इसरो का ईओएस-3 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट कक्ष में स्थापित होने से चूका

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) को ईओएस-3 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को कक्ष में स्थापित करने में चूक गया। तकनीकी खामी के चलते भारत का तीसरा प्रयास नाकाम रहा। इससे निगरानी में मदद मिलने वाली थी।

आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी ने उड़ान भरी। उड़ान भरने के शुरुआती चरणों में, जिसमें चार स्ट्रैप – ऑन बूस्टर और पहला व दूसरा चरण शामिल था, सब कुछ योजना के मुताबिक ही हुआ। उड़ान भरने के 4 मिनट 55 सेकंड बाद, दूसरा चरण अलग हो गया और एक सेकंड के बाद, ऊपरी स्टेज का क्रायोजेनिक इंजन भी चालू हो गया। यानी जैसा प्लानिंग थी, वैसा ही चल रहा था।

इसरो के वेबकास्ट पर लॉन्च व्हीकल टेलीमेट्री के एनिमेशन के आधार पर ये बात सामने आई कि चरण की शुरुआत तो हुई लेकिन कुछ ही पलों में नियंत्रण खो दिया। एक बिंदु पर टेलीमेट्री स्क्रीन में दिखा कि स्टेज ने अपना एल्टिट्यूड और वेलोसिटी खो दी है, वहीं एनिमेशन में साफ तौर पर दिखा कि एटिट्यूड नियंत्रण खो दिया। इसके बाद कुछ पल के लिए खामोशी छा गई और बाद में इसरो ने स्पष्ट किया यह लॉन्च नाकामयाब रहा। कुल मिलाकर क्रायोजेनिक चरण चालू नहीं हो सका जिस वजह से मिशन असफल हो गया।

इसरो के अध्यक्ष के सिवन ने कहा कि क्रायोजेनिक चरण में कुछ तकनीकी खामी आ गई थी जिससे मिशन सफल नहीं हो सका। दरअसल, क्रायोजेनिक चरण स्पेस लॉन्च व्हीकल का आखिरी चरण होता है, जिसमें भारी सामग्री को उठाकर स्पेस में ले जाने के लिए सामग्री को बहुत कम तापमान पर इस्तेमाल किया जाता है। क्रायोजेनिक इंजन प्रोपेलेंट्स के तौर पर लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल करता है। दोनों अपने-अपने टैंक में मौजूद होते हैं। यहां से उसे अलग अलग बूस्टर पंप के जरिए टर्बो पंप में पंप किया जाता है, जिससे प्रोपेलेंट्स का तेज प्रवाह दहन कक्ष में पहुंचना सुनिश्चित हो सके।