असंतोष जताना लोकतंत्र बनाए रखने की सबसे बड़ी ज़रूरत: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि लोकतांत्रिक देश में असंतोष का प्रसार वैसे ही है जैसे प्रेशर कुकर में सेफ्टी वाल्व। यानी यदि सेफ्टी वाल्व से कुकर की गैस नहीं निकलेगी तो कभी भी प्रेशर कुकर फट सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधकार, 30 अगस्त को महाराष्ट्र सरकार को  निर्देश दिया कि महाराष्ट्र पुलिस ने जिन नौ मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखक-कवि और वकील गिरफ्तार किए हैं। उन्हें अपने-अपने घरों में ही रहने दिया जाए और बाहर पुलिस का पहरा रहे।

सुप्रीम कोर्ट ने मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर , देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और याजा दारुवाल  की याचिका की सुनवाई के दौरन यह व्यवस्था दी। महाराष्ट्र की पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए गौतम नवलखा (नई दिल्ली) सुधा भारद्वाज (फरीदाबाद) वरनन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा (मुंबई) और कवि-लेखक वरवरा राव (हैदराबाद) पर सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी। इन लोगों को पहली जनवरी को भीमा कोरेगांव में एल्गार  परिषद के जलसे में हुई आगजनी, तोडफ़ोड़ और  प्रधानमंत्री की हत्या की कशित साजिश के आरोप के सिलसिले में गिरफ्तार किया था।

राव, गोंजाल्विस और फरेरा को पुणे ले जाया गया था जबकि सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा इस इंतजार में थे कि उनकी ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं के आधार पर  वे अगली कार्रवाई करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन गिरफ्तारियों से लोकतंत्र को धक्का पहुंचा है।

पुणे पुलिस ने देश के विभिन्न शहरों से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, एकेडेमिशिएन और कवि लेखकों को मंगलवार 28 अगस्त को गिरफ्तार किया। लेकिन अगले दिन अदालत में इन गिरफ्तारियों की खास वजह के बारे में सबूत पेश नहीं कर पाई। हालांकि महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने भी कहा था कि ये गिरफ्तारियां न्यायिक आदेश पर की गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को ही महाराष्ट्र पुलिस को पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बुधवार की अदालती सुनवाई बगैर हिरासत में ले जाने पर रोक लगाई थी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को हैबियस कोरपस यायिका के तहत सुनवाई की। नवलखा के वकील वारिसा फरासात ने इस गिरफ्तारी को चुनौती दी। नवलखा को दक्षिण दिल्ली में नेहरू एनक्लेव से पुणे से आई महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया। उन्हें साकेत में एक स्थानीय अदालत में पेश किया गया जिसने पुलिस को इजाजत दी कि उन्हें पुणे की स्थानीय अदालत में पेश किया जाए।

जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोमल ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस जो ट्रांजिट रिमांड चाह रही है उसमें वजह साफ नहीं है कि नवलखा को गिरफ्तार क्यों किया गया। नतीजतन हाईकोर्ट ने स्थानीय अदालत के उस आदेश पर रोग लगा दी जिसमें महाराष्ट्र पुलिस को उन्हें पुणे लाने का आदेश दिया गया था। सामाजिक कार्यकर्ता की ओर से वकील नित्या रामकृष्ण ने कहा कि ये एल्गार परिषद की पुणे में हुए आयोजन में ही मौजूद नहीं थे। साथ ही उनके घर पर पड़े पुलिसिया छापे में भी कोई आपत्तिजनक चीज बरामद नहीं हुई है।

वकील नित्या ने बताया कि तलाशी और गिरफ्तारी के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड का भी पालन नहीं किया गया। सारे दस्तावेज मराठी में थे जिन्हें नवलखा नहीं समझ पाए। उन्हें गिरफ्तारी की वजह भी नहीं बताई गईं। याचिका पहले मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की बेंच पर पेश की गई। नवलखा के वकील चाहते थे कि मामले पर जल्द सुनवाई हो। जब जल्द सुनवाई की अनुमति मिली तो यह मामला नवलखा के वकीलों ने जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस गोयल की बेंच में ले गए। जहां हैबिस कारपस के तहत मामलों की सुनवाई होती है। इस बेंच ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को राज्य के बाहर जाने की अनुमति नहीं है।

इस बेंच ने यह सवाल भी किया कि महाराष्ट्र पुलिस को स्थानीय अदालत से आधा घंटे के अंदर ही मंगलवार की दोपहर में रिमांड पर लेने की इजाजत कैसे मिल गई। यह भी पूछा गया कि क्या पुणे से गवाहों को गिरफ्तारी को उचित बताने के लिए क्यों ले जाया गया। जबकि गवाह तो उसी इलाके के होने चाहिए थे जहां गिरफ्तारी हुई। बेंच ने आदेश दिया कि नवलखा अपने निवास में पुलिस निगरानी में रखे जाएं।

तहलका ब्यूरो

आपातकाल से भी गंभीर स्थिति: अरूंधती रॉय

चार प्रदेशों में मंगलवार की सुबह हुई धड़ाधड़ गिरफ्तारियों से यह जाहिर होता है कि देश में हालात बेहद गंभीर हैं। ऐसी ही हालत 1970 के दशक के मध्य हुई थी। जो घटनाएं हो रही हैं उनसे लग रहा है कि लोकतंत्र को खत्म करके देश को हिंदू राज्य का दर्जा दिया जाए।

अब राज्य खुद देश में अल्पसंख्यकों, दलित, ईसाई, मुसलमान और वामपंथियों के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए है। यह हर उस व्यक्ति के खिलाफ है जो विरोधी है चाहे वह मीडिया में हो या कहीं भी हो। उसे अपराधी घोषित कर दिया जाता है। दक्षिणपंथी उसकी हत्या कर डालते हैं।

जिस तरह अभी वकीलों, बुद्धिजीवियों और दलित कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां की गई उतनी तेजी साब लिंचिंग और घृणा फैलाने वालों के खिलाफ नहीं की जाती। यह सब भारतीय संविधान के खिलाफ वैचारिक लड़ाई का मामला है।

उन्होंने पहले कहा था कि राज्यों में हुई गिरफ्तारियां यह बताती है कि यह सब आने वाले चुनावों में न जीत पाने अंदेशे के चलते किया जा रहा है। जो हत्या के अपराधी हैं उन्हें मालाएं पहनाई जाती हैं और जो भी न्याय की बात करे या हिंदुओं की बहुलता का विरोध करे उसे अपराधी करार दिया जाता है।

शुवोजित डे