अर्थ-व्यवस्था को संजीवनी

तमाम उलझनों और आँकड़ेबाज़ी से भरा है राहत पैकेज

कोरोना वायरस जैसी महामारी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा के अगले ही दिन से सिलसिलेवार तरीके पाँच बार प्रेस कॉन्फ्रेस करके केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया कि राहत पैकेज किस-किसके लिए है? उन्होंने जिस तरह से राहत पैकेज का ब्यौरा देशवासियों के साथ साझा करके देश की अर्थ-व्यवस्था को संजीवनी देने का प्रयास किया है, उसमें कोई शक नहीं कि मौज़ूदा दौर में लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था को बल मिलेगा। लेकिन आत्मनिर्भरता की बुनियाद पर हम कितने आत्मनिर्भर बनकर उभरेंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। इस 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग, प्रवासी मज़दूरों, रेहड़ी वालों छोटे किसानों के साथ जिस प्रकार से शहरी और ग्रामीण क्षेत्र को साधा गया है, उससे ये तो साफ हो गया है कि सरकार ग्रामीणों की उपेक्षा नहीं कर सकती है। कृषि क्षेत्र की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया गया है, जिसका किसानों को लाभ मिलेगा। हालाँकि सरकार ज़रूर ये दावा कर रही कि इतना भारी भरकम राहत पैकेज देश की अर्थ-व्यवस्था को ही नहीं, बल्कि जनमानस के बीच खुशहाली लाएगी। तहलका संवाददाता ने देश के व्यापारी, किसानों, आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक और आॢथक जानकारों से बात की तो उन्होंने बताया कि राहत पैकेज आँकड़ेबाज़ी में उलझा हुआ है, जिसकी हकीकत से दूर-दूर तक नाता नहीं है। क्योंकि यह दौर संकट से भरा है, जिसमें लोगों को तुरन्त राहत की ज़रूरत है। मगर यह राहत पैकेज शर्तों वाला है। कर्ज़ वाला है।

बताते चलें कि जीडीपी के करीब 10 फीसदी का यह पैकेज सही मायने में लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था को साधने में सफल होगा। हालाँकि 1.7 लाख करोड़ का पहले का राहत पैकेज और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दी गयी राहत भी इस पैकेज में शामिल है।

इस राहत पैकेज में सबसे ज़्यादा राहत एमएसएमई या सूक्ष्म, लघु और मध्यम उधोग क्षेत्र को दी गयी है, जो सही मायने में आॢथक संकट से जूझ रहे हैं। सरकार ने एमएसएमई को आत्मनिर्भर बनाने पर बल दिया है, जो देश के करीब 11-12 करोड़ लोगों को रोज़गार मुहैया कराती है। सरकार ने इनको चार साल तक तीन लाख करोड़ का बिना गारंटी का कर्ज़, जिसमें साल भर तक मूलधन नहीं लौटाना है। सरकार ने उन पर भी विशेष गौर किया है, जो अपने कारोबार का विस्तार करना चाहते हैं, लेकिन धन के अभाव में गति नहीं दे पा रहे हैं। उनके लिए 50 हज़ार करोड़ रुपये की इक्विटी का ऐलान किया है। इसी तरह बिजली कम्पनी को भी 90 हज़ार करोड़ रुपये की नकदी का ऐलान किया है; जो इस समय आॢथक संकट से जूझ रही है।

देश में जब भी अर्थ-व्यवस्था डगमगायी है, तब देश के किसानों ने अपनी मेहनत से पैदा की फसल से अर्थ-व्यवस्था को बल दिया है। सरकार ने इसे समझा है और सीमांत और छोटे किसानों को नाबार्ड के तहत 30 हज़ार करोड़ का कर्ज़ देने का ऐलान किया है।

आॢथक मामलों के जानकार राजकुमार का कहना है कि आत्मनिर्भरता का नारा देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनौतियों के बीच उम्मीद को नयी रफ्तार देने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि यह तो जगज़ाहिर है कि कोरोना वायरस नामक महामारी लम्बे समय तक मानव जीवन को भय के साथ सर्तक रहने को मजबूर करेगी। ऐसे हालात में सरकार पर निर्भर न होकर स्वरोज़गार पर निर्भर होना होगा। कृषि क्षेत्र में सरकार अगर सही मायने में किसानों की मदद करे, तो किसानों के बलबूते पर देश की अर्थ व्यवस्था को मज़बूत बनाया जा सकता है। उनका कहना है कि महात्मा गाँधी कहा करते थे कि जब तक खेत हरे-भरे न होंगे, तब तक देश का बाज़ार हरा-भरा नहीं हो सकता है। इसलिए सरकार को शहरी के साथ-साथ ग्रामीणों की ज़रूरतों को समझना होगा और उनको पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने होंगे, तब जाकर देश का किसान और मज़दूर आत्मनिर्भर बन पायेगा। जैसे दैनिक पारिश्रमिक को 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये किया है। इससे देश के करोड़ों मज़दूरों को लाभ होगा।

किसान चंद्रपाल सिंह का कहना है कि कोरोना कहर के दौरान जो भी संकट आया है, उससे सरकार की समझ में किसानों की उपयोगिता तो समझ में आ गयी है। क्योंकि वित्तमंत्री ने कृषि के मूलभूत ढाँचे के लिए एक लाख करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की है, जिसका इस्तेमाल भण्डारण क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाएगा। किसानों और तमाम फसलों के उत्पादन के लिए एक लाख करोड़ रुपये के पैकेज का विभिन्न मदों में आवंटित किया जाना है। इससे तो यह बात किसानों को समझ में आ रही है कि सरकार दिखावा कुछ ज़्यादा कर रही है, पर सही मायने में किसानों की समस्याओं का समाधान इस पैकेज में कम ही दिख रहा है। क्योंकि किसानों को समझ में आ रहा है कि राहत पैकेज के नाम पर सरकार एक प्रकार से कर्ज़ दे रही है, जिससे किसान सदैव कर्ज़ तले दबा रहेगा।

सदर बाज़ार दिल्ली के व्यापारी नेता राकेश यादव का कहना है कि मौज़ूदा समय में देश में लगभग 9 करोड़ छोटे व्यापारी हैं, जो देश की अर्थ-व्यवस्था में सदैव योगदान देते रहे हैं। पर इस राहत पैकेज में सरकार ने इन छोटे व्यापारियों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। उनका कहना है कि लॉकडाउन के कारण 52 दिनों से कपड़ा, जूता-चप्पल, किराना, फल और हलवाई सहित तमाम व्यापारियों का कारोबार पूरी तरह से ठप है। इसके कारण व्यापारियों की खुद की अर्थ-व्यवस्था बिगड़ गयी है। सरकार को इन व्यापारियों के लिए विशेष राहत पैकेज देना चाहिए, ताकि ये व्यापारी अपना कारोबार सुचारू रूप से चला सकें। कई व्यापारी तो ऐसे भी हैं, जो अपना कारोबार बन्द करने की स्थिति में आ गये हैं। उनका कारोबार बन्द न हो इसके लिए सरकार को तुरन्त राहत पैकेज से व्यापारी के कारोबार के मुताबिक बिना ब्याज वाला कर्ज़ देना चाहिए।

आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ. अनिल बंसल ने कहा कि 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज में स्वास्थ्य के लिए जो भी राहत देने की बात की जा रही है, वह घुमा-फिराकर की जा रही है। जबकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, विकासशील देश का स्वास्थ्य बजट जीडीपी का 10 फीसदी होता है। पर भारत देश में जीडीपी का 1 फीसदी ही रहा है। लेकिन अब ऐसे में जब भारत में कोरोना वायरस का कहर दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण करता जा रहा है, तो ऐसे में सरकार को अच्छा-खासा राहत पैकेज देना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हो सका। हालाँकि सरकार ने 15 हज़ार करोड़ रुपये से हर ब्लॉक में लैब और अस्पताल बनाने की बात कही है। डॉ. बंसल का मानना है कि हम ज़िला और ब्लॉक स्तर पर अस्पताल और लैब होने से ज़रूर कोरोना जैसी महामारी से लडऩे में सफल होंगे। लेकिन मौज़ूदा समय में कोरोना के कहर में राहत का यह पैकेज कितना कारगर होगा, यह तो आने वाला समय बताएगा। देश में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार देश की अर्थ-व्यव्स्था की मज़बूती की निशानी है। ऐसे में सरकार को निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य बढ़ावा देना चाहिए, ताकि बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया होने के साथ-साथ अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा मिल सके।

बताते चलें कि एक समान न्यूनतम वेतन, मुद्रा शिशु लोन, रेहड़ी-पटरी वालों को 10 हज़ार का शुरुआती ऋण, एक राहत कार्ड जिससे 67 करोड़ लोगों को लाभ होगा, प्रवासी कामगारों को मनरेगा में रोज़गार आदि पर सरकार ने अगर सही मायने में लोगों तक राहत पहुचाने में सफलता पा ली, तो निश्चित तौर पर किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। क्योंकि जिस अंदाज़ से वित्त मंत्री ने ये बातें कही हैं,प र उन पर सही मायने में अमल होना काफी मुश्किल है। क्योंकि लोन लेने की प्रक्रिया में बैंकों में जो दलाली-प्रथा हावी है, उसमें 10 हज़ार का लोन लेने वाला क्या लोन प्राप्त कर सकेगा? इस बारे में रेहड़ी-पटरी चलाने वाले ओमी गुप्ता ने बताया कि सरकार कह देती है कि लोन लेकर काम-काज शुरू करो, पर हमारे देश में लोन लेना, वो भी सरकारी बैंको से, इतना सरल नहीं है। बैंकों में लोन लेने के दौरान जो फार्म भरवाये जाते हैं और जमानती माँगे जाते हैं, वो काफी कठिन होता है। ऐसे में सरकार सीधे तौर पर कर्ज़ के तौर पर ही सही, पर अगर बैंक अकाउंट में ही पैसा देती, तो काफी राहत मिलती; अन्यथा यह राहत पैकेज सब यूँ ही है।

इंडियन फार्मा से जुड़े हरीश पाल वर्मा का कहना है कि सरकार का यह राहत पैकेज भारत को दुनिया की फार्मेसी बनाने की सपना पूरा करेगा और देशी उत्पाद अपनाने की माँग घरेलू दवा कम्पनियों के लिए काफी अहम व निर्णायक होगा। लोहा कारोबारी अनूप विमल ने बताया कि इस पैकेज से आॢथक गतिविधियों में तेज़ी आयेगी, जो लॉकडाउन के कारण बाज़ार में सुस्ती आयी है, अब फिर से बाज़ार में रौनक आयेगी और निर्माण कार्य को सहारा मिलेगा।

कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि राहत पैकेज लोन मेले के अलावा कुछ भी नहीं है। आपदा के इस समय में गरीब-मज़दूरों को नकदी की ज़रूरत है। उन्हें लोन बाँटने का प्रपंच किया जा रहा है। मनीष तिवारी का कहना है कि आज का पैकेज देखने से एक बात स्पष्ट हो गयी है कि मोदी सरकार ने आपदा-विपदा के समय प्रवासी मज़दूरों को दूध से मक्खी की तरह निकालकर बाहर फेंक दिया है। उन्होंने कहा कि वित्तमंत्री ने कहा कि भारत देश में 8 करोड़ प्रवासी मज़दूर हैं। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार सही आँकडा 11 करोड़ है। अगर ऐसे में सरकार ने 10 लाख प्रवासी मज़दूरों को घर पहुँचाया है, तो आँकड़ों के हिसाब से 7.90 करोड़ के बारे में क्या है? मनीष तिवारी का कहना है कि सरकार सत्ता के नशे में प्रवासी मज़दूरों की अनदेखी कर रही है। शर्म की बात है कि सरकार के पास उनकी मदद के लिए सिर्फ 3,500 करोड़ रुपये ही हैं।