अयोध्या पर ऐतिहासिक फैसले के लिए जाने जाएँगे जस्टिस गोगोई

17 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई फेयरवैल पार्टी में स्वतंत्रता बनाये रखने के लिए जजों को दिया- ‘मौन मंत्र’

जीवन में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो शख्स से शिख्सयत बन जाते हैं और हमेशा याद रहते हैं। यह भी कह सकते हैं कि कुछ लोग अपने जीवन में काम ही ऐसे कर जाते हैं कि इतिहास उन्हें दर्ज करने को मजबूर हो जाता है। ऐसी ही एक शिख्सयत हैं पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई। ऐतिहासिक अयोध्या समेत कई अहम फैसले देने वाले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) यानी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर, 2019 को सेवानिवृत्त हो गये। मुख्य न्यायाधीश के तौर पर उनका कार्यकाल एक साल 46 दिन यानी 411 दिन का रहा। 15 नवंबर, 2019 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में आिखरी दिन भी काम किया और वहीं से उन्हें विदाई भी दी गयी। इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि वकीलों को बोलन ेकी आज़ादी है और यह होनी चाहिए। मगर, जजों को अपनी आज़ादी का इस्तेमाल मौन रहकर करना चाहिए। हालाँकि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि उन्हें चुप रहना चाहिए, बल्कि अपने दायित्वों के निर्वाह के दौरान बोलना चाहिए; बाकी समय मौन रहना चाहिए। जस्टिस गोगोई अपनी विदाई से पहले राजधानी में राजघाट स्थित महात्मा गाँधी की समाधि स्थल पर गये और राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अॢपत की।

बता दें कि जस्टिस रंजन गोगोई 23 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए और 3 अक्टूबर, 2018 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 46वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद ग्रहण किया था। इस दौरान जस्टिस रंजन गोगोई ने एनआरसी, अयोध्या, सबरीमाला, तीन तलाक, सीजेआई दफ्तर आरटीआई के दायरे में जैसे अनेक मामलों पर ऐतिहासिक फैसले दिये, जिससे उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया।

पिता रह चुके असम के सीएम

जस्टिस गोगोई का जन्म 18 नवंबर, 1954 को ड्रिबूगढ़, असम में हुआ। इनके पिता केशब चंद्र गोगोई 1982 में असम के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे वकील भी थे। रंजन की पढ़ाई की शुरुआत ड्रिबूगढ़ के डॉन बोस्को स्कूल से हुई। इसके आगे की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली में की। गोगोई ने वकालत का पेशा अपनाया और 1978 में गुवाहाटी हाई कोर्ट में रजिस्ट्रेशन कराया। यहाँ उन्होंने वकालत की और 28 फरवरी, 2001 को यहीं जज नियुक्त हुए। 2010 को जस्टिस गोगोई  का पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में उनका जज के रूप में तबादला हुआ और 12 फरवरी, 2011 को यहीं पर मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए। 23 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने।

सीजेआई दफ्तर आरटीआई के दायरे में

सीजेआई के रूप में जस्टिस रंजन गोगोई ने कई बेहद अहम फैसले दिये। 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या मामले पर पाँच जजों की संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता करते हुए सीजेआई रंजन गागोई ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जस्टिस रंजन गोगोई एक ऐसे न्यायाधीश रहे हैं, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कार्यालय को भी सूचना का अधिकार कानून यानी आरटीआई एक्ट के दायरे में लाने का फैसला दिया। उन्होंने यह फैसला 13 नवंबर, 2019 को  सुनाया। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सार्वजनिक कार्यालय है; इसलिए यह भी सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आएगा। इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर फैसला दिया कि तय समय-सीमा में इसे लागू किया जाए, ताकि गैर-कानूनी तरीके से असम में रह रहे लोगों की पहचान की जा सके।  राफेल मामले पर 14 नवंबर, 2019 को जस्टिस गोगोई ने फैसला सुनाया। अमिताभ बच्चन की आय के मामले में भी जस्टिस रंजन गोगोई ने 2016 में टैक्स रिटर्न पर फैसला दिया था और अमिताभ बच्चन की आय व टैक्स रिटर्न की दोबारा जाँच करने का आदेश दिया था। उन्होंने 2016 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू को अवमानना का नोटिस भेज दिया था। अवमानना नोटिस के बाद जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने फेसबुक पोस्ट के लिए माफी माँगी। यही नहीं, पहली बार ऐसा हुआ कि कोर्ट की अवमानना के लिए कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायाधीश सी.एस. कन्नन को भी उन्होंने जेल में डाल दिया। जस्टिस गोगोई उस पीठ का हिस्सा भी रहे, जिसने लोकपाल अधिनियम को कमज़ोर करने के सरकार के प्रयासों को विफल कर दिया। जस्टिस रंजन गोगोई हमेशा ऐसे जस्टिस के तौर पर याद किये जाएँगे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की पवित्रता की रक्षा करने के लिए अपनों के िखलाफ भी आवाज़उठायी। इसके साथ ही जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के 25 जजों में से 11 में शामिल रहे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपनी सम्पत्ति का सार्वजनिक विवरण दिया।

विवादों में भी घिरे

संभवत: पहली बार हुआ कि सीजेआई रहते हुए सुप्रीम कोर्ट की ही एक पूर्व महिला कर्मचारी ने अक्टूबर, 2018 में यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया। सीजेआई ने मामले की सुनवाई की, जिसमें पहले वे खुद ही जज रहे। हालाँकि बाद में दूसरी तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और मामले को सिरे से खारिज करके उन्हें निर्दोष पाते हुए क्लीन चिट दे दी थी।

जस्टिस एस.ए. बोबडे बने सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई

17 नवंबर को जस्टिस गोगोई की सेवानिवृत्ति के अगले दिन 18 नवंबर को न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे ने देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें सीजेआई पद की शपथ दिलायी और बधाई दी। बता दें कि महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे जस्टिस बोबडे कई ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभा चुके हैं और अयोध्या के विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने के फैसले में भी शामिल रहे हैं।

इंसाफ तक आम आदमी की पहुँच हो

मैंने ऐसे संस्थान से जुडऩे फैसला किया जिसकी ताकत ही जनमानस का भरोसा और विश्वास है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इंसाफ तक आम आदमी की पहुँच हो और उसको यह लगे कि इंसाफ से कोई जुदा नहीं कर सकता। न्यायालय की ताकत आम जनता में कमाई उसकी साख से बनती है। मैं अब अति प्रतिष्ठित संस्थान का औपचारिक हिस्सा तो नहीं रहूँगा, परन्तु मेरा एक हिस्सा हमेशा इसके साथ रहेगा और इसके श्रेष्ठ की कामना करेगा।

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई