अपराधी बनते प्यार में असफल युवा

छत्तीसगढ़ के कवर्धा के रेंगाखार के चमारी गाँव के एक मकान में 3 अप्रैल को सुबह 9:00 बजे विस्फोट हुआ। शुरू में गैस सिलेंडर के फटने की आशंका जतायी गयी; लेकिन पुलिस जाँच में पता चला कि घर में बारात के सामान में आये नये होम थिएटर में धमाका हुआ था। होम थिएटर म्यूजिक सिस्टम को चालू करने में दूल्हा हेमेंद्र मरावी और उसके भाई राजकुमार मरावी की मौक़े पर ही मौत हो गयी। हेमंत मेरावी की 30 मार्च को शादी हुई थी।

जाँच से सामने आया कि शादी से पहले नव विवाहिता के बालाघाट जिले के छपला गाँव के सरजू मरकाम के साथ प्रेम सम्बन्ध थे। लेकिन दोनों के बीच झगड़ा हो गया और बातचीत तक बंद हो गयी। शादी से कुछ दिन पहले भी दोनों के बीच झगड़ा हुआ और लडक़े ने बदला लेने का मन बना लिया। उसने एक होम थिएटर ख़रीदा और उसे शादी वाले दिन लडक़ी के घर रख आया। शादी का सब सामान जब ससुराल जाने लगा तो वह होम थिएटर भी उसी में चला गया। आरोपी प्रेमी सरजू ने उस होम थिएटर म्यूजिक सिस्टम में बारूद इस तरह डाल रखा था कि सिस्टम ऑन करते ही ब्लास्ट हो जाए, और वही हुआ। आरोपी पहले एक खदान में काम करता था और उसने उसी दौरान वहाँ से अमोनियम नाइट्रेट चोरी कर अपने घर में रखा हुआ था। इस दर्दनाक घटना के वक़्त दुल्हन अपने मायके किसी रस्म के लिए गयी हुई थी।

कबीरधाम के पुलिस अधीक्षक लाल उमेद सिंह ने बताया कि आरोपी सूरज को धारा-307 और धारा-302 आईपीसी के तहत गिरफ़्तार किया गया है और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के अंतर्गत भी जुर्म दर्ज किया गया है। छत्तीसगढ़ की इस दर्दनाक ख़बर को राष्ट्रीय अख़बारों के अलावा अंतरराष्ट्रीय अख़बारों ने भी छापा। यह ख़बर चौंकाने वाली है। दरअसल अपराध के लिए विस्फोटक पदार्थों का इस्तेमाल नया नहीं है; लेकिन प्रेम प्रसंग में असफल रहने पर विस्फोटक पदार्थ का इस्तेमाल यह बताता है कि अपराधी मानसिकता वाले प्रेम के मामलों में भी इसका इस्तेमाल करने से नहीं हिचकचाते। प्रेम प्रसंग के ममलों में कटुता आने पर नाराज़ प्रेमी तेज़ाब का इस्तेमाल लडक़ी,उसके रिश्तेदारों पर किया करते हैं। कई तरह की प्रताडऩाएँ भी देने वाली ख़बरें अक्सर सामने आती रहती हैं। अब आशंका यह भी जतायी जा रही है कि कहीं आने वाले दिनों में नाराज़ प्रेमी इस तरह की घटनाओं को अंजाम न देने लगे। अपराधी फ़िल्मों, यूट्यूब व आपराधिक घटनाओं से अपराध करने के तरीक़े बहुत जल्दी सीखते हैं और उनका इस्तेमाल भी करते हैं।

सवाल यह है कि प्रौद्योगिकी दिन-ब-दिन उन्नत तो हो रही है; लेकिन उसके साथ ही साथ उसका इस्तेमाल अपराध को अंजाम देने के लिए भी किया जा रहा है। इसे महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए एक औज़ार के तौर पर किया जाने लगा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और इससे सम्बन्धित औज़ार ने महिलाओं व लड़कियों के जीवन को कहीं-न-कहीं असुरक्षित भी बना दिया है। वर्ष 2020 में एक विदेशी एमआईटी टेक्नोलॉजी रिव्यू कम्पनी को 15 प्राइवेट फोटो के स्क्रीनशॉट मिले। इनमें एक एक युवा महिला का था, जो टॉयलेट में बैठी हुई थी। उसका चेहरा ढका हुआ था; लेकिन उसकी तस्वीर उसकी मध्य जाँघ तक ली गयी थी। और यह तस्वीर किसी इंसान ने न लेकर, बल्कि आईरोबेटस के विकसित वर्जन रूंबा जे7 सीरीज वैक्यूम ने लिया है। यह रूंबा चलती फिरती छोटी मशीने होती हैं। इसमें इंटरनेट से जुड़े उपकरण फोटो लेते हैं और आगे सिस्टम को भेज देते हैं और उनके साथ अभिगम नियंत्रण भी लिखा होता है, यानी हरेक तक उसे देखने की पहुँच नहीं होती।

आईरोबेटस कम्पनी ने यह तो माना कि जिनके फोटो सोशल मीडिया पर आये हैं, वे इस बात से सहमत थे कि रूंबा उनकी निगरानी कर सकता है। एमआईटी रिवयू ने जब इस कम्पनी से सहमति समझौता के दस्तावेज़ दिखाने के लिए माँगे, तो कम्पनी ने ऐसा करने से मना कर दिया। कृत्रिम बुद्धिमत्ता की रफ़्तार ने ख़तरे की घंटी बजायी है। टेक कम्पनियों पर पारदर्शिता नहीं बरतने के आरोप बराबर लगते रहते हैं। एआई इमेजस के साथ तोड़-मरोड़ भी करता है। महिलाएँ और लड़कियाँ भी इसकी शिकार हो जाती हैं। एआई टूल की ताकत का इस्तेमाल महिलाओं व लड़कियों की कमज़ोर छवि दिखाने के लिए भी किया जाता है। दरअसल विज्ञान ने प्रगति कर ली और प्रोद्योगिकी की गति भी बहुत तेज़ है; लेकिन समाज की मानसिकता उस रफ़्तार से तालमेल नहीं बिठा रही।

महिलाओं-लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा का सम्बन्ध है, तो यह सदियों पुरानी सामंती मानसिकता की उपज है और आधुनिक उपभोक्तावादी संस्कृति इसे खाद-पानी दे रही है। यही नहीं प्रौद्योगिकी के टूल भी महिलाओं के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो रहे हैं। सदियों साल पुरानी महिला विरोधी मानसिकता आज भी जिंदा है, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा एक जटिल मुद्दा है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। निराशा, पागलपन, हताशा। महिलाओं को अपनी संपत्ति मानना और उस पर नियंत्रण रखने वाली मानसिकता। महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा एक सामाजिक अपराध है और इसे रोकने में एक समाज के तौर पर हम सब विफल रहे हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा अक्सर महिलाओं को अधीनस्थ स्थिति में रखने के लिए सामाजिक नियंत्रण का एक औज़ार है। इसकी जड़ें गहरी हैं। बेशक देश में महिलाओं, लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा को रोकने के लिए कई क़ानून हैं; लेकिन उनका सख़्ती से पालन ज़मीन पर दिखायी नहीं देता।

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली ऐनी राजा का मानना है कि तकनीक महिलाओं को आगे बढऩे के मौक़े भी प्रदान करती है; लेकिन तकनीक से उत्पन्न असुरक्षा से निपटने के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता के साथ-साथ महिलाओं को तकनीक के इस्तेमाल में भी प्रशिक्षित करने की बहुत ज़रूरत है।’ प्रौद्योगिकी जैसे-जैसे उन्नत हो रही है, वैसे-वैसे दुनिया सिमट रही है। पल भर में सूचनाएँ विश्व के साथ साझा हो जाती हैं। लेकिन इससे महिलाओं व बच्चों की ज़िन्दगी को मुश्किल भी बना दिया है। पूर्व प्रेमी, पूर्व पति इसी उन्नत तकनीक के ज़रिये महिलाओं व लड़कियों को कई तरह से परेशान भी करते रहते हैं। महिलाओं को ऑनलाइन परेशान करने के मामलों ने सबका ध्यान खीचा हैं। कोरोना महामारी ने इस तरह की हिंसा को और बढ़ाया, वजह तालाबंदी के कारण घरों से बाहर पुरुष नहीं निकल पाये, घर से ही काम करने की मजबूरी व वेतन में कटौती आदि कई कारकों ने पुरुषों के व्यवहार को हिंसक बनाने में अपनी भूमिका निभायी। नतीजतन महिलाओं व महिलाओं-लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ गयी। यही नहीं जो महिलाएँ-लड़कियाँ घरों से बाहर नहीं निकल पायी उनके प्रेम प्रंसगों में दूरी आयी और कई को उनके साथियों ने ऑनलाइन हिंसा का शिकार बनाया। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी मीडिया को बताया कि तालाबंदी के दौरान महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा की अनेक शिकायतें उन्हें मिली। यही नहीं, महिलाओं के लिए फोन पर शिकायत दर्ज कराना आसान नहीं था। पति सारा दिन घर पर ही रहते थे।

फ्रांस सरकार ने तालाबंदी के दौरान हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए बाहर होटल में ठहरने का बंदोबस्त अपने ख़र्च पर किया था। ऑनलाइन हिंसा महिलाओं व लड़कियों के मानसिक, मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। हिंसा उनकी गरिमा पर चोट करती है। वे ख़ुद को कमतर आँकने लगती है। लैंगिक हिंसा का डिजिटल पहलू भी महिलाओं को बहुत क्षति पहुँचाता है। यह उनकी जीविका, पारिवारिक सम्बन्धों और प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करता है। यही नहीं डिजिटल मंचों पर महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा में रंग भेदभाव भी साफ़ झलकता है।

एक अध्ययन के अनुसार, ट्विटर पर अपमानजनक टिप्पणियों की शिकार होने की सम्भावना अश्वेत महिलाओं की अपेक्षा श्वेत महिलाओं में 84 प्रतिशत अधिक होती है। धार्मिक व विशिष्ट संस्कृति की अल्पसंख्यक महिलाओं को भी आसानी से हिंसा का शिकार बना लिया जाता है। मानवाधिकारों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी पाया कि समलैंगिक स्त्रियाँ, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर महिलाएँ आदि ने ट्विटर पर अधिक अपमानजनक टिप्पणियों का सामना किया। महिला अधिकारों, बराबरी के नारे लगाये जाते हैं, इसे लेकर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन भी हुए और कई सम्मेलन भी आयोजित किये गये। महिला अधिकार मानवाधिकार है, इस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनी। लेकिन क्या हक़ीक़त में महिलाएँ सुरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ की नवीनतम घटना चौंकाने वाली ही नहीं है, बल्कि सचेत करती है।

सर्वोच्च न्यायालय के वकील राजेश त्यागी को आशंका है कि आने वाले वक़्त में एकतरफ़ा प्यार में विफल हताश, मानसिक सन्तुलन खोने वाले पुरुष, युवक कहीं ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न करने लगें। यह घटना समाज के लिए एक नये ख़तरे का आभास दिलाती है।