आकाशवाणी पर संकट

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

आज के बहुत कम युवा ही रेडियो सुनते हैं। सुनते भी हैं, तो निजी रेडियो चैनल ज़्यादा सुनते हैं। अब आकाशवाणी नाम कम सुनने को मिलता है। दो दशक पहले तक रेडियो खोलते ही सुनाई देता था यह आकाशवाणी का दिल्ली केंद्र है। अब वह आवाज़ कहीं खो गयी है। 23 जुलाई, 1927 को स्थापित हुए भारतीय प्रसारण सेवा को सन् 1936 में ऑल इंडिया रेडियो नाम दिया गया। इसी साल मैसूर के विद्वान एम.वी. गोपालस्वामी ने आकाशवाणी कहा था। देश के स्वतंत्र होने के बाद सन् 1957 में इसे यही नाम दिया गया। महाभारत व पंचतंत्र की कथाओं में वर्णित आकाशवाणी शब्द का मतलब आकाश से आने वाली आवाज़ है।

भारत में रेडियो प्रसारण का पहला कार्यक्रम सन् 1923 में रेडियो क्लब ऑफ मुम्बई द्वारा किया गया था। इसके बाद सन् 1927 में प्रसारण सेवा का गठन हुआ। सन् 1936 में इसे ऑल इंडिया रेडियो का नाम दिया गया। आज इसके 200 से ज़्यादा केंद्र हैं। लेकिन कई देशी-विदेशी भाषाओं में विभिन्न सेवाएँ प्रसारित करने वाला इसी आकाशवाणी की कई यूनिट आज बन्द हो चुकी हैं और कई बन्द होने के कगार पर हैं। किसानों, मज़दूरों, विद्यार्थियों और वाहन चालकों को ध्यान में रखकर स्थापित किया गया रेडियो जब हर तरह की प्रसारण सेवाएँ देने लगा, तब सरकार इसे घाटे का सौदा बताकर बन्द कर करने का काम कर रही है, जबकि कई निजी रेडियो चैनल इन्हीं पिछले दो दशक में खुले हैं और अच्छी-ख़ासी कमायी कर रहे हैं। आकाशवाणी का संचालन करने वाला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ही आज इसकी यूनिटों को एक-एक करके बन्द करता जा रहा है।

सन् 2014 में केंद्रीय सत्ता में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार बनी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इसके बाद 3 अक्टूबर, 2014 से उन्होंने इसी आकाशवाणी के माध्यम से देशवासियों से मन की बात कहनी शुरू की। प्रधानमंत्री का मन की बात कार्यक्रम आज भी अनवरत चल रहा है। लेकिन मोदी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने आकाशवाणी पर आघात करना शुरू किया, जिसके बाद से आज तक एक-एक करके आकाशवाणी की कई यूनिट बन्द हो चुकी हैं और कई यूनिट पर बन्द होने का ख़तरा मँडरा रहा है।

सन् 1987 में शुरू हुए ऑल इंडिया रेडियो के राष्ट्रीय चैनल और पाँच शहरों में रीजनल ट्रेनिंग एकेडमी को तत्काल प्रभाव से बन्द करने के लिए 24 दिसंबर, 2018 को प्रसार भारती ने आज से ठीक चार वर्ष पहले इनके ख़र्चों में कटौती करनी शुरू कर दी। कहा यह गया कि फ़िज़ूलख़र्ची को कम किया जा रहा है, ताकि कार्यक्रमों को स्तरीय बनाया जा सके। इसके बाद सन् 2019 को इन्हें बन्द करने का निर्णय लिया गया। इन चैनलों पर शाम 6 से सुबह 6 बजे तक हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं में कई कार्यक्रम प्रसारित होते थे। इस कार्यक्रमों की पहुँच देश के 64 फ़ीसदी क्षेत्र की 76 फ़ीसदी आबादी तक थी। इस राष्ट्रीय चैनल को बन्द करने के अलावा अहमदाबाद, हैदराबाद, लखनऊ, शिलॉन्ग और तिरुवनंतपुरम स्थित रीजनल ट्रेनिंग एकेडमी (आरएबीएम) को भी बन्द कर दिया गया। दिल्ली के डोडापुर स्थित राष्ट्रीय चैनल को अचानक बन्द करने से कई अस्थायी (कैजुअल) कर्मचारी सडक़ पर आ गये।

32 साल तक चले इस राष्ट्रीय चैनल के पास राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समृद्ध ख़ज़ाना है। एक प्रतिष्ठित पत्रिका की रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 1988 में नागपुर में मीडियम वेव ट्रांसमीटर 10.74 करोड़ रुपये में लगा था। राष्ट्रीय चैनल के बन्द होने से यह मीडियम वेव ट्रांसमीटर किस काम का? इस चैनल के बन्द होने से स्थायी कर्मचारियों की तो नौकरी नहीं गयी, परन्तु अनुबंध पर नियुक्त कर्मचारी दर-ब-दर हो गये, जो पक्की नौकरी की आस में काम करते थे। सन् 2018 में नई दिल्ली स्थित आकाशवाणी के नेपाली समाचार एकांश में स्टाफ के नाम पर एक संविदा कर्मचारी और पाँच अस्थायी कर्मचारी ही थे। नेपाली भाषा के समाचार वाचक की कमी के चलते इस चैनल पर संस्कृत समाचार वाचक के नेपाली समाचार पढऩे की ख़बरें सामने आयीं।

आकाशवाणी के एक कर्मचारी ने चर्चा के दौरान बताया कि ईएसडी हिन्दी चैनल को बन्द कर दिया गया है। ज़्यादातर चैनलों पर कार्यक्रम कम दिये गये हैं। सभी चैनल्स का बजट कम कर दिया गया है। कर्मचारियों को निर्देश मिला हुआ है कि वे फ्रीलांसर्स से कार्यक्रम बहुत कम कराएँ, ख़ुद कार्यक्रम करें। कुछ एक फ्रीलांसर की शिकायतें भी सामने आयी हैं। इन शिकायतों में कार्यक्रम करने के बावजूद पैसा न मिलने और अगर मिल जाए, तो उसमें देरी होने जैसी शिकायतें शामिल हैं।

आकाशवाणी की तरह दूरदर्शन की भी हालत पहले जैसी नहीं रही। यहाँ कई यूनिट ऐसी हैं, जिनमें पहले से कम लोग काम करते हैं। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय अगर इसी तरह निर्णय लेता रहा, तो वह समय दूर नहीं, जब आकाशवाणी का नाम ही मिट जाएगा। इससे इस विभाग से मिलने वाला रोज़गार तो कम होगा ही, तमाम तरह के कलाकारों, पत्रकारों का प्रसारण माध्यम और पैसा कमाने का जरिया भी विलुप्त होगा।

 

आईसीयू में हरियाणा दूरदर्शन केंद्र कमलेश भारतीय

हरियाणा दूरदर्शन केंद्र को केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने 15 जनवरी को हिसार से चंडीगढ़ स्थानांतरित (शिफ्ट) करने के आदेश जारी कर दिये हैं। यानी इन दिनों हरियाणा दूरदर्शन केंद्र हिसार में एक प्रकार से आईसीयू में है।

20 साल पहले शुरू हुए इस दूरदर्शन केंद्र का उद्घाटन हरियाणा की बेटी और भाजपा की तत्कालीन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज इसका उद्घाटन करने आयी थीं। विडम्बना देखिए कि भाजपा के ही सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर इसे स्थानांतरित करने का फ़रमान सुना रहे हैं, जबकि एक माह पहले ही वह इस दूरदर्शन केंद्र का दौरा करने आये थे। उन्होंने इसे राहत देने के बजाय उलटा बन्द करने का हुक्म जारी कर दिया।

इतने पुराने दूरदर्शन केंद्र को अपग्रेड करने के लिए कोई राशि जारी न करके इसे बन्द करने के फ़ैसले सराहनीय नहीं कहा जा सकता। इस केंद्र की स्थापना हरियाणा के कृषि में योगदान को देखते की गयी थी। यहीं हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय भी है और इसके विशेषज्ञ किसान कार्यक्रम में प्रदेश के किसानों को मौसम के अनुरूप फ़सलों की आवश्यक जानकारी देते थे। इस केंद्र पर यह भी बताया जाता था कि पशुओं का कैसे पालन-पोषण करें। दुर्भाग्यवश इस किसान वाणी कार्यक्रम को चार साल पहले ही बन्द कर दिया गया और किसी ने इसका विरोध भी नहीं किया। इसी तरह दूरदर्शन के इस मंच पर हरियाणवी संस्कृति के के कार्यक्रम होते थे, जिससे अनेक हरियाणवी कलाकारों को अवसर मिलता रहा है, जो अब छीना जा रहा है। अभी तक ये कलाकार भी दूरदर्शन केंद्र के बाहर चल रहे धरने में अपना योगदान देने नहीं पहुँचे, जो अपने आप में एक हैरान कर देने वाली बात है। यह बहुत बड़ा सवाल है कि इस केंद्र को यदि हरियाणवी किसान और कलाकार ही बचाने आगे नहीं आएँगे, तो कौन आएगा?

कभी नववर्ष के उपलक्ष्य में इस केंद्र में बहुत ख़ूबसूरत सांस्कृतिक संध्या आयोजित की जाती थी। कुरुक्षेत्र जैसे पावन नगर की दस्तावेज़ी फ़िल्म बनायी गयी थी। इसी प्रकार संविधान निर्मात्री समिति के सदस्य चौधरी रणबीर हुड्डा और प्रसिद्ध रचनाकार विष्णु प्रभाकर पर भी दस्तावेज़ी फ़िल्मों का निर्माण किया गया। ये कार्यक्रम अब चंडीगढ़ में कहाँ बनाये जाएँगे? समाचार बुलेटिन में हरियाणा की ख़बरों को प्राथमिकता दी जाती थी। अब ये समाचार कहाँ मिलेंगे? अनेक फीचर कार्यक्रम बने, अब कहाँ बनेंगे? जहाँ तक इसे शिफ्ट करने की बात है, तो यहाँ बहुत सारे संसाधन कबाड़ की तरह कूड़ा बनकर रह जाएगा। इतनी बड़ी आवासीय कॉलोनी किसके काम आएगी? इसमें बने मकान खण्डहर हो जाएँगे। इसे स्थानांतरित करने की इतनी जल्दी क्यों?

हरियाणा के नेता प्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और इनेलो विधायक अभय चौटाला इसे बचाने के लिए आगे आये हैं। लेकिन क्या हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी कोई कोशिश करेंगे? वह यहाँ से सांसद भी रह चुके हैं और यह केंद्र इनके परदादा चौधरी देवीलाल की स्मृति से जुड़ा है। तो क्या उन्हें इसकी कोई चिन्ता नहीं?

वैसे तो अनुराग ठाकुर से कोई पूछे कि यदि धर्मशाला में आपकी कोशिश से बने क्रिकेट स्टेडियम को ठप कर दिया जाए, तो कैसा महसूस होगा? हमें भी दूरदर्शन केंद्र ठप करने पर बहुत दु:ख है। अभी समय है। उन्हें इस फ़ैसले पर पुनर्विचार करके इसके लिए अनुदान जारी करना चाहिए, न कि इसे स्थानांतरित करने के आदेश जारी करने चाहिए। अनुराग  ठाकुर युवा हैं और उन्हें युवा सोच से ही काम करना चाहिए।

(लेखक हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष हैं।)