की आय दोगुनी होने के आसार नज़र आ रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस आम बजट में वह कृषि क्षेत्र के बजट को बढ़ाकर कुछ ऐसे मूलभूत सुधार करे, जिससे कृषि और किसानों की दशा में ज़मीनी स्तर पर सुधार हो। क्योंकि हमारे कृषि प्रधान देश में कृषि पर ही ज़्यादातर क्षेत्र निर्भर हैं।

बता दें कि वित्त वर्ष 2021-22 में सरकार ने अनुमानित 148.30 हज़ार करोड़ रुपये के कृषि बजट का प्रावधान रखा था, जो कि देश की कुल आबादी में कृषि क्षेत्र पर 70 फ़ीसदी निर्भरता के हिसाब से बहुत कम रहा। सरकार को इसे बढ़ाकर कम-से-कम तीन गुना करना चाहिए। इस बार सरकार से किसान भी बुरी तरह नाराज़ हैं। ऐसे में हो सकता है कि सरकार किसानों को ख़ुश करने के लिए कृषि बजट में भी बढ़ोतरी करे।

वृद्धावस्था पेंशन का बजट भी बढ़े

सन् 2021 में देश में वृद्ध लोगों की संख्या लगभग 1.31 करोड़ थी। माना जा रहा है कि कोरोना-काल में युवा मृत्युदर में बढ़ोतरी होने से वृद्ध लोगों की संख्या बढ़ रही है, जो साल 2041 तक 2.39 करोड़ तक हो जाएगी। इसके अलावा आने वाले समय में सेवानिवृत्ति पेंशन लेने वालों की संख्या भी आने वाले समय में धीरे-धीरे बढ़ेगी। ऐसे में सरकार को वृद्धावस्था पेंशन के बजट को बढ़ाना चाहिए। साथ ही निराश्रित वृद्धों के लिए भी बजट बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके अलावा मौज़ूदा दौर में बढ़ती महँगाई के हिसाब से भी वृद्धावस्था पेंशन में बढ़ोतरी होनी चाहिए।

बात दूसरे क्षेत्रों की

एक अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान जीडीपी के नौ फ़ीसदी रहने की उम्मीद है। यह भी अनुमान जताया जा रहा है कि अगर जीडीपी इस स्तर पर भी रही, तो अगले नौ साल में रोज़गार दर में आठ फ़ीसदी की वृद्धि हो सकेगी। ऐसे में सरकार को जीडीपी की वृद्धि दर को ऊँचा करने की ज़रूरत है, जिसके लिए उद्योगों, कम्पनियों और छोटे व्यापार के साथ-साथ कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। यदि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2022-23 के बजट में विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग), अचल सम्पत्ति (रियल एस्टेट), कृषि, खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग), फुटकर (रिटेल) और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर ख़ास ध्यान देती हैं, तो उम्मीद है कि साल 2030 तक भारतीय जीडीपी में चार लाख करोड़ डॉलर की बढ़ोतरी हो जाएगी।

पिछले कुछ साल से इन सभी क्षेत्रों में मंदी छायी है, जिससे देश को एक बड़ा नुक़सान लगातार उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा महँगाई, ग़रीबी और भुखमरी से भी निपटने की ज़रूरत है, जिसके लिए कर में राहत देना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही रेलवे और दूसरे सरकारी क्षेत्रों को मज़बूत करने की ज़रूरत है, जिससे उन्हें निजी हाथों में देने से बचा जा सके। अन्यथा हालात सँभालना मुश्किल होगा और आने वाले समय में लोगों की परेशानियाँ बढ़ेंगी।