आश्रय स्थलों में मंडराते गिद्धों की नाज़ुक बच्चों पर नज़र

जब लखनऊ से मेरे सहयोगी मुदित माथुर ने फोन पर यह जानकारी दी कि मुजफ्फरपुर (बिहार) जैसी ही घटना उत्तरप्रदेश के देवरिया में भी हुई है तो मैं सन्न सा रह गया क्योंकि आज़ादी के 72वें वर्ष में भारत में ऐसा होना विचित्र है। दरअसल, मैं अभी हाल में टॉमस राइटर्स फाउंडेशन के सर्वे को देख रहा था जिसमें महिलाओं के लिहाज से खतरनाक देशों में भारत को अफगानिस्तान, सीरिया और सऊदी अरब से भी आगे का स्थान दिया गया था।

बिहार और देवरिया के आश्रय स्थलों (बालिका गृह) से बच्चियों के यौन शोषण के जो ब्यौरे अब तक मिले हैं उन्हेें पढ़ सुन कर पूरे शरीर में ठंडी सिहरन सी होती है। दोनों ही घटनाओं में यौन शोषण के भयावह रूप दिखते हैं। दोनों ही मामलों में यह साफ है कि बेसहारा लड़कियों के यौन शोषण का सिलसिला गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के संचालकों और रसूख वाले राजनीतिक लोगों के आपसी तालमेल से चल रहा था। बतौर उदाहरण: एक व्यक्ति जो एक स्थानीय अखबार का मालिक था, वह मुजफ्फरपुर का बाल सुधार आश्रय स्थल (बालिका गृह) भी चला रहा था। जब ये खबरें सुर्खियां बन रही थीं तभी हरियाणा के अपना घर, आश्रय स्थल से भी यौन उत्पीड़त की खबरें उभरीं।

इस घटना के पहले उन्नीस साल की एक लड़की के साथ दुष्कर्म की खबर आई। यह लड़की दिमागी तौर पर अस्थिर थी। उसने चंडीगढ़ के आश्रय स्थल (बालिका गृह) में शरण ली जहां उसने एक बच्ची को जन्म दिया। बाद में पता चला कि उसके साथ गाडर््स और चौकीदारों ने भी दुष्कर्म किया था।

देश में जो आश्रय स्थल (बालिका गृह) हैं वहां से ऐसी घटनाओं की खबरें आ रही हैं। जबकि इन आश्रय-स्थलों (बालिका गृह) के निर्माण के पीछे इरादा था बेसहारा बच्चों और महिलाओं को आश्रय देना, उनकी देखभाल करना। लेकिन वहां महिलाओं से, बच्चियों से दुष्कर्म होते हैं!

मीडिया जब भी ऐसी घटनाओं को उभारता है तो समाज का दबाव पडऩा शुरू होता है। इसी के चलते बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजूृ वर्मा को अपना इस्तीफा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सौंपना ही पड़ा। उनके पति का भी नाम बच्चियों के यौनशोषण करने वालों में था।

बिहार के हाईकोर्ट की निगरानी में इस मामले की सीबीआई जांच चल रही है। जांच से संबंधित आदेश भी जारी हो चुके हैं। वहीं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के सभी आश्रय स्थलों (बालिका गृह) की जांच के आदेश जारी कर दिए हैं।

ऐसा ही मामला रोहतक के ‘अपना घर’ मामले में भी हुआ। आश्रय स्थल (बालिका गृह) की संचालक जसवंती देवी को गिरफ्तार किया गया। ऐसी घटनाओं के होते रहने से यह साफ जाहिर है कि दाल में काला ज़रूर है। इस बात की कतई इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए कि इन आश्रय स्थलों (बालिका गृह) मेें असहाय और अनाथ बेसहारा बच्चियों का शोषण हो। उनकी समुचित देखरेख हो। यह व्यवस्था होनी चाहिए कि समाज के लोग उन्हें सहज उपलब्ध वस्तु मान कर शारीरिक शोषण न करें।

अब तो केंद्र सरकार ने भी पूरे देश के सभी तरह के आश्रय स्थलों (बालिका गृह) की जांच-पड़ताल करने और रपट देने का आदेश जारी कर दिया है। यह रपट अक्तूबर तक देने के आदेश भी दिए गए हैं। यानी नौ हज़ार से भी ज्य़ादा आश्रय स्थलों (बालिका गृह) का सामाजिक ऑडिट अब अनिवार्य है। आज वक्त है कि हम सभी एकजुट होकर ऐसी घटनाओं का विरोध करें और अधिकारियों पर दबाव डालें जिससे ऐसी घटनाएं फिर न हों।