अलविदा! चैंपियन ट्राफी

पाकिस्तान हाकी फेडरेशन और उनके प्रमुख एयर मार्शल नूर खान के प्रयासों से जिस चैंपियन हाकी ट्राफी का जन्म 17नवंबर 1978 को लाहौर में हुआ वह 40 साल बाद पहली जुलाई 2018 को नीदरलैंड्स के ब्रेडा में इतिहास बन गई। इन 40 सालों में इसके 37 संस्करण खेले गए। पहले टूर्नामेंट में कुल पांच टीमों ने भाग लिया था । ये टीमें थी – मेजबान पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, ग्रेट ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और स्पेन। यह वह वक्त था जब हाकी के कृत्रिम मैदान नए-नए आए थे और खेल की तकनीक और उसके कई नियम बदले गए थे। ध्यान रहे कि इन कृत्रिम मैदानों का इस्तेमाल पहली बार 1976 के माँट्रियल (कैनेडा) के ओलंपिक खेलों में हुआ था। इसका इतना असर पड़ा कि कुछ ही समय पहले 1975 में विश्व कप जीतने वाली भारत की टीम एक लीग मैच में आस्ट्रेलिया से छह गोल खा गई। वह समय भारतीय हाकी के पतन की शुरूआत के तौर पर याद किया जाता है। उस ओलंपिक के स्वर्ण पदक का फाइनल आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैड़ के बीच खेला गया । उस समय पाकिस्तान की टीम काफी मज़बूत थी, पर वह भी सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया से 1-2 से हार कर बाहर हो गई थी। पर तीसरे स्थान के लिए खेले गए मुकाबले में उसने नीदरलैंड्स को 3-2 से हरा कर कांस्य पदक जीत लिया। लेकिन भारत अपने पूल ‘एÓ में तीसरे स्थान पर रह का पदकों की दौड़ से पहले ही बाहर हो गया था। यहां उसे सातवां स्थान मिला।

इन हालात में चैंपियन ट्राफी का शुरू किया जाना सभी देशों को पसंद आया। पहले टूर्नामेंट में भारत नही था। इसका खिताब मेजबान पाकिस्तान ने जीता। उस समय की पाकिस्तानी टीम में सलीम उल्ला, हनीफ खान, अख्तर रसूल और कप्तान असलाहूद्दीन सिद्ीकी जैसे धुरंधर खिलाडी थे।

इस टूर्नामेंट का दूसरा संस्करण 1980 में खेला गया। मेजबानी फिर से पाकिस्तान ने की, पर तीन से 11 नवंबर तक चली इस प्रतियोगिता को इस बार कराची में आयोजित किया गया। इसमें कुल सात टीमों ने हिस्सा लिया। इस बार भारत भी इसमें था। पर वह छह में से केवल एक ही मैच जीत पाया और उसके दो मैच ‘ड्राÓ रहे और तीन मैच वह हार गया। भारत को एकमात्र जीत ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ मिली जिसे उसने 6-3 से परास्त किया। यहां पाकिस्तान विजेता बना जबकि भारत को पांचवा स्थान मिला। 1981 में भी इसकी मेजबानी कराची को मिली। इस बार भारत इसमें नहीं था। पाकिस्तान का प्रदर्शन इस बार फीका रहा और वह छह टीमों में से चौथा स्थान ही पा सका। पहले तीन स्थान नीदरलैंड्स, आस्ट्रेलिया और जर्मनी को मिले।

1982 में भारत इन मुकाबलों में खेला और नीदरलैंड्स और आस्ट्रेलिया के बाद तीसरा स्थान लेने में सफल रहा। भारत ने खेले पांच मैचों में से तीन में जीत दर्ज की। दो में उसे हार का मुंह देखना पड़ा। पाकिस्तान चौथे, जर्मनी पांचवे और सोवियत यूनियन की टीम छठे स्थान पर रहे।

यदि चैंपियसं टा्रफी के रिकार्ड पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इसमें यूरोपीय देशों और आस्ट्रेलिया का दबदबा रहा है। एशियायी देशों में केवल पाकिस्तान ही इसे तीन बार जीत सका है। आस्ट्रेलिया ने यह खिताब 15 बार, जर्मनी ने 10 बार, नीदरलैंड्स ने आठ बार और स्पेन ने एक बार इस पर अपनी मुहर लगाई है। भारत केवल दो बार इसके फाइनल में खेला है।

भारत का प्रदर्शन

चैंपियंस ट्राफी उस समय शुरू हुई जब अंतरराष्ट्रीय हाकी में कृत्रिम टर्फ आ चुकी थी। 1976 में माँट्रियल ओलंपिक से इस टर्फ की शुरूआत हुई। इस कृत्रिम टर्फ का आना भारत के लिए नुकसान देह रहा। 1975 में प्राकृतिक मैदान पर विश्व कप जीतने वाली भारत की टीम 15 महीने बाद माँट्रियल ओलंपिक खेलों में एक नौसिखिया टीम नज़र आने लगी। हालांकि यहां उसने पूल ए के पहले मैच में अर्जेंटीना को 4-0 से हराया। पर अगले मैच में वह नीदरलैंडस से 1-3 से और आस्ट्रेलिया से 1-6 से हार गई। उस समय तक भारत की यह सबसे बड़ी हार थी। 1928 के बाद यह पहली बार था कि भारत ओलंपिक के सेमी फाइनल में नहीं पहुंच पाया था। अंत में उसे सातवां स्थान मिला। 1964 का ओलंपिक विजेता और 1975 के विश्व कप जीतने वाला देश मैदान के हालात बदलते ही सातवें स्थान पर आ गया। हालांकि पाकिस्तान यहां सेमीफाइनल में था।

1978 में जब चैंपियनस ट्राफी की शुरूआत हुई तो भारत की हाकी बिखर चुकी थी। इसी कारण पहली चैंपियनस ट्राफी में हिस्सा नहीं लिया था। बाद में भी वह कुछ अधिक नहीं कर पाया। चैंपियनस ट्राफी में भारत ने कुल दो रजत और एक कांस्य पदक जीता है। भारत को तीन बार इस प्रतियोगिता की मेजबानी का अवसर मिला सबसे पहले 1996 में यह मद्रास में आयोजित की गई इसमें भारत चौथे स्थान पर रहा। 2005 में चेन्नई में आयोजित प्रतियोगिता में भारत पांचवें स्थान पर रहा और 2014 में जब यह भुवनेश्वर में खेली गई तो भारत फिर चौथे स्थान पर ही रहा।

अब यह प्रतियोगिता कभी नहीं खेली जाएगी और भारत के खाते में केवल दो रजत और एक कांस्य ही रहेगा।