इलाज के नाम पर मरीजों के साथ खिलवाड़

केन्द्र और राज्य सरकारें तमाम दावे करती हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं से खिलवाड़ नहीं किया जायेगा। इसके लिये सरकार ने आयुष्मान और बीमा योजना भी लागू की है, पर स्वास्थ्य मंत्रालय की लापरवाही के कारण सरकारी अस्पताल और कई निजी अस्पताल वाले अपने लालच के कारण कई छोटे- छोटे डिस्पोस्जल समानों को बार-बार प्रयोग मे ला रहे है जिसके कारण मरीजों में संक्रमण का खतरा ही नहीं फैल रहा, बल्कि वे कई गंभीर बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस और एड्स की चपेट में आ रहे है। इस खेल में सरकार के आला अधिकारियों के साथ-साथ मेडिकल सुपरिडेंट भी शामिल है, जिसके कारण अस्पताल की नर्से और पेरामेडिकल स्टाफ भी संक्रमण जैसी बीमारी के शिकार हो रहे है।

इस समय दिल्ली के नामी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बेहाल प्रशासन की लापरवाही के कारण मरीजों के लिये काफी घातक साबित हो रहा है। स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी संस्था के सचिव सुनील शर्मा ने बताया कि सरकार को एक कमेटी को गठित कर अचानक निरीक्षण कर ऑपरेशन थिएटर की जांच करनी चाहिये जिससे पता चलेे कि कुछ डाक्टर अपने निजी स्वार्थों के चलते मरीजों में बड़ी आसानी से संक्रमण फैला रहे है। अब बात करते है कि कहां और किस अस्पताल में दोबारा सामान इस्तेमाल करने के मामले सामने आये हैं। ऑपरेशन थिएटर में मरीजों के परिजन के जाने पर रोक भी है और वे जानते भी नहीं है कि समान नया प्रयोग हो रहा है कि पहले वाला ही प्रयोग हो रहा है। मरीज अपने डाक्टर पर भरोसा कर इलाज करवाता है पर उसके साथ संक्रमण जैसी बीमारी बांट कर मरीजों के साथ धोखा होता है। केन्द्र सरकार लेडी हार्डिंग अस्पताल, सफदर जंग अस्पताल और दिल्ली सरकार के अस्पतालों लोकनायक अस्पताल , जीबी पंत अस्पताल , जीटीबी अस्पताल और दीनदयाल अस्पताल और दिल्ली नगर निगम के अस्पताल बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल और कस्तूरबा गांधी अस्पताल में ग्लब्स , ड्रिप और सिरेंजों के बार-बार इस्तेमाल के मामले सामने आये तो ऐसे मरीजों के विरोध करने पर इनका ज्यादा प्रयोग नहीं हो पाया। सरकार ने भी इस मामले में कड़ी कार्रवाई की है पर मामले फिर भी दबते रहे है ।

सबसे गंभीर बात ये है कि केन्द्र और दिल्ली सरकार के अस्पताल में वैलून वायर और कैथेटर वायर के दोबारा प्रयोग होने के मामले सामने आ रहे है। जिससे मरीजों में संक्रमण बड़ी आसानी से फैल रहा है। बताया जाता है कि कई बार ऑपरेशन थिएटर में सामान नहीं होता है इसके कारण रिस्टलाईज किया हुआ सामान प्रयोग किया जा रहा है। पर ये पूरी तरह से गलत है। आमतौर पर सीजीएचएस के कर्मचारी जब प्राईवेट अस्पतालों में अपने पैनल वाले अस्पतालों में जाते है तो वहां पर ऑपरेशन थिएटर में पैकेज का वाला महंगा सामान मंहगा होने के बावजूद रिस्टलाइज सामान का प्रयोग करते हैं।

ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 नियम 65, 17 का उल्लघंन है अगर इस मामले में शिकायत संबंधित विभाग में की जाती है और डाक्टर दोषी पाया जाता है तो डाक्टर के खिलाफ अपराधिक मामला दर्ज होगा और डाक्टर की डिग्री भी जब्त की जा सकती है। फिर भी डाक्टर निर्भीकता के साथ अपनी मनमानी करने पर तुले है।

दिल्ली मडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ अनिल बंसल ने बताया कि अगर ऑपरेशन में कोई दोबारा डिस्पोजल सामान का प्रयोग करता है तो यह पूरी तरह से अपराध है इस मामले अस्पताल के एम एस को कार्रवाई करनी चाहिये । जिससे मरीजों में संक्रमण न फैल पाये। उन्होंने बताया कि सरकार अस्पतालों में अक्सर सयामानों का टोटा रहता पर डाक्टरों को ये अधिकार नहीें है कि वे संक्रमित सामान का प्रयोग कर मरीजों की जान से खेले। रहा सवाल बजट का तो अस्पताल एमएस सरकार के समक्ष बजट की बात रखे और मरीजो के इलाज के दौरान जो भी सामान उपकरण और डिस्पोजल प्रयोग करें तो वो पूरी तरह संक्रमण से फ्री हो अन्यथा इलााज का कोई फायदा नहीं है।