आज भी बरकरार है चिंटू की चमक

पारंपरिक रूप से हिंदी फिल्म उद्योग में प्रमुख भूमिका के लिए वरिष्ठ कलाकारों का स्वागत नहीं किया जाता। हालांकि फिल्मों के मौजूदा परिदृश्य में वरिष्ठ कलाकार एक बार फिर प्रासंगिक हो गए हैं। अर्चिता कश्यप

इस बदलाव का संचालन करते हैं अमिताभ के साथ ऋषि कपूर जो अपने करियर के सबसे दिलचस्प और आकर्षक मोड़ का भरपूर आनंद ले रहे हैं। लेकिन यह ऋषि कपूर का वर्तमान करियर है जो हिंदी सिनेमा में बदलाव की सबसे प्रगतिशील कहानी बताता है।

‘मुल्क’ फिल्म में ऋषि कपूर ने एक मुस्लिम पिता का किरदार निभाया है जिसके बेटे के इस्लामी आतंकवादियों के साथ संबंध हैं। जब उसके बेटे के बारे में छानबीन होती है, तो उसका पिता जो कानून का पालन करने वाला इंसान हैं उसे और उसके परिवार को सामाजिक विमुखता और अपमान का सामना करना पड़ता है। यह साबित करने के लिए कि वे लोग सामूहिक रूप से आतंक के कार्यों में शामिल नहीं हैं वह लंबी अदालती लड़ाई लड़ता है। फिल्म में ऋषि कपूर के साथ तापसी पन्नूू और प्रतीक बब्बर हैं। फिल्म की मुख्य भूमिका बीते दिनों के 60 वर्ष से ऊपर के सितारे से जुडी है। वर्षीय सितारे से संबंधित है। अनुभव सिन्हा की यह फिल्म पूरी तरह से उसके अभिनय की ताकत पर निर्भर है जो सामजिक पक्षपात के विवादास्पद और कठिन पक्ष को दिखता है।

कपूर उस समय में उभरते प्रतीत होते हैं जब अधिकांश कलाकार अभिनय से छुट्टी कर लेते हैं। पिछले कुछ दशकों में उनके समय और किरदारों से संबंधित भूमिकाएं आ रही हैं जो उन्हें कलाकार के रूप में चुनौती देती हैं। जिसने उन्हें फिल्मों की वर्तमान पीढ़ी के लिए दृश्यमान बना दिया है। इस साल की शुरूआत में अमिताभ और ऋषि ‘102 नॉट आऊट’ सुपर हिट फिल्म में साथ आए जो बुजुर्ग माता-पिता के साथ हो रहे खराब व्यवहार जैसे सामाजिक मुद्दे को दिखाती है। दोनों सितारों के अभिनय पर पूर्णतया आधारित इस फिल्म ने दर्शकों के दिल के तारों को छू लिया और इसने ढेर सी कमाई की और सिनेमाघरों में टिकी रही। 11 करोड़ से कम बजट की इस फिल्म ने 75 करोड़ रुपए कमाए। कपूर और बच्चन ने भावनाओं और अनुभवों को जीवित किया जिनकी युवा सितारे केवल कल्पना ही कर सकते हैं। यही उनका स्तर और प्रतिभा है।

मीडिया से बातचीत करते हुए कपूर ने याद किया कि हर बार जब वह अमिताभ के साथ काम करते हैं तो कुछ नया सीखते हैं। ‘अतीत में हमने कई सफल फिल्मों में भाई, दोस्त की भूमिका निभाई है। इस बार वह मेरे पिता की भूमिका में हैं’। हम दोनों अनुशासित पेशेवर हैं, और मैं हर समय, हर बार खुद को सिनेमा का छात्र मानता हूं, मैं बच्चन से कुछ नया सीखता हूं। इस बार मैंने सीखा कि कितनी आसानी से वह एक पात्र में समा जाते हैं।

कपूर की यह टिप्पणी सुखद आश्चर्य है इसके अदंरूनी जानकारों और अनुभवी पत्रकारों के लिए जो यह जानते है कि ये दोनों फिल्मी सितारे कभी साथ मिलकर नहीं रहे। 70 के दशक में अमिताभ का ‘एंग्री यंगमैन’ का व्यक्तित्व इतना भारी था कि ऋषि कपूर हमेशा सहायक कलाकर की भूमिका में रह जाते थे। संवेदनाओं और भावनाओं को व्यक्त करने की पूरी प्रतिभा होने के बावजूद कपूर को हमेशा रोमांटिक नायक की भूमिका दी गई। बच्चन वह है जिसके लिए लेखकों ने भूमिकाएं लिखी कपूर सिर्फ कलाकारों के साथ जुडऩे आया था। यही कारण है कि अपनी जीवनी ‘खुल्लम-खुल्ला’ में कपूर ने उल्लेख किया है कि बच्चन ने अक्सर अपनी कामयाबी में लेखकों और निर्देशकों के योगदान को स्वीकार किया हैै। एक सुपर स्टार के तौर पर उन्होंने अपने सह कलाकारों के बारे में कभी बात नही की , जैसे कपूर जिसने स्वंय उनकी फिल्मों की सफलता में भूमिका निभाई है। इस कथन में कड़वाहट के स्वर को नजरअंदाज करना आसान नहीं है।

ऋषि कपूर महसूस करते हैं कि जब वे अपने करियर के शीर्ष पर थे तभी वे टॉप की दौड़ से बाहर हो गए थे। बॉबी में मुख्य भूमिका के रूप में अपनी शुरूआत करने के बावजूद (उन्होंने फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में सबसे पहले एक युवा लड़के की भूमिका निभाई थी) एक ऐसी प्रेम कहानी जिसने सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे और एक किवंदती बन गई थी। इन सबके बावजूद कपूर को शायद ही कभी रोमांटिक नायक की भूमिका से आगे जाने का मौका मिला। जैसा कि वह अक्सर अपने साक्षात्कारों में बताते हैं ऋषिकेश मुखर्जी, और शक्ति सांमत जैसे फिल्म निर्माताओं ने भी कभी उन्हें संजीदा पात्र के बारे में नहीं सोचा। इसके बजाए वह कश्मीर, ऊटी, स्विटजरलैंड की सुंदर वादियों में नायिकाओं के साथ रोमांटिक भूमिका में ही दिखे। जब भी उन्हें अपनी अभिनय शक्ति को प्रदर्शित करने का मौका मिला, तो उन्होंने उस भूमिका को बड़ी संजीदगी से निभाया। कजऱ्, एक चादर मैली सी, बारूद, दूसरा आदमी, प्रेम रोग और दामिनी में इन्होंने सशक्त भूमिका निभाई और अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन किया। दुर्भाग्य से इनमें से कई फिल्मों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।

यह फिल्म निर्माता ही हैं जिन्होंने 90वें के दशक में ऋषि कपूर की छिपी प्रतिभा को देखा और उसका उपयोग चरित्र भूमिकाओं के मूल्यांकन के लिए किया। वह अक्सर याद करते हैं जोया अख्तर ने ‘लक वाय चांस’ में रोमी रॉली की भूमिका लिखी।उसने अपने चरित्र को आप बना लिया। फिल्म फ्लाप हो गई लेकिन इस अनुभवी स्टार के लिए अवसर अचानक खुल गए। विभिन्न किरदारों की भूमिका निभाने की उनकी भूख ने भी कपूर को विभिन्न भूमिकाएं निभाने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने ‘कपूर एंड सन्स’ में 80 साल के बूढे की भूमिका निभाई जो अपने परिवार को जोडऩे की कोशिश करता है। ‘अग्निपथ’ में नैतिकता के मज़बूत कोड के साथ मानव तस्कर की भूमिका निभाई। ‘प्यार आज और कल’ और ‘शुद्ध देसी रोमांस’ में खोए प्रेमियों के लिए अनुभवी सलाहकार की भूमिका निभाई। इन सभी फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय से प्रामणिकता और विश्वसनीयता का स्पर्श लाया। उनके प्रदर्शन ने सीधे-सादे पात्रों को जीवित बना दिया जिसने इन फिल्मों को मज़बूत बना दिया। उनके पास भूलने योग्य भाग भी था, लेकिन वह जो पैसा आज कमा रहे हैं वह एक मज़बूत पे्ररणा साबित हुआ। जब उन्होंने ‘डी-डे’ और ‘औरगंजेब’ में नकारात्मक भूमिका निभाई तो उन्होंने उसे पूरी योग्यता से किया।

2002 में दिवालिया होने के बाद अमिताभ अपना घर बेचने के लिए मज़बूर हो गए थे इसके बाद अमिताभ एक प्रतिशोध के साथ काम करने के लिए लौट आए। सिनेमा में उनकी वापसी ने फिल्म निर्माताओं, लेखकों को उम्रदराज पात्रों की कल्पना, निर्माण करने की संभावना का दरवाजा खोला। जैसा कि ऋषि कपूर स्वीकार करते हैं कि उन्होंने हमेशा मार्ग का नेतृत्व किया है। कपूर अपनी विशिष्ट शैली के साथ इस क्रांति में गहराई ले आए। अब 61 वर्षीय अनिल कपूर ने ‘फन्ने खां’, ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ में अहम भूमिका निभाई है, जिसने सिनेमा के अनुभवी स्टार के लिए एक अलग जगह बनाई है। दर्शकों ने लगातार उनकी एक्शन भमिकाओं का आनंद लिया।

ऋषि कपूर एक ऐसे युग से संबंधित हैं जब एक विशेष लिपि और चरित्र भूमिकाएं न के बराबर थी। अब जब लेखकों ने एक संगठित दृष्टिकोण अपनाया है और दर्शकों को आकर्षित करने के लिए वास्तविकता से संबंधित फिल्में बनाने लगे हैं तो ऋषि कपूर और उनके समकालीन लोगों के सामने आने वाले समय में कुछ महान फिल्मों की संभावना है। जो उन्हें अधिक ताकत देगी।