अयोध्या में मस्जिद के लिए भी टैक्स में छूट

आख़िर नौ महीने के इंतज़ार के बाद इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन को अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए मिलने वाला चंदा कर (टैक्स) छूट के दायरे में होगा। इसी मुद्दे पर आधारित श्वेता मिश्रा की रिपोर्ट :-

इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ) की देखरेख में मस्जिद के निर्माण के लिए कर (टैक्स) छूट का निर्णय आवेदन किये जाने के क़रीब नौ महीने बाद हुआ है। इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन का गठन कर इसमें नौ सदस्यों को शामिल किया गया। अभी छ: और सदस्य ट्रस्ट में जल्द जुड़ेंगे। यह ट्रस्ट अयोध्या में मस्जिद और इस्लामिक सेंटर के निर्माण की निगरानी करेगा। उल्लेखनीय है कि आयकर अधिनियम की धारा-80(जी) निर्दिष्ट राहत कोष और धर्मार्थ संगठनों को दान करने पर उसमें आयकर छूट मिलती है।
फाउंडेशन के अध्यक्ष ज़फ़र फ़ारूक़ ने कहा कि उन्होंने पिछले साल पहली सितंबर को आयकर अधिनियम की धारा-80 जी के तहत कर छूट के लिए आवेदन किया था और आवेदन 21 जनवरी को ख़ारिज कर दिया गया था। उन्होंने 3 फरवरी को फिर से आवेदन किया और 10 मार्च तक सवालों के जवाब दिये। उन्होंने बताया कि आयकर विभाग द्वारा उठायी गयी आपत्तियों की प्रक्रियात्मक देरी ने मस्जिद के निर्माण के लिए मिलने वाले चंदे में दिक़्क़त पैदा की। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रमाण-पत्र मिलने में हो रही देरी को देखते हुए विदेशों से भी चंदा अटका हुआ है। अब तक हमें महज़ 20 लाख रुपये मिले हैं। हमने चंदे के लिए कोई अभियान शुरू नहीं किया है। सभी शुभचिन्तकों ने स्वेच्छा से दान दिया है। ट्रस्ट के अधिकारियों ने कहा कि देरी के कारण पूरी परियोजना को रोक दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद राज्य सरकार द्वारा आवंटित पाँच एकड़ ज़मीन पर मस्जिद के साथ परियोजना के तहत राष्ट्र निर्माण में मुसलमानों के योगदान को उजागर करने के लिए एक 300 बिस्तरों वाला सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, एक इंडो-इस्लामिक रिसर्च सेंटर और एक सामुदायिक रसोई का निर्माण किया जाना है। शोध संस्थान में एक पुस्तकालय और संग्रहालय भी बनाया जाएगा।
ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने कहा कि उन्हें अब प्रमाण पत्र मिल गया है। लेकिन वह चंदा जमा करने के लिए कोई ख़ास अभियान कभी भी शुरू नहीं करेंगे। यह पब्लिक डोमेन में होगा कि हम अन्य सुविधाओं के साथ एक मस्जिद का निर्माण कर रहे हैं। जो लोग चंदा देना चाहते हैं, वे कर सकते हैं। देश और विदेशों में पहले से ही कुछ लोगों ने चंदा देने का वादा किया है। सर्वोच्च न्यायालय के अयोध्या फ़ैसले के बाद गठित ट्रस्ट धारा-80(जी) प्रमाणीकरण के बिना धन की कमी की बात कही जा रही थी, जिससे धर्मार्थ प्रतिष्ठानों को दान के लिए कर में छूट देता है। आयकर विभाग द्वारा उठायी गयी आपत्तियों और सवालों के चलते मस्जिद-अस्पताल परिसर के निर्माण के लिए दान में बाधा उत्पन्न हुई। विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) की मंज़ूरी के अभाव में विदेशों से भी अंशदान अवरुद्ध हो गया, जो धारा-80(जी) को अनिवार्य शर्त बनाता है। आईआईसीएफ ने कर छूट जारी न करने पर वित्त मंत्रालय को हस्तक्षेप करने के लिए अनुरोध भेजा था।
कर छूट प्रमाण-पत्र के साथ इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने अयोध्या विकास प्राधिकरण को मस्जिद की निर्माण योजना सौंपी है, जिसका निर्माण अयोध्या के धन्नीपुर गाँव में किया जाएगा। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड द्वारा गठित मस्जिद ट्रस्ट ने इन निर्माणों के लिए ग़ैर-मुसलमानों सहित लोगों के एक बड़े वर्ग से दान के लिए बैंक विवरण जारी किया है। बाबरी मस्जिद के बदले ट्रस्ट, इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने दो प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों में लखनऊ के हेवेट रोड और विभूति खण्ड, गोमती नगर की शाखाओं में दो चालू खाते खोले हैं।
ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने कहा- ‘धन्नीपुर परिसर को साम्प्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल पेश करते हुए चिकित्सा, शिक्षण और उपदेश का केंद्र बनाने को हम सभी समुदायों से दान स्वीकार करेंगे। हमने दान प्राप्त करने के लिए एक गेटवे के साथ ट्रस्ट की एक वेबसाइट और पोर्टल बनाने का फ़ैसला किया है; क्योंकि हमें दान करने के इच्छुक लोगों से कई कॉल आ रहे हैं।’ उन्होंने स्पष्ट किया कि धन्नीपुर परिसर के लिए सभी समुदायों से चंदा लिया जाएगा। इसके लिए असम के एक सांसद अब्दुल ख़ालिक़ ने दान करने की पेशकश की है और हमें मुस्लिम भाइयों के साथ हमारे हिन्दू भाई भी चंदा देने के लिए उत्सुक हैं।
अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाया गया है। 9 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसले के बाद ने सरकार को तीन महीने के भीतर राम मन्दिर निर्माण के लिए न्यासी बोर्ड के गठन को एक ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया था। न्यायालय ने फ़ैसले में कहा था कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस और 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखना ग़ैर-क़ानूनी था। फ़ैसले के बाद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले को निपटाने के बाद मोदी सरकार द्वारा 15 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन किया गया था। ट्रस्ट ने नृत्य गोपाल दास को अपना अध्यक्ष चुना था, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा को अयोध्या में राम जन्मभूमि मन्दिर की मन्दिर निर्माण समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया, जो ट्रस्ट के सदस्यों में शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील के. परासरन न्यासी बोर्ड के प्रमुख के रूप में, जबकि ट्रस्ट के अन्य सदस्य हैं- जगतगुरु शंकराचार्य, ज्योतिषपीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज इलाहाबाद से, जगतगुरु माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नातीर्थ जी महाराज, पेजावर मठ उडुपी में, हरिद्वार से युगपुरुष परमानंद जी महाराज, पुणे से स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज और अयोध्या से विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा।