अब सौहार्द , भाई -चारा वाली बातेें और विश्वास नहीं रहा

जाफराबाद , मौजपुर, करावल नगर और गोकुलपुरी में हुये दंगों की लपटों की तपिष भले ही कम हो रही है। लपटों को बुझाने वाले और जलाने वालों के बीच, अब दंगाग्रस्त इलाकों  मेे रहने वालों के बीच एक अजीब सा माहौल बनता जा रहा है। आलम ये है कि दो समुदाय के बीच जो भी हिंसा  में मरा और लहुलुहान हुआ है उनके परिजनों से तहलका संवाददाता ने बात की तो उन्होंने बताया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान ये अंदेशा होने लगा था कि चुनाव परिणाम आने के बाद जरूर कुछ अनहोनी होगी। बताते चले है कि दिल्ली में मौजूदा राजनीति पर गौर करें तो राजनीतिक अब विचारिक मतभेदों में ना होकर आपसी और जाति ,पाति धर्म, कर्म की राजनीति में फंसी हुई है। दिल्ली के जानकारों का कहना है कि दिल्ली की 70 विधानसभा वाली सीटों में इस बार 2020 के विधानसभा चुनाव के पूर्व कभी भी जाति ,पाति और धर्म, कर्म की राजनीति नहीं होती थी । दिल्ली वाले यूपी और बिहार में जब भी चुनाव के दौरान हिंसा होती थी तो वहां कि निंदा करते थे पर अब दिल्ली में जो भी हो रहा है वह पूरी तरह से निंदनीय है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान धुव्रीकरण की राजनीति इस कदर हावी थी कि पाकिस्तान और हिन्दुतान की राजनीति करने नेता नहीं चूूके है। जाफराबाद , करावल में दंगा करने वालों ने खुले आम कत्लेआम कर दुकानों में लूटपाट की, स्कूली छात्राओं और महिलाओं के साथ बदसूकी की गई हैं । आज भी जाफराबाद  सहित  दंगाग्रस्त इलाकों में जो माहौल है। उससे अंदाजा इस बात का लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में स्थिति और भयानक होगी। जाफराबाद और ब्रहमपुरी की तंग गलियों की जंग की बातें बताने वालों ने बताया कि दो समुदायों के बीच जो भी हुआ है वो पूरी तरह से सुनियोजित था पर अब भी ये नहीं कहा जा सकता है कि आगे नहीं होगा। सबसे दुखद पहलू अब यहां के निवासियों के लिये ये हो गया है जो दषकों से दो समुदाय के बीच भाई -चारें का माहौल और आपसी सौर्हार्द और विश्वास था अब वो विश्वास शायद ही है कि दोबारा पनप पायें।