अवैध खनन का बड़ा घोटाला

यह एक घोटला है, कोयला ब्लाक घोटाले से भी कहीं ज़्यादा बड़ा और खतरनाक। इससे देश की खनिज संपदा की सीधी लूट हो रही है। इनमें ‘लियोनिट’, ‘टाइटेनियम आकऑक्साइड’ (रंजारिज) तुरसावस (जि़रकोन) और मोनाज़ाइट जैसे खनिज शामिल हैं। मोनाजाइट एक ऐसा खनिज है जिस पर चीन समेत कई देशों में प्रतिबंध है। इसके बावजूद यहां यह पिछले काफी लंबे समय से चल रहा है। ‘तहलका’ के पास मौजूद दस्तावेजों से पता चलता है कि परमाणु ताकत में काम आने वाले खनिज भी न केवल गैर कानूनी तरीके से निकाले जा रहे हैं अपितु चीन जैसे देशों को बिना किसी रुकावट के बेचे भी जा रहे हैं।

सरकारें आती जाती रही पर यह लूट लगातार चलती रही है। ‘तहलका’ की जांच में पता चला है कि सरकारी अनदेखी और लापरवाही के कारण गैरकानूनी खनन जारी है। इसमें केंद्र व आंध्र प्रदेश के सरकारी विभागों की मिलीभगत भी सामने आती है। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा विभाग और केंंद्रीय खनन मंत्रालय भी इसमें शामिल हैं। असल में खनन का यह घोटाला बाकी कई घोटालों से बड़ा है जिसमें नौकरशाही और राजनीति का तालमेल है। लेकिन आज तक यह लोगों की नज़रों से इसलिए छुपा रहा है क्योंकि इसके साथ बड़े-बड़े लोगों के नामों को जोडऩा आसान नहीं था। केंद्र की राय है कि पर्यावरण की इज़ाजत देने की ताकत राज्य सरकारों को दी जाए। पर क्या राज्य सरकारों के पास इतना सब कुछ करने के लिए पूरा साजो-समान है? यह एक बड़ा सवाल है। हम सब जानते हैं कि खनन हमारे पूरे पर्यावरण को तबाह करता है। पर इस मामले में सज़ा का अनुपात बहुत ही कम है। मिसाल के तौर पर 2015-17 में गैर कानूनी खनन के 1,07,609 मामले पूरे देश में दर्ज किए गए लेकिन असली एफआईआर 6,033 मामलों में ही दर्ज हुई। देश की सर्वोच्च अदालत ने अगस्त 2017 में केंद्र सरकार को राष्ट्रीय खनिज नीति में संशोधन करने का निर्देश दिया था। अदालत का कहना था कि मौजूदा नीति केवल कागज़ी है और उसका क्रियान्वयन नहीं होता क्योंकि इसमें कई ताकतवर लोग शामिल होते हैं।

जांच में उन सभी जांच एजेंसियों द्वारा दिया गया ‘डाटाÓ शामिल किया गया है जो उन्होंने उनके बारे में दिया है जो समुद्र तल से रेत और परमाणु खनिज गैर कानूनी तरीके से निकालते हैं पर बिना किसी सज़ा के खौफ से।

इस घोटाले के बारे में एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। इसकी पूरी जानकारी ‘तहलकाÓ के पास है। उसके अनुसार अवैध खनन और निर्यात का काम खुले रूप से सरकारी कानूनों और नियमों को धता बताते हुए चलता रहा है। भारतीय खनन ब्यूरो (आईबीएम) और परमाणु खनिज निदेशालय (एएमडी) खनन की योजनाओं को मंजूरी देते हैं। आईबीएस केंद्रीय खनन मंत्रालय के तहत आता है और एएमडी परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत और ये दोनों ही विभाग सीधे प्रधानमंत्री के तहत हैं। राज्य सरकारों के यातायात के परमिटों को इक_ा कर उनकी भी जांच की गई। इन दस्तावेजों के बिना खनन और निर्यात नहीं किया जा सकता। कस्टम विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि अवैध खनन किस हद तक हो रहा है।

श्रीकाकुलम (आंध्र प्रदेश) का समुद्र तटीय रेत परमाणु खनिजों के साथ ‘इल्मेनाइटÓ, ‘रूटीलÓ, ल्यूकॉक्सीन, जिरकोन और ‘मोनाज़ाइटÓ जैसे खनिजों का मिश्रण है। इनमें ‘मोनाज़ाइटÓ एक ऐसा खनिज है जो परमाणु ईधन ‘थोरियमÓ बनाने के काम आता है। ‘मोनाज़ाइटÓ के निर्यात और निजी संस्थानों को बेचने पर पूरी रोक है पर हमारी राष्ट्रीय संपदा कुछ अनैतिक कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा निर्यात की जा रही है।

राज्यसभा सदस्य रेणुका चौधरी जो ‘पब्लिक अकाउंटस कमेटी (पीएसी)Ó की सदस्य भी थीं उन्होंने यह मुद्दा 14 मार्च 2016 को सदन में उठाया था। असल में पीएसी के सदस्य भाजपा के सांसद राजू ने पाया था कि ‘ट्राइमेक्सÓ ग्रुप न केवल अवैध खनन में लगा है बल्कि ‘मोनाज़ाइटÓ का अवैध निर्यात भी कर रहा है।

प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई, केंद्रीय खान मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और आंध्रप्रदेश के सतर्कता व प्रवर्तन विभाग ने इस मामले में कुछ लोगों के नाम उजागर किए थे। इनमें आंध्रप्रदेश का एक राजनेता राजेंद्र प्रसाद कोनेरू और उसके दो बेटों मधु कोनेरू और प्रदीप कोनेरू और ‘ट्राइमेक्स सेंडस के नाम प्रमुख थे। इन्हें अवैध खनन में अभियुक्त भी बनाया गया। ‘तहलकाÓ ने ट्राइमेक्स ग्रुप के चेन्नई और दुबई के पतों पर प्रश्नों की सूची दो अप्रैल 2018 को भेजी और फिर 13 अप्रैल 2018 को उन्हें स्मरण पत्र भी भेजे।

अंत में कंपनी ने 22 अप्रैल 2018 को ग्रे मैटर कम्युनिकेशनस एंड कंस्लटिंग प्राईवेट लिमिटेड के द्वारा अपना जवाब भेजा। उन्होंने सभी आरोपों का खंडन किया उनका कहना है कि उन्होंने कभी भी मोनाजाइट को न तो निर्यात किया है और न ही किसी निजी कंपनी, व्यक्ति या चीन को बेचा है। उनके अनुसार परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एइआरबी) एक वैधानिक संस्था है जो सभी तरह की रेडियो एक्टिव सामग्री के बारे में दिशा निर्देश जारी करती रहती है और उस पर पूरा नियंत्रण रखती है। कंपनी ने परमाणु ऊर्जा (रेडिएशन प्रोटेकशन) नियम 2004 के तहत एइआरबी से लाइसेंस लिया है। कंपनी इस नियामक संस्था के सभी निर्देशों का पालन करती है और समय-समय पर काम का निरीक्षण भी किया जाता है लेकिन आज तक किसी भी निरीक्षण में कंपनी द्वारा कोई उल्लंघन किए जाने की बात नहीं आई है। ट्राईमैक्स जिसके दफ्तर दुबई और चैन्नई में हैं, ने तहलका को चेताया कि उनके स्पष्टीकरण के विरुद्ध प्रत्यक्ष  या परोक्ष कोई खबर न छापें। यदि  ऐसा होता है तो यह मानहानि और अदालत  के आदेश के खिलाफ  होगा।

यहां यह जानना भी उचित होगा कि परमाणु ऊर्जा विभाग ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि ‘बीचÓ खनिजों में जो मात्रा ‘मोनाज़ाइटÓ की मिलती है वह कम है और उसे निकालना काफी मंहगा पड़ता है। कंपनी का कहना है कि परमाणु ऊर्जा विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि ‘मोनाज़ाइटÓ ऐसा पदार्थ नहीं है जिसे कहीं भी बेचा जा सकता है और आज की परमाणु तकनालोजी में यह इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता।

इन गैरकानूनी कृत्यों का पता उस समय लगा जब 2004 में खान और भूगोल विभाग के सहायक निदेशक ने ट्राइमेक्स की ‘लीजÓ को राजस्व व वन विभाग की मंजूरी के बिना लागू कर दिया। जीओ एमएस नंबर31 तिथि 06 फरवरी 2004 के मुताबिक इन दोनों विभागों की मंजूरी इस ‘लीजÓ को लागू करने में अनिवार्य थी। यह पता चला कि ट्राइमेक्स ने 1.3 और 2.0 घन मीटर के ‘लोडरÓ इस्तेमाल किए और खुदाई के लिए0.9 और 1.5 घन मीटर के उपकरण प्रयोग किए और साथ ही दिन-रात खुदाई की। उसने इसके लिए फ्लड लाइट्स का भी इस्तेमाल किया जो अवैध है और सीआरज़ेड के आदेश जे-19011/11/2003-1। -111 का उल्लंघन है। हालांकि यह पर्यावरण और वन विभाग के निर्देशों का भी उललंघन था पर सरकार ने इस मामले में आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है।

दुबई स्थित इस कंपनी ने इन आरोपों का भी खंडन किया है। उन्होंने कहा सीआरजेड की मंजूरी के मामले में कोई किसी तरह का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। कंपनी का कहना है कि यह आरोप मानहानि की श्रेणी में आता है और अदालत ने मीडिया को मानहानि वाले वक्तव्य दिखाने से रोक दिया है।

इस मामले में राज्य सरकार के अधिकारियों ने भी ऐसा ही किया और सालों तक अवैध खनन चलने दिया। छह मार्च 2013 को भारतीय ब्यूरो ऑफ माइंस, वन, राजस्व और निदेशक खनन और भूगर्भशास्त्र ने एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार के प्रधान सचिव (उद्योग व वाणिज्य) को भेजी जिसमें बताया गया कि ‘ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीज ने 387.72 एकड़ ज़मीन पर अवैध खनन किया है। 20 सितंबर 2013 की अपनी रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश सरकार के खनन व भूगर्भशास्त्र के निदेशक ने कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था, पर आज तक इस पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया।

‘रेडियो एक्टिवÓ और परमाणु खनिजों का अवैध निर्यात खतरनाक है जबकि इसमें गाढ़ा ‘मोनाज़ाइटÓ भी था जिसमें ‘थोरियमÓ होता है जो परमाणु उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है। यह देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा के लिए गहरी चिंता का विषय है। आंध्र प्रदेश के सतर्कता और प्रवर्तन विभाग और खनन और भूगर्भशास्त्र के अधिकारियों ने ‘ईस्ट-वेस्ट मिनिरल सैंड्स प्राइवेट लिमिटेड (ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीस लिमिटेड) के जून, सितंबर और नवंबर 2015 के मामलों की जांच की। ईस्ट वेस्ट मिनिरल सैंड प्राइवेट लिमिटेड (यह लीज़ ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीस लिमिटेड से ईस्ट-वेस्ट मिनीरल सेंड प्राइवेट लिमिटेड के नाम बदली गई थी) और आज यह ट्राइमेक्स सैंडस (पी) के नाम पर काम कर रही है। जांच कर्ताओं को पता चला कि ट्राईमेक्स इंडस्ट्रीस ने 304.40 एकड़ विवादित ज़मीन पर खनन किया और 1295.63 करोड़ के अवैध खनिज निकाले। रिपोर्ट में कहा गया कि ट्राईमेक्स इंडस्ट्रीस ने अपने प्लांट के नीचे 9750 मीट्रिक टन ‘मोनाजाइट़Ó जमा कर रखा है। पर ऐसा लगता है कि परमाणु ऊर्जा विभाग ने इसे अपने कब्जे में लेने का कोई प्रयास नहीं किया है।

सभी ट्राइमेक्स इंडस्ट्रीस ने अवैध तरीके से 17,58,112 मीट्रिक टन ‘बीच सैंडÓ परमाणु खनिज को निकाला और उसे विभिन्न स्थानों पर भेजा। इसकी कीमत 1295.63 करोड़ बनती है।

इस बारे में ट्राइमेक्स ग्रुप ने कहा कि यह कहना गलत और झूठ है कि कंपनी ने अवैध खनन कर 17,58,112 मीट्रिक टन सामग्री बाहर निकाली जिसकी कीमत 1295.63 करोड़ बनती है और इसमें ‘मोनाजाइटÓशामिल है। सतर्कता विभाग बिना किसी आधार के इन आंकड़ों तक पहुंचा है। ध्यान देने की बात यह है कि सतर्कता विभाग की रिपोर्ट स्वयं अपनी ही बातों का खंडन करती है, और यह आधारहीन, निरर्थक और काल्पनिक आधार पर तैयार की गई है। जब 2005 में हमने आरटीआई के तहत रिपोर्ट की प्रतिलिपि मांगी तो सतर्कता और प्रवर्तन विभाग के आधिकारियों ने हमें रिपोर्ट की प्रतिलिपि नहीं दी थी।

सतर्कता और प्रवर्तन विभाग की महा निदेशक एआर अनुराधा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खनन और भूगर्भशास्त्र के अधिकारियों ने खनन को जारी रखवाया और खनिजों को 387.72 एकड़ विवादित क्षेत्र से बाहर ले जाने के लिए पर्चियां जारी की। जबकि यह निर्धारित मानकों का उल्लंघन था। श्रीकाकुलम जि़ले के गाड़ा मंडल के गांव वातसावालसा में अधिकारी खनन को रोकने में विफल रहे।

ट्राइमेक्स ने इन आरोपों का खंडन किया। उनका कहना है कि बीच सैंड खनिजों के खनन और परमाणु खनिजों के निर्यात के बारे में दी गई रिपोर्ट झूठी और गलत हैं। उनका कहना है कि खनन से संबंधित कंपनी की सारी कार्रवाईयां कानून और नियमों के तहत हैं। उनका कहना है कि कुछ लोग जिनकी अपनी रुचियां इसमें हैं वे हमारे खिलाफ सरकार और दूसरी एजेंसियों के पास शिकायतें करते रहते हैं।

महानिदेशक ने राजस्व विभाग के प्रधान सचिव को 1295.63 करोड़ रुपए वसूलने की सिफारिश की थी क्योंकि कंपनी ने राजस्व विभाग से खनन के लिए कोई मंजूरी नहीं ली थी। साथ ही गाड़ा मंडल के तहसीलदारों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी सिफारिश की थी जिन्होंने विवादित स्थल पर खनन नहीं रोका। इसी रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश के प्रधानसचिव से कहा गया था कि वहां खनन बंद कर दें क्योंकि वह नियमों के अनुसार नहीं हो रहा था। इस रिपोर्ट की प्रतिलिपियां प्रधानसचिव राजस्व, प्रधानसचिव उद्योग व वाणिज्य और मुख्य सचिव आंध्र प्रदेश सरकार को भी भेजी गई लेकिन अवैध खनन और ‘मोनाजाइटÓ का निर्यात बदस्तूर जारी रहा। हैरानी की बात है कि आज तक परमाणु ऊर्जा विभाग ने भारी मात्रा में ‘मोनाजाइटÓ के निर्यात के बावजूद आज तक इस विषय में कोई कार्रवाई नही की है। इस खनन से न केवल सरकार को राजस्च का भारी नुकसान हो रहा है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहा है।

आंध्र प्रदेश सरकार के सतर्कता व प्रवर्तन विभाग की जांच से खुलासा हुआ है कि ट्राईमेक्स इंडस्ट्रीस ने खनन के लिए निर्धारित योजना के अनुरूप काम नहीं किया और नियमों का उल्लंघन किया है। जो वृक्षारोपण उस क्षेत्र में होना चाहिए था वह भी नहीं किया गया है।

निष्क्रियता

आंध्रप्रदेश के सतर्कता व प्रवर्तन विभाग ने अपनी 11 मार्च 2.016 के रिपोर्ट में ट्राईमेक्स ग्रुप से 1295.63 करोड़ रुपए वापिस लेने की सिफारिश की थी जो उन्होंने 17,58,112 मीट्रिक टन अवैध खनन करके कमाए थे। विभाग ने विभिन्न विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की सिफारिश की थी। खनिज ‘कनसेशनÓ के नियम 22ए का उल्लंघन करने के लिए भी इनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी। आंध्रप्रदेश सरकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि फर्म ने राजस्व विभाग की मंजूरी के बिना श्रीकाकुलम जि़ले के वातसावालसा और गाड़ा गावों मे खनन किया।

अब कंपनी की विदेशों में चल रही कंपनियों की जांच भी ज़रूरी है जहां पर इन खनिजों का निर्यात किया गया। इस कारण इसमें सीबीआई जैसी किसी संस्था से जांच कराने की ज़रूरत है।

ट्राइमेक्स का कहना है कि हाईकोर्ट ने वन विभाग को वतसावालासा गांव के सर्वेक्षण नंबर 216 और 217 में कंपनी की चल रही खनन प्रक्रिया में दखल देने से रोक दिया है। इसके बावजूद 2012 में वन विभाग ने यह कहते हुए कि हाईकोर्ट का आदेश ने उन्हें केवल सर्वेक्षण नंबर 216 और 217 में ही हस्तक्षेप करने से रोका है। इससे परेशान हो कर कंपनी ने हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल की कि वन विभाग को सभी सर्वेक्षण नंबरों में भी हस्तक्षेप करने से रोका जाए जो कि जीओ के तहत आते हैं। यह क्षेत्र 7.2 वर्ग किलोमीटर बनता है। ये दोनों आदेश आज तक लागू हैं।

इतने सारे सबूत होने के बावजूद इस मामले में सरकारी अफसरों की निष्क्रियता यह संकेत देती है कि ट्राईमेक्स ग्रुप ने कितना दबाव इस्तेमाल किया होगा और इस ग्रुप की सांठगांठ नौकरशाही और राजनीति में शिखर तक होगी। देखना है कि अब राज्य या केंद्र सरकार खुद इसमें कार्रवाई करती है या इसे अदालतों पर छोड़ दिया जाता है।