अवामी लीग की वापसी के मायने

बांग्लादेश में जातीय संसद (नेशनल असेंबली) के चुनावी नतीजे सामने आ चुके हैं। सत्ताधारी अवामी लीग की वापसी के ठोस आधार तो थे लेकिन परिणाम इस कदर एकतरफा होंगे शायद कम लोगों ने सोचा होगा। इस जीत के साथ लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाली शेख हसीना बांग्लादेश की पहली राजनेता हैं। जातीय संसद के कुल 300 सीटों में से 299 सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें अवामी लीग की अगुवाई वाली महाजोट (ग्रैंड-अलायंस) 288 सीटें जीतने में कामयाब हुईं। वहीं मुख्य विपक्षी दल ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ (बीएनपी) के नेतृत्व वाली ‘जातीय ओइक्को फ्रंट’ (नेशनल यूनिटी फ्रंट) महज सात सीटें ही जीत सकीं। अवामी लीग गठबंधन को जहां 83.57 फीसद वोट मिले वहीं बीएनपी गठबंधन के खाते में महज 13.21 फीसद आए। वहीं अन्य दलों को 2.8 फीसद वोट मिले।

प्रमुख विपक्षी पार्टियां अब इन नतीजों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रही हैं। ‘जातीय ओइक्को फ्रंट’ के संयोजक डॉ. कमाल हुसैन जहां न्यायिक निगरानी में दोबारा चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं वहीं बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरूल इस्लाम आलमगीर का कहना है कि चुनाव में जीते उनके पांचों सांसद पद और गोपनीयता की शपथ नहीं लेंगे। विपक्षी पार्टियां जनादेश को खारिज करने की दोहरी गलती कर रहे हैं। 2014 के चुनाव में भी संभावित पक्षपात की आशंका जाहिर करते हुए बीएनपी और उसकी सहयोगी पार्टियां चुनाव में शामिल नहीं हुई थी। नतीजतन अवामी लीग बगैर किसी खास चुनौती के सरकार बनाने में सफल रही। बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी को यकीन था कि चुनाव बहिष्कार का उसका फैसला सही है, जिसे अवाम भी जायज करार देगी। लेकिन इसके बरक्स बीते दस वर्षों में सांगठनिक स्तर पर पार्टी लगातार कमजोर होती चली गई। बांग्लादेश में सियासी रूप से अहम माने जाने वाले हिस्सों मसलन, रंगपुर,चटगांव, सिलहट और खुलना डिवीजन जहां कभी बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी की मजबूत पकड़ थी उन सभी इलाकों से पार्टी का सफाया हो गया।

‘जिया यतीमखाना ट्रस्ट घोटाले’ में पूर्व प्रधानमंत्री व पार्टी प्रमुख बेगम खालिदा जिया को कुछ महीने पहले अदालत ने दस वर्षों की सजा सुनाई। जेल से ही उन्होंने तीन संसदीय क्षेत्रों से नामजदगी का पर्चा भरा लेकिन चुनाव आयोग ने उनके सभी नामांकन खारिज कर दिए। जबकि उनके बेटे और पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान को भी अदालत ने साल 2004 के एक आपराधिक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है। अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए तारिक इन दिनों लंदन में हैं। चुनाव से कुछ महीने पहले जब इन दोनों को सजा सुनाई गई तो उसके बाद पार्टी में एक धड़े की राय थी कि तारिक रहमान की पत्नी डॉ. जुबैदा रहमान को सक्रिय राजनीति में लाया जाए, क्योंकि उनकी बेदाग छवि से बीएनपी को फायदा मिलेगा। सियासी नज़रिए से यह फैसला कितना सही होता यह अलग बात थी लेकिन इतना तो ज़रूर कहा जा सकता है कि अगर डॉ. जुबैदा के नाम पर वक्त रहते फैसला हो जाता तो शायद बीएनपी शर्मनाक हार से बच सकती थी। जुबैदा रहमान बांग्लादेश के पूर्व नौसेना अध्यक्ष महबूब अली खान की बेटी है और चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी बड़ी ख्याति है। बावजूद इसके बीएनपी उनके नाम पर फैसला नहीं कर पाई। बेगम खालिदा और तारिक रहमान को अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद बीएनपी इस बार भी चुनाव का बहिष्कार करना चाहती थी लेकिन चुनाव आयोग के नियमों की वजह से न चाहते हुए भी उसे चुनाव में शामिल होना पड़ा। दरअसल चुनाव आयोग के प्रावधानों के मुताबिक राजनीतिक पार्टियां द्वारा लगातार दो चुनावों के बहिष्कार करने पर उसकी मान्यता रद्द हो सकती है। यही वजह है कि पिछले दस वर्षों से निष्क्रिय रही बीएनपी को मजबूरन चुनाव में हिस्सा लेना पड़ा।

 अवामी लीग के ‘महाजोट’ (ग्रैंड-अलांयस) के खिलाफ  ‘जातीय ओइक्को फ्रंट’ (नेशनल यूनिटी फ्रंट) की अगुवाई करने वाले डॉ. कमाल हुसैन इन चुनावी नतीजों को खारिज कर दोबारा चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं लेकिन यह कितना बड़ा विरोधाभास है कि धर्मनिरपेक्षता में यकीन करने वाले कमाल उस गठबंधन के हिस्सा थे जिसमें जमात-ए-इस्लामी समेत कई कट्टरपंथी दल शामिल थे। 80 वर्षीय डॉ. कमाल ‘बांग्लादेश मुक्ति युद्ध’  के बाद शेख मुजीबुर्रहमान की सरकार में देश के पहले कानून मंत्री बने। 1990 तक वह अवामी लीग के साथ रहे, लेकिन शेख हसीना से मतभेद होने पर उन्होंने ‘गण फोरम’ नामक पार्टी बनाई। लेकिन बांग्लादेश में इस संगठन का उतना प्रभाव कभी नहीं रहा। जिस बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी की सरकारों में इतने खून-खराबा हुए और देश में ईश निंदा और शरियत कानूनों को लागू करने के लिए ढाका समेत कई शहरों में हिंसक झपड़ें हुई। उन दिनों बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों और सिविल सोसायटी को एकजुट करने वाले डॉ. कमाल उस जनादेश को खारिज कर रहे हैं जिसे बांग्लादेश की जनता ने अवामी लीग के पक्ष में दिया। डॉ. कमाल जैसे अनुभवी नेता जो बंगबंधु शेख मुजीब के साथ काम कर चुके हैं। उन्हें इस बात का एहसास होना चाहिए कि बीएनपी और जमात के शासन में बांग्लादेश भी पाकिस्तान की राह पर चल रहा था। लेकिन शेख हसीना के नेतृत्व में इस्लामी कट्टरपंथी तंजीमों का चुन-चुनकर सफाया किया गया। यह अलग बात है कि इस बार बीएनपी ने अपने घोषणा-पत्र में धार्मिक व जातीय अल्पसंख्यकों को खास तरजीह देते हुए ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ बनाने का वादा किया। इसके अलावा बीएनपी और उसकी सहयोगी पार्टियों ने दस हिंदुओं को टिकट दिए। इसके बावजूद बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदू बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी की सरकार में वह दौर भी देख चुके हैं जब उन्हें निशाना बनाया गया। खासकर 2001 में हुए चुनाव जब बीएनपी और जमात के लोगों ने हिंदुओं को निशाना बनाया। हालांकि इस बार का चुनाव इसलिए भी खास रहा क्योंकि इस मर्तबा पिछले चुनावों की तरह हिंसा नहीं हुई। अल्पसंख्यकों खासकर हिंदू बस्तियों को निशाना नहीं बनाया गया। 2011 की जनगणना के अनुसार बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 9.6 प्रतिशत हैं। जबकि 1951 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 23.1 फीसद हिंदू थे। बांग्लादेश में हिंदुओं की सर्वाधिक आबादी खुलना, राजशाही, रंगपुर, मैमनसिंह और चटगांव डिवीजन में है। जातीय संसद की कुल 300 सीटों में करीब 60 सीटों पर हिंदू मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। इस बार अवामी लीग ने 18 अल्पसंख्यकों को टिकट दिए जिनमें 16 हिंदू थे और ये सभी उम्मीदवार जीतने में सफल रहे। 2014 के चुनाव में भी अवामी लीग से 17 हिंदू सांसद थे। जिनमें तीन को मंत्री बनाया गया था। हालांकि इस बार के चुनाव में बांग्लादेश में तमाम छोटी-बड़ी पार्टियों की तरफ से अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं को 74 टिकट दिए। यह सही है कि अवामी लीग शासन में अल्पसंख्यक हिंदू खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं लेकिन वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट (पूर्व में शत्रु-संपत्ति कानून) वहां रहने वाले हिंदुओं के लिए किसी काले कानून से कम नहीं है। 1965 में पूर्वी पाकिस्तान में ‘शत्रु संपत्ति अधिनियम’ बना था। बीएनपी और जमात के शासन में अल्पसंख्यकों की जमीनों पर कब्जे हुए। 1996 में अवामी लीग के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2001 में इस कानून में बदलाव कर इसका नाम ‘वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न एक्ट’ कर दिया ताकि बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों को उनकी अचल संपत्तियों का लाभ मिले। इस संशोधित कानून के तहत अल्पसंख्यकों की जब्त की गई जमीनों को 180 दिनों के भीतर वापस करने की समय सीमा निर्धारित की गई थी। लेकिन 2001 में बीएनपी सत्ता में आई और उसने पुराने प्रावधानों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। 2008 में अवामी लीग फिर सत्ता में आई और दोबारा ‘वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न एक्ट’ को प्रभावी बनाने का फैसला किया। 2013 में सभी जिला न्यायालयों में विशेष अदालत गठित की गई ताकि अल्पसंख्यकों को उनकी संपत्ति वापस मिल सके। फिलहाल इस मामले से जुड़े 10 लाख मुकदमे चल रहे हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों को आज भी उनकी संपत्तियां वापस नहीं मिल पाई हैं। ऐसे में शेख हसीना की इस नई पारी से अल्पसंख्यकों को खास उम्मीदें हैं।

शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश में फिर से अवामी लीग की सरकार बनना भारत के लिए अनुकूल है। 2014 में एनडीए की सरकार बनने के बाद 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के साथ सात दशक पुराना भूमि सीमा समझौते को अंतिम रूप दिया। इसके तहत भारत और बांग्लादेश के 162 इन्कलेव (छिटमहलों) में रहने वाले करीब 51,000 लोगों को नागरिकता मिली। साथ ही भारत और बांग्लादेश के बीच सड़क और रेल यातायात के विकास को भी मौजूदा दोनों सरकारों में काफी बल मिला। कोलकाता से वाया ढाका होते हुए अगरतला के लिए यात्री बसों और ट्रकों की आवाजाही शुरू हुई है। इसके अलावा कोलकाता से ढाका और कोलकाता से खुलना के बीच रेलगाड़ी का परिचालन शुरू हुआ। इस रेलमार्ग को अगले कुछ वर्षों में नोआखाली और चटगांव तक विस्तार देने की योजना है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों को काफी फायदा मिलेगा। प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पिछले दस वर्षों के दौरान तेजी से बढ़ी है। अपने चुनावी घोषणा पत्र में अवामी लीग ने 7.8 फीसद की दर से बढ़ रही अपनी अर्थव्यवस्था को अगले पांच वर्षों में और अधिक गति देने की बात कही थी। हसीना आगामी वर्षों में राजधानी ढाका और सभी डिवीजनल मुख्यालयों खासकर व्यवसायिक राजधानी चटगांव में हाई स्पीड ट्रेन शुरू करने का वादा किया। इसके अलावा अगले पांच वर्षों में देश में डेढ़ करोड़ नए रोजगार पैदा करने की बात कही। निश्चित रूप से इसका चुनावी फायदा इस बार चुनाव में अवामी लीग को मिला। इस साल अप्रैल-मई में भारत में भी आम चुनाव होने हैं। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में फिर एनडीए की सरकार बनती है तो निश्चित रूप से भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी और व्यापारिक रिश्तों में तेजी आएगी। साथ ही तीस्ता जल बंटवारे समेत अन्य विवादित मुद्दे भी सुलझने की उम्मीद है।