आर्थिक तंगी में पाकिस्तान

क्या भारत इसका फ़ायदा उठाकर पीओके और अन्य इलाक़ों को ले सकेगा वापस?

आज़ादी के शुरुआती वर्षों में भारत से बेहतर आर्थिक स्थिति वाले पाकिस्तान में आजकल हाहाकार मचा है। चीज़ें महँगी हो रही हैं और देश के श्रीलंका जैसी स्थिति में पहुँच जाने का अंदेशा जताया जा रहा है। इन हालात की सच्चाई पाकिस्तान के केंद्रीय योजना और विकास मंत्री एहसान इक़बाल के एक बयान से ज़ाहिर हो जाती है, जिन्होंने देश की अपील की कि वह चाय की एक-एक प्याली, दो-दो प्यालियाँ कम कर दें; क्योंकि देश में चाय आयात करके और वह भी उधार आती है।

इक़बाल के बयान पर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पूर्व पत्नी रेहम ख़ान ने तंज़ कसते हुए ट्वीट में लिखा कि ‘पहले रोटी आधी, अब चाय भी कम कर दें?’ आर्थिक तंगी के इस दौर के बीच पाकिस्तान के नये सेना प्रमुख आसिम मुनीर अहमद जहाँ भारत के ख़िलाफ़ जम्मू-कश्मीर को लेकर ख़ुद और सत्तारूढ़ नेताओं की तरफ़ से ज़हर उगलवा रहे हैं, वहीं अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर मुक्तदर ख़ान का कहना है कि पाकिस्तान के इस बुरे दौर का फ़ायदा उठाकर भारत चाहे तो जंग करके पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) और अन्य इलाक़ों को भारत में मिला सकता है।

पाकिस्तान की यह बुरी हालत राजनीतिक अस्थिरता और बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण हुई है। महँगाई का आलम यह है कि कुछ जगह खाने की चीज़ों को लेकर छीनाझपटी और चोरी हो रही है। पाकिस्तान से आने वाले सोशल मीडिया के संदेशों और वीडियो से भी साफ़ हो जाता है कि वहाँ आर्थिक स्थिति से बदहाली हो रही है।

लोग रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए मशक्त करते दिखते हैं। खाद्य वस्तुओं की कमी से उनकी क़ीमतें भी आसमान छू चुकी हैं और लोग उन्हें हासिल करने के लिए लम्बी कतारों में खड़े होने को मजबूर हैं। पाकिस्तान में ख़राब आर्थिक हालत को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी शाहबाज़ शरीफ़ सरकार के ख़िलाफ़ काफ़ी आक्रामक रुख़ अपनाये हुए हैं। ख़ैर, वह तो विपक्ष के नेता हैं। ख़ुद प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ का बयान ज़ाहिर कर देता है कि पाकिस्तान की क्या हालत है? शरीफ़ का कहना है कि एक परमाणु ताक़त सम्पन्न देश के लिए यह काफ़ी शर्म की बात है कि उसे आर्थिक मदद के लिए भीख माँगनी पड़ रही है। शरीफ़ का यह भी कहना है कि आर्थिक संकट से जूझते देश के लिए क़र्ज़ कोई स्थायी समाधान नहीं है। इमरान ख़ान की पार्टी के लोग सोशल मीडिया पर पाक प्रधानमंत्री के इस बयान को ख़ूब शेयर कर रहे हैं। यह अलग बात है कि ख़ुद इमरान ख़ान के समय में पाकिस्तान कोई सोने की चिडिय़ा नहीं था।

ख़राब आर्थिक स्थिति से बाहर आने के लिए पाकिस्तान इस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मदद का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है। ख़ुद प्रधानमंत्री शरीफ़ की ही बात मानें, तो पाकिस्तान इस समय सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुज़र रहा है। महँगाई 25 फ़ीसदी के आसपास है, तो राजकोषीय घाटा 115 फ़ीसदी से ज़्यादा हो गया है। देश को इस समय सऊदी अरब और यूएई से ही 350 अरब रुपये की मदद मिल रही है।

माली हालत ख़राब होने की बात स्वीकारते हुए शाहबाज़ शरीफ़ यह कहना भी नहीं भूले कि देश को तीन युद्धों से कुछ हासिल नहीं हुआ सिर्फ़ बर्बादी ही हाथ लगी। उनका यह बयान इस लिहाज़ से काफ़ी महत्त्वपूर्ण है कि पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष आसिफ़ मुनीर जम्मू-कश्मीर को लेकर तनाव बनाये रखना चाहते हैं, साथ ही वहाँ आतंकवाद को भी तेज़ करना चाहते हैं; जबकि शाहबाज़ कह रहे हैं कि भारतीय नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करता हूँ कि हमें बातचीत की मेज पर बैठकर हर मुद्दे को हल करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन ग़रीबी और उधार की बात करते हुए अपने देश के नाम के साथ परमाणु सम्पन्न देश भी कहना नहीं भूलते।

पाकिस्तानी के अधिकतर अर्थशास्त्री मानते हैं कि पाकिस्तान के वर्तमान हालात ये हैं कि उसे क़र्ज़ के लिए आईएमएफ की हर बात माननी पड़ेगी। और कोई चारा नहीं है। पाकिस्तान पर दुनिया का 16-17 अरब डॉलर का क़र्ज़ है। पाकिस्तान के आर्थिक जानकार इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि देश की प्राथमिकता अपने आयात के 70 अरब डॉलर के ख़र्च को 65 अरब डॉलर तक नीचे लाने की होनी चाहिए, क्योंकि देश 70 अरब डॉलर का आयात ख़र्च बर्दाश्त नहीं कर सकता। हालाँकि कुछ विशेषज्ञ इससे उलट राय रखते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान में मिडिल क्लास बहुत कंफर्टेबल है। उनके मुताबिक, भले पाकिस्तान की कमायी का 80 फ़ीसदी पैसा क़र्ज़ चुकाने में खप जाता है, बावजूद इसके पाकिस्तान डिफॉल्ट नहीं करेगा।

क्या भारत युद्ध करेगा?

सेना के एक बड़े अधिकारी ने हाल में पीओके को लेकर कहा था कि सेना आतंकवाद को कुचलने के लिए सीमा पार कोई भी कार्रवाई करने को तैयार है। भले उन्होंने आतंकवाद के बहाने यह बात कही थी; लेकिन मक़सद सत्तारूढ़ राजनीतिक हलक़ों की इस चर्चा को हवा देना ही था कि पीओके को वापस लिया जाएगा। तत्काल ऐसा होगा, इसकी अभी सम्भावना नहीं दिख रही। कारण चीन भी है। विशेषज्ञ यह मानते हैं कि चीन भारत के पाकिस्तान पर हमला करने की सूरत में ख़ुद भी मैदान में कूद सकता है। कारण ख़ुद उसकी नज़र पीओके सहित पाकिस्तान के इन इलाक़ों पर होना है।

पाकिस्तान को पहले ही चीन आर्थिक दबाव में ला चुका संसाधनों का मनमर्ज़ी से लिहाज़ा युद्ध की स्थिति में वह पाकिस्तान की मदद करेगा। भारत के साथ सीमा पर चीन पहले ही उकसावे वाली कार्रवाइयाँ कर रहा है। लिहाज़ा भारत बहुत सोच-समझकर ही पीओके को लेकर कोई क़दम उठाएगा। यह सही है कि पाकिस्तान की बेहद कमज़ोर हालत उसे युद्ध की स्थिति में एक कमज़ोर स्थिति में खड़ा करती है; लेकिन उसके एक परमाणु सम्पन्न देश होने के कारण भारत मिनिमम रिस्क फैक्टर के आधार पर ही कोई क़दम उठाएगा, क्योंकि भारत भी आर्थिक मोर्चे पर फ़िलहाल कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है।

अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर मुक्तदर ख़ान तो पाकिस्तान के विभाजन और भारत के लिए आक्रमण का सबसे सही समय की बात कह ही रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद तत्काल लगता नहीं कि भारत कोई बड़ा क़दम उठा सकता है। हाँ, चूँकि पीओके को भारत में वापस मिलाने की बात गृह मंत्री अमित शाह संसद में कह चुके हैं कि यह कोरी भभकी नहीं हो सकती। इसका मतलब यह है कि एक तरह से भाजपा इसे भी अपना राजनीतिक एजेंडा बना चुकी है।

पाक स्कॉलर का दावा

पाकिस्तान वर्तमान में बेहद बुरे दौर से गुज़र रहा है। वह वास्तव में छ: तरह के संकट से रू-ब-रू है और ऐसी स्थिति में देश विभाजित हो सकता है। यह कहना है अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर मुक्तदर ख़ान का। उनके बयान में चौंकाने वाली जो बात है, वह यह है कि पाकिस्तान की इस ख़राब स्थिति में भारत चाहे, तो युद्ध कर पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) और अन्य इलाक़ों को अपने में मिला सकता है। ख़ान का दावा है कि फ़िलहाल पाकिस्तान बेहद ख़राब दौर से दो-चार है और वह जिन संकटों का सामना कर रहा है, वह देश के टुकड़े भी कर सकते हैं। मुक्तदर इस यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज प्रोग्राम के संस्थापक निदेशक हैं।

पाकिस्तान के सामने खड़े जिन संकटों की बात वह कर रहे हैं उनमें आर्थिक और राजनीतिक के अलावा सुरक्षा संकट भी शामिल है। उनके मुताबिक, पाकिस्तान इनके अलावा व्यवस्था, पहचान और पर्यावरण का भी गम्भीर संकट झेल रहा है। बतौर मुक्तदर, इन संकटों से पाकिस्तान के विभाजन का ख़तरा भी पैदा हो सकता है। उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान को तो भारत का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने पड़ोसी देश के इतने गम्भीर हालत का कोई फ़ायदा नहीं उठाया है। उन्होंने यह बात सम्भवत: पाकिस्तान के एक मंत्री के भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान के जवाब में ‘जैसे को तैसा’ वाले बयान के सन्दर्भ में कही।

शहबाज़ शरीफ, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री

“यह बड़े अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के 75 साल में कई सरकारें आयीं; लेकिन देश की स्थिति नहीं बदली। राजनीति नेतृत्व या सैन्य तानाशाही आर्थिक चुनौतियों से पार नहीं पा सकी। विदेशी क़र्ज़ कोई स्थिर समाधान नहीं है, क्योंकि इसे वापस भी करना पड़ता है।’’