अफ़ग़ान पर फिर तालिबान हावी

अमेरिकी सैनिकों की वापसी से अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी लड़ाके करते जा रहे क़ब्ज़ा

एक तरफ़ अफ़ग़ानिस्तान में पिछले क़रीब 20 साल से उलझी अमेरिकी सेना तेज़ी से स्वदेश लौट हो रही है, तो दूसरी तरफ़ वहाँ तालिबान का क़ब्ज़ा बढ़ता जा रहा है। इसी 9 जून को तालिबान ने दावा किया कि 85 फ़ीसदी अफ़ग़निस्तान पर उसका क़ब्ज़ा हो गया है। हालाँकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का क़ब्ज़ा कोई ऐसी बात नहीं है, जिसे टाला नहीं जा सकता। उनके मुताबिक, तीन लाख अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के सामने 75 हज़ार तालिबान लड़ाके कहीं नहीं टिक सकेंगे। वैसे सम्भावना है कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूरी वापसी के बावजूद अमेरिकी दूतावास, काबुल हवाई अड्डे और अन्य प्रमुख सरकारी प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में उसके 800 के क़रीब सैनिक तैनात रहेंगे। अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के आने से निश्चित ही भारत पर भी असर पड़ेगा, भले भारत ने कहा है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति और सम्पन्नता के लिए लगातार कोशिश करता रहेगा। फ़िलहाल भारत इस बात से भी इन्कार कर रहा है कि वह काबुल, कंधार और मज़ार-ए-शरीफ़ स्थित मिशन को बन्द करने जा रहा है।
अमेरिका ने अपने सैनिकों के अफ़ग़ानिस्तान से लौटने की अवधि भी घटाकर अब 31 अगस्त कर दी है। राष्ट्रपति जो बाइडन पहले ही अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापस बुलाने के निर्णय का बचाव कर चुके हैं। वैसे जिस तेज़ी से अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिक वापस बुलाये गये हैं उस पर सवाल भी उठे हैं। हालाँकि बाइडन का कहना है कि ऐसा करके बहुत-सी ज़िन्दगियाँ बचायी गयी हैं। हालाँकि बाइडन के इस बयान के बीच चरमपंथी तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के नये इलाक़ों को लगातार अपने नियंत्रण में ले रहा है।
बता दें कि अमेरिका की सेना 11 सितंबर, 2001 को वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान गयी थी। इन 20 साल में अमेरिकी सेना लड़ी है। बाइडन के सत्ता सँभालने से पहले ही डोनॉल्ड ट्रंप प्रशासन ने तालिबान के साथ बातचीत की थी। उस समय मई, 2021 तक अमेरिकी सैनिकों की वापसी को लेकर सहमति हुई थी। हालाँकि बाइडन ने सत्ता में आने पर यह तारीख़ बढ़ा दी थी। भले कुछ लोग अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के अमेरिका के फ़ैसले से असहमति जता रहे हों, लेकिन हाल में अमेरिका में हुए कई सर्वे में अमेरिकियों ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को लेकर समर्थन जताया है। रिपब्लिकन समर्थक ज़रूर इस पर सन्देह जता रहे हैं।
अमेरिकी सैनिकों की वापसी का एक पड़ाव तब पूरा हो गया, जब 3 जुलाई को युद्धग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान के विशाल बगराम वायुसेना हवाई अड्डे को छोडऩे की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों ने दी। यह हवाई अड्डा क़रीब 20 साल से अमेरिकी सैनिकों द्वारा तालिबान के ख़िलाफ़ युद्ध के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला प्रमुख सैन्य अड्डा रहा है। यह ख़बर सामने आते ही तालिबान ने बगराम सौंपे जाने का स्वागत किया। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने मीडिया से कहा- ‘हम उम्मीद करते हैं कि हमारी ज़मीन पर कोई और विदेशी सैनिक नहीं है।’
अमेरिका के सैनिकों के हटने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में 17-18 हज़ार अनुवादक और द्विभाषियों की जान के लिए ख़तरा है। हालाँकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना के लिए काम करने वाले अनुवादकों, द्विभाषियों और दूसरे अफ़ग़ानों को देश से बाहर निकालने की कोशिश की जा रही है। इनमें से ज़्यादातर वही हैं, जिन्हें तालिबान से जान का ख़तरा है। बाइडन के मुताबिक, इन लोगों के अमेरिका आने के लिए 2500 स्पेशल माइग्रेट वीज़ा जारी किये गये हैं। रिपोर्ट लिखे जाने तक इनमें से क़रीब आधे अमेरिका जा चुके थे।
तालिबान का बढ़ता आतंक
अमेरिकी सैनिकों का अफ़ग़ानिस्तान से वापस लौटना तालिबान के आतंक को और धार दे गया है। तालिबान ने जहाँ अफ़ग़ानिस्तान के क़रीब 85 फ़ीसदी हिस्से पर क़ब्ज़ा करने का दावा किया है, वहीं उसने ईरान से लगते सीमांत इलाक़ों तक क़ब्ज़ा कर लिया है।
मॉस्को में 10 जुलाई को तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने दावा किया कि उसने अफ़ग़ानिस्तान के कुल 398 ज़िलों में से 250 पर क़ब्ज़ा जमा लिया है। वैसे रिपोट्र्स में उसके इस दावे की पुष्टि नहीं की गयी है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि उनका इस्लाम काला क़स्बे पर क़ब्ज़ा हो गया है। हालाँकि अफ़ग़ानिस्तान सरकार ने भी इसे लेकर कुछ नहीं कहा है। सरकारी अधिकारियों का इतना ही कहना है कि तालिबान के साथ संघर्ष जारी है। अफ़ग़ानिस्तान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि सभी अफ़ग़ान सुरक्षा बल इलाक़े में मौज़ूद हैं। तालिबान के क़ब्ज़े से इलाक़ों को छुड़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
पहले की तरह अब अफ़ग़ानिस्तान पर अपना आतंक बढ़ाते हुए तालिबान ने अपने नियम-क़ानून लागू करने शुरू कर दिये हैं। इनमें कहा गया है कि कोई महिला घर के बाहर अकेले नहीं निकल सकती। मर्दों के लिए दाढ़ी बढ़ाना ज़रूरी कर दिया गया है।
कुछ रिपोट्र्स में यह भी कहा गया है कि तालिबान के दबाव और डर से अफ़ग़ानिस्तान के सुरक्षा बल सीमा पार करके ताजिकिस्तान पहुँच रहे हैं। ताजिकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा की राज्य समिति क़रीब 300 अफ़ग़ानी सैनिकों के आने की पुष्टि कर चुकी है। कुछ रिपोट्र्स यह संख्या 1000 के क़रीब बता रही हैं। बता दें तालिबान के उत्तर-पूर्वी बद़ख़्शान प्रान्त के अधिकतर ज़िलों पर क़ब्ज़ें के बाद अफ़ग़ान सेना का यह पलायन सामने आया है। कई ज़िलों में बिना संघर्ष के उन्होंने हथियार डाल दिये।
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मुहिब ने वर्तमान घटनाओं पर कहा है कि तालिबान के क्षेत्र विस्तार का मतलब यह नहीं है कि अफ़ग़ानी उनका स्वागत कर रहे हैं। लोग अपने इलाक़ों की रक्षा के लिए तैयार हैं। सात ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर अफ़ग़ान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों को सौंपे गये हैं, जो चल रहे संघर्ष को नियंत्रण में लाने में मदद करेंगे। वहाँ के रक्षा मंत्रालय ने यह दावा भी किया है कि अफ़ग़ानी सेना के हाथों अब तक सैकड़ों तालिबानी आतंकवादी मारे गये हैं। अफ़ग़ान कमांडो बलों के कम-से-कम 10,000 सदस्य देश भर में तालिबान को ख़त्म करने में जुटे हैं। अमेरिका के एक ख़ूफिया आकलन में भी कहा गया है कि देश से अमेरिकी सेना पूरी तरह से हटने के महीनों के भीतर नागरिक सरकार को आतंकवादी समूह गिरा सकते हैं।
तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ते दबाव की बीच कुछ दूसरे देश अपने-अपने वाणिज्यिक दूतावासों को अब बन्द करने लगे हैं। उत्तर अफ़ग़ानिस्तान इलाक़ों में तालिबान के क़ब्ज़ें के बाद कुछ देशों ने उस इलाक़ें में अपने वाणिज्य दूतावास बन्द कर दिये हैं; जबकि ताजिकिस्तान में आरक्षित सैनिकों को दक्षिणी सीमा पर सुरक्षा और चाकचौबंद करने के लिए बुलाया जा रहा है।
उत्तरी बल्ख प्रान्त की राजधानी और अफ़ग़ानिस्तान के चौथे सबसे बड़े शहर मज़ार-ए-शरीफ़ में तुर्की और रूस के वाणिज्य दूतावासों के बन्द कर दिया है। ईरान ने कहा कि उसने शहर में स्थित अपने वाणिज्य दूतावास में गतिविधियों को सीमित कर दिया है। बल्ख प्रान्त में भी लड़ाई की ख़बर है; लेकिन प्रान्तीय राजधानी अपेक्षाकृत शान्त है। बल्ख प्रान्त के प्रान्तीय गवर्नर के प्रवक्ता ने हाल में कहा था कि कि उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, भारत और पाकिस्तान के वाणिज्य दूतावासों ने अपनी सेवाएँ कम कर दी हैं।

चीन की चाल
अफ़ग़ानिस्तान के बदख़्शान प्रान्त पर तालिबान का नियंत्रण होने के साथ ही इसके क़ब्ज़े वाले इलाक़ों की सीमा चीन के शिनजियांग प्रान्त की सीमा तक पहुँच गयी है। हाल में अमेरिकी अख़बार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अतीत में अल-क़ायदा से जुड़े चीन के वीगर विद्रोही गुटों के साथ तालिबान के ऐतिहासिक सम्बन्ध रहे हैं और यह बात चीन की परेशानी का सबब रही है। हालाँकि अब तस्वीर बदल गयी है और तालिबान चीन की चिन्ताओं को शान्त करने की कोशिश कर रहा है। तालिबान का मक़सद है कि उसकी सरकार को चीन की मान्यता मिल जाए।
चीन के सरकारी अख़बार ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा है कि उनका संगठन चीन को अफ़ग़ानिस्तान के दोस्त के रूप में देखता है और उसे उम्मीद है कि पुनर्निमाण के काम में चीन के निवेश के मुद्दे पर जल्द-से-जल्द उनकी बातचीत हो सकेगी। तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि हम उनका स्वागत करते हैं। अगर वह (चीन) निवेश लेकर आता है, तो हम बेशक उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। उसकी सुरक्षा हमारे लिए बेहद अहम है।’

युद्ध के नुक़सान
अफ़ग़ानिस्तान में 20 साल के तालिबान से युद्ध में अमेरिका को सेना, सुरक्षा, पैसे और आम ज़िन्दगियों की बड़ी क़ीमत अदा करनी पड़ी है। उसके क़रीब 2,312 पुरुष और महिला सैनिक इस युद्ध में मारे गये और उसे क़रीब 816 बिलियन डॉलर का नुक़सान भी झेलना पड़ा। इसके अलावा इस युद्ध में क़रीब 20,500 लोग घायल हुए, जिनमें से कुछ के अंग स्थायी रूप से चले गये। अमेरिका के अलावा सहयोगी देश ब्रिटेन के 450 और अन्य देशों के सैकड़ों सैनिकों की जान भी इस युद्ध में चली गयी, जबकि कई घायल हुए। अफ़ग़ानिस्तान को तो इससे भी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी। एक अभिलेख (रिकॉर्ड) के मुताबिक, उनके 55 से 60 हज़ार सुरक्षाकर्मी इस दौरान शहीद हुए, जबकि मरने वाले आम नागरिकों की संख्या सवा लाख के क़रीब मानी जाती है।

तालिबान के हाथ लगे अमेरिकी सैन्य हथियार
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के लौटने का सबसे बड़ा फ़ायदा तालिबान को यह हुआ कि उसने ज़मीन हथियाने के साथ-साथ अमेरिका के सैनिकों के हवाई अड्डे में रखे हथियारों और सैन्य वाहनों पर क़ब्ज़े कर लिया है। हाल में फोब्र्स पत्रिका ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि सैन्य अड्डों को ख़ाली करने के दौरान अमेरिकी सैनिक जो सैन्य वाहन आदि वहाँ छोड़ रहे हैं, उनके अफ़ग़ानिस्तान सेना के क़ब्ज़ें में जाने के बजाय यह तालिबान के साथ लग रहे हैं। फोब्र्स की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी सेना के 700 ट्रक और बख़्तरबंद वाहन तालिबान के क़ब्ज़े में पहुँच चुके हैं। बगराम वायुसेना हवाई अड्डे से भी तालिबान को बहुत कुछ हाथ लगा है, जिसे अमेरिकी सेना ने छोड़ दिया है। रिपोट्र्स के मुताबिक, उसके हाथ 270 फोर्ड रेंजर लाइट ट्रक, 141 नेविस्टार इंटरनेशनल 7,000 मीडियम ट्रक, एम1151 और कार्गो-बेड कॉन्फिगर हम्वी 329, तोपें, जबकि 21 ओशकोश बारूदी सुरंग प्रतिरोधी एटीवी भी हैं।
ज़ाहिर है ये सैन्य वाहन और हथियार तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान की सेना के मुक़ाबले ताक़तवर बनाने में मदद कर रहे हैं और अफ़ग़ानी सेना को कमज़ोर। रक्षा विशेषज्ञ अब मज़बूती से यह आशंका जताने लगे हैं कि तालिबान का दबदबा बढ़ा है और अफ़ग़ान सेना ही नहीं, सरकार भी कमज़ोर हुई है। बहुत-से जानकार मानते हैं कि यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले समय में तालिबान राजधानी काबुल पर भी क़ब्ज़ा कर सकता है। एक और रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने अमेरिकी सेना के छोड़े वाहनों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी शेयर की हैं।

भारत का नज़रिया


विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अफ़ग़ान में तालिबान की बढ़ती ताक़त की रिपोट्र्स के मद्देनज़र स्पष्ट तौर पर कहा कि वह अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति के लिए लगातार कोशिश करता रहेगा। वैसे भारत हालात को देखते हुए काबुल स्थित दूतावास या दूसरे वाणिज्य दूतावासों में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या ज़रूर कम कर सकता है। जयशंकर की हाल की रूस यात्रा के दौरान अफ़ग़ान पर अहम चर्चा हुई है। रूस और भारत के विदेश मंत्रियों के बीच वार्ता को लेकर कहा गया है कि सकारत्मक रही। भारत अफ़ग़ानिस्तान सरकार और वहाँ के राजनीतिक दलों से भी लगातार सम्पर्क बनाये हुए है। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान में अस्थिरता फैली है, उसे देखते हुए रूस की भावी भूमिका पर सभी की नज़र है। हाल में यह ख़बरें बड़ी तेज़ी से सामने आयी हैं कि भारत तालिबान के साथ सम्पर्क में है। भारत सरकार ने भले इससे साफ़तौर पर इन्कार किया है; लेकिन माना जा रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के बदलते हालात को देखकर भारत अपने हितों को लेकर हर सम्भव कोशिश में जुटा हुआ है। पाकिस्तान मीडिया तो कमोवेश लगातार इस तरह की ख़बरें भी चला रहा है। याद रहे सन् 1999 में जब भारत के एक यात्री विमान का अपहरण हुआ था, उसे अफ़ग़ानिस्तान के कंधार हवाई अड्डे पर ले जाया गया था। तब यह क्षेत्र तालिबान के नियंत्रण में था, लिहाज़ा अपहरण करने वालों और भारत के बीच मध्यस्थता वही कर रहा था। भारत के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब भारत सरकार को तालिबान के साथ किसी तरह का कोई सम्पर्क साधना पड़ा हो। हालाँकि उसके बाद भारत सरकार और तालिबान के कभी किसी सम्पर्क की सूचना नहीं रही। एक देश के रूप में भारत हमेशा अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के साथ खड़ा रहा। सन् 1996 में विमान अपहरण से तीन साल पहले जब तालिबान ने वहाँ की सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया था, तब भारत के राजनयिकों ने देश छोड़ दिया था। सन् 2001 में जब भारत ने अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ राजनयिक रिश्तों का हाथ बढ़ाया, तब अमरीका के नेतृत्व वाली नाटो फ़ौज ने तालिबान के ठिकानों पर हमले किये और उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। लेकिन चूँकि अब तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में फिर ताक़त हासिल कर चुका है, भारत के सामने एक चुनौती तो बनी ही है।
पिछले क़रीब दो दशक में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में सैकड़ों परियोजनाओं और आर्थिक मदद में हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च किये हैं। पिछले साल नबंबर में ही भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में 150 नयी परियोजनाओं का ऐलान किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो सन् 2015 में भारत के सहयोग से बने अफ़ग़ानिस्तान संसद के नये भवन का उद्घाटन करने के अलावा सन् 2016 में हेरात में 42 मेगावॉट वाली बिजली और सिंचाई परियोजना का उद्घाटन तक कर चुके हैं। बीआरओ भी अफ़ग़ानिस्तान में कई सड़कों निर्माण में सहभागी है। वहाँ की सेना, पुलिस और अधिकारियों को प्रशिक्षण भारत में मिलता है। अब जबकि तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान में दबाव बढ़ा है, भारत इस पर गहराई से सोच रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का कहना है कि भारत अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी तरह के इस्लामिक अमीरात का समर्थन नहीं करेगा। तालिबान ख़ुद को इस्लामिक अमीरात ऑफ अफ़ग़ानिस्तान के रूप में पेश करता रहा है। ज़ाहिर है भारत तालिबान को यह सन्देश दे रहा है कि उसे भारत का समर्थन मिलने की कल्पना नहीं करनी चाहिए। हालाँकि इसके बावजूद तालिबान से भारत की बातचीत की ख़बरें सामने आने से यह आभास तो मिलता ही है कि भारत अमेरिका सेना के पूरी तरह लौट जाने के बाद की स्थिति को लेकर कोई बेहतर विकल्प सोच रहा है।

 

“तालिबान अगले 100 वर्षों में भी अफ़ग़ान सरकार को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर नहीं कर सकता। तालिबान और उसके समर्थक देश में वर्तमान रक्तपात और विनाश के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार हैं।”

अशरफ़ गनी
राष्ट्रपति, अफ़ग़ानिस्तान