अहंकार या कुछ और? आला अफसरों की शादियाँ क्यों हो रहीं नाकाम

शादी के महज़ दो साल बाद संघ लोक सेवा आयोग, 2015 की टॉपर टीना डाबी और सेकेंड टॉपर पर रहे पति आईएएस अतहर खान ने पिछले दिनों जयपुर की एक पारिवारिक अदालत में आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्ज़ी दाखिल की। इससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि नौकरशाहों के दम्पति जीवन में आखिर कहाँ खामी रह जाती है? जिससे वे अलग होने का विकल्प चुनते हैं। इसी पारिवारिक टूट के मसले की पड़ताल करती श्वेता मिश्रा की रिपोर्ट :-

आईएएस अफसर टीना डाबी और अतहर खान मार्च, 2018 में शादी के बन्धन में बँधे और राजस्थान कैडर में अपनी सेवाएँ देने लगे। उनके रिश्ते में खटपट की बात तब सामने आयी, जब टीना ने सोशल मीडिया पर अपने उपनाम से खान टाइटल हटा दिया, जबकि अतहर ने उसी समय इंस्टाग्राम पर टीना को अनफॉलो कर दिया था। अतहर, जो कश्मीर से आते हैं; ने यूपीएससी परीक्षाओं में दूसरा स्थान हासिल किया था; जबकि भोपाल की रहने वाली टीना डाबी प्रथम प्रयास में ही सिविल सेवा परीक्षा में टॉप करने वाली पहली दलित लड़की बनी थीं। मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान दोनों करीब आ गये थे और बाद में शादी जैसे पवित्र बन्धन में बँधे।

उनकी प्रेम कहानी को साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में देखा गया था, लेकिन अब जो खबरें आ रही हैं, उसकी मानें तो अतहर खान ने राजस्थान से जम्मू और कश्मीर में स्थानांतरण की माँग की है और केंद्रीय गृह मंत्रालय के कर्मियों के संघ राज्य क्षेत्र कैडर में प्रतिनियुक्ति के लिए संपर्क किया है। नियमानुसार, एक आईएएस अधिकारी को प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन करने से पहले न्यूनतम पाँच साल की सेवा की आवश्यकता होती है। उनकी शादी ने राष्ट्रीय सुिर्खयाँ बटोरी थीं और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया था।

कई लोगों ने दोनों की शादी को साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में देखा। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने आईएएस दम्पति को बधाई दी थी और ट्वीट किया था- ‘आपका प्यार मज़बूती से मज़बूती की ओर बढ़ सकता है और बढ़ती असहिष्णुता और साम्प्रदायिक घृणा के इस युग में आप सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। भगवान आपका भला करे।’ वेंकैया नायडू, सुमित्रा महाजन, रविशंकर प्रसाद दिल्ली में उनके विवाह समारोह में शामिल हुए थे। शादी के तीन रिसेप्शन थे- पहला जयपुर में, जो कि साधारण कोर्ट समारोह था; दूसरा पहलगाम में और तीसरा दिल्ली में। डाबी और अतहर दोनों को आईएएस के राजस्थान कैडर में आवंटित किया गया था। व्यक्तिगत रूप से भी, दोनों ही उपलब्धि की ऊँचाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं; क्योंकि टीना डाबी यूपीएससी परीक्षाओं में टॉप करने वाली पहली दलित महिला थीं। अतहर, जो टीना से एक साल बड़े हैं, वह आतंक प्रभावित दक्षिण कश्मीर से हैं। टीना डाबी भोपाल की रहने वाली हैं और उनके माता-पिता दोनों इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज में हैं। उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज में राजनीति विज्ञान में पढ़ाई की है। अतहर हिमाचल प्रदेश के मंडी में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से बीटेक हैं। प्रारम्भ में दोनों एक ही शहर में थे; लेकिन बाद में टीना डाबी को ज़िला परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में श्रीगंगानगर में तैनात किया गया था। अतहर ज़िला परिषद् के सीईओ के रूप में जयपुर में तैनात थे।

दिलचस्प यह भी है कि यूपीएससी के 2015 बैच के बीच 14 अधिकारियों ने अपने बैचमेट से शादी की थी, एक साल बाद 156 आईएएस अधिकारियों के 2016 बैच ने भी एक रिकॉर्ड बनाया और उनके बीच छ: जोड़े शादी के बन्धन में बँधे। इसके अलावा एक अधिकारी ने 2017 बैच के एक जूनियर से शादी की और दूसरे ने एक वरिष्ठ से। इस साल के शुरू में मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान छ: जोड़ों ने शादी कर ली। हालाँकि आईएएस अधिकारियों के लिए बैचमेट या जीवन-साथी के रूप में दूसरे बैच के एक अधिकारी को चुनने के बारे में कुछ भी नया नहीं है, पिछले तीन बैचों में सिविल सेवकों की संख्या में अड़चन आ रही है। 2017 में, 2017 बैच के ही छ: अधिकारियों ने पहले ही एक साथी-आईएएस अधिकारी से शादी कर ली है; जबकि 2015 बैच के 14 अधिकारियों ने एक बैचमेट से शादी की।

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के रिकॉर्ड से पता चला है कि विभिन्न बैचों के 52 आईएएस अधिकारियों ने 2017 के बाद से एक साथी अधिकारी से शादी की। शायद मसूरी में हवा में कुछ ऐसा है जो रोमांस को खिलने और विवाह में परिणत होने में मदद करता है। यह भी सच है कि जब आपस में बहुत ज़्यादा बातचीत होती है और आप खुलकर बातें करते हैं, तो प्यार में पडऩा स्वाभाविक है। लेकिन आगे भी क्या हालात बनतें हैं? इसे कोई नहीं जानता। दबाव अक्सर समझ के बजाय तनाव पैदा कर सकता है, और इसी तरह के अनुभव और करियर की सम्भावनाएँ अहंकार की लड़ाई में बदल सकती हैं। फिर उन्हीं ज़िलों में पोस्टिंग मिलने की बात है, जो हर समय सम्भव नहीं है। अशोक यादव हरियाणा के एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं। वह कहते हैं कि लोग 28-30 वर्ष की आयु में लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में आते हैं। यह औसतन वह उम्र है, जब अधिकांश जोड़े साथी चुनने की चाहत में होते हैं। जब उनका करियर का रास्ता साफ होता है, पेशेवर रूप से सेट होते हैं। साथ ही यह ऐसी उम्र होती है, जिसमें अकादमी के भीतर ही लोग अपने जीवन-साथी को तलाश की चाहत रखते हैं। हालाँकि ये विवाह सरकार के लिए भी सिरदर्द हैं, जिन्हें कैडर आवंटन के श्रमसाध्य कार्य को फिर से करने की आवश्यकता है। जब आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारी एक-दूसरे से शादी करने का चयन करते हैं; ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह युगल एक साथ एक राज्य में ही तैनात रह सके।

हालाँकि इस बीच जो चिन्ता का कारण है वह यह है कि अधिकारियों के बीच तलाक की दर बहुत अधिक होना। इनमें से ज़्यादातर शादियाँ लम्बे समय तक नहीं चल पाती हैं। इसके कई कारण हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने टिप्पणी की- ‘आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के बीच अहंकार बहुत अधिक हो जाता है। समस्या तब और ज़्यादा हो जाती है, जब पति आईपीएस हो और पत्नी आईएएस। हो सकता है कि पति-पत्नी के बढ़ते करियर और आगे बढऩे को बर्दाश्त नहीं कर पाते और हालात तलाक तक पहुँच जाते हैं। इसके अलावा यह भी तथ्य है कि पति-पत्नी आर्थिक और पेशेवर रूप से आज़ाद होते हैं, जिससे एक ज़रूरतमंद रिश्ते के साथ जुडऩे की आवश्यकता कम हो जाती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि तलाक के मामले पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़े हैं; क्योंकि समाज में इसे अब सामान्य माना जाने लगा है। भारत में शादी न करना के मामले बेहद कम होते हैं। भारत में 45-49 साल तक आयु वर्ग की सभी महिलाओं में से एक फीसदी से कम ऐसी हैं, जिन्होंने शादी नहीं की है। हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‌एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों के आँकड़ों पर नज़र डालें तो तलाक के मामले दोगुने हो गये हैं।

‘दुनिया में महिलाओं की प्रगति 2019-2020  : एक बदलती दुनिया में परिवार’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि तलाक के बढ़ते मामलों के बावजूद, केवल 1.1 फीसदी महिलाएँ तलाकशुदा हैं, जिनकी सबसे ज़्यादा तादाद शहरी क्षेत्र से है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशकों में महिलाओं के अधिकारों में इज़ाफा दर्ज किया गया है। दुनिया भर में परिवार प्रेम और कुटुम्ब का स्‍थान सीमित हो रहा है; लेकिन यह भी एक ऐसा स्थान है, जहाँ मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन और लैंगिक असमानताएँ बनी हुई हैं। रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि शादी की उम्र सभी क्षेत्रों में बढ़ी है, जबकि जन्म दर में गिरावट आयी है और महिलाओं ने आर्थिक स्वायत्तता में वृद्धि की है। रिपोर्ट में नीति निर्माताओं, कार्यकर्ताओं और लोगों को जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता और न्याय के स्थानों में बदलने के लिए प्रेरित किया गया है। ये वो क्षेत्र हो सकते हैं, जहाँ महिलाएँ अपनी पसन्द और आवाज़ निर्भीकता से रख सकती हैं और ऐसा वहीं सम्भव हो सकता है, जहाँ आर्थिक सुरक्षा के साथ उनकी शारीरिक सुरक्षा की गारंटी हो। रिपोर्ट में बतायी गयी कुछ सिफारिशों में परिवार के कानूनों में संशोधन और सुधार शामिल हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाएँ खुद तय कर सकें कि शादी कब और किससे की जाए? आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, यदि आवश्यक हो तो तलाक की सम्भावना प्रदान करें और परिवार के संसाधनों तक महिलाओं की पहुँच को सक्षम बनाएँ। पिछले एक दशक में प्रति हज़ार जोड़ों पर तलाक लेने वालों की संख्या एक से बढ़कर 13 हो गयी है। इस पर वाकई गम्भीरता से विचार करना ज़रूरी है।