अयोध्या फैसले पर सबकी नज़र

अयोध्या पर आखिर फैसला आने वाला है। 16 अक्टूबर को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गयी और इसका फैसला कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया है। सम्भावना है कि अगले 23 दिन के भीतर (नवम्बर मध्य तक) यह फैसला आ जाएगा।

करीब 21 साल के बाद देश के इस सबसे बड़े मुद्दे पर फैसला आने के बाद क्या राजनीतिक-धार्मिक माहौल बनेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि फैसला क्या आता है। देश की राजनीति के लिहाज से भी यह मसला बहुत अहम है और भाजपा तो बिना इस मामले में एक पक्षकार होते हुए भी इसे लम्बे समय से भुनाती रही है। हालांकि देश के अधिकतर राजनीतिक दल यह कहते रहे हैं कि कोर्ट से जो भी फैसला आएगा, वो सभी को मंजूर होगा।

अदालत ने कहा कि अगले तीन दिन तक इस मामले में दस्तावेज जमा कराए जा सकते हैं। अदालत में 16 अक्टूबर को राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले की लगतार 40वें दिन सुनवाई हुई। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई शुरू होते ही मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने साफ कर दिया कि शाम पांच बजे मामले में अंतिम सुनवाई होगी। हालांकि सुनवाई एक घंटे पहले चार बजे ही खत्म हो गई।

मुस्लिम और हिंदू पक्ष ने अपनी-अपनी दलीलें अदालत के सामने रखीं। दोनों पक्षों के वकीलों के बीच तेज तरार बहस देखने को मिली। एक मौक़ा ऐसी भी आया जब मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने हिंदू महासभा के वकील की तरफ से पेश किए गए नक्शे को फाड़ दिया।

सुनवाई के दौरान सभी पक्षकारों ने अपनी ओर से लिखित बयान अदालत में पेश किए। सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई से पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि इस मामले में मध्यस्थता का कोई सवाल नहीं है और न ही उन्होंने ऐसा कोई प्रस्ताव रखा है। मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जो भी फैसला सुनाएगा वह मानने के लिए तैयार हैं।

निर्मोही अखाड़ा की तरफ से सुशील जैन ने कहा कि हमारा दावा मंदिर की भूमि, स्थाई संपत्ति पर मालिकाना अधिकार को अधिकार है। मुस्लिम पक्षकारों के इस दावे में भी दम नहीं है कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात बैरागी साधु जबरन इमारत में घुसकर देवता को रख गए थे। उन्होंने कहा कि ये मुमकिन ही नहीं कि मुसलमानों के रहते इतनी आसानी से वो घुस गए जबकि 23 दिसंबर को शुक्रवार था। इसी के साथ निर्मोही अखाड़ा की दलील पूरी हुई।

फिर शिया वक्फ बोर्ड की ओर से दलील शुरू हुई। शिया बोर्ड की ओर से कहा गया कि हमारा विवाद शिया बनाम सुन्नी बोर्ड को लेकर है, इस पर सुन्नियों का दावा नहीं बनता है। शिया वक्फ बोर्ड की ओर से एमसी धींगड़ा ने कहा कि वहां पर शिया मस्जिद थी, 1966 में आए फैसले से हमें बेदखल किया गया था। साल 1946 में दो जजमेंट आए थे एक हमारे पक्ष में और दूसरा सुन्नी के पक्ष में। बीस साल बाद 1966 में कोर्ट ने हमारा दावा खारिज कर दिया।

निर्मोही अखाड़ा की ओर से सुशील जैन ने कहा कि उन्होंने 1961 का एक नक्शा दिखाया, जो गलत था। उन्होंने बिना किसी सबूत के सूट फाइल कर दिया। वहां की इमारत हमेशा से ही मंदिर थी। ऐसा कोई सबूत नहीं है कि मस्जिद बाबर ने बनाई थी।

निर्मोही अखाड़ा ने रामजन्मभूमि न्यास की दलील का विरोध किया और कहा कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि बाबर ने मंदिर गिराया और मस्जिद बनाई। हमने हमेशा कहा है कि वो मंदिर ही था। हमने कभी मुस्लिमों को जमीन का हक ही नहीं दिया। इसपर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि जो सूट दायर किया गया है वह टाइटल का है, इसमें एक्सेस की कोई बात नहीं है।

ऑल इंडिया हिन्दू महासभा की ओर से विकास सिंह ने एडिशनल डॉक्यूमेंट के तौर पर पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की किताब बेंच को दी गई। इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने ज़ोरदार आपत्ति जताई। राजीव धवन ने कहा कि इसे ऑन रेकॉर्ड न लिया जाए, ये बिल्कुल नई चीज है। कोर्ट इसे वापस कर दें, इसपर अदालत की ओर से कहा गया कि ये किताब वो बाद में पढ़ेंगे।