अलविदा त्रासदी वर्ष 2020

साल 2020 बीतने को है। हर आदमी इस साल की जल्द-से-जल्द विदाई चाहता है और आने वाले नव वर्ष 2021 के सुखद रहने की कामना के साथ उसका इंतज़ार कर रहा है। साल 2020 को त्रासदी का साल कहा जा सकता है। इस एक साल में जो भी हुआ है, उससे मानव जाति खुद को भयभीत और असुरक्षित पा रही है। आज भी लोगों में कोरोना वायरस का जो डर समाया हुआ है, वह किसी और बीमारी से मरने तक को मजबूर कर रहा है; लेकिन अस्पताल जाने की हिम्मत नहीं दे पा रहा है। 2020 की इस पूरे साल में जो भी हुआ, उस पर एक नज़र अच्छे-बुरे अनुभवों के तौर पर हर कोई रखना चाहेगा; क्योंकि यह साल किसी को भी जीवन भर भुलाये नहीं भुलाया जाएगा।

जिन हस्तियों ने कहा अलविदा

बीत रहे इस साल में कई बड़ी हस्तियों ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, जिनमें कई हस्तियाँ कोरोना की वजह से परलोक सिधार गयीं। इनमें भारतीय राजनेता, पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी ने भी इस साल दुनिया से विदाई ले ली। वह कोमा में थे। भारतीय नेता पूर्व राज्यसभा साँसद 67 वर्षीय देवी प्रसाद त्रिपाठी ने भी इस साल दुनिया को अलविदा कहा। भारतीय नेता, पूर्व लोकसभा साँसद और पंजाब केसरी ग्रुप के चेयरपर्सन अश्विनी कुमार चोपड़ा ने भी कैंसर से जूझते हुए इस साल दुनिया छोड़ दी। अभी हाल ही में भारतीय राजनेता और वर्तमान केंद्र सरकार में मंत्री रहे रामविलास पासवान ने भी नश्वर शरीर इसी साल छोड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे जसवंत सिंह ने भी

82 वर्ष की उम्र में शरीर छोड़ दिया। वह पिछले छ: साल से कोमा में थे।

असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी कोविड-19 और कई अंगों के काम न करने के चलते गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में इसी साल नवंबर में अंतिम साँस ली। वह 84 वर्ष के थे। गुजरात के कांग्रेस नेता और पूर्व साँसद अहमद पटेल ने भी नवंबर में मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम में अंतिम साँस ली। वह कोरोना वायरस से संक्रमित थे। कांग्रेस के ही नेता 72 वर्षीय भंवरलाल मेघवाल ने भी मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम में अंतिम साँस पिछले दिनों ली। भारतीय राजनीतिज्ञ कर्नाटक और केरल के पूर्व राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने भी 82 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।

इसके अलावा आधुनिक गद्य के लेखक कृष्ण बलदेव वैद ने 93 वर्ष की उम्र में अपना चोला छोड़ दिया। पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ हिन्दी साहित्कार गिरिराज किशोर का भी हृदयगति रुकने से इसी साल देहांत हो गया। भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी और प्रबन्धक रहे प्रदीप कुमार बनर्जी का देहांत भी इसी साल दिल का दौरा पडऩे से हो गया। भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक देसाई भी नहीं रहे। भारतीय रंगकर्मी और समाजसेवी ऊषा गांगुली ने भी लम्बी बीमारी के बाद शरीर छोड़ दिया। फिल्म अभिनेता इरफान खान ने भी महज़ 53 साल की आयु में दुनिया इसी साल छोड़ी थी। फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर ने भी 67 साल की आयु में नश्वर शरीर छोड़ दिया। वह कैंसर से पीडि़त थे। धारावाहिकों से फिल्मों में पैर जमाने वाले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने भी इसी साल शरीर छोड़ दिया। सुशांत महज़ 34 साल के थे और उनकी मौत हत्या-आत्महत्या के विवादों में बहुत दिनों तक उलझी रही। शायर राहत इंदौरी ने भी 70 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। हाल ही में मसालों के बड़े कारोबारी एमडीएच के मालिक महाशय धर्मपाल ने भी अस्पताल में अन्तिम साँस ली।

इसके अलावा विदेशी लोगों में डेविड स्टर्न, जो 77 वर्ष के थे। सन् 1984 से सन् 2014 तक नेशनल बास्केटबॉल असोसिएशन के आयुक्त रहे अमेरिकी व्यवसायी डेविड स्टर्न का निधन ब्रेन हेम्ब्रेज की वजह से हुआ। ईरानी मेजर जनरल, कुद्स फोर्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी की एक हवाई हमले में मौत हो गयी। वह 62 साल के थे। ओमान के सुल्तान कबूस बिन सईद अल सईद की पेट के कैंसर के चलते इसी साल मौत हुई। एक हवाई दुर्घटना में अमेरिकी पेशेवर और बास्केटबॉल खिलाड़ी कोबी ब्रायंट की महज़ 42 वर्ष की आयु में मौत हो गयी। अमेरिकी गायक, संगीतकार और लेखक केनी रोजर्स ने भी 81 साल की उम्र में दम तोड़ दिया। फ्रांसीसी अभिनेता मैक्स वॉन सिडो ने भी 90 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ब्रितानी भाषाविद्जॉन लियोन ने भी इस साल दुनिया छोड़ दी। पाकिस्तानी राजनेता और खैबर पख्तूनख्वा के पूर्व राज्यपाल इिफ्तखार हुसैन शाह ने भी इसी साल दुनिया छोड़ी। उत्तरी आयरलैंड की राजनेता और नोबेल पुरस्कार विजेता 76 वर्षीय बेट्टी विलियम्स ने इसी साल अन्तिम साँस ली।

इसके अलावा भारत समेत पूरी दुनिया के लाखों लोगों ने इस साल कोरोना वायरस या दूसरी बीमारियों की चपेट में आकर या उम्र पूरी होने के चलते इस साल इस दुनिया को छोड़ा।

वीभत्स घटनाएँ

अगर इस साल की वीभत्स घटनाओं पर नज़र डालें तो दिल दहल जाता है। अगर केवल कोरोना-काल की बात करें, तो मध्य प्रदेश में मासूम की सामूहिक बलात्कार करने के बाद आँखें निकाल लेने और उत्तर प्रदेश के हाथ में युवती से सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसकी हड्डियाँ तोडऩे और उसकी जीभ काट लेने की घटनाओं ने रूह तक को दहला दिया। इसके अलावा हरियाणा में कई साल तक अपनी पत्नी को टॉयलेट में बन्द रखने की घटना, बिहार की ज्योति की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, कासगंज में जुलाई में हुए तिहरे हत्याकांड, नागपुर में साधुओं की हत्या, उत्तर प्रदेश में दो साधुओं की हत्या, पत्रकारों की हत्या, पत्रकारों पर झूठे मुकदमे दर्ज करना, बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने जाने पर पीडि़ता और उसकी माँ की रास्ते में वाहन से कुचलकर हत्या, उन्नाव गैंगरेप के बाद पीडि़ता की जलाकर हत्या, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पुलिस अधिकारी की हत्या, जलगाँव चार नाबालिगों की निर्मम हत्या, बाराबंकी में युवती की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, हाल ही में मिर्ज़ापुर में तीन मासूमों की हत्या, राजस्थान का पुजारी हत्याकांड, मध्य प्रदेश में सरकार द्वारा किसान की ज़मीन छीनने की कोशिश के बाद उसका परिवार समेत ज़हर पी लेने जैसी घटनाओं ने भी लोगों को काफी विचलित किया। वैसे उत्तर प्रदेश की बात करें, तो यहाँ अपराधीकरण साल 2020 में बहुत बढ़ा है।

मौत का सिलसिला

इस साल कोरोना वायरस फैलने से मौत ने तकरीबन मोहल्ले, हर गाँव, हर कस्बे में तांडव किया है। अगर केवल भारत की बात करें, तो कोरोना-काल के शुरू से ही अनेक लोगों की मौत होने लगी थी। अचानक लगे लॉकडाउन ने जहाँ पैदल चल रहे सैकड़ों लोगों की भूख और थकान से जान चली गयी, वहीं इस महामारी और दूसरी बीमारियों से मरने वालों की संख्या भी हज़ारों में रही। अगर 2020 में हुई मौतों के आँकड़े इकट्ठे किये जाएँ, तो पता चलेगा कि इस साल इलाज के बगैर हज़ारों लोगों ने दम तोड़ा होगा। यही नहीं, इस साल आत्महत्या करने वालों और भूख से मरने वालों की संख्या भी बहुतायत में निकलेगी। इसके अलावा पुलिस की पिटाई और मॉब लिंचिंग के अलावा हत्याओं के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुईं। कह सकते हैं कि कोरोना वायरस नाम की इस महामारी के बीच और भी बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसके चलते पूरे देश में मौत का खुला तांडव हुआ।

चर्चित मामले

इस साल के घटी घटनाओं में कई मामले बहुत चर्चित रहे। इनमें कोरोना-काल में श्रमिकों का पैदल ही अपने-अपने घर लौटना, रेल यात्रा पर चली राजनीति, अधिकतर ट्रेनों का भटकना और उनमें हुई करीब एक दर्ज़न लोगों की मौतें, केरल में एक गर्भवती हथिनी की हत्या, हाथरस में युवती की निर्मम हत्या और पुलिस के द्वारा आधी रात को उसका अन्तिम संस्कार, दिल्ली के दंगे, शाहीन बाग का धरना-प्रदर्शन, जेएनयू में छात्रों की पिटाई, पुलिस और वकीलों के बीच मारपीट, चीन द्वारा भारत की सीमा में अतिक्रमण करना, जम्मू-कश्मीर में उथल-पुथल, नेपाल द्वारा पहली बार सीज़फायर करके चार भारतीयों पर गोली चलाना, उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों के हत्यारे विकास दुबे और उसके साथियों का एनकाउंटर, यौन शोषण के आरोपी चिन्मयानंद की जमानत, सुशांत सिंह मौत मामला, कांग्रेस में उथल-पुथल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा का सरकार बनाना, ज्योतिरादित्य सिंधिया का करीब दो दर्ज़न विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना, डॉ. कफील खान रिहाई मामला, राजस्थान में विधायकों की खरीद-फरोख्त मामला, मुम्बई में रिपब्लिक टीवी के प्रबन्ध सम्पादक अर्णब गोस्वामी का गिरफ्तार होना, अयोध्या में रामजन्मभूमि का मन्दिर के लिए शिलान्यास होना, कोरोना-काल में फिल्म अभिनेता सोनू सूद, प्रकाश राज द्वारा जी-जान से लोगों की मदद करना, अर्थ-व्यवस्था का रसातल में चले जाना, बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा प्रदेशवासियों को मुफ्त वैक्सीन देने की बात कहना, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य कई राज्यों में धर्म-परिवर्तन, जिसे कथित तौर पर लव जिहाद का नाम दिया जा रहा है; पर हंगामा, मुम्बई स्थित एक बैंक घोटाले में लाखों लोगों का पैसा मारा जाना, यस बैंक घोटाला, तेज़ी से कोरोना फैलने से पहले गुजरात में दीवार द्वारा झुग्गी-झोपडिय़ों को मोदी द्वारा आड़ देना, नमस्ते ट्रंप, इलाज के लिए अस्पतालों की बदहाली, कोरोना-काल में प्रधानमंत्री द्वारा लोगों से ताली-थाली बजवाना, बत्ती गुल करवाना आदि के अलावा भारत का भुखमरी देशों की लिस्ट में बुरी हालत में जाना, गरीब देशों की सूची में भी अपना स्तर गँवाना, प्रधानमंत्री का यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर विरोध बढऩा, तबलीगी जमात पर कोरोना फैलाने का आरोप लगना, महामारी में भारत का अमेरिका को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दिया जाना, फेसबुक का रिलायंस जियो में 9.99 फीसदी भागीदारी खरीदना, केंद्र सरकार द्वारा महामारी कानून में बदलाव करते हुए डॉक्टरों, स्वाथ्यकर्मियों या पुलिस पर हमला करने वालों पर कड़ी सज़ा के प्रावधान करना, प्रधानमंत्री द्वारा आपदा में अवसर की बात कहना, आत्मनिर्भरता की बात कहना, आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम स्थित एक कम्पनी के संयंत्र से गैस लीक होने से कई लोगों की मौत हो जाना, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी बोर्ड का निदेशक चुना जाना, लॉकडाउन के दौरान अर्थ-व्यवस्था की टूटती कमर को सीधा करने की कोशिश में शराब के ठेकों को खोलने की अनुमति देना, शराब पर मोटी जीएसटी लगाने के बावजूद ठेकों के बाहर मयखोरों की लम्बी-लम्बी लाइनें लगना, फिल्म उद्योग का बन्द हो जाना, फिल्म अभिनेता सलमान खान का खेती करना, टीवी चैनलों द्वारा टीआरपी का खेल करना, उद्धव ठाकरे के सख्त तेवर खासे चर्चा के विषय रहे। और अब सरकार द्वारा जबरन लाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर के किसानों द्वारा किया जा रहा आन्दोलन खासी चर्चा में है।

कहाँ गया पैसा

जब पैसे की बात आती है, तो मन में सबसे पहले सवाल यही उठता है कि आखिर पीएम केयर्स फंड में जमा हुए अरबों रुपये का क्या हुआ? केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री ने इस पैसे का हिसाब देने से साफ मना कर दिया था, उसके बाद लोगों ने उनसे सवाल पूछने शुरू कर दिये थे। लेकिन इस पैसे का क्या हुआ? सिवाय केंद्र सरकार के और कोई नहीं जानता।

कहाँ-कहाँ हाहाकार

इस साल कोरोना वायरस फैलने के साथ ही घटते-छिनते रोज़गार, ठप हुए व्यापार, बन्द हुए उद्योग धन्धों, अधिकतर राज्यों की सरकारों, खासकर केंद्र सरकार द्वारा प्रवासियों की मदद न करने, महामारी की उचित इलाज व्यवस्था न होने, अर्थ-व्यवस्था के माइनस (-)23.9 फीसदी खिसक जाने, हाथरस कांड, तीन नये कृषि कानूनों पर किसानों के विरोध, बढ़ती महँगाई पर खूब हाहाकार मचा रहा है।

क्या करती रही सरकार

एक अहम सवाल यह है कि इस साल जब लोगों को त्रासदी ने घेरे रखा और तमाम परेशानियाँ हरेक आदमी को पेश आयीं, तब सरकार क्या करती रही? इसके जवाब की ठीक-ठीक पड़ताल तो हम नहीं कर सकते, लेकिन अगर सरकार के कामों पर मोटा-मोटी नज़र डालें, तो पता चलेगा कि इस साल सरकार ने प्रदेशों में अपनी साख मज़बूत करने, सरकारी संस्थानों के निजीकरण करने, अपने हक में फैसले कराने, लोगों को मुसीबत में छोडऩे और महामारी से निपटने की जगह उसे प्राकृतिक आपदा कहकर हाथ बाँधकर बैठने में अधिक समय बिताया। कोरोना-काल में केंद्रीय मंत्रियों द्वारा खूब राजनीति हुई। इस दौरान केंद्र सरकार ने कई कानून बना डाले, जिसमें तीन कृषि कानूनों का लगभग पूरे देश में विरोध हो रहा है। देश के अधिकतर बच्चों की पढ़ाई भी अभी तक ठप पड़ी है; लेकिन सरकार डिजिटल पढ़ाई के नाम पर अपना पल्ला झाडऩे में लगी रही है।

प्राकृतिक आपदाएँ

इस साल कोरोना वायरस के भय और संक्रमण से बचाव की कोशिश में लोगों ने इस बात पर गौर ही नहीं किया कि और भी प्राकृतिक आपदाएँ इस साल बहुतायत में आयीं। इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण है, इस साल के ही शुरू में करीब दो दर्ज़न बार भूकम्प का आना। इसके अलावा कई नयी बीमारियों ने भी इस साल दस्तक दी है।

जन-सामान्य की समस्याएँ

वैसे तो देश की हर समस्या देश के हर नागरिक की है; लेकिन कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जो लोगों को सीधे-सीधे प्रभावित करती हैं। इन समस्याओं में निजी जीवन में आने वाली हर वह परेशानी आती है, जिसका सामना व्यक्ति खुद करता है। इसमें बीमारी से लेकर दैनिक जीवन की अनेक समस्याएँ हैं। लेकिन इस साल आम लोग जिन प्रमुख समस्याओं से दो-चार हुए, उनमें बेरोज़गारी, महँगाई और कोरोना नाम की महामारी ही थी।

क्या रहा अच्छा

ऐसा नहीं है कि इस साल सब कुछ बुरा ही बुरा रहा। इस साल भी कुछ बेहतर चीज़ें भी हुईं। इनमें अगर प्रमुखता से ध्यान दिया जाए, तो लोगों में साफ-सफाई की आदत का बढऩा, वातावरण का स्वच्छ होना, जीवन के महत्त्व को समझना, देश को राफेल विमानों का मिलना, लोगों द्वारा घरों में बन्द रहकर कोरोना वायरस पर बहुत हद तक काबू पा लेना काफी बड़ी बातें हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने लोगों की मदद के लिए 20 लाख करोड़ से अधिक के पैकेज की घोषणा की। हालाँकि इस पैकेज से कितने लोगों को क्या फायदा हुआ या हो रहा है, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता। इसी साल प्रधानमंत्री ने देश की सबसे लम्बी सुरक्षा सुरंग चेनानी-नाशरी का उद्घाटन किया।